24-06-2019, 12:52 AM
उसका लिंग मेरी योनि के मुँह पर दस्तक दे रहा था।
एक घक्का लगा और उसका शिश्न थोड़ा और भीतर धँस गया। छेद मानो खिंचकर फटने लगी। मैं दर्द से बिलबिला उठी। जोर लगाकर उसे हटाना चाहा मगर खुद को छुड़ा नहीं पाई। ऊपर वह मुझे कंधों से जकड़े हुए था और नीचे मेरे पैरों को मोड़कर सामने से अपने पैरों से चाँपे था। छूटती किस तरह! उसने और जोर से दबाया। आह, मैं मर जाउंगी। शिश्न की मोटी गर्दन कील की तरह छेद में धँस गई। वह ठहर गया। शायद छेद को फैलने के लिए समय दे रहा था। मैंने उसे बगलों से पकड़कर ठेलकर छुड़ाने की कोशिश की। मगर सफलता नहीं मिली। वह कसकर मुझे जकड़े था। कोई उपाय नहीं। कोई सहायता नहीं। बुरी तरह फँसी हुई थी।
वह उसी दशा में रुका था। कुछ देर में योनि के खिंचाव का दर्द कुछ कम होने लगा। हल्की सी राहत मिली। झेल पाने की हिम्मत बंधी। मगर तभी एक जोरदार धक्का आया और धक्के के जोर से मेरा सारा बदन ऊपर ठेला गया। शिश्न मुझे लगभग फाड़ते हुए मेरे अंदर घुस गया। मैं दर्द से चीख उठी मगर उसने मेरा मुँह बंद कर आवाज अंदर ही घोंट दी। वह बेरहम हो रहा था। लगा आज वह मुझे मार ही डालेगा। जिस तरह कुल्हाड़ी लकड़ी को फाड़ती है उसी तरह मैं फटी जा रही थी। वह मुझे छटपटाने भी नहीं दे रहा था। हर तरफ से जकड़े था। मुँह पर हाथ दबाए था और नीचे दोनों पाँव जुड़े हुए उसके पैरों से मेरे नितम्बों पर दबे थे। उपर से कंधे जकडे था। हिलना भी मुश्किल था। अब वह कोई दया दिखाने को तैयार नहीं था। छेद पर अपना दवाब बढ़ाता जा रहा था। कील धीरे धीरे मुझमें ठुकती जा रही थी। शिश्न मेरे काफी अंदर घुस चुका था। योनि के चिकने गीलेपन में वह भीतर सरकता ही जा रहा था। मैं दर्द से व्याकुल हो रही थी। नश्तर की एक धार मुझे चीरती जा रही थी। छोड़ दो छोड़ दो। मगर मुँह बंधे जानवर की तरह मेरी उम… उम…. की आवाज भीतर ही घुट रही थी।
एक घक्का लगा और उसका शिश्न थोड़ा और भीतर धँस गया। छेद मानो खिंचकर फटने लगी। मैं दर्द से बिलबिला उठी। जोर लगाकर उसे हटाना चाहा मगर खुद को छुड़ा नहीं पाई। ऊपर वह मुझे कंधों से जकड़े हुए था और नीचे मेरे पैरों को मोड़कर सामने से अपने पैरों से चाँपे था। छूटती किस तरह! उसने और जोर से दबाया। आह, मैं मर जाउंगी। शिश्न की मोटी गर्दन कील की तरह छेद में धँस गई। वह ठहर गया। शायद छेद को फैलने के लिए समय दे रहा था। मैंने उसे बगलों से पकड़कर ठेलकर छुड़ाने की कोशिश की। मगर सफलता नहीं मिली। वह कसकर मुझे जकड़े था। कोई उपाय नहीं। कोई सहायता नहीं। बुरी तरह फँसी हुई थी।
वह उसी दशा में रुका था। कुछ देर में योनि के खिंचाव का दर्द कुछ कम होने लगा। हल्की सी राहत मिली। झेल पाने की हिम्मत बंधी। मगर तभी एक जोरदार धक्का आया और धक्के के जोर से मेरा सारा बदन ऊपर ठेला गया। शिश्न मुझे लगभग फाड़ते हुए मेरे अंदर घुस गया। मैं दर्द से चीख उठी मगर उसने मेरा मुँह बंद कर आवाज अंदर ही घोंट दी। वह बेरहम हो रहा था। लगा आज वह मुझे मार ही डालेगा। जिस तरह कुल्हाड़ी लकड़ी को फाड़ती है उसी तरह मैं फटी जा रही थी। वह मुझे छटपटाने भी नहीं दे रहा था। हर तरफ से जकड़े था। मुँह पर हाथ दबाए था और नीचे दोनों पाँव जुड़े हुए उसके पैरों से मेरे नितम्बों पर दबे थे। उपर से कंधे जकडे था। हिलना भी मुश्किल था। अब वह कोई दया दिखाने को तैयार नहीं था। छेद पर अपना दवाब बढ़ाता जा रहा था। कील धीरे धीरे मुझमें ठुकती जा रही थी। शिश्न मेरे काफी अंदर घुस चुका था। योनि के चिकने गीलेपन में वह भीतर सरकता ही जा रहा था। मैं दर्द से व्याकुल हो रही थी। नश्तर की एक धार मुझे चीरती जा रही थी। छोड़ दो छोड़ दो। मगर मुँह बंधे जानवर की तरह मेरी उम… उम…. की आवाज भीतर ही घुट रही थी।