14-07-2024, 01:30 PM
तभी मुझे अहसास हुआ कि क्या गड़बड़ हो गई है। बैंगन का पूरा मोटा हिस्सा मेरी चूत के अंदर समा कर फंस गया था। मैं ने घबराकर ज्यों ही बैंगन के डंठल को पकड़ कर बाहर खींचने की कोशिश की, बैंगन का डंठल टूट कर मेरे हाथ में आ गया और इसी के साथ अब बैंगन को बाहर निकालने का एकमात्र सहारा टूट कर मेरे हाथ में था। बैंगन को अब चूत से बाहर निकालने के लिए कोई उपाय नहीं रह गया था। खीरा के साथ समस्या इसलिए नहीं हुई क्योंकि खीरा अपनी पूरी लंबाई में एक समान मोटा था लेकिन बैंगन के साथ ऐसी बात नहीं थी। बैंगन का मोटा हिस्सा अंदर जा चुका था और पीछे का जो पतला हिस्सा था वह भी डंठल के टूट कर अलग हो जाने से सरकता हुआ अंदर जा कर गायब हो गया था। अब इस भयंकर मुसीबत से मुझे कैसे निजात मिले, यह समझ नहीं आ रहा था। घबराहट के मारे मुझे पसीना छूटने लगा। बड़ा अजीब सा अनुभव हो रहा था। उतना बड़ा बैंगन मेरी चूत के अंदर जा कर गायब हो गया था और मुझे अहसास हो रहा था जैसे वह बैंगन मेरे शरीर के अंदर का एक अंग बन गया हो। चूत के प्रवेश द्वार से लेकर गर्भाशय तक के सुरंग में बैंगन के रूप में एक बड़ा सा गोला फंस कर मार्ग को अवरूद्ध कर चुका था और उस मार्ग के अवरोध से मुक्ति पाने का कोई रास्ता नहीं बचा था। अब मेरी घबराहट का पारावार न था।
मैं असहाय भाव से कुछ पल तो उसी तरह लेटी रही। फिर मैंने सोचा कि शायद मैं पैर फैला कर खड़ी हो जाऊं और पहले की भांति अपने पेट में अंदर से दबाव दूं तो अपने आप बैंगन बाहर निकलने लगे। मैंने ऐसा ही किया। पूरी शक्ति से कोशिश की लेकिन सिर्फ बैंगन को छूने में समर्थ हो पाई। उस ढीठ बेशर्म बैंगन ने सिर्फ मुझे छूने दिया लेकिन इतना बाहर नहीं निकला कि उसे पकड़ पाऊं। जैसे ही मैंने दबाव देना बंद किया वह कमीना बैंगन फिर मेरे अंदर अदृश्य हो गया। दो तीन बार मैंने इसी तरह और कोशिश की लेकिन नतीजा सिफर निकला। अब मैं सचमुच दहशत में आ गई। अब क्या होगा? अपनी नादानी में मैंने यह कैसी मुसीबत मोल ली थी। बड़ी चली थी अपने चूत की क्षमता का परीक्षण करने, अब उसका नतीजा सामने देख कर पछतावा हो रहा था। थक हार कर मैं बिस्तर पर पैर पसार कर पसर गई और इस मुसीबत से निकलने का उपाय सोचने लगी मगर कोई उपाय सूझ नहीं रहा था। इसी चिंता में डूबी मेरा हाथ अपनी चूत पर चला गया। इतना बड़ा बैंगन मेरी चूत में घुस कर गायब था लेकिन मुझे पीड़ा का कोई अहसास नहीं हो रहा था। पीड़ा हुई थी तो केवल उस समय जब बैंगन का सबसे मोटा हिस्सा अंदर जा रहा था।
"ओ मेरे प्यारे बैंगन, प्लीज़ बाहर आ जा।" मैं बड़बड़ा उठी और साथ ही अपने हाथ से चूत सहलाने लगी। इस मुसीबत की घड़ी में भी अपने हाथों से अपनी चूत सहलाना मुझे बड़ा सुखद अहसास दे रहा था। भगांकुर पर उंगली का स्पर्श हुआ तो जैसे मैंने अनजाने में सितार के तारों को छेड़ दिया हो। झन्न से जैसे मेरे अंतरतम के तारों को छेड़ बैठी थी। चूत के प्रवेश द्वार के ठीक ऊपर एक छोटे से अंकुर की तरह दाने को, (जो मुझे उस समय पता चला कि वह सबसे संवेदनशील केन्द्र है) स्पर्श करते ही मेरे अंदर जो मधुर झंकार उठी थी उस झनकार से कुछ पलों के लिए वह दुश्चिंता छूमंतर हो गई जिसकी चिंता में मैं हलकान हो रही थी। उस दुश्चिंता की जगह एक सुखद शीतल राहत का अनुभव हुआ। किसी अनजानी प्रेरणा से मैंने अब उंगली से अपने भगांकुर को छेड़ना आरंभ कर दिया। ओह ओह यह कितना आनंददायक था। मेरी उंगलियां अब तेजी से भगांकुर को रगड़ने लगीं। उफ उफ, मैं भूल ही गयी कि मेरी चूत के अंदर इतना बड़ा बैंगन फंसा हुआ है। मैं आंखें बंद करके उस स्वर्गीय सुख का रसास्वादन करने लगी। सहसा मेरा एक हाथ खुद ब खुद मेरी चूचियों पर पहुंच गया और उस हाथ से मैं बेतहाशा बारी बारी से अपनी सख्त उन्नत चूचियों को दबाने लगी। उधर एक हाथ की उंगलियां मेरी चूत से खिलवाड़ कर रही थीं और इधर उत्तेजना के मारे दूसरे हाथ से मैं अपनी चूचियों पर कहर बरपा रही थी। गजब का सुख मुझे मिल रहा था।
"आह ओह इस्स्स्स्स इस्स्स्स्स आह" मुंह से आहें और सिसकियां निकलने लगी थीं। मैं बिस्तर पर तड़पने लगी। मेरी कमर खुद ब खुद उछलने लगी। मुझे ऐसा लगने लगा था जैसे मेरी चूत के भीतर फंसा बैंगन जीवित हो उठा हो और मेरे इस हस्तमैथुन में सक्रिय भागीदारी निभाने लगा हो। मेरी सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं और हर सांस के साथ बैंगन मानो कुछ और अंदर जाता और कुछ पीछे खिसकता। ऐसा लग रहा था जैसे बैंगन मेरी चूत की पकड़ से स्वतंत्र हो कर अंदर ही अंदर मैथुन मार्ग में विचरण करता हुआ अंदरूनी दीवारों पर घर्षण दे कर जो आनंद प्रदान कर रहा था वह अवर्णनीय था। ओह मेरी माआंआंआंआं मैं दूसरी ही दुनिया में पहुंच गई थी। इतना आनंददायक था वह हस्तमैथुन कि मैं बयां नहीं कर सकती हूं। मेरी उत्तेजना बढ़ती बढ़ती अंततः चरम पर पहुंच गयी और मैं स्खलन के कागार पर पहुंच गयी। और फिर शुरू हुआ मेरा वह अंतहीन सुखद स्खलन। "आआआआआआह ओओओहहह ओओओओओहहहहह....." मेरी घुटी घुटी आनंद मिश्रित चीखें उबलने लगीं। पूरे एक मिनट तक मैं थरथराते हुए स्खलित होती रही। फिर मेरा शरीर शिथिल होता चला गया।
मैं असहाय भाव से कुछ पल तो उसी तरह लेटी रही। फिर मैंने सोचा कि शायद मैं पैर फैला कर खड़ी हो जाऊं और पहले की भांति अपने पेट में अंदर से दबाव दूं तो अपने आप बैंगन बाहर निकलने लगे। मैंने ऐसा ही किया। पूरी शक्ति से कोशिश की लेकिन सिर्फ बैंगन को छूने में समर्थ हो पाई। उस ढीठ बेशर्म बैंगन ने सिर्फ मुझे छूने दिया लेकिन इतना बाहर नहीं निकला कि उसे पकड़ पाऊं। जैसे ही मैंने दबाव देना बंद किया वह कमीना बैंगन फिर मेरे अंदर अदृश्य हो गया। दो तीन बार मैंने इसी तरह और कोशिश की लेकिन नतीजा सिफर निकला। अब मैं सचमुच दहशत में आ गई। अब क्या होगा? अपनी नादानी में मैंने यह कैसी मुसीबत मोल ली थी। बड़ी चली थी अपने चूत की क्षमता का परीक्षण करने, अब उसका नतीजा सामने देख कर पछतावा हो रहा था। थक हार कर मैं बिस्तर पर पैर पसार कर पसर गई और इस मुसीबत से निकलने का उपाय सोचने लगी मगर कोई उपाय सूझ नहीं रहा था। इसी चिंता में डूबी मेरा हाथ अपनी चूत पर चला गया। इतना बड़ा बैंगन मेरी चूत में घुस कर गायब था लेकिन मुझे पीड़ा का कोई अहसास नहीं हो रहा था। पीड़ा हुई थी तो केवल उस समय जब बैंगन का सबसे मोटा हिस्सा अंदर जा रहा था।
"ओ मेरे प्यारे बैंगन, प्लीज़ बाहर आ जा।" मैं बड़बड़ा उठी और साथ ही अपने हाथ से चूत सहलाने लगी। इस मुसीबत की घड़ी में भी अपने हाथों से अपनी चूत सहलाना मुझे बड़ा सुखद अहसास दे रहा था। भगांकुर पर उंगली का स्पर्श हुआ तो जैसे मैंने अनजाने में सितार के तारों को छेड़ दिया हो। झन्न से जैसे मेरे अंतरतम के तारों को छेड़ बैठी थी। चूत के प्रवेश द्वार के ठीक ऊपर एक छोटे से अंकुर की तरह दाने को, (जो मुझे उस समय पता चला कि वह सबसे संवेदनशील केन्द्र है) स्पर्श करते ही मेरे अंदर जो मधुर झंकार उठी थी उस झनकार से कुछ पलों के लिए वह दुश्चिंता छूमंतर हो गई जिसकी चिंता में मैं हलकान हो रही थी। उस दुश्चिंता की जगह एक सुखद शीतल राहत का अनुभव हुआ। किसी अनजानी प्रेरणा से मैंने अब उंगली से अपने भगांकुर को छेड़ना आरंभ कर दिया। ओह ओह यह कितना आनंददायक था। मेरी उंगलियां अब तेजी से भगांकुर को रगड़ने लगीं। उफ उफ, मैं भूल ही गयी कि मेरी चूत के अंदर इतना बड़ा बैंगन फंसा हुआ है। मैं आंखें बंद करके उस स्वर्गीय सुख का रसास्वादन करने लगी। सहसा मेरा एक हाथ खुद ब खुद मेरी चूचियों पर पहुंच गया और उस हाथ से मैं बेतहाशा बारी बारी से अपनी सख्त उन्नत चूचियों को दबाने लगी। उधर एक हाथ की उंगलियां मेरी चूत से खिलवाड़ कर रही थीं और इधर उत्तेजना के मारे दूसरे हाथ से मैं अपनी चूचियों पर कहर बरपा रही थी। गजब का सुख मुझे मिल रहा था।
"आह ओह इस्स्स्स्स इस्स्स्स्स आह" मुंह से आहें और सिसकियां निकलने लगी थीं। मैं बिस्तर पर तड़पने लगी। मेरी कमर खुद ब खुद उछलने लगी। मुझे ऐसा लगने लगा था जैसे मेरी चूत के भीतर फंसा बैंगन जीवित हो उठा हो और मेरे इस हस्तमैथुन में सक्रिय भागीदारी निभाने लगा हो। मेरी सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं और हर सांस के साथ बैंगन मानो कुछ और अंदर जाता और कुछ पीछे खिसकता। ऐसा लग रहा था जैसे बैंगन मेरी चूत की पकड़ से स्वतंत्र हो कर अंदर ही अंदर मैथुन मार्ग में विचरण करता हुआ अंदरूनी दीवारों पर घर्षण दे कर जो आनंद प्रदान कर रहा था वह अवर्णनीय था। ओह मेरी माआंआंआंआं मैं दूसरी ही दुनिया में पहुंच गई थी। इतना आनंददायक था वह हस्तमैथुन कि मैं बयां नहीं कर सकती हूं। मेरी उत्तेजना बढ़ती बढ़ती अंततः चरम पर पहुंच गयी और मैं स्खलन के कागार पर पहुंच गयी। और फिर शुरू हुआ मेरा वह अंतहीन सुखद स्खलन। "आआआआआआह ओओओहहह ओओओओओहहहहह....." मेरी घुटी घुटी आनंद मिश्रित चीखें उबलने लगीं। पूरे एक मिनट तक मैं थरथराते हुए स्खलित होती रही। फिर मेरा शरीर शिथिल होता चला गया।