12-10-2024, 11:46 AM
उस पुराने प्रयोगशाला के पास पहुंच कर मैंने देखा कि उस तरफ किसी का अता पता नहीं था। यह वैसे भी एक तरह से परित्यक्त भवन था जिसकी ओर आने की किसी को आवश्यकता भी नहीं थी। वहां तक आ कर मेरे कदम थोड़े सुस्त हुए। मैं झिझकते हुए प्रयोगशाला की ओर धीमे धीमे बढ़ने लगी। उसके दरवाजे की ओर देखा तो उसका ताला तो खुला हुआ था लेकिन दरवाजा बंद था। मैं असमंजस में वहां कुछ पल खड़ी रही। सोचने लगी कि दरवाजे रुपी लक्ष्मण रेखा को लांघूं या नहीं। अब मैं फिर से एक दुश्चिंता में पड़ गयी कि वासना के वशीभूत कहीं मैं किसी मुसीबत में तो नहीं पड़ने जा रही हूं? कहीं मैं जानबूझ कर आदमखोर शेर की मांद में घुसने तो नहीं जा रही हूं जहां एक आदमखोर नारी शरीर की तिक्का बोटी करने को घात लगाए इंतजार में उतावला हुआ जा रहा था? लेकिन मेरे तन की आग ने मानो मेरे सोचने समझने की शक्ति छीन ली थी। अंततः वासना की विजय हुई और मैंने कांपते हाथों से दरवाजा को हल्का सा धक्का दिया तो पहले वह खुला नहीं। तभी अंदर से रघु की आवाज आई,
"अंदर आ जाओ मैडमजी, दरवाजा खुला है।"
अंदर की आवाज सुनकर मैंने दरवाजे को ठेलने के लिए थोड़ा और जोर लगाया तो दरवाजा चर्र करते हुए खुला। धड़कते दिल के साथ जैसे ही मैंने दरवाजे के अंदर कदम रखा तो पहले पहल मुझे कुछ दिखाई नहीं दिया। प्रयोगशाला के अंदर, बाहर के रोशनी की अपेक्षा रोशनी बहुत कम थी इसलिए अंदर की कम रोशनी में देखने की अभ्यस्त होने में कुछ पल लग गया। जैसे ही अंदर की मद्धिम रोशनी में देखने की अभ्यस्त हुई, एक मानव आकृति नजर आई। हे भगवान, यह क्या ! सामने किसी भूत की तरह पूरी तरह नंगा भुजंगा रघु खड़ा दिखाई दिया। बिल्कुल मादरजात नंगा। नारी देह पर टूट पड़ने को बिल्कुल तैयार। कमीना कहीं का, कितनी जल्दी वह मेरी मनोदशा को सटीक भांप लिया था। वह पूरे आत्मविश्वास के साथ निर्वस्त्र होकर कर बेसब्री से मेरे आने का इंतजार कर रहा था। यह मेरे लिए अप्रत्याशित था। कल्पना से परे। उस दृश्य को देखकर किसी भी लड़की को शर्म से पानी-पानी हो जाना चाहिए था, वही हालत कुछ पल मेरी भी थी, लेकिन मैं भौंचक्की, अपलक उसे देख कर सोचने लगी कि उसे कितना विश्वास था कि मैं 'इस काम' के लिए जरूर आऊंगी। उसे रत्ती भर भी दुविधा नहीं थी और पूरी तरह आश्वस्त था कि आज, इस वक्त मैं पूरी तरह चुदने की मनोदशा में थी। मेरे तन की भाषा को कितनी अच्छी तरह से पढ़ चुका था और समझ चुका था। उसे पूरा भरोसा था कि आज उससे चुदे बिना मैं जाने वाली नहीं थी। दरवाजे के अंदर मेरे कदम पड़ते ही उसकी बाछें खिल गई थीं कि आज उसकी तमन्ना पूरी होने का स्वर्णिम अवसर आ चुका है।
"यह कककक्या ....." मेरे मुंह से घबराई सी घुटी घुटी आवाज निकली। मेरा मुंह खुला का खुला रह गया था और आंखें फटी की फटी रह गईं थीं। उस काले कलूटे रघु को इतनी जल्दी ऐसी नंग धड़ंग अवस्था में देखकर मैं हतप्रभ रह गयी थी।
मेरे अंदर प्रविष्ट होते ही, "अरे जल्दी दरवाजा बंद कर गधी कहीं की।" कहकर वह बिजली की फुर्ती से दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। मैं अबतक स्तब्ध मूर्ति की तरह खड़ी थी तभी पीछे से रघु ने मुझे दबोच लिया। उसका हाथ सीधे मेरी चूचियों पर आ टिका था और मेरे नितंबों के बीच सख्त खंभे की दस्तक महसूस होने लगी थी।
"हे भगवान, तुम इतने बड़े बदमाश हो, मुझे पता नहीं था। छोड़ो मुझे।" मैं उसकी जल्दबाजी से घबरा उठी थी।
"फिर आप इहां मेरे पिच्छे पिच्छे काहे आई हो?" वह मेरी चूचियों को मसलते हुए बोला। उसे महसूस हो गया कि मैं ब्रा नहीं पहनी हूं। "लो चूचकसना (ब्रा) भी नहीं पहनी हो। मतलब पूरा तईयारी का साथ आई हो अऊर हमको बदमाश बोलती हो।" उसका खंभा सख्त हो कर पीछे से मेरे स्कर्ट के साथ ही मेरी गुदा की दरार पर टिका हुआ था।
"मैं मैं कह रही हूं कि मुझे छछ छोड़ो, तुम तो...." मैं हकलाते हुए बोल रही थी। चुदने के तात्कालिक पागलपन में यहां तक चली तो आई थी लेकिन यहां आकर इस तरह एक चौकीदार के हाथों समर्पण करना सही है कि गलत, इसका निश्चय अभी भी नहीं कर पाई थी कि रघु नें इस तरह मुझ पर आक्रमण कर दिया था। हां ना के झूले में झूलते हुए मेरी मनोदशा से अनभिज्ञ रघु को इससे मतलब भी क्या था। यहां तक मेरा आना ही उसके लिए काफी था। मुझे क्या नहीं मालूम था कि यहां आने का क्या मतलब था? मुझे क्या नहीं मालूम था कि इस पुराने प्रयोगशाला में क्या होता था? यहां तक मेरा आना ही इस बात का द्योतक था कि यहां मेरे साथ जो कुछ होने वाला था उसके लिए मेरी पूरी रजामंदी थी। अब इस सही गलत के बखेड़े में पड़कर इस मौके का लाभ लेकर आनंद लेने से पीछे हटने का कोई अर्थ नहीं था। यह सोच मुझे आश्वस्त करने लगा। फिर मी मन के कोने में एक अव्यक्त दुश्चिंता अब भी थी इसलिए थोड़ी झिझक का इजहार कर रही थी।"मैडमजी, इहां आ कर अईसा झिझक और शरम करोगी तो कईसे काम चलेगा? आपको ई भी ठीक से पता है कि इहां का होता है। आपको ई भी पता है कि हम दोनों इहां काहे आए हैं तो फिर अब काहे का झिझक और शरम। अऊर अब तो आपको हाथ लगा कर पक्का हो गया कि आप तईय्यार हो कर ही आई हो, तो काहे नहीं खुला खेल खेल कर मज़ा ले लेती हो? देखो तो हम आपके इहां घुसने से पहिले ही कईसे तईय्यार हो गये हैं।" वह एक हाथ मेरी स्कर्ट में घुसाते हूए बोला और मैं चौंक कर उछल ही तो पड़ी। उसका हाथ मेरी स्कर्ट को नीचे से उठाता हुआ मेरी नंगी चूत तक जा पहुंचा।
"हाय दैय्या। हट बदमाश.... " मेरी पैंटी विहीन चूत पर उसके हाथ का स्पर्श ज्यों ही हुआ, मैं शर्म से पानी-पानी हो गई। हाय राम, क्या सोच रहा था होगा वह। मुझे काटो तो खून नहीं। वह भी मेरी नंगी चूत को छू कर हैरत में पड़ गया।
"उफ उफ, आप तो सचमुच पूरा तैय्यारी से आई हो साली। अब काहे का झूठ-मूठ का लाज शरम। ऊ दिन तो दूरे से देखे थे। आज इत्ते सामने से देखने का, हाथ लगाने का अऊर करने का मऊका मिला है तो काहे छोड़ दें।" कहकर मेरी झिझक, लाज शरम और झूठ मूठ की ना नुकुर की धज्जियां उड़ाता हुआ पलक झपकते ही मेरी ब्लाऊज और स्कर्ट से मुझे मुक्त कर दिया और लो, मैं बिल्कुल मादरजात नंगी उसके सामने खड़ी थी।
"द द द देखो यह गलत है....." मैं शर्म से पानी-पानी पानी होती हुई बोली।
"अच्छा? ई गलत है? तुमको पता ही है ना कि इहां का होता है? फिर भी तुम आई ना? हम जबरजस्ती तो तुमको इहां लाए नहीं। तुम खुदई इहां आई हो। अगर ई गलत होता तो तुम इहां आती का? नहीं ना? फिर अब ई सही गलत का बात का का मतलब?" मेरी कमसिन हसीन नंगी देह को इतने सामने से देख कर उसकी तो मानो लॉटरी निकल पड़ी थी। वह अविश्वास से कुछ पल मुझे सर से पांव तक निहारता रह गया और अपनी किस्मत को सराहता रहा। मैं शर्म से फर्श पर गड़ी जा रही थी। हाय राम, मुझ जैसी संभ्रांत घर की एक लड़की, एक निम्न स्तर के एक मामूली चौकीदार के सामने नंगी खड़ी थी और कुछ ही देर में उसकी वासना की शिकार बनने जा रही थी, शिकार क्या, खुद अपनी मर्जी से जानबूझकर अपनी अदम्य कामेच्छा के वशीभूत उसके सामने समर्पण करने जा रही थी, यह सोचकर ही खुद पर बड़ी लज्जा आ रही थी लेकिन वासना की आग के आगे भला किसी की कभी चली है? नहीं ना? फिर मैं भला कैसे अपवाद रह सकती थी? फिर भी एक लड़की हो कर अपनी तरफ से कैसे पहल कर सकती थी। देखती हूं वह आगे क्या क्या करता है? करेगा क्या, चोदेगा ही ना? चुदने के लिए तो मेरे कदम मुझे यहां तक खींच लाए हैं। बस एक नारी सुलभ स्वभाव के चलते मेरा एक हाथ अपनी चूचियों को ढंकने की असफल कोशिश कर रहा था और दूसरा हाथ मेरी चूत को ढंकने की कोशिश कर रहा था। मैं नज़रें झुकाए खड़ी थी लेकिन झुकी नज़रों से भी चोरी चोरी उसके बलिश्त भर लंड का दर्शन करने का लोभ संवरन नहीं कर पा रही थी। इस्स क्या जबरदस्त लंड था उसका। काला, मोटा सांप जैसा फुंफकार मारता लंड मेरे दिल की धड़कन को और बढ़ा रहा था। लंड के चारों तरफ काले सफेद लंबे-लंबे घुंघराले बाल उसके लंड की भयावहता को और बढ़ा रहे थे। उसके लंड के सुपाड़े के ऊपर का चमड़ा पलटा हुआ था इसलिए बड़ा सा गुलाबी सुपाड़ा चमचमा रहा था। वह घनश्याम या गंजू जैसे शरीर का मालिक तो नहीं था लेकिन उसकी सेहत सामान्य से अच्छी थी।
"अंदर आ जाओ मैडमजी, दरवाजा खुला है।"
अंदर की आवाज सुनकर मैंने दरवाजे को ठेलने के लिए थोड़ा और जोर लगाया तो दरवाजा चर्र करते हुए खुला। धड़कते दिल के साथ जैसे ही मैंने दरवाजे के अंदर कदम रखा तो पहले पहल मुझे कुछ दिखाई नहीं दिया। प्रयोगशाला के अंदर, बाहर के रोशनी की अपेक्षा रोशनी बहुत कम थी इसलिए अंदर की कम रोशनी में देखने की अभ्यस्त होने में कुछ पल लग गया। जैसे ही अंदर की मद्धिम रोशनी में देखने की अभ्यस्त हुई, एक मानव आकृति नजर आई। हे भगवान, यह क्या ! सामने किसी भूत की तरह पूरी तरह नंगा भुजंगा रघु खड़ा दिखाई दिया। बिल्कुल मादरजात नंगा। नारी देह पर टूट पड़ने को बिल्कुल तैयार। कमीना कहीं का, कितनी जल्दी वह मेरी मनोदशा को सटीक भांप लिया था। वह पूरे आत्मविश्वास के साथ निर्वस्त्र होकर कर बेसब्री से मेरे आने का इंतजार कर रहा था। यह मेरे लिए अप्रत्याशित था। कल्पना से परे। उस दृश्य को देखकर किसी भी लड़की को शर्म से पानी-पानी हो जाना चाहिए था, वही हालत कुछ पल मेरी भी थी, लेकिन मैं भौंचक्की, अपलक उसे देख कर सोचने लगी कि उसे कितना विश्वास था कि मैं 'इस काम' के लिए जरूर आऊंगी। उसे रत्ती भर भी दुविधा नहीं थी और पूरी तरह आश्वस्त था कि आज, इस वक्त मैं पूरी तरह चुदने की मनोदशा में थी। मेरे तन की भाषा को कितनी अच्छी तरह से पढ़ चुका था और समझ चुका था। उसे पूरा भरोसा था कि आज उससे चुदे बिना मैं जाने वाली नहीं थी। दरवाजे के अंदर मेरे कदम पड़ते ही उसकी बाछें खिल गई थीं कि आज उसकी तमन्ना पूरी होने का स्वर्णिम अवसर आ चुका है।
"यह कककक्या ....." मेरे मुंह से घबराई सी घुटी घुटी आवाज निकली। मेरा मुंह खुला का खुला रह गया था और आंखें फटी की फटी रह गईं थीं। उस काले कलूटे रघु को इतनी जल्दी ऐसी नंग धड़ंग अवस्था में देखकर मैं हतप्रभ रह गयी थी।
मेरे अंदर प्रविष्ट होते ही, "अरे जल्दी दरवाजा बंद कर गधी कहीं की।" कहकर वह बिजली की फुर्ती से दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। मैं अबतक स्तब्ध मूर्ति की तरह खड़ी थी तभी पीछे से रघु ने मुझे दबोच लिया। उसका हाथ सीधे मेरी चूचियों पर आ टिका था और मेरे नितंबों के बीच सख्त खंभे की दस्तक महसूस होने लगी थी।
"हे भगवान, तुम इतने बड़े बदमाश हो, मुझे पता नहीं था। छोड़ो मुझे।" मैं उसकी जल्दबाजी से घबरा उठी थी।
"फिर आप इहां मेरे पिच्छे पिच्छे काहे आई हो?" वह मेरी चूचियों को मसलते हुए बोला। उसे महसूस हो गया कि मैं ब्रा नहीं पहनी हूं। "लो चूचकसना (ब्रा) भी नहीं पहनी हो। मतलब पूरा तईयारी का साथ आई हो अऊर हमको बदमाश बोलती हो।" उसका खंभा सख्त हो कर पीछे से मेरे स्कर्ट के साथ ही मेरी गुदा की दरार पर टिका हुआ था।
"मैं मैं कह रही हूं कि मुझे छछ छोड़ो, तुम तो...." मैं हकलाते हुए बोल रही थी। चुदने के तात्कालिक पागलपन में यहां तक चली तो आई थी लेकिन यहां आकर इस तरह एक चौकीदार के हाथों समर्पण करना सही है कि गलत, इसका निश्चय अभी भी नहीं कर पाई थी कि रघु नें इस तरह मुझ पर आक्रमण कर दिया था। हां ना के झूले में झूलते हुए मेरी मनोदशा से अनभिज्ञ रघु को इससे मतलब भी क्या था। यहां तक मेरा आना ही उसके लिए काफी था। मुझे क्या नहीं मालूम था कि यहां आने का क्या मतलब था? मुझे क्या नहीं मालूम था कि इस पुराने प्रयोगशाला में क्या होता था? यहां तक मेरा आना ही इस बात का द्योतक था कि यहां मेरे साथ जो कुछ होने वाला था उसके लिए मेरी पूरी रजामंदी थी। अब इस सही गलत के बखेड़े में पड़कर इस मौके का लाभ लेकर आनंद लेने से पीछे हटने का कोई अर्थ नहीं था। यह सोच मुझे आश्वस्त करने लगा। फिर मी मन के कोने में एक अव्यक्त दुश्चिंता अब भी थी इसलिए थोड़ी झिझक का इजहार कर रही थी।"मैडमजी, इहां आ कर अईसा झिझक और शरम करोगी तो कईसे काम चलेगा? आपको ई भी ठीक से पता है कि इहां का होता है। आपको ई भी पता है कि हम दोनों इहां काहे आए हैं तो फिर अब काहे का झिझक और शरम। अऊर अब तो आपको हाथ लगा कर पक्का हो गया कि आप तईय्यार हो कर ही आई हो, तो काहे नहीं खुला खेल खेल कर मज़ा ले लेती हो? देखो तो हम आपके इहां घुसने से पहिले ही कईसे तईय्यार हो गये हैं।" वह एक हाथ मेरी स्कर्ट में घुसाते हूए बोला और मैं चौंक कर उछल ही तो पड़ी। उसका हाथ मेरी स्कर्ट को नीचे से उठाता हुआ मेरी नंगी चूत तक जा पहुंचा।
"हाय दैय्या। हट बदमाश.... " मेरी पैंटी विहीन चूत पर उसके हाथ का स्पर्श ज्यों ही हुआ, मैं शर्म से पानी-पानी हो गई। हाय राम, क्या सोच रहा था होगा वह। मुझे काटो तो खून नहीं। वह भी मेरी नंगी चूत को छू कर हैरत में पड़ गया।
"उफ उफ, आप तो सचमुच पूरा तैय्यारी से आई हो साली। अब काहे का झूठ-मूठ का लाज शरम। ऊ दिन तो दूरे से देखे थे। आज इत्ते सामने से देखने का, हाथ लगाने का अऊर करने का मऊका मिला है तो काहे छोड़ दें।" कहकर मेरी झिझक, लाज शरम और झूठ मूठ की ना नुकुर की धज्जियां उड़ाता हुआ पलक झपकते ही मेरी ब्लाऊज और स्कर्ट से मुझे मुक्त कर दिया और लो, मैं बिल्कुल मादरजात नंगी उसके सामने खड़ी थी।
"द द द देखो यह गलत है....." मैं शर्म से पानी-पानी पानी होती हुई बोली।
"अच्छा? ई गलत है? तुमको पता ही है ना कि इहां का होता है? फिर भी तुम आई ना? हम जबरजस्ती तो तुमको इहां लाए नहीं। तुम खुदई इहां आई हो। अगर ई गलत होता तो तुम इहां आती का? नहीं ना? फिर अब ई सही गलत का बात का का मतलब?" मेरी कमसिन हसीन नंगी देह को इतने सामने से देख कर उसकी तो मानो लॉटरी निकल पड़ी थी। वह अविश्वास से कुछ पल मुझे सर से पांव तक निहारता रह गया और अपनी किस्मत को सराहता रहा। मैं शर्म से फर्श पर गड़ी जा रही थी। हाय राम, मुझ जैसी संभ्रांत घर की एक लड़की, एक निम्न स्तर के एक मामूली चौकीदार के सामने नंगी खड़ी थी और कुछ ही देर में उसकी वासना की शिकार बनने जा रही थी, शिकार क्या, खुद अपनी मर्जी से जानबूझकर अपनी अदम्य कामेच्छा के वशीभूत उसके सामने समर्पण करने जा रही थी, यह सोचकर ही खुद पर बड़ी लज्जा आ रही थी लेकिन वासना की आग के आगे भला किसी की कभी चली है? नहीं ना? फिर मैं भला कैसे अपवाद रह सकती थी? फिर भी एक लड़की हो कर अपनी तरफ से कैसे पहल कर सकती थी। देखती हूं वह आगे क्या क्या करता है? करेगा क्या, चोदेगा ही ना? चुदने के लिए तो मेरे कदम मुझे यहां तक खींच लाए हैं। बस एक नारी सुलभ स्वभाव के चलते मेरा एक हाथ अपनी चूचियों को ढंकने की असफल कोशिश कर रहा था और दूसरा हाथ मेरी चूत को ढंकने की कोशिश कर रहा था। मैं नज़रें झुकाए खड़ी थी लेकिन झुकी नज़रों से भी चोरी चोरी उसके बलिश्त भर लंड का दर्शन करने का लोभ संवरन नहीं कर पा रही थी। इस्स क्या जबरदस्त लंड था उसका। काला, मोटा सांप जैसा फुंफकार मारता लंड मेरे दिल की धड़कन को और बढ़ा रहा था। लंड के चारों तरफ काले सफेद लंबे-लंबे घुंघराले बाल उसके लंड की भयावहता को और बढ़ा रहे थे। उसके लंड के सुपाड़े के ऊपर का चमड़ा पलटा हुआ था इसलिए बड़ा सा गुलाबी सुपाड़ा चमचमा रहा था। वह घनश्याम या गंजू जैसे शरीर का मालिक तो नहीं था लेकिन उसकी सेहत सामान्य से अच्छी थी।