30-12-2018, 03:07 PM
भाग - 4
रात घिर चुकी थी। सब खाना खा चुके थे और अपने कमरों में जाकर सोने की तैयारी कर रहे थी।
गेंदामल तो इस घड़ी के लिए पहले से ही बहुत उतावला था।
चमेली अपना सारा काम निपटा कर राजू के पास गई.. जो खाना खा कर आँगन में ज़मीन पर ही लेटा हुआ था।
‘चलो अब चलते हैं… सारा काम खत्म हो गया है।’
राजू ने बेमन से चमेली की तरफ देखा।
जो उसकी तरफ देखते हुए कातिल मुस्कान अपने होंठों पर लाए हुए थी और फिर राजू उठ कर खड़ा हो गया।
चमेली कुसुम के कमरे में गई और बोली- दीदी, मैंने सारा काम कर दिया है… अब मैं जा रही हूँ… बाहर का दरवाजा बंद कर लो।
उसके बाद चमेली राजू को लेकर गेंदामल के घर से निकल कर अपने घर की तरफ जाने लगी।
रात घिर चुकी थी।
आप सब लोग तो जानते ही होंगे।
उस समय में बिजली नहीं होती थी, ख़ासतौर पर गाँवों में, इसलिए चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था।
रास्ते में किसी-किसी घर के अन्दर से लालटेन की रोशनी नज़र आ जाती थी।
गाँव के गलियों में सन्नाटा छाया हुआ था।
चमेली राजू के आगे-आगे कुछ गुनगुनाते हुए चल रही थी।
अंधेरे की वजह से राजू ठीक से देख भी नहीं पा रहा था।
गाँव की गलियों से गुज़रते हुए चमेली और राजू गाँव के बाहर आ चुके थे।
अंधेरे और अंजान जगह के कारण राजू थोड़ा डर रहा था।
आख़िरकार उसने चमेली से पूछ ही लिया- गाँव तो खत्म हो गया.. आप का घर कहाँ है?’
चमेली ने पीछे मुड़ कर राजू की तरफ देखा और पीछे की तरफ इशारा करते हुए कहा- वो उधर.. वो वाला घर है।
राजू ने एक बार पीछे मुड़ कर उस घर की तरफ देखा, जहाँ पर लालटेन जल रही थी।
राजू- पर फिर आप यहाँ क्यों आ गईं?
चमेली- वो दरअसल मुझे बहुत तेज पेशाब लगी थी। इसलिए यहाँ पर आई हूँ और सुनो तुम भी यहीं मूत लो.. घर पर पेशाब करने के लिए जगह नहीं है।
यह कह कर चमेली अपनी गाण्ड मटकाते हुए थोड़ा आगे होकर रुकी और एक बार पीछे मुड़ कर 6-7 फुट दूर खड़े राजू की तरफ देखा और अपने लहँगे को ऊपर उठाने लगी।
यह देख कर पीछे खड़े राजू के हाथ-पाँव काँपने लगे और वो झेंपते हुए इधर-उधर देखने लगा।
हल्का चारों तरफ अंधेरा था पर आसमान में आधा चाँद निकला हुआ था, जिससे कुछ रोशनी तो चारों तरफ फैली हुई थी।
जैसे ही चमेली ने अपने लहँगे को कमर तक ऊपर उठाया, मानो जैसे राजू के हलक में कुछ अटक गया हो।
उसकी आँखें चमेली के हल्के साँवले रंग के मांसल और गुंदाज चूतड़ों पर जम गई।
चमेली आगे की तरफ देखते हुए मुस्करा रही थी।
यह सोच कर कि उसकी गाण्ड देख कर पीछे खड़ा राजू बेहाल हो रहा होगा और राजू था भी बेहाल।
चमेली के मोटी और गुंदाज गाण्ड को देखते ही, राजू का लण्ड उसके पजामे में एकदम तन कर खड़ा हो गया।
चमेली ने अपने एक हाथ से अपने लहँगे को पकड़ा हुआ था और उसने एक दूसरे हाथ से एक बार अपनी चूत की फांकों को खुज़ाया और धीरे-धीरे नीचे पंजों के बल बैठ गई और फिर ‘सर्र’ की तेज आवाज़ से उसकी चूत से पेशाब के धार निकलने लगी।
जिसे सुन कर राजू का और बुरा हाल हो गया। चमेली का दिल भी जोरों से धड़क रहा था।
वो मन में सोच रही थी कि राजू अभी उसे यहीं पटक कर चोद दे, पर अब वो ये सीधा-सीधा अपने मुँह से तो नहीं कह सकती थी।
राजू का हाथ खुद ब खुद ही पजामे के ऊपर से उसके लण्ड पर पहुँच चुका था और वो चमेली की गाण्ड को देखते हुए, अपने लण्ड को मसल रहा था।
चमेली पेशाब करने के बाद उठी और अपनी टाँगों को थोड़ा सा फैला कर अपनी चूत की फांकों को अपनी ऊँगली से रगड़ कर साफ़ करने लगी।
अपना लहंगा नीचे करने की उसे कोई जल्दी नहीं थी, भले ही उसकी बेटी की उम्र का लड़का पीछे खड़ा उसकी गुंदाज गाण्ड देख रहा था।
चमेली की झाँटों से भरी चूत का कुछ हिस्सा राजू को भी दिखाई देने लगा।
राजू का लण्ड तो बगावत पर उतर आया था.. वो उसके पजामे में ऐसे झटके मार रहा था, जैसे अभी उसका पजामा फाड़ कर बाहर आ जाएगा।
चमेली ने अपना मुँह घुमा कर पीछे देखा, राजू की नज़रें चमेली की गाण्ड पर ही टिकी हुई थीं और उसका हाथ अपने 8 इंच के लण्ड को पजामे के ऊपर से मसल रहा था।
जब चमेली ने ये सब देखा तो उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई, उसने अपने लहंगा नीचे किया और राजू की तरफ मुड़ी।
जैसे ही चमेली की गाण्ड को लहँगे ने ढका.. राजू जैसे सपनों की हसीन दुनिया से बाहर आया और उसने चमेली की तरफ देखा।
चमेली उसकी तरफ देखते हुए, मंद-मंद मुस्करा रही थी।
राजू ने अपना ध्यान दूसरी तरफ कर लिया, जैसे उसने कुछ देखा ही ना हो।
चमेली अपनी गाण्ड को मटकाते हुए राजू के पास आई और बोली- तुम्हें नहीं मूतना?
चमेली की बात सुन कर राजू हड़बड़ाया- जी नहीं..
राजू की हालत देख कर चमेली के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
‘अच्छा ठीक है चलो… रात बहुत हो गई है… सुबह सेठजी के घर वापिस भी जाना है।’
यह कह कर चमेली अपने घर की तरफ जाने लगी।
राजू बेचारा अपने लण्ड को छुपाते हुए चमेली के पीछे चल पड़ा।
चमेली ने अपने घर के सामने जाकर लकड़ी से बने दरवाजे को खटखटाया, थोड़ी देर बाद चमेली की बेटी रज्जो ने दरवाजा खोला।
वो अपनी नींद से भरी हुई आँखों को मलते हुए बोली- क्या माँ.. इतनी देर लगा दी… मैं तो सो ही गई थी।
जब उसने अपनी आँखों को खोल कर चमेली की तरफ देखा तो चमेली के पीछे खड़े राजू को देख कर थोड़ा हैरान होकर बोली- यह कौन है माँ?
चमेली ने राजू की तरफ देखा और बोली- यह राजू है, यह सेठ जी के घर में रहेगा.. उनका नौकर है। आज ही शहर से आया है।
चमेली और राजू अन्दर आ गईं।
चमेली का घर ज्यादा बड़ा नहीं था…
उसके घर में आगे की तरफ एक कमरा था और पीछे की तरफ एक कमरा था, जिसमें चमेली और उसकी बेटी सोते थी।
आगे वाले कमरे में जलावन का सामान रखा हुआ था और पिछले कमरे के आगे एक छोटा सा बरामदा था, पूरा घर कच्चा था.. नीचे ज़मीन भी कच्ची थी।
चमेली राजू को लेकर पिछले कमरे में आ गई, पिछले कमरे में एक चारपाई दीवार के साथ खड़ी थी।
शायद ग़रीब चमेली के घर वो ही एक चारपाई थी और नीचे टाट के ऊपर दो बिस्तर लगे हुए थे।
चमेली ने अन्दर आते ही अपनी बेटी रज्जो को साथ में एक और बिस्तर लगाने के लिए कहा।
राजू एक दीवार के साथ खड़ा था, लालटेन की रोशनी में अब उसे चमेली और बेटी साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थीं।
चमेली के बेटी का बदन चमेली से भी अधिक भरा-पूरा था।
रज्जो का कद 5’ 4′ इंच के करीब था, उसका बदन अभी से भर चुका था।
हर अंग उसकी जवानी को बयान करता था, 32 साइज़ की चूचियां एकदम कसी हुई थीं।
चमेली ने अपनी बेटी के साथ बिस्तर लगाते हुए, राजू की तरफ देखा।
उसका लण्ड उसके पजामे में बड़ा सा उभार बना हुआ था।
चमेली के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई और अगले ही पल वो राजू के पजामे में आए हुए उभार को देख कर उसके लण्ड की कल्पना करने लगी।
‘आज सर्दी बहुत है।’
चमेली ने राजू के तरफ देखते हुए कहा।
चमेली की बात सुन कर रज्जो भी बोली- हाँ माँ.. आज तो कुछ ज्यादा ही सर्दी ही… मुझे तो बहुत ठंड लग रही है।
चमेली (मुस्कुराते हुए)- हाँ.. ठंड तो लग रही है, पर ठंड का अपना ही मज़ा है।
यह कहते हुए वो लगातार राजू की तरफ देख रही थी।
बिस्तर लगाने के बाद रज्जो अपने बिस्तर पर पसर गई, उसे घर में राजू जैसे अंजान लड़के के होने से कोई फरक नहीं पड़ रहा था ऐसा शायद नींद की वजह से था।
रज्जो बिस्तर पर पेट के बल लेट गई, जिसके कारण पीछे से उसकी भरी हुई गाण्ड बाहर की ओर आ गई थी।
वो उस समय सलवार-कमीज़ पहने हुए थी।
उसकी सलवार उसके चूतड़ों पर एकदम कसी हुई थी, जिसे देखे वगैर राजू से रहा नहीं गया।
अपनी बेटी की गाण्ड को यूँ घूरता देख कर चमेली ने राजू की तरफ तीखी आँखों से देखा और फिर रज्जो के ऊपर रज़ाई उढ़ा दी और बुदबुदाते हुए बिस्तर पर लेट गई।
रात घिर चुकी थी। सब खाना खा चुके थे और अपने कमरों में जाकर सोने की तैयारी कर रहे थी।
गेंदामल तो इस घड़ी के लिए पहले से ही बहुत उतावला था।
चमेली अपना सारा काम निपटा कर राजू के पास गई.. जो खाना खा कर आँगन में ज़मीन पर ही लेटा हुआ था।
‘चलो अब चलते हैं… सारा काम खत्म हो गया है।’
राजू ने बेमन से चमेली की तरफ देखा।
जो उसकी तरफ देखते हुए कातिल मुस्कान अपने होंठों पर लाए हुए थी और फिर राजू उठ कर खड़ा हो गया।
चमेली कुसुम के कमरे में गई और बोली- दीदी, मैंने सारा काम कर दिया है… अब मैं जा रही हूँ… बाहर का दरवाजा बंद कर लो।
उसके बाद चमेली राजू को लेकर गेंदामल के घर से निकल कर अपने घर की तरफ जाने लगी।
रात घिर चुकी थी।
आप सब लोग तो जानते ही होंगे।
उस समय में बिजली नहीं होती थी, ख़ासतौर पर गाँवों में, इसलिए चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था।
रास्ते में किसी-किसी घर के अन्दर से लालटेन की रोशनी नज़र आ जाती थी।
गाँव के गलियों में सन्नाटा छाया हुआ था।
चमेली राजू के आगे-आगे कुछ गुनगुनाते हुए चल रही थी।
अंधेरे की वजह से राजू ठीक से देख भी नहीं पा रहा था।
गाँव की गलियों से गुज़रते हुए चमेली और राजू गाँव के बाहर आ चुके थे।
अंधेरे और अंजान जगह के कारण राजू थोड़ा डर रहा था।
आख़िरकार उसने चमेली से पूछ ही लिया- गाँव तो खत्म हो गया.. आप का घर कहाँ है?’
चमेली ने पीछे मुड़ कर राजू की तरफ देखा और पीछे की तरफ इशारा करते हुए कहा- वो उधर.. वो वाला घर है।
राजू ने एक बार पीछे मुड़ कर उस घर की तरफ देखा, जहाँ पर लालटेन जल रही थी।
राजू- पर फिर आप यहाँ क्यों आ गईं?
चमेली- वो दरअसल मुझे बहुत तेज पेशाब लगी थी। इसलिए यहाँ पर आई हूँ और सुनो तुम भी यहीं मूत लो.. घर पर पेशाब करने के लिए जगह नहीं है।
यह कह कर चमेली अपनी गाण्ड मटकाते हुए थोड़ा आगे होकर रुकी और एक बार पीछे मुड़ कर 6-7 फुट दूर खड़े राजू की तरफ देखा और अपने लहँगे को ऊपर उठाने लगी।
यह देख कर पीछे खड़े राजू के हाथ-पाँव काँपने लगे और वो झेंपते हुए इधर-उधर देखने लगा।
हल्का चारों तरफ अंधेरा था पर आसमान में आधा चाँद निकला हुआ था, जिससे कुछ रोशनी तो चारों तरफ फैली हुई थी।
जैसे ही चमेली ने अपने लहँगे को कमर तक ऊपर उठाया, मानो जैसे राजू के हलक में कुछ अटक गया हो।
उसकी आँखें चमेली के हल्के साँवले रंग के मांसल और गुंदाज चूतड़ों पर जम गई।
चमेली आगे की तरफ देखते हुए मुस्करा रही थी।
यह सोच कर कि उसकी गाण्ड देख कर पीछे खड़ा राजू बेहाल हो रहा होगा और राजू था भी बेहाल।
चमेली के मोटी और गुंदाज गाण्ड को देखते ही, राजू का लण्ड उसके पजामे में एकदम तन कर खड़ा हो गया।
चमेली ने अपने एक हाथ से अपने लहँगे को पकड़ा हुआ था और उसने एक दूसरे हाथ से एक बार अपनी चूत की फांकों को खुज़ाया और धीरे-धीरे नीचे पंजों के बल बैठ गई और फिर ‘सर्र’ की तेज आवाज़ से उसकी चूत से पेशाब के धार निकलने लगी।
जिसे सुन कर राजू का और बुरा हाल हो गया। चमेली का दिल भी जोरों से धड़क रहा था।
वो मन में सोच रही थी कि राजू अभी उसे यहीं पटक कर चोद दे, पर अब वो ये सीधा-सीधा अपने मुँह से तो नहीं कह सकती थी।
राजू का हाथ खुद ब खुद ही पजामे के ऊपर से उसके लण्ड पर पहुँच चुका था और वो चमेली की गाण्ड को देखते हुए, अपने लण्ड को मसल रहा था।
चमेली पेशाब करने के बाद उठी और अपनी टाँगों को थोड़ा सा फैला कर अपनी चूत की फांकों को अपनी ऊँगली से रगड़ कर साफ़ करने लगी।
अपना लहंगा नीचे करने की उसे कोई जल्दी नहीं थी, भले ही उसकी बेटी की उम्र का लड़का पीछे खड़ा उसकी गुंदाज गाण्ड देख रहा था।
चमेली की झाँटों से भरी चूत का कुछ हिस्सा राजू को भी दिखाई देने लगा।
राजू का लण्ड तो बगावत पर उतर आया था.. वो उसके पजामे में ऐसे झटके मार रहा था, जैसे अभी उसका पजामा फाड़ कर बाहर आ जाएगा।
चमेली ने अपना मुँह घुमा कर पीछे देखा, राजू की नज़रें चमेली की गाण्ड पर ही टिकी हुई थीं और उसका हाथ अपने 8 इंच के लण्ड को पजामे के ऊपर से मसल रहा था।
जब चमेली ने ये सब देखा तो उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई, उसने अपने लहंगा नीचे किया और राजू की तरफ मुड़ी।
जैसे ही चमेली की गाण्ड को लहँगे ने ढका.. राजू जैसे सपनों की हसीन दुनिया से बाहर आया और उसने चमेली की तरफ देखा।
चमेली उसकी तरफ देखते हुए, मंद-मंद मुस्करा रही थी।
राजू ने अपना ध्यान दूसरी तरफ कर लिया, जैसे उसने कुछ देखा ही ना हो।
चमेली अपनी गाण्ड को मटकाते हुए राजू के पास आई और बोली- तुम्हें नहीं मूतना?
चमेली की बात सुन कर राजू हड़बड़ाया- जी नहीं..
राजू की हालत देख कर चमेली के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
‘अच्छा ठीक है चलो… रात बहुत हो गई है… सुबह सेठजी के घर वापिस भी जाना है।’
यह कह कर चमेली अपने घर की तरफ जाने लगी।
राजू बेचारा अपने लण्ड को छुपाते हुए चमेली के पीछे चल पड़ा।
चमेली ने अपने घर के सामने जाकर लकड़ी से बने दरवाजे को खटखटाया, थोड़ी देर बाद चमेली की बेटी रज्जो ने दरवाजा खोला।
वो अपनी नींद से भरी हुई आँखों को मलते हुए बोली- क्या माँ.. इतनी देर लगा दी… मैं तो सो ही गई थी।
जब उसने अपनी आँखों को खोल कर चमेली की तरफ देखा तो चमेली के पीछे खड़े राजू को देख कर थोड़ा हैरान होकर बोली- यह कौन है माँ?
चमेली ने राजू की तरफ देखा और बोली- यह राजू है, यह सेठ जी के घर में रहेगा.. उनका नौकर है। आज ही शहर से आया है।
चमेली और राजू अन्दर आ गईं।
चमेली का घर ज्यादा बड़ा नहीं था…
उसके घर में आगे की तरफ एक कमरा था और पीछे की तरफ एक कमरा था, जिसमें चमेली और उसकी बेटी सोते थी।
आगे वाले कमरे में जलावन का सामान रखा हुआ था और पिछले कमरे के आगे एक छोटा सा बरामदा था, पूरा घर कच्चा था.. नीचे ज़मीन भी कच्ची थी।
चमेली राजू को लेकर पिछले कमरे में आ गई, पिछले कमरे में एक चारपाई दीवार के साथ खड़ी थी।
शायद ग़रीब चमेली के घर वो ही एक चारपाई थी और नीचे टाट के ऊपर दो बिस्तर लगे हुए थे।
चमेली ने अन्दर आते ही अपनी बेटी रज्जो को साथ में एक और बिस्तर लगाने के लिए कहा।
राजू एक दीवार के साथ खड़ा था, लालटेन की रोशनी में अब उसे चमेली और बेटी साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थीं।
चमेली के बेटी का बदन चमेली से भी अधिक भरा-पूरा था।
रज्जो का कद 5’ 4′ इंच के करीब था, उसका बदन अभी से भर चुका था।
हर अंग उसकी जवानी को बयान करता था, 32 साइज़ की चूचियां एकदम कसी हुई थीं।
चमेली ने अपनी बेटी के साथ बिस्तर लगाते हुए, राजू की तरफ देखा।
उसका लण्ड उसके पजामे में बड़ा सा उभार बना हुआ था।
चमेली के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई और अगले ही पल वो राजू के पजामे में आए हुए उभार को देख कर उसके लण्ड की कल्पना करने लगी।
‘आज सर्दी बहुत है।’
चमेली ने राजू के तरफ देखते हुए कहा।
चमेली की बात सुन कर रज्जो भी बोली- हाँ माँ.. आज तो कुछ ज्यादा ही सर्दी ही… मुझे तो बहुत ठंड लग रही है।
चमेली (मुस्कुराते हुए)- हाँ.. ठंड तो लग रही है, पर ठंड का अपना ही मज़ा है।
यह कहते हुए वो लगातार राजू की तरफ देख रही थी।
बिस्तर लगाने के बाद रज्जो अपने बिस्तर पर पसर गई, उसे घर में राजू जैसे अंजान लड़के के होने से कोई फरक नहीं पड़ रहा था ऐसा शायद नींद की वजह से था।
रज्जो बिस्तर पर पेट के बल लेट गई, जिसके कारण पीछे से उसकी भरी हुई गाण्ड बाहर की ओर आ गई थी।
वो उस समय सलवार-कमीज़ पहने हुए थी।
उसकी सलवार उसके चूतड़ों पर एकदम कसी हुई थी, जिसे देखे वगैर राजू से रहा नहीं गया।
अपनी बेटी की गाण्ड को यूँ घूरता देख कर चमेली ने राजू की तरफ तीखी आँखों से देखा और फिर रज्जो के ऊपर रज़ाई उढ़ा दी और बुदबुदाते हुए बिस्तर पर लेट गई।