15-08-2024, 02:42 PM
सभी स्त्री को समर्पित...!???
आपने भी गौर किया होगा, अचानक बारिश हो जाए तो लोग अक्सर दुकानों, गुमटियों या किसी छायादार जगह पर खुद को भीगने से बचाने के लिए खड़े हो जाते हैं। लेकिन इन पुरुषों की नजरें... वे नजरें, जो किसी भोली-भाली स्त्री के तन पर टिकी रहती हैं, उन्हें शर्मिंदा कर जाती हैं। उस वक्त, जब वह स्त्री पानी की बौछारों से बचने की कोशिश कर रही होती है, उसकी साड़ी या कपड़े उसके बदन से चिपक जाते हैं, और तभी इन पुरुषों की बेतरतीब निगाहें उसकी ओर उठ जाती हैं।
ये नजरें उस स्त्री की मर्यादा को तार-तार करने का काम करती हैं। यह वे नजरें हैं जो खुद की मां, बहन, और बेटी को भी उसी स्थिति में सोचने की जहमत नहीं उठातीं। ये नजरें, जो अपने संस्कारों को भूलकर केवल अपनी वासना की तृप्ति के लिए उठती हैं।
क्या इन पुरुषों ने कभी सोचा है कि उनकी भी मां, बहन, बेटियां ऐसी परिस्थितियों से गुजरती हैं? शायद नहीं। उनका मन इतना संवेदनहीन हो गया है कि वे इन बातों पर विचार करना ही नहीं चाहते।
लेकिन समय बदल गया है। अब, वे भोली और संस्कारी स्त्रियां, जो कभी शर्म से गड़ जाती थीं, आज फैशन के नाम पर खुद ही अपने अंगों का प्रदर्शन करने लगी हैं। यह नहीं कि वे चाहती हैं कि कोई उन्हें देखे, बल्कि उन्होंने अपनी स्वतंत्रता को उस मुकाम तक पहुंचा दिया है जहां वे अपनी पहचान को खुद तय करती हैं।
पहले, जब समाज ने पुरुषों को शराब पीने से रोकने की कोशिश की, तब भी उन्होंने समाज के नियमों की परवाह नहीं की। उन्होंने घर-परिवार की बर्बादी के बावजूद शराब को अपने जीवन का हिस्सा बनाए रखा। लेकिन अब, स्त्रियां भी उसी रास्ते पर चल पड़ी हैं। वे भी शराब का सेवन करने लगी हैं, और वह भी अपनी मर्जी से, बिना किसी डर के।
यहां तक कि जब कोई स्त्री अपने पति से या अपने प्रिय से यह कहती थी कि "किसी को अपनी रखैल मत बनाओ, ना ही मेरी सौतन बनाओ," तब वह इसे अपनी मर्दानगी और शान का प्रतीक मानता था। लेकिन अब, महिलाएं भी खुद ही रखैल बनने का फैसला कर रही हैं, और यह उनकी अपनी इच्छा है।
, क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?
इसका कारण समझना आसान नहीं है, लेकिन इसे साफ शब्दों में कहें तो यह पुरुषों द्वारा सदियों से किए गए मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का नतीजा है। यह चिंगारी, जो इनके सीने में सदियों से सुलग रही थी, अब उभर कर सामने आ रही है। यह आग, जिसे महिलावादी कानून की हवा ने और भी भड़का दिया है, अब समाज के लिए एक नई चुनौती बन गई है।
लेकिन समस्या यह है कि इन कानूनों का सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है। जो कानून उनकी सुरक्षा के लिए बने थे, अब उनका दुरुपयोग हो रहा है। निर्दोष पुरुषों को झूठे आरोपों में फंसाकर उनका जीवन बर्बाद किया जा रहा है। और यह केवल उनके लिए ही नहीं, बल्कि उन महिलाओं के लिए भी घातक साबित हो रहा है, जो सच में इन कानूनों की हकदार हैं।
यह सच है कि हम केवल उन स्त्रियों का विरोध करते हैं जो बहकाव में आकर, मासूमियत में गलत राह पर चल पड़ी हैं। वे स्त्रियां, जो अपने दोषों को छुपाने के लिए झूठ पर झूठ बोलती हैं, और अपने ही परिवार, पिता, पति, सहकर्मियों, और परिचितों पर झूठे आरोप लगाती हैं। वे अपनी ही ज़िंदगी को और दूसरों की जिंदगी को भी बर्बाद कर रही हैं।
लेकिन मेरा दिल सिर्फ इस बात से चिंतित है कि कहीं इस बदले हुए माहौल में किसी सीधी-सादी, संस्कारी और सच्ची स्त्री के सच को भी झूठ समझा जाने लगे। यह सोचकर दिल कांप जाता है कि कहीं यह समाज सच को पहचानने में असफल न हो जाए।
आपने भी गौर किया होगा, अचानक बारिश हो जाए तो लोग अक्सर दुकानों, गुमटियों या किसी छायादार जगह पर खुद को भीगने से बचाने के लिए खड़े हो जाते हैं। लेकिन इन पुरुषों की नजरें... वे नजरें, जो किसी भोली-भाली स्त्री के तन पर टिकी रहती हैं, उन्हें शर्मिंदा कर जाती हैं। उस वक्त, जब वह स्त्री पानी की बौछारों से बचने की कोशिश कर रही होती है, उसकी साड़ी या कपड़े उसके बदन से चिपक जाते हैं, और तभी इन पुरुषों की बेतरतीब निगाहें उसकी ओर उठ जाती हैं।
ये नजरें उस स्त्री की मर्यादा को तार-तार करने का काम करती हैं। यह वे नजरें हैं जो खुद की मां, बहन, और बेटी को भी उसी स्थिति में सोचने की जहमत नहीं उठातीं। ये नजरें, जो अपने संस्कारों को भूलकर केवल अपनी वासना की तृप्ति के लिए उठती हैं।
क्या इन पुरुषों ने कभी सोचा है कि उनकी भी मां, बहन, बेटियां ऐसी परिस्थितियों से गुजरती हैं? शायद नहीं। उनका मन इतना संवेदनहीन हो गया है कि वे इन बातों पर विचार करना ही नहीं चाहते।
लेकिन समय बदल गया है। अब, वे भोली और संस्कारी स्त्रियां, जो कभी शर्म से गड़ जाती थीं, आज फैशन के नाम पर खुद ही अपने अंगों का प्रदर्शन करने लगी हैं। यह नहीं कि वे चाहती हैं कि कोई उन्हें देखे, बल्कि उन्होंने अपनी स्वतंत्रता को उस मुकाम तक पहुंचा दिया है जहां वे अपनी पहचान को खुद तय करती हैं।
पहले, जब समाज ने पुरुषों को शराब पीने से रोकने की कोशिश की, तब भी उन्होंने समाज के नियमों की परवाह नहीं की। उन्होंने घर-परिवार की बर्बादी के बावजूद शराब को अपने जीवन का हिस्सा बनाए रखा। लेकिन अब, स्त्रियां भी उसी रास्ते पर चल पड़ी हैं। वे भी शराब का सेवन करने लगी हैं, और वह भी अपनी मर्जी से, बिना किसी डर के।
यहां तक कि जब कोई स्त्री अपने पति से या अपने प्रिय से यह कहती थी कि "किसी को अपनी रखैल मत बनाओ, ना ही मेरी सौतन बनाओ," तब वह इसे अपनी मर्दानगी और शान का प्रतीक मानता था। लेकिन अब, महिलाएं भी खुद ही रखैल बनने का फैसला कर रही हैं, और यह उनकी अपनी इच्छा है।
, क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?
इसका कारण समझना आसान नहीं है, लेकिन इसे साफ शब्दों में कहें तो यह पुरुषों द्वारा सदियों से किए गए मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का नतीजा है। यह चिंगारी, जो इनके सीने में सदियों से सुलग रही थी, अब उभर कर सामने आ रही है। यह आग, जिसे महिलावादी कानून की हवा ने और भी भड़का दिया है, अब समाज के लिए एक नई चुनौती बन गई है।
लेकिन समस्या यह है कि इन कानूनों का सही इस्तेमाल नहीं हो रहा है। जो कानून उनकी सुरक्षा के लिए बने थे, अब उनका दुरुपयोग हो रहा है। निर्दोष पुरुषों को झूठे आरोपों में फंसाकर उनका जीवन बर्बाद किया जा रहा है। और यह केवल उनके लिए ही नहीं, बल्कि उन महिलाओं के लिए भी घातक साबित हो रहा है, जो सच में इन कानूनों की हकदार हैं।
यह सच है कि हम केवल उन स्त्रियों का विरोध करते हैं जो बहकाव में आकर, मासूमियत में गलत राह पर चल पड़ी हैं। वे स्त्रियां, जो अपने दोषों को छुपाने के लिए झूठ पर झूठ बोलती हैं, और अपने ही परिवार, पिता, पति, सहकर्मियों, और परिचितों पर झूठे आरोप लगाती हैं। वे अपनी ही ज़िंदगी को और दूसरों की जिंदगी को भी बर्बाद कर रही हैं।
लेकिन मेरा दिल सिर्फ इस बात से चिंतित है कि कहीं इस बदले हुए माहौल में किसी सीधी-सादी, संस्कारी और सच्ची स्त्री के सच को भी झूठ समझा जाने लगे। यह सोचकर दिल कांप जाता है कि कहीं यह समाज सच को पहचानने में असफल न हो जाए।