02-09-2024, 11:30 AM
स्त्री मन नातों-रिश्तों में आते ही बनाने लग जाता है वो हौसला, जिससे रिश्ता टूटने पर वो ख़ुद को दुबारा जोड़ सके,
सिख जाती है स्त्रियाँ वो मलहम बनाना, तैयार रखने लग जाती है वो फाहे जो अंतस् की चोट पे लगा सकें,
हर बार जब एक भाव छूटता है दिल से, एक अभाव कर जाता है जीवन में और वो उस दरार में भर देती है अपने आंसू जो बन जाते हैं पत्थर और समेट लेता है सारे बिखराव को अपने में, थाम लेता है जीवन प्रवाह को फिर से,
बिखर कर ख़ुद को समेटने की आदत हो जाती है स्त्रियों को,
हर बार इस तरह ख़ुद को जोड़ लेती हैं कि कोई बाल बराबर भी जोड़ नहीं ढूँढ पाता,
जितनी बार भी टूटी स्त्रियाँ,
उतनी बार नयी सी जी,
उतनी बार निखरी वो स्त्रियाँ
दुख और ग्लानि क्या गलायेगा उन्हें,
जो जानी है अपने ज़ख्मों की गहराई,
इस बिखरन-सिमटन के चक्र में,
हर बार ख़ुद को नयी सी गढ़ती स्त्रियाँ।
सिख जाती है स्त्रियाँ वो मलहम बनाना, तैयार रखने लग जाती है वो फाहे जो अंतस् की चोट पे लगा सकें,
हर बार जब एक भाव छूटता है दिल से, एक अभाव कर जाता है जीवन में और वो उस दरार में भर देती है अपने आंसू जो बन जाते हैं पत्थर और समेट लेता है सारे बिखराव को अपने में, थाम लेता है जीवन प्रवाह को फिर से,
बिखर कर ख़ुद को समेटने की आदत हो जाती है स्त्रियों को,
हर बार इस तरह ख़ुद को जोड़ लेती हैं कि कोई बाल बराबर भी जोड़ नहीं ढूँढ पाता,
जितनी बार भी टूटी स्त्रियाँ,
उतनी बार नयी सी जी,
उतनी बार निखरी वो स्त्रियाँ
दुख और ग्लानि क्या गलायेगा उन्हें,
जो जानी है अपने ज़ख्मों की गहराई,
इस बिखरन-सिमटन के चक्र में,
हर बार ख़ुद को नयी सी गढ़ती स्त्रियाँ।