16-08-2024, 12:08 PM
"अब इस तरह हाथ लगाओगी तो खड़ा नहीं होगा तो सोया रहेगा क्या? सोच लो, इस तरह करती रहोगी तो तुम्हें कॉलेज जाने में देर हो जायेगी, क्योंकि अभिए कर दूंगा।"
"सोच लिया। देर होने दीजिए, कर लीजिए जो करना है, परवाह नहीं है मुझे।" मैं बोलती जा रही थी।
"बाद में मुझे कुछ नहीं बोलना। लेकिन तुम्हारी मां को भी ऑफिस छोड़ना है।"
"मुझे किसी भी कीमत पर बस मां के बारे में सुनना है। मां को बोल दीजिए कि कार खराब हो गयी है।"
"किसी भी कीमत पर?"
"हां, किसी भी कीमत पर।" बोलने को तो बोल गयी लेकिन मुझे अंदाजा भी नहीं था कि वह कीमत क्या होगी। मैं अबतक उसके लंड को पकड़ कर न केवल मुठिया रही थी बल्कि जोश ही जोश में अपना होश खो कर अपने हाथ की हरकत से उसके लंड को भयानक आकार दे चुकी थी। अब घनश्याम का धीरज भी जवाब देने लगा था।
"तू मानेगी नहीं?" वह गुर्रा उठा। मगर मुझे कोई परवाह नहीं थी। मैंने पैंट से उसका लंड बाहर निकाल लिया था और यह देखकर दंग रह गयी कि आज उसका लंड पहले की अपेक्षा काफी भयानक रूप अख्तियार कर चुका था। लंबा और मोटा तो पहले ही काफी था लेकिन आज की बात कुछ और थी। काले सांप की तरह फुंफकार मारता हुआ बहुत ख़तरनाक दिखाई दे रहा था।
"मैं आखिरी बार बोल रहा हूं। अब रुक जा हरामजादी।"
"नहीं रुकुंगी। जबतक आप कल वाली बात नहीं बताएंगे, नहीं रुकूंगी।" मैं ढिठाई से बोली। सच तो यह था कि इस वक्त मैं भी चुदने के लिए मरी जा रही थी। मां के साथ कल वाली घटना को सुनना अब मेरे लिए दूसरी प्राथमिकता थी। पहली प्राथमिकता तो चुदना था।
"साली कुतिया की बच्ची, रुक जरा, अभी बताता हूं तुझे।" कहते ही उसने कार को बाईं ओर इतनी तेजी से घुमाया कि मैं घनश्याम पर लद गयी। कार सड़क के बाईं ओर ऊंची ऊंची घनी झाड़ियों को चीरता हुआ अन्दर घुसता चला गया और करीब पचास मीटर दूर जाकर एक झटके में रुक गया। जैसे ही कार रुकी, मैं उस अनजान सुनसान जगह को देखकर चौंक उठी। मैंने नज़र उठाकर देखा तो सामने करीब बीस पच्चीस मीटर दूर एक भूत बंगला टाईप हवेली का खंडहर था। उस रास्ते से गुजरते हुए पहले भी मैं इन घने झुरमुट के पीछे उस खंडहरनुमा हवेली का ऊपरी हिस्सा प्रायः देखती थी लेकिन आज इतने करीब से देखने का मौका मिला भी तो किस परिस्थिति में? मैं सोच कर भीतर ही भीतर मुस्कुरा उठी थी। इससे पहले कि मैं कुछ और सोचती, कार के रुकते ही एक झटके में घनश्याम कार का दरवाजा खोल कर बाहर आया और घूमकर मेरी ओर का दरवाजा खोल दिया। उसके चेहरे पर मैंने जो कुछ देखा, कुछ भयभीत हो गयी।
"नीचे उतर साली रंडी की औलाद। आज तुझे दिखाता हूं कि घनश्याम क्या चीज़ है।" ख़तरनाक लहजे में कहकर मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किए बगैर मेरे बाजू को कसकर पकड़ कर बाहर खींचा और इससे पहले कि मैं कुछ समझती, मुझे सख्ती के साथ पकड़ कर अपने साथ घसीटते हुए खंडहर की ओर ले चला। मुझे ताज्जुब हो रहा था कि उसके अंदर इतनी हिम्मत कहां से आ गई कि अपनी नौकरी की भी चिंता नहीं है। उसके इस जबरदस्ती वाले कृत्य से उनकी नौकरी भी जा सकती थी लेकिन उसकी धृष्टता तो देखो, जिस घर में ड्राईवरी करता है, उसी घर की लड़की के साथ इस तरह की जबर्दस्ती करते हुए जरा भी डर नहीं था।
"यह आप क्या कर रहे हैं?' मैं भयभीत स्वर में बोली।
"तुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं क्या कर रहा हूं? साली कुतिया? आज तुझे ऐसा चोदुंगा कि तुम्हें जिंदगी भर याद रहेगा।" वह खूंखार लहजे में बोला। मैं उसकी पकड़ में छटपटाती रही लेकिन वह मुझे घसीटते हुए खंडहर के बीच ले आया। पहले पहल मैं घिसटती रही, फिर खुद को संभाल कर अपने पैरों से ही खिंचती चली गई। मैंने देखा कि उस खंडहर के एक ऐसे हिस्से में हम थे, जो शायद पहले बड़ा सा हॉल हुआ करता था। चारों ओर ऊंची ऊंची दीवारों से घिरे हॉलनुमा स्थान के पश्चिम की ओर एक करीब तीन फीट ऊंचा स्टेज सा बना हुआ था जिस पर चढ़ने के लिए सामने से टूटी फूटी सीढ़ी थी। वह मुझे उसी चबूतरे की ओर खींच कर लाया। मैंने देखा कि उस चबूतरे पर घास उग आया था जो कालीन की तरह पूरे चबूतरे के क्षेत्र पर बिछा हुआ था। मुझे लग रहा था कि घनश्याम वहां पहले भी कई बार आ चुका था। मुझे घसीट कर उसी स्टेज पर बड़ी निर्ममता से पटक दिया। मुलायम घास के कालीन के कारण मुझे कोई चोट नहीं आई। जैसे ही मैं उस चबूतरे पर गिरी, वह किसी भूखे भेड़िए की भांति मुझ पर टूट पड़ा और एक एक करके मेरे तन से कपड़े अलग हो कर हवा में उड़ने लगे। मेरे कपड़े कुछ फटे, टूटे या कुछ खुले, लेकिन हाय राम, उस झपटा झपटी के परिणामस्वरूप मिनट भर में मैं उस स्टेज पर मादरजात नंगी पड़ी हुई थी।
"सोच लिया। देर होने दीजिए, कर लीजिए जो करना है, परवाह नहीं है मुझे।" मैं बोलती जा रही थी।
"बाद में मुझे कुछ नहीं बोलना। लेकिन तुम्हारी मां को भी ऑफिस छोड़ना है।"
"मुझे किसी भी कीमत पर बस मां के बारे में सुनना है। मां को बोल दीजिए कि कार खराब हो गयी है।"
"किसी भी कीमत पर?"
"हां, किसी भी कीमत पर।" बोलने को तो बोल गयी लेकिन मुझे अंदाजा भी नहीं था कि वह कीमत क्या होगी। मैं अबतक उसके लंड को पकड़ कर न केवल मुठिया रही थी बल्कि जोश ही जोश में अपना होश खो कर अपने हाथ की हरकत से उसके लंड को भयानक आकार दे चुकी थी। अब घनश्याम का धीरज भी जवाब देने लगा था।
"तू मानेगी नहीं?" वह गुर्रा उठा। मगर मुझे कोई परवाह नहीं थी। मैंने पैंट से उसका लंड बाहर निकाल लिया था और यह देखकर दंग रह गयी कि आज उसका लंड पहले की अपेक्षा काफी भयानक रूप अख्तियार कर चुका था। लंबा और मोटा तो पहले ही काफी था लेकिन आज की बात कुछ और थी। काले सांप की तरह फुंफकार मारता हुआ बहुत ख़तरनाक दिखाई दे रहा था।
"मैं आखिरी बार बोल रहा हूं। अब रुक जा हरामजादी।"
"नहीं रुकुंगी। जबतक आप कल वाली बात नहीं बताएंगे, नहीं रुकूंगी।" मैं ढिठाई से बोली। सच तो यह था कि इस वक्त मैं भी चुदने के लिए मरी जा रही थी। मां के साथ कल वाली घटना को सुनना अब मेरे लिए दूसरी प्राथमिकता थी। पहली प्राथमिकता तो चुदना था।
"साली कुतिया की बच्ची, रुक जरा, अभी बताता हूं तुझे।" कहते ही उसने कार को बाईं ओर इतनी तेजी से घुमाया कि मैं घनश्याम पर लद गयी। कार सड़क के बाईं ओर ऊंची ऊंची घनी झाड़ियों को चीरता हुआ अन्दर घुसता चला गया और करीब पचास मीटर दूर जाकर एक झटके में रुक गया। जैसे ही कार रुकी, मैं उस अनजान सुनसान जगह को देखकर चौंक उठी। मैंने नज़र उठाकर देखा तो सामने करीब बीस पच्चीस मीटर दूर एक भूत बंगला टाईप हवेली का खंडहर था। उस रास्ते से गुजरते हुए पहले भी मैं इन घने झुरमुट के पीछे उस खंडहरनुमा हवेली का ऊपरी हिस्सा प्रायः देखती थी लेकिन आज इतने करीब से देखने का मौका मिला भी तो किस परिस्थिति में? मैं सोच कर भीतर ही भीतर मुस्कुरा उठी थी। इससे पहले कि मैं कुछ और सोचती, कार के रुकते ही एक झटके में घनश्याम कार का दरवाजा खोल कर बाहर आया और घूमकर मेरी ओर का दरवाजा खोल दिया। उसके चेहरे पर मैंने जो कुछ देखा, कुछ भयभीत हो गयी।
"नीचे उतर साली रंडी की औलाद। आज तुझे दिखाता हूं कि घनश्याम क्या चीज़ है।" ख़तरनाक लहजे में कहकर मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किए बगैर मेरे बाजू को कसकर पकड़ कर बाहर खींचा और इससे पहले कि मैं कुछ समझती, मुझे सख्ती के साथ पकड़ कर अपने साथ घसीटते हुए खंडहर की ओर ले चला। मुझे ताज्जुब हो रहा था कि उसके अंदर इतनी हिम्मत कहां से आ गई कि अपनी नौकरी की भी चिंता नहीं है। उसके इस जबरदस्ती वाले कृत्य से उनकी नौकरी भी जा सकती थी लेकिन उसकी धृष्टता तो देखो, जिस घर में ड्राईवरी करता है, उसी घर की लड़की के साथ इस तरह की जबर्दस्ती करते हुए जरा भी डर नहीं था।
"यह आप क्या कर रहे हैं?' मैं भयभीत स्वर में बोली।
"तुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं क्या कर रहा हूं? साली कुतिया? आज तुझे ऐसा चोदुंगा कि तुम्हें जिंदगी भर याद रहेगा।" वह खूंखार लहजे में बोला। मैं उसकी पकड़ में छटपटाती रही लेकिन वह मुझे घसीटते हुए खंडहर के बीच ले आया। पहले पहल मैं घिसटती रही, फिर खुद को संभाल कर अपने पैरों से ही खिंचती चली गई। मैंने देखा कि उस खंडहर के एक ऐसे हिस्से में हम थे, जो शायद पहले बड़ा सा हॉल हुआ करता था। चारों ओर ऊंची ऊंची दीवारों से घिरे हॉलनुमा स्थान के पश्चिम की ओर एक करीब तीन फीट ऊंचा स्टेज सा बना हुआ था जिस पर चढ़ने के लिए सामने से टूटी फूटी सीढ़ी थी। वह मुझे उसी चबूतरे की ओर खींच कर लाया। मैंने देखा कि उस चबूतरे पर घास उग आया था जो कालीन की तरह पूरे चबूतरे के क्षेत्र पर बिछा हुआ था। मुझे लग रहा था कि घनश्याम वहां पहले भी कई बार आ चुका था। मुझे घसीट कर उसी स्टेज पर बड़ी निर्ममता से पटक दिया। मुलायम घास के कालीन के कारण मुझे कोई चोट नहीं आई। जैसे ही मैं उस चबूतरे पर गिरी, वह किसी भूखे भेड़िए की भांति मुझ पर टूट पड़ा और एक एक करके मेरे तन से कपड़े अलग हो कर हवा में उड़ने लगे। मेरे कपड़े कुछ फटे, टूटे या कुछ खुले, लेकिन हाय राम, उस झपटा झपटी के परिणामस्वरूप मिनट भर में मैं उस स्टेज पर मादरजात नंगी पड़ी हुई थी।