11-09-2024, 06:27 PM
गरम रोज (भाग 12)
कल ऑफिस से निकल कर तुम्हारी मम्मी कार की तरफ आ रही थी, उस वक्त तुम्हारी मम्मी बहुत थकी हुई नजर आ रही थी। मैं उसे बड़े गौर से देख रहा था। तुम्हारी बातें मेरे दिमाग में घूम रही थीं। और दिनों के बनिस्पत कल मेरी नज़र बदली हुई थी। थकी थकी सी चाल के बावजूद उसकी चाल में गजब का आकर्षण दिखाई दे रहा था। कल बदली नजरों से देखा तो उसकी चाल मुझे बड़ी मदमस्त दिखाई दे रही थी। उसकी भरी भरी छातियों के उभारों को देख कर अपने आप मेरा लंड खड़ा होने लगा था। इस उम्र में भी उसकी बलखाती कमर गजब ढा रही थी। कार से दो तीन मीटर दूर पहुंच कर अचानक उसके हाथ से उसका बैग नीचे गिर पड़ा। वह हड़बड़ा कर बैग उठाने के लिए मुड़ी और नीचे झुकी। जैसे ही वह नीचे झुकी, मैंने पीछे से उसकी बड़ी-बड़ी गांड़ का दर्शन किया। साड़ी के भीतर भी मानो मुझे उसकी मांसल गांड़ स्पष्ट दिखाई दे रही थीं। गजब की सेक्सी गांड़ थी रे बाप। बड़ी बड़ी गोल गोल भरी भरी गांड़, नितंबों के बीच की दरार की कल्पना करते ही मेरी हालत खराब होने लगी थी। उस दरार के बीच की आकर्षक छेद में लंड घुसाने की कल्पना मात्र से ही मेरा लंड फट पड़ने को हो रहा था। उफ कल से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था लेकिन कल मेरा लंड एकदम बमक उठा था। मेरा चेहरा लाल हो गया था। आखिर मेरी नज़र को ठीक किसने किया था? तुमने। साला इतनी मस्त औरत मेरे नजरों के सामने थी और मैं अंधा बना हुआ था। तुम्हारी मां भी बड़े आराम से बैग उठा रही थी। उसे अच्छी तरह से पता था कि मैं उसे देख रहा हूं लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे उसे इसकी परवाह नहीं हो। सहसा मुझे आभास हुआ जैसे वह खुद ही मुझे अपनी गांड़ का दर्शन करा रही थी। यह अहसास करते ही मेरा लंड बुरी तरह फनफना उठा। इतना सख्त हो चुका था कि मेरी चड्डी में कैद रह कर दर्द करने लगा था।
पहले भी इसी तरह किसी न किसी बहाने से तुम्हारी मां का इसी तरह इशारे से आमंत्रण मिलता था लेकिन मैं कभी उस तरफ ध्यान नहीं देता था लेकिन कल की बात कुछ और थी। मेरी नज़र से पर्दा हट चुका था और सबकुछ साफ साफ दिखाई दे रहा था कि तुम्हारी मां के अंदर क्या चल रहा था।
तुम्हारी मां बैग उठा कर जैसे ही घूमी, उसके ब्लाउज से छलक पड़ने को बेताब बड़ी बड़ी चूचियों को देख कर मेरी आंखें चुंधिया गयी थीं। उफ, देखने मात्र से मेरी मेरी यह हालत हो रही थी तो उन चूचियों पर हाथ फेरने से मेरी क्या हालत होने वाली थी, यह सोच कर ही मैं गनगना उठा था। उन रसीली चूचियों को अपने हाथों में लेकर दबाने का और मुंह में लेकर चूसने की कल्पना से ही मैं बेताब हुआ जा रहा था। मन तो हो रहा था कि यहीं पटक कर अपने मन की मुराद पूरी कर लूं लेकिन मन मसोस कर रह गया। सब्र का फल मीठा होता है यह तो पता था लेकिन उस वक्त सब्र करना बड़ा कड़वा लग रहा था। वे मेरे सीने पर छुरियां चलाती हुई मदमस्त चाल से कार की ओर बढ़ी तो उसकी नजरें मेरी नजरों से टकराई। मेरी नज़र में उसे जो कुछ दिखाई दिया था और मेरे चेहरे में जो भाव उत्पन्न हुए थे उसे समझ कर चेहरे पर थकान के लक्षण के बावजूद वह हल्के से मुस्कुराई और कार का दरवाजा खोलने लगी। आम तौर पर मैं ही उतर कर कार का दरवाजा खोलता था लेकिन उस वक्त जैसे मुझ पर एक सम्मोहन सा छाया हुआ था। मैं ड्राईविंग सीट पर जड़ हो गया था।
"चलो।" वह सामने की सीट पर ही बैठ गई और दरवाजा बंद की। उसकी आवाज से जैसे मेरा सम्मोहन भंग हुआ और मैं थोड़ा शर्मिंदा हो गया। मैंने कार स्टार्ट की तो तुम्हारी मम्मी ने सीट के पीछे सर टिका कर आंखें बंद कर ली।
"आपकी तबीयत ठीक है ना मैडमजी?" मैंने हिम्मत जुटा कर पूछा। उत्तेजना के मारे मेरी आवाज़ कांप रही थी।
"थोड़ी थकान है और सिर में दर्द है।" वह अपने सर को हल्के हल्के दबाती हुई बोली। मैंने तिरछी नजर से तुम्हारी मम्मी की ओर देखा तो मेरी आंखें उनकी छाती पर टिक गयीं। उनकी छाती से साड़ी का पल्लू गिर गया था जिस पर उनका ध्यान नहीं था या जानबूझकर उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया था। लो कट ब्लाउज़ से उनकी बड़ी बड़ी चूचियां आधे से ज्यादा झांक रही थीं।
"मैडमजी, अगर ज्यादा दर्द है तो रास्ते में कहीं से दवा ले लीजिए।" मैं यूं ही बोला।
"नहीं नहीं, किसी दवा की जरूरत नहीं है। थोड़ा सर दबाने से ही ठीक हो जाना चाहिए। ऐसा तो अक्सर होता ही रहता है।" वह बोली।
कल ऑफिस से निकल कर तुम्हारी मम्मी कार की तरफ आ रही थी, उस वक्त तुम्हारी मम्मी बहुत थकी हुई नजर आ रही थी। मैं उसे बड़े गौर से देख रहा था। तुम्हारी बातें मेरे दिमाग में घूम रही थीं। और दिनों के बनिस्पत कल मेरी नज़र बदली हुई थी। थकी थकी सी चाल के बावजूद उसकी चाल में गजब का आकर्षण दिखाई दे रहा था। कल बदली नजरों से देखा तो उसकी चाल मुझे बड़ी मदमस्त दिखाई दे रही थी। उसकी भरी भरी छातियों के उभारों को देख कर अपने आप मेरा लंड खड़ा होने लगा था। इस उम्र में भी उसकी बलखाती कमर गजब ढा रही थी। कार से दो तीन मीटर दूर पहुंच कर अचानक उसके हाथ से उसका बैग नीचे गिर पड़ा। वह हड़बड़ा कर बैग उठाने के लिए मुड़ी और नीचे झुकी। जैसे ही वह नीचे झुकी, मैंने पीछे से उसकी बड़ी-बड़ी गांड़ का दर्शन किया। साड़ी के भीतर भी मानो मुझे उसकी मांसल गांड़ स्पष्ट दिखाई दे रही थीं। गजब की सेक्सी गांड़ थी रे बाप। बड़ी बड़ी गोल गोल भरी भरी गांड़, नितंबों के बीच की दरार की कल्पना करते ही मेरी हालत खराब होने लगी थी। उस दरार के बीच की आकर्षक छेद में लंड घुसाने की कल्पना मात्र से ही मेरा लंड फट पड़ने को हो रहा था। उफ कल से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था लेकिन कल मेरा लंड एकदम बमक उठा था। मेरा चेहरा लाल हो गया था। आखिर मेरी नज़र को ठीक किसने किया था? तुमने। साला इतनी मस्त औरत मेरे नजरों के सामने थी और मैं अंधा बना हुआ था। तुम्हारी मां भी बड़े आराम से बैग उठा रही थी। उसे अच्छी तरह से पता था कि मैं उसे देख रहा हूं लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे उसे इसकी परवाह नहीं हो। सहसा मुझे आभास हुआ जैसे वह खुद ही मुझे अपनी गांड़ का दर्शन करा रही थी। यह अहसास करते ही मेरा लंड बुरी तरह फनफना उठा। इतना सख्त हो चुका था कि मेरी चड्डी में कैद रह कर दर्द करने लगा था।
पहले भी इसी तरह किसी न किसी बहाने से तुम्हारी मां का इसी तरह इशारे से आमंत्रण मिलता था लेकिन मैं कभी उस तरफ ध्यान नहीं देता था लेकिन कल की बात कुछ और थी। मेरी नज़र से पर्दा हट चुका था और सबकुछ साफ साफ दिखाई दे रहा था कि तुम्हारी मां के अंदर क्या चल रहा था।
तुम्हारी मां बैग उठा कर जैसे ही घूमी, उसके ब्लाउज से छलक पड़ने को बेताब बड़ी बड़ी चूचियों को देख कर मेरी आंखें चुंधिया गयी थीं। उफ, देखने मात्र से मेरी मेरी यह हालत हो रही थी तो उन चूचियों पर हाथ फेरने से मेरी क्या हालत होने वाली थी, यह सोच कर ही मैं गनगना उठा था। उन रसीली चूचियों को अपने हाथों में लेकर दबाने का और मुंह में लेकर चूसने की कल्पना से ही मैं बेताब हुआ जा रहा था। मन तो हो रहा था कि यहीं पटक कर अपने मन की मुराद पूरी कर लूं लेकिन मन मसोस कर रह गया। सब्र का फल मीठा होता है यह तो पता था लेकिन उस वक्त सब्र करना बड़ा कड़वा लग रहा था। वे मेरे सीने पर छुरियां चलाती हुई मदमस्त चाल से कार की ओर बढ़ी तो उसकी नजरें मेरी नजरों से टकराई। मेरी नज़र में उसे जो कुछ दिखाई दिया था और मेरे चेहरे में जो भाव उत्पन्न हुए थे उसे समझ कर चेहरे पर थकान के लक्षण के बावजूद वह हल्के से मुस्कुराई और कार का दरवाजा खोलने लगी। आम तौर पर मैं ही उतर कर कार का दरवाजा खोलता था लेकिन उस वक्त जैसे मुझ पर एक सम्मोहन सा छाया हुआ था। मैं ड्राईविंग सीट पर जड़ हो गया था।
"चलो।" वह सामने की सीट पर ही बैठ गई और दरवाजा बंद की। उसकी आवाज से जैसे मेरा सम्मोहन भंग हुआ और मैं थोड़ा शर्मिंदा हो गया। मैंने कार स्टार्ट की तो तुम्हारी मम्मी ने सीट के पीछे सर टिका कर आंखें बंद कर ली।
"आपकी तबीयत ठीक है ना मैडमजी?" मैंने हिम्मत जुटा कर पूछा। उत्तेजना के मारे मेरी आवाज़ कांप रही थी।
"थोड़ी थकान है और सिर में दर्द है।" वह अपने सर को हल्के हल्के दबाती हुई बोली। मैंने तिरछी नजर से तुम्हारी मम्मी की ओर देखा तो मेरी आंखें उनकी छाती पर टिक गयीं। उनकी छाती से साड़ी का पल्लू गिर गया था जिस पर उनका ध्यान नहीं था या जानबूझकर उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया था। लो कट ब्लाउज़ से उनकी बड़ी बड़ी चूचियां आधे से ज्यादा झांक रही थीं।
"मैडमजी, अगर ज्यादा दर्द है तो रास्ते में कहीं से दवा ले लीजिए।" मैं यूं ही बोला।
"नहीं नहीं, किसी दवा की जरूरत नहीं है। थोड़ा सर दबाने से ही ठीक हो जाना चाहिए। ऐसा तो अक्सर होता ही रहता है।" वह बोली।