14-10-2024, 07:45 PM
"ई का। अब जो काम के लिए हम इहां हैं उसमें ई सब करने का क्या जरूरत। ई बेकार ढंका ढंकी का डरामा काहे। अऊर इस तरह चोरी चोरी लौड़ा देखने का क्या जरूरत। ले पकड़ कर देख ना।" कहकर उसने मेरा हाथ पकड़ कर मेरी छाती पर से हटा दिया और अपने फनफनाते लंड पर रख दिया। उफ भगवान, कितना सख्त और गरम था। लंबा तो था ही और मोटा तो इतना कि मेरी मुट्ठी में भी नहीं समा रहा था। मैं अपना हाथ उसके लन्ड से हटाना चाह रही थी लेकिन किसी अज्ञात शक्ति के कारण मानो मेरा हाथ उसके लंड पर चिपक कर रह गया था। मैं सर से पांव तक गनगना उठी। मेरा ध्यान अब अपनी चूचियों को ढंकने की बजाय उसके लंड पर था। ऐसा शानदार लंड भला किसी आदमी का कैसे हो सकता है? भगवान भी कभी कभी कैसे कैसे खेल खेलता है। ऐसा लग रहा था मानो किसी गधे का लंड उस रघु की किस्मत में था। हे भगवान, इसी अमानवीय लंड से यह रघु का बच्चा मुझे चोदने की फिराक में था। उफ उफ। सोच कर ही मेरे शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गई।
"आआआआआआह कितना बढ़िया लग रहा है मेरे लंड पर तुम्हारा हाथ। बहुत बढ़िया, अब जरा अपने हाथ से मेरे लौड़े के ऊपर के चमड़े को आगे पीछे करो ना फिर देखो कितना मज़ा आता है।" उसके कहने की देर थी कि मेरा हाथ अपने आप हरकत में आ गया। उस वक्त ऐसा लग रहा था जैसे उसने मुझ पर पूरा नियंत्रण कर लिया था और मैं यंत्रवत उसकी आज्ञा का पालन कर रही थी। मेरे सोचने समझने की शक्ति मानो कहीं हवा हो गई थी। इसी दौरान उसने मेरी चूचियों को सहलाना और मसलना आरंभ कर दिया था।
"बाआआआप रेएएएएए बाआआआआप, इत्तन्ना सख्त और बड़ा बड़ा चूची, गजब का चूची पाई हो। मजा ही आ गया।" वह मेरी चूचियों को दबाते हुए बोला। मेरी नग्न चूचियों पर उसके हाथों के स्पर्श से मेरा पूरा शरीर सनसना उठा था। मेरे सारे शरीर में मानो हजारों चींटियां रेंगने लगीं थीं।
"आआआआआआह ओओओओओहहहहह शैतान... " मैं आहें निकालने को बाध्य हो गई। इतने से ही बस नहीं हुआ उसका। दूसरे हाथ से वह मेरे उस हाथ को हटाने लगा जिससे मैंने अपनी चूत ढंक रखी थी। मैं चाह कर भी विरोध नहीं कर पा रही थी। मेरा हाथ बिना किसी खास विरोध के अपनी जगह से हट गया और उसका स्थान रघु के दूसरे हाथ ने ले लिया।
"अरे राम राम। कित्तन्ना बड़ा बुर है तुम्हारा। साला पूरा मालपुआ जईसा। और और ई क्या , तुम्हारा बुर तो पानी पानी हो गया। इतना जल्दी पानी तो आज तक किसी लौंडिया का नहीं निकला था। मान गया तुमको। आज सच्ची में चोदने का मजा आ जाएगा। इत्ती कम उमर में इत्ती बड़ी बड़ी चूचियां और इत्ता बड़ा बुर।" इतना कहकर सहलाते सहलाते उसने एक उंगली कच्च से मेरी चूत में घुसेड़ दिया।
"उईईईईईईई मांआंआंआंआंआं... ।" मैं तड़प उठी। मैं उसके सामने से हटना चाहती थी लेकिन वह आगे बढ़ता चला गया और मुझे ठेलता हुआ एक टेबल तक ले गया। यह मुझे पता चला जब मेरे चूतड़ों पर टेबल का स्पर्श हुआ। अब भी वह मुझे ठेल ही रहा था, नतीजा यह हुआ कि मैं उस टेबल पर पीठ के बल गिर गई। गिर क्या गयी, एक तरह से उसने मुझे उस टेबल पर गिरा दिया था। अब मेरे शरीर का ऊपरी हिस्सा टेबल पर पीठ के बल पड़ा हुआ था और मेरे पैर टेबुल से नीचे झूल रहे थे। वह मेरी टांगों को फैला कर उनके बीच घुस कर मुझ पर झुक गया था। यह सबकुछ हो रहा था और मेरी ओर से कोई प्रतिरोध नहीं हो रहा था। ऐसा लग रहा था मानो मैं किसी सम्मोहन की गिरफ्त में थी। उसकी तो निकल पड़ी थी। वह बड़े आराम से मुझ पर झुक कर मेरी चूचियों सूंघने लगा।
"अर्रे ई तो पूरा पका हुआ संतरा है। जरा चूस कर इसका स्वाद देखते हैं।" इतना कहकर वह मेरी एक चूची पर मुंह लगा दिया।
"उईईईईईईई मांआंआंआंआं....." मुझे लगा जैसे किसी ने मेरे अंदर के सितार के तारों को झंकृत कर दिया हो। मुंह लगाकर कर उसने तो बकायदा चूसना आरंभ कर दिया। सितार के तार झनझनाने लगे।
"आआआआआआह इस्स्स्स्स् नननननहींहींहीईंईंईंईं....." मेरी सिसकारियां निकलने लगीं थीं। मैं उस टेबल पर जल बिन मछली की तरह तड़प रही थी और वह मुझ पर पूरी तरह हावी हुआ जा रहा था। तभी मेरी चूत पर कठोर खंभे की दस्तक हुई। मैं समझ गई कि अब उसके लंड का हमला होने वाला है लेकिन वह भी एक नंबर का खेला खाया चुदक्कड़ था। उसने धीरे धीरे मेरी चूत पर अपना लंड रगड़ना आरंभ किया। इस क्रिया के द्वारा वह मुझे इतना उत्तेजित कर चुका था कि किसी भी पल मेरे मुंह से खुला निमंत्रण निकल सकता था। ऐसा लग रहा था जैसे वह मेरे मुंह से ही बुलवाना चाह रहा था कि अब बहुत हुआ, अब चोद भी डाल। यही हुआ भी।
"आआआआआआह ओओओओओहहहहह अब बस करो ना... " में मचलते हुए बुदबुदा उठी।
"न न न न हम तो बस यही करेंगे।" वह जालिम तो मुझे तडपा कर मार ही डालने के फिराक में था शायद। यह मेरे सब्र की इंतहा थी।
"यही करने के लिए यहां लाए हो?" मैं झल्ला उठी।
"तो अऊर का करने के लिए?"
"साले हरामी अब यह खेल बंद करके जो करने को लाए हो करते काहे नहीं हराम के......।" आखिर में मेरे सब्र का पैमाना छलक ही उठा और मैं गुस्से और उत्तेजना के अतिरेक में फट पड़ी। मेरे मुंह से इतना खुला आमंत्रण सुनकर उसकी खुशी का पारावार न था।"बस एही सुनना चाहते थे हम। तुम कॉलेज की लड़कियों का एही डरामा देख देख कर पक चुके हैं। शुरू में ना नुकुर अऊर फिर लौड़ा लेने के लिए मरी जाती हैं। अब देख ई रघु का धमाल।" कहकर उसने लंड रगड़ना छोड़ कर लंड को चूत के प्रवेश द्वार पर रखा और एक ही जोरदार धक्के से मेरी चूत का मुंह फाड़ते हुए अपना मूसल घुसेड़ दिया।
"आआआआआआह मां के.. .. ऐसाआआआआ... न कर बेदर्दी?" मैं चीख पड़ी।
"अईसा नहीं तो कईसा? एही मेरा इस्टाईल है।" कहकर उसने मेरी जांघों को पकड़ कर अपनी ओर खींचा और घपाक, एक जोरदार धक्के से पूरा लंड मेरी चूत में घुसेड़ दिया।
"आआआआआआह मांआंआंआंआं ओओओओहहहह....." मैं उस दूसरे धक्के से फिर चीख उठी। उसकी मनोदशा का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था। इतने दिनों के इंतजार का फल जो मिल रहा था। पूरी कसर निकाले बिना थोड़ी न मानने वाला था। अब मैं पूरी तरह उसके चंगुल में थी जिसका पूरा फायदा उठाए बिना छोड़ने वाला नहीं था। जोश जोश में मानो वह होश खो बैठा था उसी का परिणाम यह करारा प्रहार था।
"अब चिल्ला मत बुरचोदी, चुदवाने आई है कि मां चुदाने आई है, खाली चिल्ल पों मचा रही है। देखने में इत्ता बड़ा बुर मगर इत्ता टाईट होगा हमको का पता था। इत्ता टाईट बुर तो आज तक चोदा नहीं। अब तो हो गया ना? अब काहे मां मां कर रही है हरामजादी।" वह अब मेरे लिए सारा आदर सम्मान छोड़कर भाषा की मर्यादा लांघ चुका था।
"दर्द हो रहा है आआआआआआह..." मैं बोली।
"हां हां, दर्द तो होगा। पहिले पहल सबको हमारा लौड़ा से दर्द होता है, लेकिन बाद में सब बोलती हैं, चोदो चोदो। चुदने के लिए खुद ब खुद दौड़ी चली आती हैं साली रंडियां।" वह अपने लंड पर घमंड करता हुआ बोला। उस बेचारे को क्या पता कि मैं घनश्याम, घुसा और गंजू जैसे बड़े बड़े लंड वालों से चुद चुकी हूं। यह तो मात्र नाटक था जिससे रघु का उत्साह बढ़े। हां थोड़ा दर्द तो अवश्य हुआ था क्योंकि इसका लंड लंबाई में जरूर थोड़ा कम था लेकिन मोटाई में उनसे कहीं ज्यादा था। लेकिन चुदाई का मजा लेना था तो ऐसे थोड़े बहुत दर्द को बर्दाश्त करने में नुकसान क्या था। वैसे भी अब जो होना था वह तो हो ही चुका था। उसने जीत का झंडा गाड़ दिया था। अब झूठ मूठ का मेरा चीखना चिल्लाना बेमानी था। वैसे भी अब मेरे अंदर चुदने का नशा तारी हो चुका था। मैंने अवश होकर अपने दोनों हाथों से उसे अपनी बांहों से कस कर पकड़ लिया और पैरों को हवा में उठा कर उसकी कमर में लपेट लिया। यह मेरी ओर पूरी तरह रजामंदी का सिग्नल था। इसके बाद तो रघु के अंदर जैसे दुगुने उत्साह का संचार हो गया। "ई हुआ न बात। अब देख रघु का चुदाई। साली बहुत दिनों से तरसाई हो। इस बीच साला चार पांच लड़कियों को ठोक लिया लेकिन फिर भी जब भी तुमको देखता तो ई मादरचोद मेरा लौड़ा टनटना जाता था। तुमको देखता तो झाड़ियों के पीछे जाकर मूठ मारता था। अब जाकर मिला है मऊका।" कहकर पूरे जोशो-खरोश के साथ चोदने में भिड़ गया। ओह ओह जबरदस्त तरीके से ठाप पर ठाप मारने लगा था वह। हर ठाप में अपने लंड की पूरी लंबाई का भरपूर इस्तेमाल कर रहा था। मैं अपनी चूत के मुंह से लेकर अंदर तक और उसके लंड के घर्षण का अभूतपूर्व आनंद लेने लगी थी।
"ओह ओह आह आह....इस्स इस्स इस्स" मेरी सिसकारियां निकलने लगी थीं।
"चप चप चप छप छप छप... " हर धक्के से निकलने वाले इन तालबद्ध आवाज से वह प्रयोगशाला गूंज रहा था और गूंज रही थी मेरी आनंदमई सिसकारियां। उन घक्कों के परिणामस्वरूप उस चिकने टेबल पर मैं पीछे की ओर खिसकती तो वह मेरी जांघों को पकड़ सामने घसीट घसीट कर चोद रहा था। इस चुदाई के दौरान वह कभी मेरी चूचियों को मसलता, कभी मेरी गान्ड के बंगलों पर थप्पड़ मारता और कभी गांड़ के नीचे हाथ लगा कर मसलता रहा। सबकुछ, जो वह कर रहा था, उन सबसे मुझे चुदाई का भरपूर आनंद प्राप्त हो रहा था। ओह उस सामान्य कद-काठी का आदमी इतना दम रखता है इसका अंदाजा मुझे अब हो रहा था। सात आठ मिनट में ही मैं खल्लास होने के कागार पर आ गई।
"आआआआआआह आआआआआआह आआआआआआह.. ... " मैं आहें भरते हुए उसके जिस्म से चिपक गई और आंखें बंद कर उस मधुर स्खलन का आनंद लेने लगी। मेरा शरीर मानो हवा में उड़ रहा था। वह भी खेला खाया चुदक्कड़ था। मेरी स्थिति से अनभिज्ञ नहीं था। कुछ पल मुझे चिपका कर स्थिर हो गया। वह ठीक से जानता था कि मुझे फिर से गरम करके कैसे अपनी मंजिल तक पहुंचा जा सकता है। आखिर न जाने इस कॉलेज में कितनी लड़कियों को इस लैब में ला कर राजू जैसे लफंगों के साथ मजा किया होगा।
"आआआआआआह कितना बढ़िया लग रहा है मेरे लंड पर तुम्हारा हाथ। बहुत बढ़िया, अब जरा अपने हाथ से मेरे लौड़े के ऊपर के चमड़े को आगे पीछे करो ना फिर देखो कितना मज़ा आता है।" उसके कहने की देर थी कि मेरा हाथ अपने आप हरकत में आ गया। उस वक्त ऐसा लग रहा था जैसे उसने मुझ पर पूरा नियंत्रण कर लिया था और मैं यंत्रवत उसकी आज्ञा का पालन कर रही थी। मेरे सोचने समझने की शक्ति मानो कहीं हवा हो गई थी। इसी दौरान उसने मेरी चूचियों को सहलाना और मसलना आरंभ कर दिया था।
"बाआआआप रेएएएएए बाआआआआप, इत्तन्ना सख्त और बड़ा बड़ा चूची, गजब का चूची पाई हो। मजा ही आ गया।" वह मेरी चूचियों को दबाते हुए बोला। मेरी नग्न चूचियों पर उसके हाथों के स्पर्श से मेरा पूरा शरीर सनसना उठा था। मेरे सारे शरीर में मानो हजारों चींटियां रेंगने लगीं थीं।
"आआआआआआह ओओओओओहहहहह शैतान... " मैं आहें निकालने को बाध्य हो गई। इतने से ही बस नहीं हुआ उसका। दूसरे हाथ से वह मेरे उस हाथ को हटाने लगा जिससे मैंने अपनी चूत ढंक रखी थी। मैं चाह कर भी विरोध नहीं कर पा रही थी। मेरा हाथ बिना किसी खास विरोध के अपनी जगह से हट गया और उसका स्थान रघु के दूसरे हाथ ने ले लिया।
"अरे राम राम। कित्तन्ना बड़ा बुर है तुम्हारा। साला पूरा मालपुआ जईसा। और और ई क्या , तुम्हारा बुर तो पानी पानी हो गया। इतना जल्दी पानी तो आज तक किसी लौंडिया का नहीं निकला था। मान गया तुमको। आज सच्ची में चोदने का मजा आ जाएगा। इत्ती कम उमर में इत्ती बड़ी बड़ी चूचियां और इत्ता बड़ा बुर।" इतना कहकर सहलाते सहलाते उसने एक उंगली कच्च से मेरी चूत में घुसेड़ दिया।
"उईईईईईईई मांआंआंआंआंआं... ।" मैं तड़प उठी। मैं उसके सामने से हटना चाहती थी लेकिन वह आगे बढ़ता चला गया और मुझे ठेलता हुआ एक टेबल तक ले गया। यह मुझे पता चला जब मेरे चूतड़ों पर टेबल का स्पर्श हुआ। अब भी वह मुझे ठेल ही रहा था, नतीजा यह हुआ कि मैं उस टेबल पर पीठ के बल गिर गई। गिर क्या गयी, एक तरह से उसने मुझे उस टेबल पर गिरा दिया था। अब मेरे शरीर का ऊपरी हिस्सा टेबल पर पीठ के बल पड़ा हुआ था और मेरे पैर टेबुल से नीचे झूल रहे थे। वह मेरी टांगों को फैला कर उनके बीच घुस कर मुझ पर झुक गया था। यह सबकुछ हो रहा था और मेरी ओर से कोई प्रतिरोध नहीं हो रहा था। ऐसा लग रहा था मानो मैं किसी सम्मोहन की गिरफ्त में थी। उसकी तो निकल पड़ी थी। वह बड़े आराम से मुझ पर झुक कर मेरी चूचियों सूंघने लगा।
"अर्रे ई तो पूरा पका हुआ संतरा है। जरा चूस कर इसका स्वाद देखते हैं।" इतना कहकर वह मेरी एक चूची पर मुंह लगा दिया।
"उईईईईईईई मांआंआंआंआं....." मुझे लगा जैसे किसी ने मेरे अंदर के सितार के तारों को झंकृत कर दिया हो। मुंह लगाकर कर उसने तो बकायदा चूसना आरंभ कर दिया। सितार के तार झनझनाने लगे।
"आआआआआआह इस्स्स्स्स् नननननहींहींहीईंईंईंईं....." मेरी सिसकारियां निकलने लगीं थीं। मैं उस टेबल पर जल बिन मछली की तरह तड़प रही थी और वह मुझ पर पूरी तरह हावी हुआ जा रहा था। तभी मेरी चूत पर कठोर खंभे की दस्तक हुई। मैं समझ गई कि अब उसके लंड का हमला होने वाला है लेकिन वह भी एक नंबर का खेला खाया चुदक्कड़ था। उसने धीरे धीरे मेरी चूत पर अपना लंड रगड़ना आरंभ किया। इस क्रिया के द्वारा वह मुझे इतना उत्तेजित कर चुका था कि किसी भी पल मेरे मुंह से खुला निमंत्रण निकल सकता था। ऐसा लग रहा था जैसे वह मेरे मुंह से ही बुलवाना चाह रहा था कि अब बहुत हुआ, अब चोद भी डाल। यही हुआ भी।
"आआआआआआह ओओओओओहहहहह अब बस करो ना... " में मचलते हुए बुदबुदा उठी।
"न न न न हम तो बस यही करेंगे।" वह जालिम तो मुझे तडपा कर मार ही डालने के फिराक में था शायद। यह मेरे सब्र की इंतहा थी।
"यही करने के लिए यहां लाए हो?" मैं झल्ला उठी।
"तो अऊर का करने के लिए?"
"साले हरामी अब यह खेल बंद करके जो करने को लाए हो करते काहे नहीं हराम के......।" आखिर में मेरे सब्र का पैमाना छलक ही उठा और मैं गुस्से और उत्तेजना के अतिरेक में फट पड़ी। मेरे मुंह से इतना खुला आमंत्रण सुनकर उसकी खुशी का पारावार न था।"बस एही सुनना चाहते थे हम। तुम कॉलेज की लड़कियों का एही डरामा देख देख कर पक चुके हैं। शुरू में ना नुकुर अऊर फिर लौड़ा लेने के लिए मरी जाती हैं। अब देख ई रघु का धमाल।" कहकर उसने लंड रगड़ना छोड़ कर लंड को चूत के प्रवेश द्वार पर रखा और एक ही जोरदार धक्के से मेरी चूत का मुंह फाड़ते हुए अपना मूसल घुसेड़ दिया।
"आआआआआआह मां के.. .. ऐसाआआआआ... न कर बेदर्दी?" मैं चीख पड़ी।
"अईसा नहीं तो कईसा? एही मेरा इस्टाईल है।" कहकर उसने मेरी जांघों को पकड़ कर अपनी ओर खींचा और घपाक, एक जोरदार धक्के से पूरा लंड मेरी चूत में घुसेड़ दिया।
"आआआआआआह मांआंआंआंआं ओओओओहहहह....." मैं उस दूसरे धक्के से फिर चीख उठी। उसकी मनोदशा का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था। इतने दिनों के इंतजार का फल जो मिल रहा था। पूरी कसर निकाले बिना थोड़ी न मानने वाला था। अब मैं पूरी तरह उसके चंगुल में थी जिसका पूरा फायदा उठाए बिना छोड़ने वाला नहीं था। जोश जोश में मानो वह होश खो बैठा था उसी का परिणाम यह करारा प्रहार था।
"अब चिल्ला मत बुरचोदी, चुदवाने आई है कि मां चुदाने आई है, खाली चिल्ल पों मचा रही है। देखने में इत्ता बड़ा बुर मगर इत्ता टाईट होगा हमको का पता था। इत्ता टाईट बुर तो आज तक चोदा नहीं। अब तो हो गया ना? अब काहे मां मां कर रही है हरामजादी।" वह अब मेरे लिए सारा आदर सम्मान छोड़कर भाषा की मर्यादा लांघ चुका था।
"दर्द हो रहा है आआआआआआह..." मैं बोली।
"हां हां, दर्द तो होगा। पहिले पहल सबको हमारा लौड़ा से दर्द होता है, लेकिन बाद में सब बोलती हैं, चोदो चोदो। चुदने के लिए खुद ब खुद दौड़ी चली आती हैं साली रंडियां।" वह अपने लंड पर घमंड करता हुआ बोला। उस बेचारे को क्या पता कि मैं घनश्याम, घुसा और गंजू जैसे बड़े बड़े लंड वालों से चुद चुकी हूं। यह तो मात्र नाटक था जिससे रघु का उत्साह बढ़े। हां थोड़ा दर्द तो अवश्य हुआ था क्योंकि इसका लंड लंबाई में जरूर थोड़ा कम था लेकिन मोटाई में उनसे कहीं ज्यादा था। लेकिन चुदाई का मजा लेना था तो ऐसे थोड़े बहुत दर्द को बर्दाश्त करने में नुकसान क्या था। वैसे भी अब जो होना था वह तो हो ही चुका था। उसने जीत का झंडा गाड़ दिया था। अब झूठ मूठ का मेरा चीखना चिल्लाना बेमानी था। वैसे भी अब मेरे अंदर चुदने का नशा तारी हो चुका था। मैंने अवश होकर अपने दोनों हाथों से उसे अपनी बांहों से कस कर पकड़ लिया और पैरों को हवा में उठा कर उसकी कमर में लपेट लिया। यह मेरी ओर पूरी तरह रजामंदी का सिग्नल था। इसके बाद तो रघु के अंदर जैसे दुगुने उत्साह का संचार हो गया। "ई हुआ न बात। अब देख रघु का चुदाई। साली बहुत दिनों से तरसाई हो। इस बीच साला चार पांच लड़कियों को ठोक लिया लेकिन फिर भी जब भी तुमको देखता तो ई मादरचोद मेरा लौड़ा टनटना जाता था। तुमको देखता तो झाड़ियों के पीछे जाकर मूठ मारता था। अब जाकर मिला है मऊका।" कहकर पूरे जोशो-खरोश के साथ चोदने में भिड़ गया। ओह ओह जबरदस्त तरीके से ठाप पर ठाप मारने लगा था वह। हर ठाप में अपने लंड की पूरी लंबाई का भरपूर इस्तेमाल कर रहा था। मैं अपनी चूत के मुंह से लेकर अंदर तक और उसके लंड के घर्षण का अभूतपूर्व आनंद लेने लगी थी।
"ओह ओह आह आह....इस्स इस्स इस्स" मेरी सिसकारियां निकलने लगी थीं।
"चप चप चप छप छप छप... " हर धक्के से निकलने वाले इन तालबद्ध आवाज से वह प्रयोगशाला गूंज रहा था और गूंज रही थी मेरी आनंदमई सिसकारियां। उन घक्कों के परिणामस्वरूप उस चिकने टेबल पर मैं पीछे की ओर खिसकती तो वह मेरी जांघों को पकड़ सामने घसीट घसीट कर चोद रहा था। इस चुदाई के दौरान वह कभी मेरी चूचियों को मसलता, कभी मेरी गान्ड के बंगलों पर थप्पड़ मारता और कभी गांड़ के नीचे हाथ लगा कर मसलता रहा। सबकुछ, जो वह कर रहा था, उन सबसे मुझे चुदाई का भरपूर आनंद प्राप्त हो रहा था। ओह उस सामान्य कद-काठी का आदमी इतना दम रखता है इसका अंदाजा मुझे अब हो रहा था। सात आठ मिनट में ही मैं खल्लास होने के कागार पर आ गई।
"आआआआआआह आआआआआआह आआआआआआह.. ... " मैं आहें भरते हुए उसके जिस्म से चिपक गई और आंखें बंद कर उस मधुर स्खलन का आनंद लेने लगी। मेरा शरीर मानो हवा में उड़ रहा था। वह भी खेला खाया चुदक्कड़ था। मेरी स्थिति से अनभिज्ञ नहीं था। कुछ पल मुझे चिपका कर स्थिर हो गया। वह ठीक से जानता था कि मुझे फिर से गरम करके कैसे अपनी मंजिल तक पहुंचा जा सकता है। आखिर न जाने इस कॉलेज में कितनी लड़कियों को इस लैब में ला कर राजू जैसे लफंगों के साथ मजा किया होगा।