21-09-2024, 06:07 PM
"अब डर नहीं लग रहा है?" मैं बोला।
"नहीं।" वे बोलीं।
"मेरा लंड बहुत मोटा है।" मैं बोला।
"तो क्या हुआ।"
"लंबा भी है।"
"मालूम है।"
"दर्द होगा।" मैं बोला।
"होने दो।" वे झट से बोलीं।
"शायद फट भी जाए।" मैं बोला।
"फटने दो।"
"अभी तो आप चीख रही थीं।"
"अब नहीं चीखूंगी।"
"सोच लीजिए।"
"सोच लिया।" वे अब कुछ सोचने की स्थिति में कहां थीं। झट से उन्होंने उत्तर दिया। हमारे वार्तालाप को लंबा होता देख कर वे बेसब्र हुई जा रही थीं।
"फिर भी बोलना मेरा फ़र्ज़ है।" मैं उनके सब्र का इम्तिहान ले रहा था जो उन्हें नागवार गुजर रहा था। चुदने के लिए मरी जा रही थी।
"साले हरामी कुत्ते, अब फ़र्ज़ याद आ रहा है? मुझमें आग भड़का कर अब बकवास किए जा रहा है कमीना। अब मेरा मुंह क्या देख रहा है हरामजादे, चोदना है तो चोद डाल, फालतू में तड़पा रहा है करमजले चुदक्कड़।" अब उनके सब्र का बांध टूट चुका था और मुझे गालियां देती हुई खुद ही मेरा लंड पकड़ कर अपनी चूत पर रख कर अपनी कमर उचकाने लगी। उनकी उत्तेजना समझ में आ रही थी लेकिन उनके मुंह से इन बातों को सुनने की कल्पना भी मैंने नहीं की थी। चुदाई की आग इंसान में इतना परिवर्तन ले आती है यह देख कर मैं कुछ पल को भौंचक्का रह गया था।
"अब भकलोल की तरह मेरा मुंह काहे देख रहे हो कलमुंहे? आखिर मेरा मुंह खराब करके ही दम लिया। अब चोदता काहे नहीं है मां का लौड़ा।" यह अति हो गया। उनके मुंह से यह सुनकर मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कुछ देर पहले जो औरत ना नुकुर कर रही थी और भयभीत हो रही थी उसी का बदला रूप देख रहा हूं। उनकी बात सुनकर जैसे मैं नींद से जाग उठा और फिर से उनपर पागलों की तरह टूट पड़ा।
"आआआआआआह ओओओओओहहहहह.. " मैं ने जैसे ही एक जोरदार ठाप लगाया वे आहें निकालने लगीं। यह समझना मुश्किल नहीं था कि ये आहें पीड़ा के साथ आनंद की थीं। फिर क्या था, मैं जो इतनी देर से इसी पल का इंतजार कर रहा था, भिड़ गया पागलों की तरह घपाघप चोदने में। मुझे अब और कुछ बोलना नहीं था, सिर्फ चोदना था।
"आज तक आपने मेरा कार चलाना ही देखा था, अब दिखाता हूं कि मैं और क्या चला सकता हूं।" यह कहकर चोदना चालू किया कि, जो औरत कुछ देर पहले नखरे कर रही थी, भयभीत हो रही थी, वह मुझसे चिपकी जा रही थी और अपनी कमर उछाल उछाल कर मेरे ठाप का जवाब ठाप से दे रही थी। फच फच चट चट की आवाज और तुम्हारी मां की आह, उह, इस्स उस्स की आवाज से यहां का पूरा वातावरण गूंज उठा था। कामुकता का तूफान उठ रहा था। तुम्हारी मां अपनी टांगें उठा कर मेरी कमर को जकड़ चुकी थी और बड़े आनंद से चुदाई का आनंद लेने लगी थीं। दस मिनट में ही तुम्हारी मां का काम तमाम हो गया।
"आआआआआआह ओओओओओहहहहह, गयी मैं गयी आआआआआआह.... " वे मुझसे चिपक कर झड़ने लगी। लेकिन अभी तो मेरा कुछ भी नहीं हुआ था। मैं पूरी तरह तुम्हारी मां को चोदने के मूड में था। झड़ी तो झड़ी, मैं उसे कहां छोड़ने वाला था। मैं तो अभी बीच मझधार में था। मैं लगातार ठोंके जा रहा था लेकिन तुम्हारी मां की सक्रिय सहभागिता नहीं मिल रही थी इसलिए मुझे मजा नहीं आ रहा था। तभी मेरे जेहन में उनकी गुदाज आकर्षक गांड़ का ध्यान आया। साला मैं भी कितना चूतिया था। जिस गांड़ को देखते ही मेरा लौड़ा टनटना उठा था उसे तो भूल ही गया था। मुझे पहले ही उसकी गान्ड मारनी थी। उसे बहला फुसलाकर और मान मनौव्वल करके के चोदने के चक्कर में उनकी चूत पर ही मेरा ध्यान केंद्रित था। अब, जबकि उनकी अगाड़ी का काम हो गया तो उनकी पिछाड़ी का ख्याल आया। अब तो जो हो जाय, इसकी मस्त मस्त गांड़ तो चोद कर ही रहूंगा। यह ख्याल आते ही मुझे ऐसा लगने लगा कि मेरा लंड ताव में आकर कुछ और ही ज्यादा तन कर बढ़ गया।
"आपका तो हो गया।" मैं बोला।
"हां हो गया।" वे हांफती हुई बोली।
"मगर मेरा नहीं हुआ है।"
"तो मैं क्या कर दूं तुम्हारे लिए?"
"आपको मजा आया ना।"
"हां बहुत। आज पहली बार इतना मज़ा आया। थैंक्यू।" वे मुझे चूम कर बोलीं। मैं धन्य हो गया लेकिन अभी भी मेरी अतृप्त इच्छा मेरे अंदर अंगड़ाई ले रही थी।
"तब तो मुझे इनाम मिलना चाहिए।"
"बोलो क्या चाहिए? जो मेरे वश में होगा दूंगी।"
"सोच लीजिए।"
"इसमें सोचना क्या है? मैं दे सकूंगी तो अवश्य दूंगी।"
"आप दे सकेंगी ऐसी ही चीज मांगूंगा।"
"तो चलो बोलो।"
"आपकी पिछाड़ी।"
"नहीं।" वे बोलीं।
"मेरा लंड बहुत मोटा है।" मैं बोला।
"तो क्या हुआ।"
"लंबा भी है।"
"मालूम है।"
"दर्द होगा।" मैं बोला।
"होने दो।" वे झट से बोलीं।
"शायद फट भी जाए।" मैं बोला।
"फटने दो।"
"अभी तो आप चीख रही थीं।"
"अब नहीं चीखूंगी।"
"सोच लीजिए।"
"सोच लिया।" वे अब कुछ सोचने की स्थिति में कहां थीं। झट से उन्होंने उत्तर दिया। हमारे वार्तालाप को लंबा होता देख कर वे बेसब्र हुई जा रही थीं।
"फिर भी बोलना मेरा फ़र्ज़ है।" मैं उनके सब्र का इम्तिहान ले रहा था जो उन्हें नागवार गुजर रहा था। चुदने के लिए मरी जा रही थी।
"साले हरामी कुत्ते, अब फ़र्ज़ याद आ रहा है? मुझमें आग भड़का कर अब बकवास किए जा रहा है कमीना। अब मेरा मुंह क्या देख रहा है हरामजादे, चोदना है तो चोद डाल, फालतू में तड़पा रहा है करमजले चुदक्कड़।" अब उनके सब्र का बांध टूट चुका था और मुझे गालियां देती हुई खुद ही मेरा लंड पकड़ कर अपनी चूत पर रख कर अपनी कमर उचकाने लगी। उनकी उत्तेजना समझ में आ रही थी लेकिन उनके मुंह से इन बातों को सुनने की कल्पना भी मैंने नहीं की थी। चुदाई की आग इंसान में इतना परिवर्तन ले आती है यह देख कर मैं कुछ पल को भौंचक्का रह गया था।
"अब भकलोल की तरह मेरा मुंह काहे देख रहे हो कलमुंहे? आखिर मेरा मुंह खराब करके ही दम लिया। अब चोदता काहे नहीं है मां का लौड़ा।" यह अति हो गया। उनके मुंह से यह सुनकर मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कुछ देर पहले जो औरत ना नुकुर कर रही थी और भयभीत हो रही थी उसी का बदला रूप देख रहा हूं। उनकी बात सुनकर जैसे मैं नींद से जाग उठा और फिर से उनपर पागलों की तरह टूट पड़ा।
"आआआआआआह ओओओओओहहहहह.. " मैं ने जैसे ही एक जोरदार ठाप लगाया वे आहें निकालने लगीं। यह समझना मुश्किल नहीं था कि ये आहें पीड़ा के साथ आनंद की थीं। फिर क्या था, मैं जो इतनी देर से इसी पल का इंतजार कर रहा था, भिड़ गया पागलों की तरह घपाघप चोदने में। मुझे अब और कुछ बोलना नहीं था, सिर्फ चोदना था।
"आज तक आपने मेरा कार चलाना ही देखा था, अब दिखाता हूं कि मैं और क्या चला सकता हूं।" यह कहकर चोदना चालू किया कि, जो औरत कुछ देर पहले नखरे कर रही थी, भयभीत हो रही थी, वह मुझसे चिपकी जा रही थी और अपनी कमर उछाल उछाल कर मेरे ठाप का जवाब ठाप से दे रही थी। फच फच चट चट की आवाज और तुम्हारी मां की आह, उह, इस्स उस्स की आवाज से यहां का पूरा वातावरण गूंज उठा था। कामुकता का तूफान उठ रहा था। तुम्हारी मां अपनी टांगें उठा कर मेरी कमर को जकड़ चुकी थी और बड़े आनंद से चुदाई का आनंद लेने लगी थीं। दस मिनट में ही तुम्हारी मां का काम तमाम हो गया।
"आआआआआआह ओओओओओहहहहह, गयी मैं गयी आआआआआआह.... " वे मुझसे चिपक कर झड़ने लगी। लेकिन अभी तो मेरा कुछ भी नहीं हुआ था। मैं पूरी तरह तुम्हारी मां को चोदने के मूड में था। झड़ी तो झड़ी, मैं उसे कहां छोड़ने वाला था। मैं तो अभी बीच मझधार में था। मैं लगातार ठोंके जा रहा था लेकिन तुम्हारी मां की सक्रिय सहभागिता नहीं मिल रही थी इसलिए मुझे मजा नहीं आ रहा था। तभी मेरे जेहन में उनकी गुदाज आकर्षक गांड़ का ध्यान आया। साला मैं भी कितना चूतिया था। जिस गांड़ को देखते ही मेरा लौड़ा टनटना उठा था उसे तो भूल ही गया था। मुझे पहले ही उसकी गान्ड मारनी थी। उसे बहला फुसलाकर और मान मनौव्वल करके के चोदने के चक्कर में उनकी चूत पर ही मेरा ध्यान केंद्रित था। अब, जबकि उनकी अगाड़ी का काम हो गया तो उनकी पिछाड़ी का ख्याल आया। अब तो जो हो जाय, इसकी मस्त मस्त गांड़ तो चोद कर ही रहूंगा। यह ख्याल आते ही मुझे ऐसा लगने लगा कि मेरा लंड ताव में आकर कुछ और ही ज्यादा तन कर बढ़ गया।
"आपका तो हो गया।" मैं बोला।
"हां हो गया।" वे हांफती हुई बोली।
"मगर मेरा नहीं हुआ है।"
"तो मैं क्या कर दूं तुम्हारे लिए?"
"आपको मजा आया ना।"
"हां बहुत। आज पहली बार इतना मज़ा आया। थैंक्यू।" वे मुझे चूम कर बोलीं। मैं धन्य हो गया लेकिन अभी भी मेरी अतृप्त इच्छा मेरे अंदर अंगड़ाई ले रही थी।
"तब तो मुझे इनाम मिलना चाहिए।"
"बोलो क्या चाहिए? जो मेरे वश में होगा दूंगी।"
"सोच लीजिए।"
"इसमें सोचना क्या है? मैं दे सकूंगी तो अवश्य दूंगी।"
"आप दे सकेंगी ऐसी ही चीज मांगूंगा।"
"तो चलो बोलो।"
"आपकी पिछाड़ी।"