28-09-2024, 03:04 PM
"आप ठीक तो हैं?" मैं ने उनसे पूछा।
"हट शैतान। बड़ी बुरी हालत कर दी है तुमने।" वे मुझसे नज़रें नहीं मिला पा रही थीं। मैं मुस्कुरा उठा।
"आपको अच्छा लगा कि नहीं यह बोलिए।" मैं बोला।
"तुम मेरे मुंह से क्या सुनना चाहते हो?" वे सर झुकाए हुए ही बोलीं।
"हां या ना।"
उन्होंने हां में सर हिलाया लेकिन शर्म से उनका चेहरा लाल हो गया था।
कार स्टार्ट होते ही तुम्हारी मां बोली, "बहुत बुरी हालत कर दी तुमने उन बेचारों की।"
"अच्छा? बेचारे? आपको तरस आ रहा है उनपर? मुझे छोड़ देना चाहिए था क्या उनको?" मैं बोला।
"नहीं मेरा वो मतलब नहीं था।" वे झट से बोल उठीं।
"तो क्या मतलब था आपका?"
"इतनी बुरी तरह से नहीं मारना चाहिए था।"
"एक एक हाथ ही तो लगाया था। इतने में ही उनकी यह हालत हो गई तो मैं क्या करूं।"
"तुम्हें अपनी ताकत का अंदाजा नहीं है शायद।" "आपको शायद अंदाजा लग गया है।" मैं शरारत से बोला।
"तुम बड़े पाजी हो। मैं उस मतलब से नहीं बोल रही थी।" मेरी बातों का अर्थ समझ कर उनके गाल सुर्ख हो उठे थे। मैं उनकी हालत देखकर हंस पड़ा।
"मैं सभी तरह का इलाज जानता हूं। जैसी बीमारी वैसा इलाज। यही मेरा सिद्धांत है।" वे मुझे देखती रह गयीं। इसके बाद उन्होंने कुछ नहीं कहा। मेरे पूरे तन मन में पूरे रास्ते तुम्हारी मां के रसीले बदन से मिली मस्ती का नशा छाया हुआ था। घर पहुंचकर तो बाकी सब कुछ तुमने देख समझ लिया। इतना कहकर वह चुप हुआ।
"आप तो बहुत पहुंचे हुए निकले। मम्मी का भी शिकार कर लिया।" मैं अपने स्थान से उठती हुई बोली।
"सब तुम्हारी कारस्तानी का नतीजा है।" वह अपने कपड़े उठाते हुए बोला। तभी.. ..
"हां हां यही था " हमें एक आवाज सुनाई पड़ी। हमने आवाज की दिशा में निगाहें घुमाईं तो देखा कि आठ लोग हमारी ओर बढ़े चले आ रहे थे। चार लोगों के हाथों में हॉकी स्टिक थीं। सभी पच्चीस से पैंतीस साल के थे। उनमें से दो का चेहरा पिटा हुआ था। उनकी खतरनाक नीयत ताड़ कर हम झट से उठ खड़े हुए।
"पिटे चेहरे वाले दोनों लोग ही कल आए थे। आज अपने साथियों के साथ पिटने के लिए आए हैं।" घनश्याम अपने कपड़ों को छोड़कर नंगा ही बिना किसी शर्म के उनसे निपटने के लिए तैयार हो गया। घनश्याम की मुद्रा देखकर मैं आश्वस्त हो गई कि वह उनका मुकाबला करने में सक्षम है और सहयोगी के तौर पर तीन चार लोगों से तो मैं भी निपट सकती हूं। मैं भी घनश्याम की तरह नंगी ही निर्भयता के साथ उनका मुकाबला करने के लिए मन ही मन तैयार हो चुकी थी।
"साला बुढ़ऊ मादरचोद बहुत बड़ा चुदक्कड़ है। कल एक जबरदस्त माल को लाकर चोद रहा था और आज इस लौंडिया को चोदने के लिए लाया है। मारो साले को। कल हम दोनों चोदने दो बोले तो चोदने देने के बदले हमको मारकर भाग गया था। आज कहां जाएगा। पहले इसको मारो फिर हमलोग इस लौंडिया के साथ मजे करेंगे।" टूटी नाक वाला गुस्से से बोला। मैं जानती थी कि उनके विचार से सिर्फ घनश्याम से निपटने की जरूरत थी, उन्हें तो लग रहा था कि मैं मात्र एक अबला लड़की हूं। उन्हें क्या पता था कि मैं किस मिट्टी की बनी हूं।
"लौंडिया तो बड़ी जबरदस्त है बे। पहले इस बुड्ढे का हाथ पैर तोड़ो, फिर हम सब मिलकर इस लौंडिया को चोदेंगे।" उनमें जो लीडर टाइप आदमी था वह बोला और ऊपर से नीचे भूखी नज़रों से देखते मेरी ओर बढ़ा।
"ठीक है गुरु ठीक है। बस दो मिनट में इस बुड्ढे को लिटा कर आते हैं।" कहकर उनमें से चार लोग घनश्याम की ओर हॉकी स्टिक लहराते हुए बढ़े। मेरी ओर बढ़ते व्यक्ति को मैं बड़े ध्यान से देख रही थी। वह करीब पांच फुट दस इंच ऊंचा, सामान्य सेहत वाला व्यक्ति था। उसकी लाल लाल आंखों से पता चल रहा था कि वह नशे में था। जैसे ही वह व्यक्ति मेरी पहुंच में आया, मेरा दाहिना पैर चल गया और मेरा घुटना सीधे उसकी जांघों के बीचोंबीच पड़ा। यह प्रहार सीधे उसके गुप्तांग पर पड़ा था। "आआआआआहहहह... साली रंडी ईईईईई... कुतिया आआआआआ....." वह कराह कर अपना गुप्तांग पकड़ कर झुका ही था कि मैं ने अपने घुटने का जोरदार प्रहार उसके चेहरे पर कर दिया। वह इन एक के बाद एक अप्रत्याशित हमलों से उलट गया। उधर जो चार लोग घनश्याम की ओर बढ़े थे उनमें से एक के हॉकी स्टिक के वार को घनश्याम ने डॉज किया और दूसरे के वार को अपने हाथ से रोक कर उसके हाथ से हॉकी स्टिक छीन लिया। उसके बाद तो मात्र दो मिनट में ही वहां का नक्शा बदल गया। मेरे हाथों उनके लीडर टाइप आदमी की हालत देखकर दूसरा व्यक्ति मेरी ओर बढ़ा लेकिन मेरी एक ही जबरदस्त किक से, जो सीधे उसकी ठुड्ढी के नीचे पड़ा था, वह भी भरभरा कर जमीन पर गिर पड़ा। उन नशेड़ी लफंगों में इतना माद्दा नहीं था कि मुझ जैसी खिलंदड़ी लड़की के सामने ठहर सकें। उधर चारों हॉकी स्टिक वाले घनश्याम के हाथों से मार खाकर जमीन पर पड़े हाय हाय कर रहे थे। बाकी दोनों कल के पिटे हुए लफंगे वहां अपने साथियों का हस्र देखकर जान बचा कर भाग खड़े हुए।
"भागते कहां हो सालों मां के दल्लों।" उन्हें भागते देखकर घनश्याम ने उन्हें पीछे से आवाज दी लेकिन उन्होंने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। जान गई कि ये नशेड़ी लफंगे सिर्फ गीदड़ भभकियों से ही लोगों को डराते हैं। एक बूढ़ा और एक अदना सी लड़की के सामने वे आठ लोग पानी मांग रहे थे। मैं ने वितृष्णा से मेरे सामने पड़े दोनों लोगों पर थूक दिया। मैं ने देखा कि चार लोगों को धराशाई करने के बाद घनश्याम मुझे विचित्र दृष्टि से देख रहा था।
"क्या देख रहे हो?" मैं घनश्याम से बोली।
"देख रहा हूं कि मैं तुम्हारे बारे में कुछ गलत नहीं बोला था।"
"क्या बोले थे, मुझे याद नहीं।"
"यही कि तुम और लड़कियों से अलग हो, खास हो। क्षमता है और काफी संभावनाएं हैं तुममें।" वह प्रशंसनीय दृष्टि से मुझे देखते हुए बोला।
"चने की झाड़ पर चढ़ा रहे हो?"
"सच बोल रहा हूं।"
"अच्छा अच्छा, कपड़े पहनो और चलो यहां से।" कहते हुए मैं अपने कपड़ों की ओर बढ़ी जो इधर उधर छितराए हुए थे। मैंने देखा कि मेरी ब्रा का हुक टूटा हुआ था और मेरी पैंटी की भी इलास्टिक टूटी हुई थी। घनश्याम की जबर्दस्ती और बेरहम नोच खसोट का परिणाम था यह। "देख कमीने क्या किया है तूने?" कहकर मैंने अपनी ब्रा और पैंटी उसके सामने फेंक दी और बिना ब्रा और पैंटी के ही अपने कपड़े पहन लिए। घनश्याम भी अपने कपड़े पहन कर चलने को तत्पर हो उठा। उन छहों घायल, घायलावस्था में पड़े फटी फटी आंखों से हमें देखते रह गए और हम उन्हें उसी अवस्था में छोड़ कर उस खंडहर से बाहर निकल पड़े।
"हट शैतान। बड़ी बुरी हालत कर दी है तुमने।" वे मुझसे नज़रें नहीं मिला पा रही थीं। मैं मुस्कुरा उठा।
"आपको अच्छा लगा कि नहीं यह बोलिए।" मैं बोला।
"तुम मेरे मुंह से क्या सुनना चाहते हो?" वे सर झुकाए हुए ही बोलीं।
"हां या ना।"
उन्होंने हां में सर हिलाया लेकिन शर्म से उनका चेहरा लाल हो गया था।
कार स्टार्ट होते ही तुम्हारी मां बोली, "बहुत बुरी हालत कर दी तुमने उन बेचारों की।"
"अच्छा? बेचारे? आपको तरस आ रहा है उनपर? मुझे छोड़ देना चाहिए था क्या उनको?" मैं बोला।
"नहीं मेरा वो मतलब नहीं था।" वे झट से बोल उठीं।
"तो क्या मतलब था आपका?"
"इतनी बुरी तरह से नहीं मारना चाहिए था।"
"एक एक हाथ ही तो लगाया था। इतने में ही उनकी यह हालत हो गई तो मैं क्या करूं।"
"तुम्हें अपनी ताकत का अंदाजा नहीं है शायद।" "आपको शायद अंदाजा लग गया है।" मैं शरारत से बोला।
"तुम बड़े पाजी हो। मैं उस मतलब से नहीं बोल रही थी।" मेरी बातों का अर्थ समझ कर उनके गाल सुर्ख हो उठे थे। मैं उनकी हालत देखकर हंस पड़ा।
"मैं सभी तरह का इलाज जानता हूं। जैसी बीमारी वैसा इलाज। यही मेरा सिद्धांत है।" वे मुझे देखती रह गयीं। इसके बाद उन्होंने कुछ नहीं कहा। मेरे पूरे तन मन में पूरे रास्ते तुम्हारी मां के रसीले बदन से मिली मस्ती का नशा छाया हुआ था। घर पहुंचकर तो बाकी सब कुछ तुमने देख समझ लिया। इतना कहकर वह चुप हुआ।
"आप तो बहुत पहुंचे हुए निकले। मम्मी का भी शिकार कर लिया।" मैं अपने स्थान से उठती हुई बोली।
"सब तुम्हारी कारस्तानी का नतीजा है।" वह अपने कपड़े उठाते हुए बोला। तभी.. ..
"हां हां यही था " हमें एक आवाज सुनाई पड़ी। हमने आवाज की दिशा में निगाहें घुमाईं तो देखा कि आठ लोग हमारी ओर बढ़े चले आ रहे थे। चार लोगों के हाथों में हॉकी स्टिक थीं। सभी पच्चीस से पैंतीस साल के थे। उनमें से दो का चेहरा पिटा हुआ था। उनकी खतरनाक नीयत ताड़ कर हम झट से उठ खड़े हुए।
"पिटे चेहरे वाले दोनों लोग ही कल आए थे। आज अपने साथियों के साथ पिटने के लिए आए हैं।" घनश्याम अपने कपड़ों को छोड़कर नंगा ही बिना किसी शर्म के उनसे निपटने के लिए तैयार हो गया। घनश्याम की मुद्रा देखकर मैं आश्वस्त हो गई कि वह उनका मुकाबला करने में सक्षम है और सहयोगी के तौर पर तीन चार लोगों से तो मैं भी निपट सकती हूं। मैं भी घनश्याम की तरह नंगी ही निर्भयता के साथ उनका मुकाबला करने के लिए मन ही मन तैयार हो चुकी थी।
"साला बुढ़ऊ मादरचोद बहुत बड़ा चुदक्कड़ है। कल एक जबरदस्त माल को लाकर चोद रहा था और आज इस लौंडिया को चोदने के लिए लाया है। मारो साले को। कल हम दोनों चोदने दो बोले तो चोदने देने के बदले हमको मारकर भाग गया था। आज कहां जाएगा। पहले इसको मारो फिर हमलोग इस लौंडिया के साथ मजे करेंगे।" टूटी नाक वाला गुस्से से बोला। मैं जानती थी कि उनके विचार से सिर्फ घनश्याम से निपटने की जरूरत थी, उन्हें तो लग रहा था कि मैं मात्र एक अबला लड़की हूं। उन्हें क्या पता था कि मैं किस मिट्टी की बनी हूं।
"लौंडिया तो बड़ी जबरदस्त है बे। पहले इस बुड्ढे का हाथ पैर तोड़ो, फिर हम सब मिलकर इस लौंडिया को चोदेंगे।" उनमें जो लीडर टाइप आदमी था वह बोला और ऊपर से नीचे भूखी नज़रों से देखते मेरी ओर बढ़ा।
"ठीक है गुरु ठीक है। बस दो मिनट में इस बुड्ढे को लिटा कर आते हैं।" कहकर उनमें से चार लोग घनश्याम की ओर हॉकी स्टिक लहराते हुए बढ़े। मेरी ओर बढ़ते व्यक्ति को मैं बड़े ध्यान से देख रही थी। वह करीब पांच फुट दस इंच ऊंचा, सामान्य सेहत वाला व्यक्ति था। उसकी लाल लाल आंखों से पता चल रहा था कि वह नशे में था। जैसे ही वह व्यक्ति मेरी पहुंच में आया, मेरा दाहिना पैर चल गया और मेरा घुटना सीधे उसकी जांघों के बीचोंबीच पड़ा। यह प्रहार सीधे उसके गुप्तांग पर पड़ा था। "आआआआआहहहह... साली रंडी ईईईईई... कुतिया आआआआआ....." वह कराह कर अपना गुप्तांग पकड़ कर झुका ही था कि मैं ने अपने घुटने का जोरदार प्रहार उसके चेहरे पर कर दिया। वह इन एक के बाद एक अप्रत्याशित हमलों से उलट गया। उधर जो चार लोग घनश्याम की ओर बढ़े थे उनमें से एक के हॉकी स्टिक के वार को घनश्याम ने डॉज किया और दूसरे के वार को अपने हाथ से रोक कर उसके हाथ से हॉकी स्टिक छीन लिया। उसके बाद तो मात्र दो मिनट में ही वहां का नक्शा बदल गया। मेरे हाथों उनके लीडर टाइप आदमी की हालत देखकर दूसरा व्यक्ति मेरी ओर बढ़ा लेकिन मेरी एक ही जबरदस्त किक से, जो सीधे उसकी ठुड्ढी के नीचे पड़ा था, वह भी भरभरा कर जमीन पर गिर पड़ा। उन नशेड़ी लफंगों में इतना माद्दा नहीं था कि मुझ जैसी खिलंदड़ी लड़की के सामने ठहर सकें। उधर चारों हॉकी स्टिक वाले घनश्याम के हाथों से मार खाकर जमीन पर पड़े हाय हाय कर रहे थे। बाकी दोनों कल के पिटे हुए लफंगे वहां अपने साथियों का हस्र देखकर जान बचा कर भाग खड़े हुए।
"भागते कहां हो सालों मां के दल्लों।" उन्हें भागते देखकर घनश्याम ने उन्हें पीछे से आवाज दी लेकिन उन्होंने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। जान गई कि ये नशेड़ी लफंगे सिर्फ गीदड़ भभकियों से ही लोगों को डराते हैं। एक बूढ़ा और एक अदना सी लड़की के सामने वे आठ लोग पानी मांग रहे थे। मैं ने वितृष्णा से मेरे सामने पड़े दोनों लोगों पर थूक दिया। मैं ने देखा कि चार लोगों को धराशाई करने के बाद घनश्याम मुझे विचित्र दृष्टि से देख रहा था।
"क्या देख रहे हो?" मैं घनश्याम से बोली।
"देख रहा हूं कि मैं तुम्हारे बारे में कुछ गलत नहीं बोला था।"
"क्या बोले थे, मुझे याद नहीं।"
"यही कि तुम और लड़कियों से अलग हो, खास हो। क्षमता है और काफी संभावनाएं हैं तुममें।" वह प्रशंसनीय दृष्टि से मुझे देखते हुए बोला।
"चने की झाड़ पर चढ़ा रहे हो?"
"सच बोल रहा हूं।"
"अच्छा अच्छा, कपड़े पहनो और चलो यहां से।" कहते हुए मैं अपने कपड़ों की ओर बढ़ी जो इधर उधर छितराए हुए थे। मैंने देखा कि मेरी ब्रा का हुक टूटा हुआ था और मेरी पैंटी की भी इलास्टिक टूटी हुई थी। घनश्याम की जबर्दस्ती और बेरहम नोच खसोट का परिणाम था यह। "देख कमीने क्या किया है तूने?" कहकर मैंने अपनी ब्रा और पैंटी उसके सामने फेंक दी और बिना ब्रा और पैंटी के ही अपने कपड़े पहन लिए। घनश्याम भी अपने कपड़े पहन कर चलने को तत्पर हो उठा। उन छहों घायल, घायलावस्था में पड़े फटी फटी आंखों से हमें देखते रह गए और हम उन्हें उसी अवस्था में छोड़ कर उस खंडहर से बाहर निकल पड़े।