26-08-2024, 09:58 PM
"तू सचमुच गजब की लड़की है। खूबसूरत, सेक्सी और दमदार। तुम्हारी प्रतिक्रिया देख कर चकित हूं और खुश भी हूं। पीड़ा के साथ चुदाई का आनंद लेना हर किसी के वश की बात नहीं है। तुम्हारे शरीर के अंदर बहुत क्षमता है। इसको तुम्हें संभाल कर रखने की जरूरत है और इसे निखारने की की जरूरत है।" वह अभिभूत हो कर बोल रहा था।
"मुझे चोदने के बाद आपके मुंह से मेरे लिए इतनी अच्छी अच्छी बातें निकल रही हैं। चोदते समय क्या हो गया था?अभी आप बोल भी रहे हैं तो थोड़ा जरूरत से ज्यादा ही बोल रहे हैं।"
"चोदते समय चुदाई के नशे में जो मन में आ रहा था बोल रहा था और अब जब चुदाई का नशा उतर गया है तो जो बोल रहा हूं खूब सोच समझ कर पूरी गंभीरता के साथ बोल रहा हूं। मजाक नहीं कर रहा हूं।" वह बोला। इधर मैं सोच रही थी कि अभी अभी घनश्याम ने जो कुछ मेरे बारे में कहा था, वह क्या था। क्या वह सचमुच में गंभीरता से बोला था? क्या वह उतना ही सच था जितना उसने कहा था? पता नहीं।
"अब आप मेरे साथ मजाक कर रहे हैं या गंभीरता से कह रहे हैं, इससे मुझे फर्क नहीं पड़ता।" मैं बोली।
"मेरे कथन की सच्चाई तुम्हें आने वाले समय में खुद पता चल जाएगा। ऐसा दुर्लभ व्यक्तित्व ज्यादा दिन छुपता नहीं है। तुम देखती जाओ। मैंने आजतक लोगों को पहचानने में गलती नहीं की है।" वह सचमुच गंभीर था।
"ठीक है ठीक है व्यक्तित्व पहचानने वाले पंडित जी। आपकी बातों से आपका भी बहुमुखी व्यक्तित्व दिखाई दे रहा है।" मैं बोली।
"मैं क्या हूं, यह तुम्हें आगे आगे पता चलता जाएगा। फिलहाल तो तुम्हारी मम्मी को एक फोन लगा दूं।" कहकर वह अपने फोन से मम्मी को बताने लगा कि रास्ते में गाड़ी खराब हो गयी है और वे उसका इंतजार न करके ऑफिस जाने के लिए कोई और व्यवस्था कर लें।
"हां तो अब बताईए कल का मम्मी वाला किस्सा।" मम्मी को फोन करके जैसे ही वह मेरी ओर मुड़ा, मैं उसी तरह नग्नावस्था में अलसाई सी उस घसियाले स्टेज पर लेटी लेटी बोली।
"अब कॉलेज नहीं जाना है?" वह भी अपने कपड़े पहनने की जल्दी में नहीं था। उसका मर्दाना अंग जो मुझे चोदने के बाद भीगे चूहे की तरह सिकुड़ गया था, अब थोड़ा सामान्य अवस्था में आ चुका था।
"आज कॉलेज की क्लास तो यहीं हो गयी। अब क्या कॉलेज जाना।" मैं उसकी नग्न मर्दानगी का दर्शन करती हुई मुस्कुरा कर बोली।
"ठीक है तो सुनो" वह मेरे पास आते हुए बोला, "जहां तुम इस वक्त लेटी हो, ठीक यहीं तुम्हारी मम्मी को मैंने चोदा था और ठीक उसी तरह, जिस तरह इस वक्त तुम्हें चोदा है।"
"हे भगवान, यहीं पर? इसी तरह?" मैं चकित होकर बोली। सोच रही थी कि मां को यह घनश्याम किस तरह पटा कर यहां लाया होगा।
"हां, यहीं पर, इसी तरह।"
"मम्मी राजी खुशी यहां आपके साथ आ गयी थी?"
"बड़े आराम से। राजी खुशी।"
"ऐसे कैसे आराम से? खुद तो अपने मुंह से बोली नहीं होगी?"
"बोली नहीं तो क्या। उनके हाव भाव को समझ नहीं सकता था क्या? मैं बढ़ता गया और वह पसरती चली गई। फिर क्या था, जैसा चाहा वैसा चोदा। जी भर के चोदा और वह मज़े से चुदवाती रही।" वह बोलता चला जा रहा था। "मुझे पूरी बात बताईए। यह समझ में नहीं आया कि मम्मी आपके साथ यहां इस खंडहर तक आने के लिए राजी कैसे हुई?" मैं उत्सुकता में अपनी जगह पर उठ बैठी।
"इसे थोड़ा विस्तार से बताना पड़ेगा। राजी थी तभी तो इस खंडहर में चली आई।"
"तो शुरू से पूरी बात बताईए ना।"
"तो ठीक है तो पूरी बात सुनो" कहकर वह बताने लगा.. ....
"मुझे चोदने के बाद आपके मुंह से मेरे लिए इतनी अच्छी अच्छी बातें निकल रही हैं। चोदते समय क्या हो गया था?अभी आप बोल भी रहे हैं तो थोड़ा जरूरत से ज्यादा ही बोल रहे हैं।"
"चोदते समय चुदाई के नशे में जो मन में आ रहा था बोल रहा था और अब जब चुदाई का नशा उतर गया है तो जो बोल रहा हूं खूब सोच समझ कर पूरी गंभीरता के साथ बोल रहा हूं। मजाक नहीं कर रहा हूं।" वह बोला। इधर मैं सोच रही थी कि अभी अभी घनश्याम ने जो कुछ मेरे बारे में कहा था, वह क्या था। क्या वह सचमुच में गंभीरता से बोला था? क्या वह उतना ही सच था जितना उसने कहा था? पता नहीं।
"अब आप मेरे साथ मजाक कर रहे हैं या गंभीरता से कह रहे हैं, इससे मुझे फर्क नहीं पड़ता।" मैं बोली।
"मेरे कथन की सच्चाई तुम्हें आने वाले समय में खुद पता चल जाएगा। ऐसा दुर्लभ व्यक्तित्व ज्यादा दिन छुपता नहीं है। तुम देखती जाओ। मैंने आजतक लोगों को पहचानने में गलती नहीं की है।" वह सचमुच गंभीर था।
"ठीक है ठीक है व्यक्तित्व पहचानने वाले पंडित जी। आपकी बातों से आपका भी बहुमुखी व्यक्तित्व दिखाई दे रहा है।" मैं बोली।
"मैं क्या हूं, यह तुम्हें आगे आगे पता चलता जाएगा। फिलहाल तो तुम्हारी मम्मी को एक फोन लगा दूं।" कहकर वह अपने फोन से मम्मी को बताने लगा कि रास्ते में गाड़ी खराब हो गयी है और वे उसका इंतजार न करके ऑफिस जाने के लिए कोई और व्यवस्था कर लें।
"हां तो अब बताईए कल का मम्मी वाला किस्सा।" मम्मी को फोन करके जैसे ही वह मेरी ओर मुड़ा, मैं उसी तरह नग्नावस्था में अलसाई सी उस घसियाले स्टेज पर लेटी लेटी बोली।
"अब कॉलेज नहीं जाना है?" वह भी अपने कपड़े पहनने की जल्दी में नहीं था। उसका मर्दाना अंग जो मुझे चोदने के बाद भीगे चूहे की तरह सिकुड़ गया था, अब थोड़ा सामान्य अवस्था में आ चुका था।
"आज कॉलेज की क्लास तो यहीं हो गयी। अब क्या कॉलेज जाना।" मैं उसकी नग्न मर्दानगी का दर्शन करती हुई मुस्कुरा कर बोली।
"ठीक है तो सुनो" वह मेरे पास आते हुए बोला, "जहां तुम इस वक्त लेटी हो, ठीक यहीं तुम्हारी मम्मी को मैंने चोदा था और ठीक उसी तरह, जिस तरह इस वक्त तुम्हें चोदा है।"
"हे भगवान, यहीं पर? इसी तरह?" मैं चकित होकर बोली। सोच रही थी कि मां को यह घनश्याम किस तरह पटा कर यहां लाया होगा।
"हां, यहीं पर, इसी तरह।"
"मम्मी राजी खुशी यहां आपके साथ आ गयी थी?"
"बड़े आराम से। राजी खुशी।"
"ऐसे कैसे आराम से? खुद तो अपने मुंह से बोली नहीं होगी?"
"बोली नहीं तो क्या। उनके हाव भाव को समझ नहीं सकता था क्या? मैं बढ़ता गया और वह पसरती चली गई। फिर क्या था, जैसा चाहा वैसा चोदा। जी भर के चोदा और वह मज़े से चुदवाती रही।" वह बोलता चला जा रहा था। "मुझे पूरी बात बताईए। यह समझ में नहीं आया कि मम्मी आपके साथ यहां इस खंडहर तक आने के लिए राजी कैसे हुई?" मैं उत्सुकता में अपनी जगह पर उठ बैठी।
"इसे थोड़ा विस्तार से बताना पड़ेगा। राजी थी तभी तो इस खंडहर में चली आई।"
"तो शुरू से पूरी बात बताईए ना।"
"तो ठीक है तो पूरी बात सुनो" कहकर वह बताने लगा.. ....