17-10-2024, 07:10 AM
जैसे ही पूरी तरह खलास होकर उसपर से मेरी पकड़ ढीली हुई, वह मुझे छोड़कर उछला और टेबल पर चढ़ गया और मुझे घसीट कर उस बड़े से टेबल के बीचोंबीच ले आया। अब वह टेबल हमारे लिए एक तख्तपोश की तरह था जिसपर मैं पूरी तरह पसरी हुई थी। अब मेरे पैर हवा में नहीं बल्कि टेबल पर ही पूरी तरह आ गये थे। हे भगवान, अब यह क्या करने वाला था? मेरे सवाल का जवाब तुरंत ही मिल गया। वह मेरे पेट के दोनों ओर घुटनों के बल आ गया और मेरी बड़ी बड़ी चूचियां को अपने हाथों से आपस में सटा लिया। अब वह मेरी चूत रस से सना हुआ खंभा मेरी उन्नत चूचियों की घाटी पर रखा।
"यह कककक्या कर रहे हो... " मैं जानबूझकर अनजान बनते हुए चौंक कर बोली।
"तुम्हारा इत्ता बड़ा बड़ा तरबूजों और गांड़ को देखकर ही तो हम तुमको चोदने के लिए मरे जा रहे थे। अब जब मऊका मिला है तो काहे नहीं तुम्हारे तरबूजों के बीच की घाटी का भी मजा लिया जाय।" कहकर वह मेरी चूचियों को दबोच कर उनके बीच अपना लंड घुसेड़ कर आगे पीछे करने लगा। यह बड़ा उत्तेजक कृत्य था। मेरी चूत की चिकनाई से लिथड़ा उसका लंड सर्र सर्र मेरी चूचियों के बीच फिसलता हुआ आगे पीछे होने लगा था।
"इसको कहते हैं चूची चुदाई। साला अईसा मस्त चूची को चोदना, हमारा किस्मत में लिखा हुआ था। तुम्हारी चूत तो चूत, साली चूची भी कमाल है। आह आह आह आह.. ..." वह ऐसा ही कुछ का कुछ बोल रहा था और चूचियों के बीच लंड घसे जा रहा था। यह बड़ा ही उत्तेजक कृत्य था। बस चार पांच मिनट में ही मैं पुनः गरम हो गई और अपनी उत्तेजना का इजहार अपनी चूतड़ टेबल पर पटकते हुए करने लगी। इस संकेत को भी समझने में उससे कोई ग़लती नही हुई।
"फिर से तईय्यार?" वह मुझसे पूछ रहा था या पूछने की औपचारिकता पूरी कर रहा था क्योंकि अभी मेरी चूत की कुटाई में उसके द्वारा अभी भी काफी कसर बाकी थी, वह पुनः मेरी चूत में डुबकी लगाने का यह अवसर कैसे जाया होने देता।
"अब भी पूछ रहे हो सूअर की औलाद? कर ना... " मैं बदहवासी के आलम में बोली। इस आमंत्रण की जरूरत भी नहीं थी फिर भी वह जहां औपचारिकता निभा रहा था तो मैं भी औपचारिकता निभा बैठी थी। इस वक्त मैं पूरी तरह टेबल पर थी और वह फिर से मुझ पर सवारी गांठने हेतु मेरे पैरों को फैलाकर बीच में घुस गया। इस वक्त मैं पूर्ण समर्पण की मुद्रा में थी। बिना विलंब, उसका हथियार फिर से सट्टाक से मेरी चूत के अंदर आ घुसा। मेरे पैर अपने आप हवा में उठ गये जिन्हें थामकर वह अपने कंधों पर चढ़ा लिया और फिर जो धक्कमपेल का दौर चला वह पहले से अधिक भीषण था। वह भी पूरे जोश में और मैं भी पूरे जोश में एक दूसरे में समा जाने की जद्दोजहद करने लगे। मैं उसकी स्तंभन क्षमता की कायल हो गयी। यह घमासान करीब दस मिनट तक और चला तब जाकर हम दोनों करीब करीब एक साथ चरमोत्कर्ष तक पहुंचे। कुल मिलाकर कहूं तो वह पूरे तीस मिनट तक संभोग में लिप्त रहा और तब जाकर उसके लंड का ज्वालामुखी फटा और ओह मां क्या ज्वालामुखी फटा था रे बाआआआप, गरमागरम वीर्य का लावा निकल कर मेरे गर्भ को सराबोर करने लगा। यह एक सुखद संयोग ही था कि ठीक उसी वक्त मैं भी स्खलन के सुखद दौर से गुजरने लगी।
"ऊऊऊऊऊऊ मांआंआंआंआं गयी मैं गयीईईईईईईई....." मैं आनंद के सागर में गोते खाते हुए उसके शरीर से चिपक गई। करीब दो मिनट तक एक दूसरे को कस कर दबोचे हुए स्खलन का मजा लेते रहे फिर उसका लंड फुच्च से मेरी चूत से बाहर निकल आया। हम दोनों निढाल होकर हांफने लगे।
"आआआआआआह मजा आ गया। तू सचमुच जित्ती दिखाई देती है उससे कहीं ज्यादा सेक्सी है। सच्ची कहें तो अब्भिए दू तीन बार अऊर तुझ पर आराम से चढ़ाई किया जा सकता है।" वह ऐसे बोला जैसे अभी ही दो तीन बार और चोदने की तमन्ना है। मैं घबरा गई। हे भगवान, यह आदमी है कि चोदने की मशीन।
"क क क क्या मतलब है तुम्हारा?" मैं घबराकर बोली। एक ही चुदाई में मुझे दो बार झाड़ दिया था अब इसी वक्त पुनः चोदने की बात कर रहा था। मेरा हाथ अनायास ही उसके लंड पर पड़ा तो वह भीगे चूहे की तरह सिकुड़ चुका था। समझ गई कि वह यों ही बकवास किए जा रहा था।
"हम सच्ची कह रहे हैं। तुम अभी तो कॉलेज की छुट्टी होने तक रहोगी ही। काहे नहीं दो तीन बार अऊर हो जाए।" वह मुझे लालची नजरों से घूरते हुए बोला।
"हट हरामी। अपना पपलू तो देखो, भीगा चूहा बन कर सिकुड़ गया है, बात करता है। वैसे भी तू ने मुझे इतना निचोड़ा है कि अब मुझमें और ताकत नहीं है झेलने की। मेरा तो हो गया।" मैं उस घमासान चुदाई से पूरी तरह संतुष्ट हो गई थी। मैं उस सुखद चुदाई के रस से सराबोर थी और सच बोलूं तो थक भी गयी थी। कुछ देर मुझे संभलने में समय लगने वाला था। मेरे पैर भी थक चुके थे। घनश्याम ने तो जो किया था किया था, रही सही कसर इस रघु के बच्चे ने पूरी कर दी। मेरी चूत का तो मानो कचूमर निकाल दिया था गधे ने। जैसे जैसे चुदाई का नशा उतर रहा था वैसे वैसे मुझे अपनी चूत में हल्की हल्की मीठी जलन का अनुभव होने लगा था। हां अब धीरे-धीरे यह भी महसूस होने लगा कि उस दौरान किस बुरी तरह मेरी चूचियों को भी निचोड़ा गया था। मैं कुछ देर उसी टेबल पर पसर कर लेटे रहना चाहती थी।
"तो अब?" वह प्रश्नसूचक दृष्टि से मुझे देखते हुए बोला।
"अब मुझे थोड़ा शांति से आराम करने दो।" मैं अलसाई सी उसी नंग धड़ंग अवस्था में लेटी लेटी आंखें बंद करते हुए बोली।
"आराम करेगी? अरे अब्भी तो एक ही दौर चला है। बस अब्भिए आराम चाहिए? अब्भी हमारा मन कहां भरा है अऊर तुम कईसे बोल रही है कि तुझमें अऊर ताकत नहीं बचा है? इत्तन्ना जल्दी तुम्हारा मन नहीं भर सकता है। इत्ती दमदार लौंडिया का इत्ता जल्दी कईसे हो गया। झूठ बोल रही हो ना?" वह बोला।
"मैं सच कह रही हूं। मेरा हो गया।" मुझे उसकी बातों से डर लगने लगा था। इतनी जल्दी यह दुबारा चोदने की कैसे सोच सकता था। इतनी जल्दी जल्दी चुदाई का दौर जारी रखेगा तो मैं तो मर ही जाऊंगी।
"झूठ। सरासर झूठ। हमारा पसंद नहीं आया तो बात अऊर है।" वह बोला।
"नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है। तुम तो बड़े जबरदस्त हो।" मैं बोली। यह मेरी ईमानदारी से भरी स्वीकारोक्ति थी।
"जबरदस्त हैं तो फिर का प्रोब्बलेम है। एक अऊर हो जाए। मां कसम, जिंदगी भर याद रखोगी कि किसी असली मरद से पाला पड़ा है। जितनी लड़कियों को हम चोदे हैं, ऊ सबके सब मां की लौड़ियां जब तब हमसे चुदवाने चली आती हैं। हमारा बात मान जाओ पिलीज।" वह अनुनय विनय की मुद्रा में मुझसे बोला और मैं द्रवित हो उठी।
"ठीक है। चलो मान लेती हूं लेकिन यह तुम्हारे सिकुड़े हुए चूहे से होगा क्या? अगर अगले दो मिनट में खड़ा नहीं हुआ तो दुबारा करने के बारे में भूल जाओ।" मैं जानती थी कि अब वह इस शर्त में हार मान कर मुझे दुबारा चोदने का ख्याल मन से निकाल देगा। लेकिन मैं गलत थी।
"ठीक है। तुम पीछे मत हट जाना।" वह बोला तो मैं उसके आत्मविश्वास से चकित हो गयी और भयभीत भी। अगर सचमुच ऐसा हुआ तो मेरी दुर्गति तय थी। पहली चुदाई में ही उसने मेरा कस बल निकाल दिया था। फिर भी मुझे विश्वास था कि ऐसा होना संभव नहीं है।
"यह कककक्या कर रहे हो... " मैं जानबूझकर अनजान बनते हुए चौंक कर बोली।
"तुम्हारा इत्ता बड़ा बड़ा तरबूजों और गांड़ को देखकर ही तो हम तुमको चोदने के लिए मरे जा रहे थे। अब जब मऊका मिला है तो काहे नहीं तुम्हारे तरबूजों के बीच की घाटी का भी मजा लिया जाय।" कहकर वह मेरी चूचियों को दबोच कर उनके बीच अपना लंड घुसेड़ कर आगे पीछे करने लगा। यह बड़ा उत्तेजक कृत्य था। मेरी चूत की चिकनाई से लिथड़ा उसका लंड सर्र सर्र मेरी चूचियों के बीच फिसलता हुआ आगे पीछे होने लगा था।
"इसको कहते हैं चूची चुदाई। साला अईसा मस्त चूची को चोदना, हमारा किस्मत में लिखा हुआ था। तुम्हारी चूत तो चूत, साली चूची भी कमाल है। आह आह आह आह.. ..." वह ऐसा ही कुछ का कुछ बोल रहा था और चूचियों के बीच लंड घसे जा रहा था। यह बड़ा ही उत्तेजक कृत्य था। बस चार पांच मिनट में ही मैं पुनः गरम हो गई और अपनी उत्तेजना का इजहार अपनी चूतड़ टेबल पर पटकते हुए करने लगी। इस संकेत को भी समझने में उससे कोई ग़लती नही हुई।
"फिर से तईय्यार?" वह मुझसे पूछ रहा था या पूछने की औपचारिकता पूरी कर रहा था क्योंकि अभी मेरी चूत की कुटाई में उसके द्वारा अभी भी काफी कसर बाकी थी, वह पुनः मेरी चूत में डुबकी लगाने का यह अवसर कैसे जाया होने देता।
"अब भी पूछ रहे हो सूअर की औलाद? कर ना... " मैं बदहवासी के आलम में बोली। इस आमंत्रण की जरूरत भी नहीं थी फिर भी वह जहां औपचारिकता निभा रहा था तो मैं भी औपचारिकता निभा बैठी थी। इस वक्त मैं पूरी तरह टेबल पर थी और वह फिर से मुझ पर सवारी गांठने हेतु मेरे पैरों को फैलाकर बीच में घुस गया। इस वक्त मैं पूर्ण समर्पण की मुद्रा में थी। बिना विलंब, उसका हथियार फिर से सट्टाक से मेरी चूत के अंदर आ घुसा। मेरे पैर अपने आप हवा में उठ गये जिन्हें थामकर वह अपने कंधों पर चढ़ा लिया और फिर जो धक्कमपेल का दौर चला वह पहले से अधिक भीषण था। वह भी पूरे जोश में और मैं भी पूरे जोश में एक दूसरे में समा जाने की जद्दोजहद करने लगे। मैं उसकी स्तंभन क्षमता की कायल हो गयी। यह घमासान करीब दस मिनट तक और चला तब जाकर हम दोनों करीब करीब एक साथ चरमोत्कर्ष तक पहुंचे। कुल मिलाकर कहूं तो वह पूरे तीस मिनट तक संभोग में लिप्त रहा और तब जाकर उसके लंड का ज्वालामुखी फटा और ओह मां क्या ज्वालामुखी फटा था रे बाआआआप, गरमागरम वीर्य का लावा निकल कर मेरे गर्भ को सराबोर करने लगा। यह एक सुखद संयोग ही था कि ठीक उसी वक्त मैं भी स्खलन के सुखद दौर से गुजरने लगी।
"ऊऊऊऊऊऊ मांआंआंआंआं गयी मैं गयीईईईईईईई....." मैं आनंद के सागर में गोते खाते हुए उसके शरीर से चिपक गई। करीब दो मिनट तक एक दूसरे को कस कर दबोचे हुए स्खलन का मजा लेते रहे फिर उसका लंड फुच्च से मेरी चूत से बाहर निकल आया। हम दोनों निढाल होकर हांफने लगे।
"आआआआआआह मजा आ गया। तू सचमुच जित्ती दिखाई देती है उससे कहीं ज्यादा सेक्सी है। सच्ची कहें तो अब्भिए दू तीन बार अऊर तुझ पर आराम से चढ़ाई किया जा सकता है।" वह ऐसे बोला जैसे अभी ही दो तीन बार और चोदने की तमन्ना है। मैं घबरा गई। हे भगवान, यह आदमी है कि चोदने की मशीन।
"क क क क्या मतलब है तुम्हारा?" मैं घबराकर बोली। एक ही चुदाई में मुझे दो बार झाड़ दिया था अब इसी वक्त पुनः चोदने की बात कर रहा था। मेरा हाथ अनायास ही उसके लंड पर पड़ा तो वह भीगे चूहे की तरह सिकुड़ चुका था। समझ गई कि वह यों ही बकवास किए जा रहा था।
"हम सच्ची कह रहे हैं। तुम अभी तो कॉलेज की छुट्टी होने तक रहोगी ही। काहे नहीं दो तीन बार अऊर हो जाए।" वह मुझे लालची नजरों से घूरते हुए बोला।
"हट हरामी। अपना पपलू तो देखो, भीगा चूहा बन कर सिकुड़ गया है, बात करता है। वैसे भी तू ने मुझे इतना निचोड़ा है कि अब मुझमें और ताकत नहीं है झेलने की। मेरा तो हो गया।" मैं उस घमासान चुदाई से पूरी तरह संतुष्ट हो गई थी। मैं उस सुखद चुदाई के रस से सराबोर थी और सच बोलूं तो थक भी गयी थी। कुछ देर मुझे संभलने में समय लगने वाला था। मेरे पैर भी थक चुके थे। घनश्याम ने तो जो किया था किया था, रही सही कसर इस रघु के बच्चे ने पूरी कर दी। मेरी चूत का तो मानो कचूमर निकाल दिया था गधे ने। जैसे जैसे चुदाई का नशा उतर रहा था वैसे वैसे मुझे अपनी चूत में हल्की हल्की मीठी जलन का अनुभव होने लगा था। हां अब धीरे-धीरे यह भी महसूस होने लगा कि उस दौरान किस बुरी तरह मेरी चूचियों को भी निचोड़ा गया था। मैं कुछ देर उसी टेबल पर पसर कर लेटे रहना चाहती थी।
"तो अब?" वह प्रश्नसूचक दृष्टि से मुझे देखते हुए बोला।
"अब मुझे थोड़ा शांति से आराम करने दो।" मैं अलसाई सी उसी नंग धड़ंग अवस्था में लेटी लेटी आंखें बंद करते हुए बोली।
"आराम करेगी? अरे अब्भी तो एक ही दौर चला है। बस अब्भिए आराम चाहिए? अब्भी हमारा मन कहां भरा है अऊर तुम कईसे बोल रही है कि तुझमें अऊर ताकत नहीं बचा है? इत्तन्ना जल्दी तुम्हारा मन नहीं भर सकता है। इत्ती दमदार लौंडिया का इत्ता जल्दी कईसे हो गया। झूठ बोल रही हो ना?" वह बोला।
"मैं सच कह रही हूं। मेरा हो गया।" मुझे उसकी बातों से डर लगने लगा था। इतनी जल्दी यह दुबारा चोदने की कैसे सोच सकता था। इतनी जल्दी जल्दी चुदाई का दौर जारी रखेगा तो मैं तो मर ही जाऊंगी।
"झूठ। सरासर झूठ। हमारा पसंद नहीं आया तो बात अऊर है।" वह बोला।
"नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है। तुम तो बड़े जबरदस्त हो।" मैं बोली। यह मेरी ईमानदारी से भरी स्वीकारोक्ति थी।
"जबरदस्त हैं तो फिर का प्रोब्बलेम है। एक अऊर हो जाए। मां कसम, जिंदगी भर याद रखोगी कि किसी असली मरद से पाला पड़ा है। जितनी लड़कियों को हम चोदे हैं, ऊ सबके सब मां की लौड़ियां जब तब हमसे चुदवाने चली आती हैं। हमारा बात मान जाओ पिलीज।" वह अनुनय विनय की मुद्रा में मुझसे बोला और मैं द्रवित हो उठी।
"ठीक है। चलो मान लेती हूं लेकिन यह तुम्हारे सिकुड़े हुए चूहे से होगा क्या? अगर अगले दो मिनट में खड़ा नहीं हुआ तो दुबारा करने के बारे में भूल जाओ।" मैं जानती थी कि अब वह इस शर्त में हार मान कर मुझे दुबारा चोदने का ख्याल मन से निकाल देगा। लेकिन मैं गलत थी।
"ठीक है। तुम पीछे मत हट जाना।" वह बोला तो मैं उसके आत्मविश्वास से चकित हो गयी और भयभीत भी। अगर सचमुच ऐसा हुआ तो मेरी दुर्गति तय थी। पहली चुदाई में ही उसने मेरा कस बल निकाल दिया था। फिर भी मुझे विश्वास था कि ऐसा होना संभव नहीं है।