14-08-2024, 11:17 AM
हां तो मैं कह रही थी कि घनश्याम को बोल तो रही थी कि मेरी जांघों पर से अपना हाथ हटाईए, लेकिन उसका इस तरह मेरी नंगी जांघों पर हाथ रखना और सहलाना मुझे बड़ा अच्छा और उत्तेजक लग रहा था लेकिन इस वक्त मुझे कल वाली मेरी मां के साथ जो कुछ हुआ था उसे सुनने के लिए मरी जा रही थी। मैं इस वक्त भी स्कर्ट ब्लाउज में ही थी इसलिए उन्होंने मेरे स्कर्ट को हल्का सा ऊपर खिसका कर सीधे मेरी नंगी जांघों पर हाथ रखा था इसलिए उनके स्पर्श को अच्छी तरह महसूस कर रही थी। मैं उत्तेजित हो रही थी लेकिन इस वक्त मुझे कॉलेज जाने की जल्दी थी, वरना जो उत्तेजना का अनुभव इस वक्त महसूस कर रही थी उसके वशीभूत मैं चुद जाने के कागार पर पहुंच चुकी थी।
"जंगली तो बन चुका हूं और इसका एकमात्र कारण तुम्हारी हरकतें हैं।" वह धीरे-धीरे अपना हाथ मेरी जांघों पर ऊपर ले जा रहा था। यह मेरे सब्र का इम्तिहान था।
"आपको पता है ना कि मैं इस वक्त कॉलेज जा रही हूं? फिर यह जंगलीपन क्यों कर रहे हैं। हाथ हटाईए अपना।" मैं झिड़क उठी। मेरे तेवर को देख कर उन्होंने अपना हाथ तो हटा लिया लेकिन अब मुझे उनका इस तरह अचानक हाथ हटाना खलने लगा।
"लो हाथ हटा दिया।" कहकर वह खामोश हो गया लेकिन उसे भी अहसास था कि उसने मेरे अंदर आग सुलगा दी थी।
"हां अब बताईए।" मैं बोली।
"नहीं अभी नहीं बता सकता।" वह बोला।
"क्यों?"
"लंबी कहानी है।"
"संक्षेप में बताईए।" मैं उतावली में बोली।
"नहीं, अभी नहीं।"
मैं जान गयी कि वह रुष्ट है। अब मैं क्या करूं? कैसे उसका मुंह खुलवाऊं? क्या मैं भूल जाऊं कि अभी मैं कॉलेज जा रही हूं? क्या ऐसा करूं कि वह मुंह खोलकर बताए? अभी भी कॉलेज का रास्ता आधा घंटा का था। वह चाहता तो बड़े आराम से बता सकता था लेकिन जानबूझकर नहीं बता रहा था और इधर मेरी उत्सुकता चरम पर थी। सुनने की उत्सुकता का आलम यह था कि मेरा मन बेचैन हो उठा। इस हालत में मैं क्लास क्या खाक करती। क्लास में झूठ मूठ की शारीरिक उपस्थिति से तो अच्छा होता कि मैं क्लास ही नहीं जाती। अंततः मैं ने निश्चय कर लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, अभी ही सुन लूं नहीं तो कभी नहीं। मेरी उत्सुकता जीत गयी और मैं ने क्लास कुर्बान करने का निश्चय कर लिया। क्लास के लिए देर हो चाहे आज कॉलेज नागा ही हो जाय, सुनकर ही रहूंगी चाहे उसके लिए कोई भी समझौता क्यों न करना पड़े। मैंने अपना हाथ घनश्याम की जांघ पर रख दिया।
"अब यह क्या कर रही हो?" घनश्याम के मुंह से निकला। मैं कुछ नहीं बोली और उसकी जांघ सहलाने लगी।
"हाथ हटाओ अपना। जब मैं कर रहा था तो तुम्हें आपत्ति हो रही थी, अब यह क्या तमाशा कर रही हो?" वह फिर बोला। मैं फिर भी कुछ नहीं बोली और सहलाते सहलाते उसकी जांघ पर ऊपर की ओर हाथ बढ़ाने लगी।
"आपको यह तमाशा लग रहा है? मैं गंभीर हूं।" मैं अपना हाथ और ऊपर की ओर खिसकाते हुए बोली।
"तुम खाली पीली मजाक कर रही हो। गंभीर तो कत्तई नहीं हो। हाथ हटाओ नहीं तो ठीक नहीं होगा।" वह चेतावनी के स्वर में बोला लेकिन मुझपर कोई असर नहीं हुआ। मैं उसके पैंट के ऊपर से ही उसके लंड को सहलाने लगी। मुझे साफ साफ पता चल रहा था कि उसका लंड तन कर खंभे की शक्ल अख्तियार करने लगा था। अब तो मैं खुद ही अवश हो चुकी थी और मुझपर खुद ही नियंत्रण नहीं रह गया था। कुछ मिनट पहले घनश्याम ने मेरी जांघ सहला कर जो शुरुआत की थी, शायद उसका भी असर था कि जोश में आकर मैं उसके लंड को पैंट के ऊपर से ही पकड़ कर मुठियाने लगी। सच तो यह था कि उसके तने हुए लंड पर हाथ रखते ही मैं खुद ही सुलग उठी थी।
"तुम मानोगी नहीं?" उसका चेहरा लाल हो उठा था। लेकिन उसकी बातों को अनसुना करती हुई अब मैं यंत्र वत उसके पैंट की चेन खोलने लगी थी।
"इसमें मानना क्या? आपको भी तो मजा आ रहा है।" मैं बोली।
"नहीं, बिल्कुल नहीं, मैं तुम्हें चेतावनी दे रहा हूं। हाथ दूर रखो।" वह बोला।
"आपके चेतावनी की ऐसी की तैसी। आपका हथियार खड़ा हो गया है, यह मैं समझ नहीं रही हूं क्या? इसका मतलब क्या है?" मैं बोली और उसके पैंट की चेन खींच कर खोल दी और अपना हाथ उसके पैंट में डाल दी। उसका लंड अब उसके अंडरवीयर को फाड़कर बाहर फुदकने को उतावला हो चुका था। अब मुझे खुद को रोकना असंभव था। मैं उसके अंडरवीयर में हाथ घुसाने से खुद को रोक नहीं पाई और हाथ घुसा कर सीधे उसके लंड को पकड़ ली। ओह भगवान, इतना सख्त और गर्म था उसका लंड कि मैं उसी वक्त चुदने को बेकरार होने लगी थी। मेरी चूचियां तन गयी थीं और ब्रा टाईट हो चुकी थी। मेरी चूत में पानी आ चुका था। मेरा पूरा शरीर मानो आग की भट्टी में तब्दील हो चुका था।
"जंगली तो बन चुका हूं और इसका एकमात्र कारण तुम्हारी हरकतें हैं।" वह धीरे-धीरे अपना हाथ मेरी जांघों पर ऊपर ले जा रहा था। यह मेरे सब्र का इम्तिहान था।
"आपको पता है ना कि मैं इस वक्त कॉलेज जा रही हूं? फिर यह जंगलीपन क्यों कर रहे हैं। हाथ हटाईए अपना।" मैं झिड़क उठी। मेरे तेवर को देख कर उन्होंने अपना हाथ तो हटा लिया लेकिन अब मुझे उनका इस तरह अचानक हाथ हटाना खलने लगा।
"लो हाथ हटा दिया।" कहकर वह खामोश हो गया लेकिन उसे भी अहसास था कि उसने मेरे अंदर आग सुलगा दी थी।
"हां अब बताईए।" मैं बोली।
"नहीं अभी नहीं बता सकता।" वह बोला।
"क्यों?"
"लंबी कहानी है।"
"संक्षेप में बताईए।" मैं उतावली में बोली।
"नहीं, अभी नहीं।"
मैं जान गयी कि वह रुष्ट है। अब मैं क्या करूं? कैसे उसका मुंह खुलवाऊं? क्या मैं भूल जाऊं कि अभी मैं कॉलेज जा रही हूं? क्या ऐसा करूं कि वह मुंह खोलकर बताए? अभी भी कॉलेज का रास्ता आधा घंटा का था। वह चाहता तो बड़े आराम से बता सकता था लेकिन जानबूझकर नहीं बता रहा था और इधर मेरी उत्सुकता चरम पर थी। सुनने की उत्सुकता का आलम यह था कि मेरा मन बेचैन हो उठा। इस हालत में मैं क्लास क्या खाक करती। क्लास में झूठ मूठ की शारीरिक उपस्थिति से तो अच्छा होता कि मैं क्लास ही नहीं जाती। अंततः मैं ने निश्चय कर लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, अभी ही सुन लूं नहीं तो कभी नहीं। मेरी उत्सुकता जीत गयी और मैं ने क्लास कुर्बान करने का निश्चय कर लिया। क्लास के लिए देर हो चाहे आज कॉलेज नागा ही हो जाय, सुनकर ही रहूंगी चाहे उसके लिए कोई भी समझौता क्यों न करना पड़े। मैंने अपना हाथ घनश्याम की जांघ पर रख दिया।
"अब यह क्या कर रही हो?" घनश्याम के मुंह से निकला। मैं कुछ नहीं बोली और उसकी जांघ सहलाने लगी।
"हाथ हटाओ अपना। जब मैं कर रहा था तो तुम्हें आपत्ति हो रही थी, अब यह क्या तमाशा कर रही हो?" वह फिर बोला। मैं फिर भी कुछ नहीं बोली और सहलाते सहलाते उसकी जांघ पर ऊपर की ओर हाथ बढ़ाने लगी।
"आपको यह तमाशा लग रहा है? मैं गंभीर हूं।" मैं अपना हाथ और ऊपर की ओर खिसकाते हुए बोली।
"तुम खाली पीली मजाक कर रही हो। गंभीर तो कत्तई नहीं हो। हाथ हटाओ नहीं तो ठीक नहीं होगा।" वह चेतावनी के स्वर में बोला लेकिन मुझपर कोई असर नहीं हुआ। मैं उसके पैंट के ऊपर से ही उसके लंड को सहलाने लगी। मुझे साफ साफ पता चल रहा था कि उसका लंड तन कर खंभे की शक्ल अख्तियार करने लगा था। अब तो मैं खुद ही अवश हो चुकी थी और मुझपर खुद ही नियंत्रण नहीं रह गया था। कुछ मिनट पहले घनश्याम ने मेरी जांघ सहला कर जो शुरुआत की थी, शायद उसका भी असर था कि जोश में आकर मैं उसके लंड को पैंट के ऊपर से ही पकड़ कर मुठियाने लगी। सच तो यह था कि उसके तने हुए लंड पर हाथ रखते ही मैं खुद ही सुलग उठी थी।
"तुम मानोगी नहीं?" उसका चेहरा लाल हो उठा था। लेकिन उसकी बातों को अनसुना करती हुई अब मैं यंत्र वत उसके पैंट की चेन खोलने लगी थी।
"इसमें मानना क्या? आपको भी तो मजा आ रहा है।" मैं बोली।
"नहीं, बिल्कुल नहीं, मैं तुम्हें चेतावनी दे रहा हूं। हाथ दूर रखो।" वह बोला।
"आपके चेतावनी की ऐसी की तैसी। आपका हथियार खड़ा हो गया है, यह मैं समझ नहीं रही हूं क्या? इसका मतलब क्या है?" मैं बोली और उसके पैंट की चेन खींच कर खोल दी और अपना हाथ उसके पैंट में डाल दी। उसका लंड अब उसके अंडरवीयर को फाड़कर बाहर फुदकने को उतावला हो चुका था। अब मुझे खुद को रोकना असंभव था। मैं उसके अंडरवीयर में हाथ घुसाने से खुद को रोक नहीं पाई और हाथ घुसा कर सीधे उसके लंड को पकड़ ली। ओह भगवान, इतना सख्त और गर्म था उसका लंड कि मैं उसी वक्त चुदने को बेकरार होने लगी थी। मेरी चूचियां तन गयी थीं और ब्रा टाईट हो चुकी थी। मेरी चूत में पानी आ चुका था। मेरा पूरा शरीर मानो आग की भट्टी में तब्दील हो चुका था।