20-07-2024, 08:04 PM
गरम रोजा (भाग 11)
खीरा और बैंगन का उपयोग करके अपनी चूत की क्षमता का आंकलन करने का जो जोखिम भरा निर्णय मैंने लिया था उसके चक्कर में मैं एक बड़ी मुसीबत में फंस गयी थी, लेकिन उस मुसीबत से जिस चमत्कारिक रूप से मेरा उद्धार हुआ वह आज तक न भूलने वाली याद बनकर मेरे जेहन में समाया हुआ है। दहशत के उन पलों में भगवान ने जो चमत्कार दिखाया, वह चमत्कार मुझे इतना आनंद प्रदान करेगा इसकी कल्पना भी मैंने नहीं की थी। वह हस्तमैथुन मुझे आज भी याद है और उस हस्तमैथुन के परिणाम स्वरूप जो सुखद अनूठे स्खलन का सुख मुझे प्राप्त हुआ वह बयान के बाहर की बात है। ओह वह कितना सुखद, अंतहीन और अविस्मरणीय स्खलन था। उस सुखद स्खलन के पश्चात मुझे बहुत अच्छी नींद नींद आई। उस रात सपने में भी मुझे खीरा और बैंगन ही दिखाई दे रहे थे जीवंत प्राणियों के रूप में।
दोनों के दोनों उछल कर डिब्बे से बाहर आ गये थे। दोनों के हाथ नहीं थे, सिर्फ छोटे छोटे पैर थे। उनके गर्दन भी नहीं थे। ऊपर की ओर सर की जगह आंखें, नाक, कान दिखाई दे रहे थे जो उभरे हुए नहीं थे बल्कि ऐसे सपाट थे जैसे किसी चित्रकार ने आंख, कान नाक और मुंह के स्थान पर अपनी कलाकारी से उन अंगों को उकेर दिया हो। दोनों के होंठों पर मुस्कान थीं और आंखें चमक रही थीं। वे बड़े खुश लग रहे थे। वे दोनों बारी बारी से उछल उछल कर मेरे बिस्तर पर चढ़ गये थे और मेरे अगल बगल में खड़े मेरी नग्न देह को ललचाई दृष्टि से निहार रहे थे। पूरे शरीर का मुआयना करने के बाद उनकी नजरें मेरी चूत पर ठहर गई थीं।
"भाई खीरा, हम सब्जियों और फलों की जिंदगी में इतना आनंददायक इस्तेमाल शायद ही किसी का हुआ हो।" बैंगन बोल रहा था। वे दोनों मेरी जांघों के पास आकर मेरी चूत को बड़े गौर से देखने लगे थे।
"हां भाई, जरा देख तो इस दरार को। इसी दरार से होकर ही तो मैं अंदर गया था। कितनी नरम मुलायम जगह है यह। ऊपर से काफी मुलायम लग रही है लेकिन इसमें जो छेद है, बड़ी संकरी है। साला समझ में नहीं आ रहा था कि इसी मुलायम जगह के बीच की दरार में उतनी संकरी, छोटी सी छेद कैसे फैलती जा रही थी।" खीरा मेरी चूत को देखते हुए बोला।
"सच कह रहे हो भाई। संकरा सा छेद है लेकिन हम उसमें फिसलते हुए घुस भी गये और सही सलामत निकल भी गए। अंदर कितनी फिसलन भरी संकरी गुफा है जिसमें फिसलते हुए मैं अंदर घुसता चला जा रहा था। हां अब चूंकि मेरा पेट थोड़ा बड़ा है इसलिए घुसते समय थोड़ी दिक्कत हुई लेकिन एक बार अंदर घुस गया तो बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के बस घुसता ही चला गया। अंदर कितनी गर्मी थी रे बाप। लेकिन जो भी हो बड़ा मज़ा आया। लेकिन निकलते समय मुझे पसीना छूट गया था। यह तो भला हो ऊपर वाले का कि पता नहीं किस अदृश्य शक्ति ने ढकेल कर मुझे बाहर फेंक दिया, नहीं तो पता नहीं मेरा क्या होता। खैर अब समझ गया कि अंदर घुस सकता हूं तो बाहर भी आ सकता हूं।" बैंगन बोला।
"सही बोले भाई। मैं थोड़ा और आगे तक चला गया था तो देखा अंदर एक और लचीला छेद है। मैं जब उस छेद के अंदर जाने लगा तो ओह क्या बताऊं। वह छेद भी फैल कर मुझे अंदर जाने देने लगा। अंदर झांक कर देखा तो अन्दर बहुत जगह दिखाई दे रहा था। ताज्जुब तो तब हुआ कि मैं इतना लंबा होते हुए भी पूरा का पूरा अंदर समा गया था। अविश्वसनीय। सच बोल रहे हो कि अंदर की गर्मी सचमुच बहुत ज्यादा है। लेकिन उस गर्मी में भी एक अलग तरह का मजा आ रहा था। मन तो कर रहा है फिर एक बार इस छेद में डुबकी लगा लूं।" खीरा बोला। उनकी बातों को सुनकर मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था और उसी के साथ मेरी उत्तेजना भी बढ़ने लगी थी।
"मेरा भी मन हो रहा है भाई कि एक बार फिर इसके अंदर जा कर मजा लूं। मैं भी उस अंदर वाले छेद को देखना चाहता हूं। मैं तुम्हारे जैसा और अंदर तक जा नहीं सका था। इस बार अंदर तक जाऊंगा।" बैंगन बोला।
"तू नहीं जा सकेगा वहां तक मोटे। साले मोटे, तू बाहर वाले दरवाजे से अंदर चला गया वही तेरे लिए बहुत बड़ी बात है।" खीरा बोला।
"नहीं भाई, जब बाहर वाले छेद को फैला कर अंदर घुस सकता हूं तो अंदर आगे तक भी जा सकता हूं। जाऊंगा तो जरूर।"
"तो ठीक है, लेकिन अकेले अकेले जाने के बदले क्यों न एक साथ ही अंदर जाएं। दोनों साथ-साथ अंदर जाएंगे तो और मजा आएगा।" खीरा बोल उठा।
"अरे बेवकूफ, हम अकेले अकेले तो इतनी मुश्किल से अंदर गये थे, एक साथ अंदर कैसे जाएंगे? कहीं यह छेद फट गई तो?" बैंगन बोला। अबतक दोनों मेरी चूत के मुंह के एक दम पास आ कर चूत का मुआयना कर रहे थे।
खीरा और बैंगन का उपयोग करके अपनी चूत की क्षमता का आंकलन करने का जो जोखिम भरा निर्णय मैंने लिया था उसके चक्कर में मैं एक बड़ी मुसीबत में फंस गयी थी, लेकिन उस मुसीबत से जिस चमत्कारिक रूप से मेरा उद्धार हुआ वह आज तक न भूलने वाली याद बनकर मेरे जेहन में समाया हुआ है। दहशत के उन पलों में भगवान ने जो चमत्कार दिखाया, वह चमत्कार मुझे इतना आनंद प्रदान करेगा इसकी कल्पना भी मैंने नहीं की थी। वह हस्तमैथुन मुझे आज भी याद है और उस हस्तमैथुन के परिणाम स्वरूप जो सुखद अनूठे स्खलन का सुख मुझे प्राप्त हुआ वह बयान के बाहर की बात है। ओह वह कितना सुखद, अंतहीन और अविस्मरणीय स्खलन था। उस सुखद स्खलन के पश्चात मुझे बहुत अच्छी नींद नींद आई। उस रात सपने में भी मुझे खीरा और बैंगन ही दिखाई दे रहे थे जीवंत प्राणियों के रूप में।
दोनों के दोनों उछल कर डिब्बे से बाहर आ गये थे। दोनों के हाथ नहीं थे, सिर्फ छोटे छोटे पैर थे। उनके गर्दन भी नहीं थे। ऊपर की ओर सर की जगह आंखें, नाक, कान दिखाई दे रहे थे जो उभरे हुए नहीं थे बल्कि ऐसे सपाट थे जैसे किसी चित्रकार ने आंख, कान नाक और मुंह के स्थान पर अपनी कलाकारी से उन अंगों को उकेर दिया हो। दोनों के होंठों पर मुस्कान थीं और आंखें चमक रही थीं। वे बड़े खुश लग रहे थे। वे दोनों बारी बारी से उछल उछल कर मेरे बिस्तर पर चढ़ गये थे और मेरे अगल बगल में खड़े मेरी नग्न देह को ललचाई दृष्टि से निहार रहे थे। पूरे शरीर का मुआयना करने के बाद उनकी नजरें मेरी चूत पर ठहर गई थीं।
"भाई खीरा, हम सब्जियों और फलों की जिंदगी में इतना आनंददायक इस्तेमाल शायद ही किसी का हुआ हो।" बैंगन बोल रहा था। वे दोनों मेरी जांघों के पास आकर मेरी चूत को बड़े गौर से देखने लगे थे।
"हां भाई, जरा देख तो इस दरार को। इसी दरार से होकर ही तो मैं अंदर गया था। कितनी नरम मुलायम जगह है यह। ऊपर से काफी मुलायम लग रही है लेकिन इसमें जो छेद है, बड़ी संकरी है। साला समझ में नहीं आ रहा था कि इसी मुलायम जगह के बीच की दरार में उतनी संकरी, छोटी सी छेद कैसे फैलती जा रही थी।" खीरा मेरी चूत को देखते हुए बोला।
"सच कह रहे हो भाई। संकरा सा छेद है लेकिन हम उसमें फिसलते हुए घुस भी गये और सही सलामत निकल भी गए। अंदर कितनी फिसलन भरी संकरी गुफा है जिसमें फिसलते हुए मैं अंदर घुसता चला जा रहा था। हां अब चूंकि मेरा पेट थोड़ा बड़ा है इसलिए घुसते समय थोड़ी दिक्कत हुई लेकिन एक बार अंदर घुस गया तो बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के बस घुसता ही चला गया। अंदर कितनी गर्मी थी रे बाप। लेकिन जो भी हो बड़ा मज़ा आया। लेकिन निकलते समय मुझे पसीना छूट गया था। यह तो भला हो ऊपर वाले का कि पता नहीं किस अदृश्य शक्ति ने ढकेल कर मुझे बाहर फेंक दिया, नहीं तो पता नहीं मेरा क्या होता। खैर अब समझ गया कि अंदर घुस सकता हूं तो बाहर भी आ सकता हूं।" बैंगन बोला।
"सही बोले भाई। मैं थोड़ा और आगे तक चला गया था तो देखा अंदर एक और लचीला छेद है। मैं जब उस छेद के अंदर जाने लगा तो ओह क्या बताऊं। वह छेद भी फैल कर मुझे अंदर जाने देने लगा। अंदर झांक कर देखा तो अन्दर बहुत जगह दिखाई दे रहा था। ताज्जुब तो तब हुआ कि मैं इतना लंबा होते हुए भी पूरा का पूरा अंदर समा गया था। अविश्वसनीय। सच बोल रहे हो कि अंदर की गर्मी सचमुच बहुत ज्यादा है। लेकिन उस गर्मी में भी एक अलग तरह का मजा आ रहा था। मन तो कर रहा है फिर एक बार इस छेद में डुबकी लगा लूं।" खीरा बोला। उनकी बातों को सुनकर मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था और उसी के साथ मेरी उत्तेजना भी बढ़ने लगी थी।
"मेरा भी मन हो रहा है भाई कि एक बार फिर इसके अंदर जा कर मजा लूं। मैं भी उस अंदर वाले छेद को देखना चाहता हूं। मैं तुम्हारे जैसा और अंदर तक जा नहीं सका था। इस बार अंदर तक जाऊंगा।" बैंगन बोला।
"तू नहीं जा सकेगा वहां तक मोटे। साले मोटे, तू बाहर वाले दरवाजे से अंदर चला गया वही तेरे लिए बहुत बड़ी बात है।" खीरा बोला।
"नहीं भाई, जब बाहर वाले छेद को फैला कर अंदर घुस सकता हूं तो अंदर आगे तक भी जा सकता हूं। जाऊंगा तो जरूर।"
"तो ठीक है, लेकिन अकेले अकेले जाने के बदले क्यों न एक साथ ही अंदर जाएं। दोनों साथ-साथ अंदर जाएंगे तो और मजा आएगा।" खीरा बोल उठा।
"अरे बेवकूफ, हम अकेले अकेले तो इतनी मुश्किल से अंदर गये थे, एक साथ अंदर कैसे जाएंगे? कहीं यह छेद फट गई तो?" बैंगन बोला। अबतक दोनों मेरी चूत के मुंह के एक दम पास आ कर चूत का मुआयना कर रहे थे।