23-07-2024, 10:22 PM
"अबे नहीं फटेगी। देखा नहीं, यह छेद देखने में छोटी है लेकिन जब हम घुस रहे थे तो कैसे फैल रही थी? अबे घुस जाएंगे। कोई समस्या नहीं होगी।" खीरा बैंगन को उकसा रहा था। मुझे खीरा की बात से गुस्सा आ रहा था। मैं ने खीरा को डांटने के लिए मुंह खोला तो मेरी आवाज़ ही नहीं निकल रही थी। खीरा की बात सुनकर मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा था। हे भगवान, ये दोनों तो सचमुच मेरी चूत को फ़ाड़ डालने पर आमादा हैं।
"ठीक है तो चलें!" बैंगन बोल उठा।
मैं भय के मारे कांप उठी। मैं उन्हें रोकना चाहती थी, मना करना चाहती थी लेकिन न तो मेरे मुंह से आवाज निकल रही थी और न ही अपने हाथों को हिला डुला सकती थी। मेरा पूरा शरीर ही एक तरह से निष्क्रिय हो चुका था। ऐसा लग रहा था जैसे मुझे लकवा मार गया हो। अपनी बेबसी पर मुझे रोना आ रहा था।
"हां हां चलो।" कहकर दोनों एक साथ मेरी चूत में अपने सर घुसाने लगे थे। एक बार उनका सर संयुक्त रुप से मेरी चूत में किसी भी तरह से घुस जाता तो सरकते सरकते उनका पूरा शरीर मेरी चूत के अंदर दाखिल होने में कोई रोक नहीं सकता था। माना कि बैंगन का पेट बड़ा था लेकिन वह खीरा की तुलना में अधिक चिकना था इसलिए जबरदस्ती घुसने की कोशिश में वह अवश्य सफल हो जाता। मैं अपनी चूत की दुर्दशा के बारे में सोच कर कांप उठी। अब वे अपने सर जोड़ कर मेरी चूत के मुंह पर जा टिके और अंदर घुसने के लिए जोर लगाने लगे। उनके सम्मिलित प्रयास से और जोर आजमाइश से मेरी चूत फैलने लगी। ओह ओह, फैलते फैलते एक सीमा के बाद मुझे दर्द होने लगा और वह दर्द इतना बढ़ गया कि मैं पसीने से नहा उठी और मेरे मुंह से एक चीख उबलने को थी लेकिन मेरे गले से कोई आवाज नहीं निकल रही थी। भय और घबराकर के मारे पसीने से तरबतर हो कर मेरी आंखें खुल गईं। हे भगवान, तो यह एक सपना था? मैं अब भी पसीना पसीना हो रही थी। मैंने सर घुमाकर देखा तो वह डिब्बा अब भी अपने स्थान पर था और उसका ढक्कन बंद था। मैंने अगल बगल देखा तो न वहां बैंगन था और न ही खीरा। हे भगवान कितना भयानक सपना था। मैं बिस्तर से उठकर डिब्बे के पास गयी और ढक्कन खोलकर देखी तो बैंगन और खीरा यथास्थान पड़े हुए मुझे मुंह चिढ़ा रहे थे। "साले हरामियों, सपने में भी मुझे परेशान करने से बाज नहीं आ रहे हो कमीने कहीं के।" मैं बड़बड़ा उठी और डिब्बे का ढक्कन बंद करके फिर बिस्तर पर आई और पसर कर सो गयी।
सुबह जब मेरी नींद खुली तो सबसे पहले मेरी नज़र उसी डिब्बे पर मेरी नजर पड़ी जिसमें खीरा और बैंगन रखा हुआ था। मैं उठ कर उस डिब्बे का ढक्कन उठाई तो देखी कि खीरा और बैंगन बड़ी मासूमियत से लेटे हुए थे। मैं बरबस मुस्कुरा उठी। रात की पूरी घटना चलचित्र की भांति मेरी आंखों के सामने घूमने लगी थीं। उफ, कितनी बड़ी जोखिम उठाई थी मैं। अगर उस मुसीबत से चमत्कारी ढंग से नहीं निकलती तो रात भर सो भी नहीं पाती। मैं अब भी नंगी ही थी। अनायास मेरा हाथ अपनी चूत पर चला गया और यह महसूस करने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई कि मेरी चूत काफी फूल चुकी थी। हल्का हल्का दर्द अभी भी था। जो भी हो, यह दर्द और सूजन तो स्वाभाविक ही था और साथ ही अस्थाई था। मुख्य बात यह थी कि ऐसे लंबे और मोटे लंड लेने में सक्षम थी, यह मुझे पता चल गया था।
सहसा मुझे याद आया कि ओह, आज मुझे घनश्याम से यह जानना था कि कल मम्मी के साथ उसने ऐसा क्या किया था कि मम्मी का चलना फिरना भी दूभर हो गया था। इतना तो साफ हो गया था कि मम्मी की अच्छी खासी कुटाई हुई थी। ताज्जुब तो मुझे इस बात पर हो रहा था कि ऐसी हालत होने के बावजूद रात में मम्मी ने घुसा को याद किया था। चूत का रसिया चुदक्कड़ घुसा थोड़ी न मम्मी के कमरे से खाली हाथ बाहर निकला होगा। ऐसा लगता है मम्मी भी धीरे धीरे अच्छी खासी लंडखोर बनती जा रही है नहीं तो उस हालत में भी उसे एक मर्द की तलब क्यों हो रही थी। यही सब सोचते सोचते मैं नहा धो कर फ्रेश होकर अपने कमरे से बाहर निकली। किचन में खटर पटर की आवाज से समझ गई कि घुसा अपने काम में लग चुका है।
उस समय आठ बज रहा था और मुझे कॉलेज जाने की जल्दी थी। जल्दी ही मां भी नाश्ते की टेबल पर आ गयी। मां का चेहरा थोड़ा सूजा हुआ था। स्पष्ट था कि वह रात को काफी देर बाद सोई होगी। घुसा की भूख के साथ उसकी क्षमता भी कुछ अधिक ही बढ़ रही थी और शायद मम्मी की भी। इतनी जल्दी थोड़ी ना अलग हुए होंगे दोनों। घुसा जब टेबल पर नाश्ता सजा रहा था तो उसके चेहरे पर न कोई शिकन और न ही कोई थकान थी। वह तो ठहरा कामगार टाईप मेहनती आदमी, उसे कोई फर्क थोड़ी ना पड़ता था। अगर मम्मी हां बोले तो मेरे कॉलेज जाने के बाद फिर चढ़ दौड़ पड़ने में पीछे नहीं रहेगा कुत्ता कहीं का, लेकिन मम्मी के चेहरे की थकान और संतुष्टि साफ बता रही थी कि रात को अच्छी खासी चुदाई हो चुकी है और फिलहाल और दौर चलने की संभावना नहीं थी। कभी मम्मी चोर दृष्टि से घुसा को देखती और कभी घुसा मम्मी को लेकर मैंने सबकुछ नजर अंदाज कर दिया। असल में मेरे मन में उत्सुकता थी यह जानने के लिए कि घनश्याम और मम्मी के बीच कल क्या हुआ था। मैं जल्दी जल्दी नाश्ता कर ही रही थी कि घनश्याम आ गया। उसके हाथों में एक बड़ा सा बेडिंग होल्डर और एक सूटकेस था।
"ठीक है तो चलें!" बैंगन बोल उठा।
मैं भय के मारे कांप उठी। मैं उन्हें रोकना चाहती थी, मना करना चाहती थी लेकिन न तो मेरे मुंह से आवाज निकल रही थी और न ही अपने हाथों को हिला डुला सकती थी। मेरा पूरा शरीर ही एक तरह से निष्क्रिय हो चुका था। ऐसा लग रहा था जैसे मुझे लकवा मार गया हो। अपनी बेबसी पर मुझे रोना आ रहा था।
"हां हां चलो।" कहकर दोनों एक साथ मेरी चूत में अपने सर घुसाने लगे थे। एक बार उनका सर संयुक्त रुप से मेरी चूत में किसी भी तरह से घुस जाता तो सरकते सरकते उनका पूरा शरीर मेरी चूत के अंदर दाखिल होने में कोई रोक नहीं सकता था। माना कि बैंगन का पेट बड़ा था लेकिन वह खीरा की तुलना में अधिक चिकना था इसलिए जबरदस्ती घुसने की कोशिश में वह अवश्य सफल हो जाता। मैं अपनी चूत की दुर्दशा के बारे में सोच कर कांप उठी। अब वे अपने सर जोड़ कर मेरी चूत के मुंह पर जा टिके और अंदर घुसने के लिए जोर लगाने लगे। उनके सम्मिलित प्रयास से और जोर आजमाइश से मेरी चूत फैलने लगी। ओह ओह, फैलते फैलते एक सीमा के बाद मुझे दर्द होने लगा और वह दर्द इतना बढ़ गया कि मैं पसीने से नहा उठी और मेरे मुंह से एक चीख उबलने को थी लेकिन मेरे गले से कोई आवाज नहीं निकल रही थी। भय और घबराकर के मारे पसीने से तरबतर हो कर मेरी आंखें खुल गईं। हे भगवान, तो यह एक सपना था? मैं अब भी पसीना पसीना हो रही थी। मैंने सर घुमाकर देखा तो वह डिब्बा अब भी अपने स्थान पर था और उसका ढक्कन बंद था। मैंने अगल बगल देखा तो न वहां बैंगन था और न ही खीरा। हे भगवान कितना भयानक सपना था। मैं बिस्तर से उठकर डिब्बे के पास गयी और ढक्कन खोलकर देखी तो बैंगन और खीरा यथास्थान पड़े हुए मुझे मुंह चिढ़ा रहे थे। "साले हरामियों, सपने में भी मुझे परेशान करने से बाज नहीं आ रहे हो कमीने कहीं के।" मैं बड़बड़ा उठी और डिब्बे का ढक्कन बंद करके फिर बिस्तर पर आई और पसर कर सो गयी।
सुबह जब मेरी नींद खुली तो सबसे पहले मेरी नज़र उसी डिब्बे पर मेरी नजर पड़ी जिसमें खीरा और बैंगन रखा हुआ था। मैं उठ कर उस डिब्बे का ढक्कन उठाई तो देखी कि खीरा और बैंगन बड़ी मासूमियत से लेटे हुए थे। मैं बरबस मुस्कुरा उठी। रात की पूरी घटना चलचित्र की भांति मेरी आंखों के सामने घूमने लगी थीं। उफ, कितनी बड़ी जोखिम उठाई थी मैं। अगर उस मुसीबत से चमत्कारी ढंग से नहीं निकलती तो रात भर सो भी नहीं पाती। मैं अब भी नंगी ही थी। अनायास मेरा हाथ अपनी चूत पर चला गया और यह महसूस करने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई कि मेरी चूत काफी फूल चुकी थी। हल्का हल्का दर्द अभी भी था। जो भी हो, यह दर्द और सूजन तो स्वाभाविक ही था और साथ ही अस्थाई था। मुख्य बात यह थी कि ऐसे लंबे और मोटे लंड लेने में सक्षम थी, यह मुझे पता चल गया था।
सहसा मुझे याद आया कि ओह, आज मुझे घनश्याम से यह जानना था कि कल मम्मी के साथ उसने ऐसा क्या किया था कि मम्मी का चलना फिरना भी दूभर हो गया था। इतना तो साफ हो गया था कि मम्मी की अच्छी खासी कुटाई हुई थी। ताज्जुब तो मुझे इस बात पर हो रहा था कि ऐसी हालत होने के बावजूद रात में मम्मी ने घुसा को याद किया था। चूत का रसिया चुदक्कड़ घुसा थोड़ी न मम्मी के कमरे से खाली हाथ बाहर निकला होगा। ऐसा लगता है मम्मी भी धीरे धीरे अच्छी खासी लंडखोर बनती जा रही है नहीं तो उस हालत में भी उसे एक मर्द की तलब क्यों हो रही थी। यही सब सोचते सोचते मैं नहा धो कर फ्रेश होकर अपने कमरे से बाहर निकली। किचन में खटर पटर की आवाज से समझ गई कि घुसा अपने काम में लग चुका है।
उस समय आठ बज रहा था और मुझे कॉलेज जाने की जल्दी थी। जल्दी ही मां भी नाश्ते की टेबल पर आ गयी। मां का चेहरा थोड़ा सूजा हुआ था। स्पष्ट था कि वह रात को काफी देर बाद सोई होगी। घुसा की भूख के साथ उसकी क्षमता भी कुछ अधिक ही बढ़ रही थी और शायद मम्मी की भी। इतनी जल्दी थोड़ी ना अलग हुए होंगे दोनों। घुसा जब टेबल पर नाश्ता सजा रहा था तो उसके चेहरे पर न कोई शिकन और न ही कोई थकान थी। वह तो ठहरा कामगार टाईप मेहनती आदमी, उसे कोई फर्क थोड़ी ना पड़ता था। अगर मम्मी हां बोले तो मेरे कॉलेज जाने के बाद फिर चढ़ दौड़ पड़ने में पीछे नहीं रहेगा कुत्ता कहीं का, लेकिन मम्मी के चेहरे की थकान और संतुष्टि साफ बता रही थी कि रात को अच्छी खासी चुदाई हो चुकी है और फिलहाल और दौर चलने की संभावना नहीं थी। कभी मम्मी चोर दृष्टि से घुसा को देखती और कभी घुसा मम्मी को लेकर मैंने सबकुछ नजर अंदाज कर दिया। असल में मेरे मन में उत्सुकता थी यह जानने के लिए कि घनश्याम और मम्मी के बीच कल क्या हुआ था। मैं जल्दी जल्दी नाश्ता कर ही रही थी कि घनश्याम आ गया। उसके हाथों में एक बड़ा सा बेडिंग होल्डर और एक सूटकेस था।