03-08-2024, 01:46 PM
"आ गये?" मम्मी ने उसे देखते ही कहा।
"जी मैडम जी। इन्हें कहां रखूं?" वह अपने सामानों की ओर देखते हुए बोला।
"वहीं, किनारे वाले कमरे में जिसे मैं ने कल बताया था। घुसा, घनश्याम के लिए वह कमरा खोल दो।"
"जी मैडम जी।" कहकर घुसा आगे बढ़ कर घनश्याम के हाथ से सूटकेस ले लिया और उस कमरे की ओर बढ़ गया और उसके पीछे पीछे घनश्याम चल पड़ा। वह कमरा मेरी मम्मी के कमरे की लाईन में पूरब की ओर सबसे किनारे है। मुझे पता था उस कमरे में मात्र एक दीवान, एक टेबल और एक कुर्सी था। हालांकि एक कमरा, जो अपेक्षाकृत थोड़ा छोटा था, घनश्याम के रहने के लिए दिया जा रहा था उसके बावजूद हमारे घर में दो और खाली कमरे हैं जिसे मेहमानों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। एक कमरा नीचे ड्राईंगरूम के उत्तर में, पीछे वाले गलियारे की बाईं ओर है और दूसरा कमरा ऊपर में मेरे कमरे के विपरीत दिशा में स्थित है। जिस कमरे में घनश्याम को रहना था वह कभी कभार ही इस्तेमाल होता था और बिल्कुल अलग है। उसमें भी मेहमानों को ठहराया जा सकता था लेकिन ऐसी नौबत पिछले आठ दस सालों में एक दो बार ही आई थी। एक तरह से देखा जाए तो वह कमरा हमारी जरूरत के हिसाब से अतिरिक्त कमरा था। जिस कमरे में घुसा रहता था, वह किचन से सटा हुआ, दो हिस्से में है, एक हिस्सा स्टोर रूम की तरह है और दूसरा हिस्सा घुसा के रहने के लिए इस्तेमाल हो रहा था।
ऊपर वाले तल्ले में मेरे कमरे से होकर जो लंबा गलियारा है उसकी लंबाई पूरब पश्चिम है जिसके पूरब की ओर एक आपातकालीन दरवाजा है जिसके बाहर नीचे जाने के लिए एक स्टील की सीढ़ी है। वह सीढ़ी ठीक पूरब दिशा में खुलने वाले हमारे घर के एक अतिरिक्त निकासी के लिए प्रयुक्त दरवाजे के पास खत्म होता है। यह दरवाजा उस कमरे के दरवाजे के बाईं ओर है, जिस कमरे को घनश्याम के रहने के लिए दिया गया था।
घनश्याम जल्दी ही अपना सामान अपने कमरे में रखकर वापस आ गया। मैं कॉलेज जाने के लिए तैयार ही थी, तुरंत ही घनश्याम के साथ बाहर निकली। कार जैसे ही स्टार्ट हुई,
"हां, तो घनश्याम अंकल, अब बताईए।" मेरी उत्सुकता चरम पर थी।
"क्या बताऊं?'" जान कर भी अनजान बनते हुए घनश्याम बोला।
"मेरा सवाल आपकी समझ में नहीं आया क्या?"
"नहीं।"
"ऐसे मासूम बनने की जरूरत नहीं है, नहीं तो खुलकर पूछूंगी, जो कि आपको अच्छा नहीं लगेगा।"
"मुझे तुम्हारे मुंह से सबकुछ अच्छा लगेगा। खुल कर पूछो, क्या पूछना है।"
"यानी कि सबेरे सबेरे मेरा मुंह गंदा करवाना चाह रहे हैं।"
"इसका मतलब तुम गंदी चीज़ पूछना चाह रही हो।" वह मुस्कुरा कर बोला।
"आप सचमुच बड़े गंदे हैं।" मैं लाल होती हुई बोली।
"तुमने मुझे साफ रहने कहां दिया। फिर से मुझे तुम नें गंदा कर दिया। अब गंदा हो गया हूं तो गंदी बातें ही अच्छी लगती हैं। अब गंदी बातें सुनना चाहता हूं। अब गंदे काम करना अच्छा लगने लगा है।" वह गीयर लीवर से हाथ हटा कर बांई हाथ से मेरी जांघों को सहलाते हुए बोला।
"हाथ हटाईए जंगली कहीं के।" मैं उसका हाथ झटकते हुए बोली। हालांकि उसका इस तरह मेरी जांघ सहलाना अच्छा लगा था। उसका हाथ मेरी जांघ पर पड़ा लेकिन असर मेरी चूत में हुआ। मेरी चूत चुनचुना उठी। रक्त का प्रवाह मेरे शरीर में द्रुत गति से होने लगा था। पूरा शरीर सनसना उठा था। कोई और वक्त रहता तो मैं उसकी इस हिमाकत को और आगे बढ़ने दे सकती थी, जिसकी अंतिम परिणति, जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं, एक चुदाई, भले ही कार के अंदर ही हो जाती। लेकिन इस वक्त मुझे कॉलेज जाने की जल्दी थी इसलिए मैं उसकी हरकत को आगे बढ़ने नहीं दे सकती थी।
दरअसल उन दिनों मेरे साथ अब जो कुछ हो रहा था उससे मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था लेकिन मैंने अपनी पढ़ाई में किसी तरह की कोई ढिलाई नहीं बरती थी। मेरे तन की भूख अपनी जगह थी और पढ़ाई अपनी जगह। मुझे चुदाई का चस्का जरूर लग गया था लेकिन उसके लिए मैंने अपनी पढ़ाई के साथ कोई समझौता नहीं किया था। पढ़ाई में मैं शुरू से ही बहुत कुशाग्र बुद्धि की थी लेकिन फिर भी पढ़ाई में ढिलाई मेरे शब्दकोष में नहीं था। खेल कूद में भी मैं सक्रिय रूप से हिस्सा लेती थी इसलिए मेरा शरीर काफी कसा हुआ था। खेलों में मेरा प्रिय खेल बास्केटबॉल था। छठी कक्षा से ही मैं ने जूडो कराटे की ट्रेनिंग शुरू कर दी थी जो अभी तक बदस्तूर जारी था। संगीत में भी मुझे रुचि थी। शौकिया थोड़ा बहुत गिटार बजा लेती थी और गिटार के साथ गाना भी गा लेती थी। पेंसिल स्केचिंग के साथ साथ थोड़ी बहुत पेंटिंग भी कर लेती थी। कुल मिलाकर आपलोग मुझे बहुमुखी प्रतिभा की धनी कह सकते हैं। अब लंड लेने का यह नया चस्का चढ़ गया था। पढ़ाई के साथ साथ जो भी शौक थे, उनसे मानसिक सुकून तो मिलता ही था, अब इस चुदाई के चस्के से मानसिक और शारीरिक तनाव दोनों से मुक्ति का एक और मार्ग मुझे मिल गया था। अब मुझे लगने लगा था कि मैं जीवन को पूरी संपूर्णता के साथ जीना शुरू कर चुकी हूं।
"जी मैडम जी। इन्हें कहां रखूं?" वह अपने सामानों की ओर देखते हुए बोला।
"वहीं, किनारे वाले कमरे में जिसे मैं ने कल बताया था। घुसा, घनश्याम के लिए वह कमरा खोल दो।"
"जी मैडम जी।" कहकर घुसा आगे बढ़ कर घनश्याम के हाथ से सूटकेस ले लिया और उस कमरे की ओर बढ़ गया और उसके पीछे पीछे घनश्याम चल पड़ा। वह कमरा मेरी मम्मी के कमरे की लाईन में पूरब की ओर सबसे किनारे है। मुझे पता था उस कमरे में मात्र एक दीवान, एक टेबल और एक कुर्सी था। हालांकि एक कमरा, जो अपेक्षाकृत थोड़ा छोटा था, घनश्याम के रहने के लिए दिया जा रहा था उसके बावजूद हमारे घर में दो और खाली कमरे हैं जिसे मेहमानों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। एक कमरा नीचे ड्राईंगरूम के उत्तर में, पीछे वाले गलियारे की बाईं ओर है और दूसरा कमरा ऊपर में मेरे कमरे के विपरीत दिशा में स्थित है। जिस कमरे में घनश्याम को रहना था वह कभी कभार ही इस्तेमाल होता था और बिल्कुल अलग है। उसमें भी मेहमानों को ठहराया जा सकता था लेकिन ऐसी नौबत पिछले आठ दस सालों में एक दो बार ही आई थी। एक तरह से देखा जाए तो वह कमरा हमारी जरूरत के हिसाब से अतिरिक्त कमरा था। जिस कमरे में घुसा रहता था, वह किचन से सटा हुआ, दो हिस्से में है, एक हिस्सा स्टोर रूम की तरह है और दूसरा हिस्सा घुसा के रहने के लिए इस्तेमाल हो रहा था।
ऊपर वाले तल्ले में मेरे कमरे से होकर जो लंबा गलियारा है उसकी लंबाई पूरब पश्चिम है जिसके पूरब की ओर एक आपातकालीन दरवाजा है जिसके बाहर नीचे जाने के लिए एक स्टील की सीढ़ी है। वह सीढ़ी ठीक पूरब दिशा में खुलने वाले हमारे घर के एक अतिरिक्त निकासी के लिए प्रयुक्त दरवाजे के पास खत्म होता है। यह दरवाजा उस कमरे के दरवाजे के बाईं ओर है, जिस कमरे को घनश्याम के रहने के लिए दिया गया था।
घनश्याम जल्दी ही अपना सामान अपने कमरे में रखकर वापस आ गया। मैं कॉलेज जाने के लिए तैयार ही थी, तुरंत ही घनश्याम के साथ बाहर निकली। कार जैसे ही स्टार्ट हुई,
"हां, तो घनश्याम अंकल, अब बताईए।" मेरी उत्सुकता चरम पर थी।
"क्या बताऊं?'" जान कर भी अनजान बनते हुए घनश्याम बोला।
"मेरा सवाल आपकी समझ में नहीं आया क्या?"
"नहीं।"
"ऐसे मासूम बनने की जरूरत नहीं है, नहीं तो खुलकर पूछूंगी, जो कि आपको अच्छा नहीं लगेगा।"
"मुझे तुम्हारे मुंह से सबकुछ अच्छा लगेगा। खुल कर पूछो, क्या पूछना है।"
"यानी कि सबेरे सबेरे मेरा मुंह गंदा करवाना चाह रहे हैं।"
"इसका मतलब तुम गंदी चीज़ पूछना चाह रही हो।" वह मुस्कुरा कर बोला।
"आप सचमुच बड़े गंदे हैं।" मैं लाल होती हुई बोली।
"तुमने मुझे साफ रहने कहां दिया। फिर से मुझे तुम नें गंदा कर दिया। अब गंदा हो गया हूं तो गंदी बातें ही अच्छी लगती हैं। अब गंदी बातें सुनना चाहता हूं। अब गंदे काम करना अच्छा लगने लगा है।" वह गीयर लीवर से हाथ हटा कर बांई हाथ से मेरी जांघों को सहलाते हुए बोला।
"हाथ हटाईए जंगली कहीं के।" मैं उसका हाथ झटकते हुए बोली। हालांकि उसका इस तरह मेरी जांघ सहलाना अच्छा लगा था। उसका हाथ मेरी जांघ पर पड़ा लेकिन असर मेरी चूत में हुआ। मेरी चूत चुनचुना उठी। रक्त का प्रवाह मेरे शरीर में द्रुत गति से होने लगा था। पूरा शरीर सनसना उठा था। कोई और वक्त रहता तो मैं उसकी इस हिमाकत को और आगे बढ़ने दे सकती थी, जिसकी अंतिम परिणति, जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं, एक चुदाई, भले ही कार के अंदर ही हो जाती। लेकिन इस वक्त मुझे कॉलेज जाने की जल्दी थी इसलिए मैं उसकी हरकत को आगे बढ़ने नहीं दे सकती थी।
दरअसल उन दिनों मेरे साथ अब जो कुछ हो रहा था उससे मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था लेकिन मैंने अपनी पढ़ाई में किसी तरह की कोई ढिलाई नहीं बरती थी। मेरे तन की भूख अपनी जगह थी और पढ़ाई अपनी जगह। मुझे चुदाई का चस्का जरूर लग गया था लेकिन उसके लिए मैंने अपनी पढ़ाई के साथ कोई समझौता नहीं किया था। पढ़ाई में मैं शुरू से ही बहुत कुशाग्र बुद्धि की थी लेकिन फिर भी पढ़ाई में ढिलाई मेरे शब्दकोष में नहीं था। खेल कूद में भी मैं सक्रिय रूप से हिस्सा लेती थी इसलिए मेरा शरीर काफी कसा हुआ था। खेलों में मेरा प्रिय खेल बास्केटबॉल था। छठी कक्षा से ही मैं ने जूडो कराटे की ट्रेनिंग शुरू कर दी थी जो अभी तक बदस्तूर जारी था। संगीत में भी मुझे रुचि थी। शौकिया थोड़ा बहुत गिटार बजा लेती थी और गिटार के साथ गाना भी गा लेती थी। पेंसिल स्केचिंग के साथ साथ थोड़ी बहुत पेंटिंग भी कर लेती थी। कुल मिलाकर आपलोग मुझे बहुमुखी प्रतिभा की धनी कह सकते हैं। अब लंड लेने का यह नया चस्का चढ़ गया था। पढ़ाई के साथ साथ जो भी शौक थे, उनसे मानसिक सुकून तो मिलता ही था, अब इस चुदाई के चस्के से मानसिक और शारीरिक तनाव दोनों से मुक्ति का एक और मार्ग मुझे मिल गया था। अब मुझे लगने लगा था कि मैं जीवन को पूरी संपूर्णता के साथ जीना शुरू कर चुकी हूं।