30-09-2024, 11:03 AM
"दो मुस्टंडों को धूल चटा देने का मतलब समझती हो?' कार स्टार्ट होते ही घनश्याम ने पूछा।
"नहीं। मुझे सिर्फ इतना पता है कि जो आदमी मुझपर हमला करेगा, उसके साथ ऐसा ही होगा।" मैं बोली।
"तुम ऐसा कैसे कर सकी?'
"जूडो कराटे।"
"ओह, मार्शल आर्ट?'
"हां।"
"तुम अच्छी ट्रेनिंग लोगी तो अच्छी फाईटर बन सकती हो।"
"कॉलेज में थी तो मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग ले रही थी। कॉलेज में आकर छूट गयी।" मैं बोली।
"कौन सी लेबल तक पहुंची हो?"
"येलो लेबल तक "
"ओह बहुत बढ़िया। आगे भी जारी रखो।"
"पढ़ाई से समय ही कहां है।"
"अच्छा? इतनी पढ़ाई तो नहीं होती है कॉलेज में कि समय ही न मिले।"
"तुम्हें क्या पता?"
"मुझे नहीं पता होगा तो किसको होगा?"
"अच्छा ! जरा मैं भी तो सुनूं कि तुम्हें कैसे पता है।"
"मैं स्नातक हूं बेवकूफ।"
"अच्छा! किस विषय में?" मैं चकित होकर उसे देखने लगी।
"मनोविज्ञान में।" वह और भी चकित करता हुआ बोला। अच्छा तो इसीलिए लोगों के मनोभाव को पढ़ने में माहिर है। पढ़ा लिखा है तभी उसकी भाषा भी शुद्ध है।
"फिर ड्राईवर क्यों बने? और भी तो नौकरी मिल सकती थी।" मुझे उसके बारे में और जानने की जिज्ञासा होने लगी।
"नौकरी मिलने तक परिवार भी तो चलाना था। ड्राईविंग करते हुए इसी लाईन में मन लग गया।"
"ओह।"
"अब तुम बताओ कि मार्शल आर्ट की क्लास दुबारा कब से करोगी?"
"मुझे अब क्लास ज्वाइन करने का मन नहीं है। कोई अलग से ट्रेनर मिले तो कोई बात बने।" मैं आधे मन से बोली।
"फिर मैं किस मर्ज की दवा हूं?" अब मैं सचमुच चौंक गयी।
"तुम मार्शल आर्टिस्ट?"
"हां, ब्लैक बेल्ट।" वह बोला। तभी मैं सोचूं कि दो मिनट में चार लोग कैसे उसके सामने धूल चाट रहे थे।
"तो तुम, ओह सॉरी, आप मुझे आगे सिखा सकते हैं?" मैं रोमांचित होकर उत्सुकता से बोली। उसके लिए अब थोड़ा आदर का भाव आ गया था। चुदाई की बात और थी लेकिन उसके बौद्धिक स्तर और हरफनमौला व्यक्तित्व का सम्मान तो करना ही था।
"बिल्कुल। और यह तुम से आप पर क्यों आ गयी? तुम ही बोलो, यही ठीक है। अपनेपन का अहसास होता है। मुझे तुम्हारी एक बात से चिंता हो रही है।" वह बोला।
"किस बात से?" मैं उसकी ओर सवालिया दृष्टि फेंक कर बोली।
"तुम्हारी सेक्स की भूख से और इसे हल्के में लेने की तुम्हारे स्वभाव से। मुझे डर है कि कहीं तुम्हारा यह खिलंदड़पन तुम्हें कभी किसी मुसीबत में न फंसा दे।" वह गंभीरता से बोला।
"ऐसा कभी नहीं होगा। मुझे खुद पर पूरा विश्वास है।" मैं पूरे आत्मविश्वास के साथ बोली।
"देखो आत्मविश्वास अच्छी चीज है लेकिन अति आत्मविश्वास का शिकार मत होना नहीं तो तुम्हारे साथ कुछ भी अनिष्ट हो सकता है।" वह फिर से मुझे चेतावनी देते हुए बोला।
"तुम बेकार ही कुछ अधिक चिंता कर रहे हो मेरी।"
"खैर बोलना मेरा फ़र्ज़ था, और सुनो, तुम्हारी ट्रेनिंग कल से ही शुरू होगी। सवेरे पांच बजे उठकर जॉगिंग के लिए चलना है। फिर सुबह एक घंटा और शाम को एक घंटा, रोजाना मार्शल आर्ट का अभ्यास क्लास।" वह मुझे अभी से निर्देश देने लगा था।
"फिर घपाघप कब होगा?" मैं शरारत से बोली।
"वह भी होगा। अच्छी तरह से सीखोगी तो अच्छी तरह से चोदूंगा, नहीं तो इसी डंडे से तुम्हारा भुर्ता बनाऊंगा।" वह अपने लंड को पकड़ कर दिखाते हुए बोला।
"बाप रे, आपने तो डंडा दिखा कर डरा ही दिया। ठीक है गुरूजी महाराज, आपकी आज्ञा शिरोधार्य।" मैं भयभीत होने का अभिनय करते हुए बोली।
"हरामजादी नौटंकी करती है? मैं गंभीर हूं।" वह गंभीरता से बोला।
"ओह सॉरी गुरूजी, मैं क्षमा प्रार्थी हूं। अब नौटंकी नहीं करूंगी।" मैं भी गंभीर मुद्रा में बोली।
"यही तुम्हारे लिए बेहतर होगा। ठीक है। माफ किया।" वह बोला। मैंने देखा कि हम कॉलेज वाले रास्ते पर थे।
"यह हम कहां जा रहे हैं?" मैं चौंक कर बोली।
"कॉलेज।"
"कॉलेज के लिए तो देर हो गई।"
"दो ही पीरियड छूटा है। बाकी क्लास तो कर ही सकती हो।" उसे कोई फर्क नहीं पड़ा।
"हां सो तो है लेकिन मैं ऐसे ही कैसे जाऊं, बिना ब्रा और पैंटी के?" मैं घबराकर बोली।
"चुप। कौन उल्लू का पट्ठा तेरा कपड़ा खोल कर देखेगा कि तुम ब्रा और पैंटी पहनी हो कि नहीं? चुपचाप चलो।" वह तो पूरा अभिभावक की तरह मुझ पर हुक्म चला रहा था और मुझे खुद पर आश्चर्य हो रहा था कि मैं आज्ञाकारी पुत्री की तरह चुपचाप उसकी बात मान रही थी। उसने मुझे कॉलेज छोड़ा और लौट गया। मैं उसके बदले व्यक्तित्व को अचंभे से देखती रह गई।
आगे की घटना अगली कड़ी में। तबतक के लिए अपनी रोजा को आज्ञा दीजिए।
"नहीं। मुझे सिर्फ इतना पता है कि जो आदमी मुझपर हमला करेगा, उसके साथ ऐसा ही होगा।" मैं बोली।
"तुम ऐसा कैसे कर सकी?'
"जूडो कराटे।"
"ओह, मार्शल आर्ट?'
"हां।"
"तुम अच्छी ट्रेनिंग लोगी तो अच्छी फाईटर बन सकती हो।"
"कॉलेज में थी तो मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग ले रही थी। कॉलेज में आकर छूट गयी।" मैं बोली।
"कौन सी लेबल तक पहुंची हो?"
"येलो लेबल तक "
"ओह बहुत बढ़िया। आगे भी जारी रखो।"
"पढ़ाई से समय ही कहां है।"
"अच्छा? इतनी पढ़ाई तो नहीं होती है कॉलेज में कि समय ही न मिले।"
"तुम्हें क्या पता?"
"मुझे नहीं पता होगा तो किसको होगा?"
"अच्छा ! जरा मैं भी तो सुनूं कि तुम्हें कैसे पता है।"
"मैं स्नातक हूं बेवकूफ।"
"अच्छा! किस विषय में?" मैं चकित होकर उसे देखने लगी।
"मनोविज्ञान में।" वह और भी चकित करता हुआ बोला। अच्छा तो इसीलिए लोगों के मनोभाव को पढ़ने में माहिर है। पढ़ा लिखा है तभी उसकी भाषा भी शुद्ध है।
"फिर ड्राईवर क्यों बने? और भी तो नौकरी मिल सकती थी।" मुझे उसके बारे में और जानने की जिज्ञासा होने लगी।
"नौकरी मिलने तक परिवार भी तो चलाना था। ड्राईविंग करते हुए इसी लाईन में मन लग गया।"
"ओह।"
"अब तुम बताओ कि मार्शल आर्ट की क्लास दुबारा कब से करोगी?"
"मुझे अब क्लास ज्वाइन करने का मन नहीं है। कोई अलग से ट्रेनर मिले तो कोई बात बने।" मैं आधे मन से बोली।
"फिर मैं किस मर्ज की दवा हूं?" अब मैं सचमुच चौंक गयी।
"तुम मार्शल आर्टिस्ट?"
"हां, ब्लैक बेल्ट।" वह बोला। तभी मैं सोचूं कि दो मिनट में चार लोग कैसे उसके सामने धूल चाट रहे थे।
"तो तुम, ओह सॉरी, आप मुझे आगे सिखा सकते हैं?" मैं रोमांचित होकर उत्सुकता से बोली। उसके लिए अब थोड़ा आदर का भाव आ गया था। चुदाई की बात और थी लेकिन उसके बौद्धिक स्तर और हरफनमौला व्यक्तित्व का सम्मान तो करना ही था।
"बिल्कुल। और यह तुम से आप पर क्यों आ गयी? तुम ही बोलो, यही ठीक है। अपनेपन का अहसास होता है। मुझे तुम्हारी एक बात से चिंता हो रही है।" वह बोला।
"किस बात से?" मैं उसकी ओर सवालिया दृष्टि फेंक कर बोली।
"तुम्हारी सेक्स की भूख से और इसे हल्के में लेने की तुम्हारे स्वभाव से। मुझे डर है कि कहीं तुम्हारा यह खिलंदड़पन तुम्हें कभी किसी मुसीबत में न फंसा दे।" वह गंभीरता से बोला।
"ऐसा कभी नहीं होगा। मुझे खुद पर पूरा विश्वास है।" मैं पूरे आत्मविश्वास के साथ बोली।
"देखो आत्मविश्वास अच्छी चीज है लेकिन अति आत्मविश्वास का शिकार मत होना नहीं तो तुम्हारे साथ कुछ भी अनिष्ट हो सकता है।" वह फिर से मुझे चेतावनी देते हुए बोला।
"तुम बेकार ही कुछ अधिक चिंता कर रहे हो मेरी।"
"खैर बोलना मेरा फ़र्ज़ था, और सुनो, तुम्हारी ट्रेनिंग कल से ही शुरू होगी। सवेरे पांच बजे उठकर जॉगिंग के लिए चलना है। फिर सुबह एक घंटा और शाम को एक घंटा, रोजाना मार्शल आर्ट का अभ्यास क्लास।" वह मुझे अभी से निर्देश देने लगा था।
"फिर घपाघप कब होगा?" मैं शरारत से बोली।
"वह भी होगा। अच्छी तरह से सीखोगी तो अच्छी तरह से चोदूंगा, नहीं तो इसी डंडे से तुम्हारा भुर्ता बनाऊंगा।" वह अपने लंड को पकड़ कर दिखाते हुए बोला।
"बाप रे, आपने तो डंडा दिखा कर डरा ही दिया। ठीक है गुरूजी महाराज, आपकी आज्ञा शिरोधार्य।" मैं भयभीत होने का अभिनय करते हुए बोली।
"हरामजादी नौटंकी करती है? मैं गंभीर हूं।" वह गंभीरता से बोला।
"ओह सॉरी गुरूजी, मैं क्षमा प्रार्थी हूं। अब नौटंकी नहीं करूंगी।" मैं भी गंभीर मुद्रा में बोली।
"यही तुम्हारे लिए बेहतर होगा। ठीक है। माफ किया।" वह बोला। मैंने देखा कि हम कॉलेज वाले रास्ते पर थे।
"यह हम कहां जा रहे हैं?" मैं चौंक कर बोली।
"कॉलेज।"
"कॉलेज के लिए तो देर हो गई।"
"दो ही पीरियड छूटा है। बाकी क्लास तो कर ही सकती हो।" उसे कोई फर्क नहीं पड़ा।
"हां सो तो है लेकिन मैं ऐसे ही कैसे जाऊं, बिना ब्रा और पैंटी के?" मैं घबराकर बोली।
"चुप। कौन उल्लू का पट्ठा तेरा कपड़ा खोल कर देखेगा कि तुम ब्रा और पैंटी पहनी हो कि नहीं? चुपचाप चलो।" वह तो पूरा अभिभावक की तरह मुझ पर हुक्म चला रहा था और मुझे खुद पर आश्चर्य हो रहा था कि मैं आज्ञाकारी पुत्री की तरह चुपचाप उसकी बात मान रही थी। उसने मुझे कॉलेज छोड़ा और लौट गया। मैं उसके बदले व्यक्तित्व को अचंभे से देखती रह गई।
आगे की घटना अगली कड़ी में। तबतक के लिए अपनी रोजा को आज्ञा दीजिए।