11-07-2024, 04:22 PM
मैंने लेटे लेटे ही सर घुमा कर देखा तो बगल मे वह बैंगन पड़ा हुआ मानो हंस रहा था और बड़ी हसरत से पूछ रहा था, "अब मेरा नंबर कब आएगा?"
मैंने खीरा को बिस्तर के नीचे बड़े प्यार से रखा और बड़बड़ा उठी,
"ओह मेरे प्यारे बैंगन, मुझे माफ कर दो, मैं तो तुम्हें भूल ही गई थी।" मैंने हाथ बढ़ा कर उस बैंगन का स्पर्श किया और स्पर्श करते ही गनगना उठी। मैंने थरथराते हाथ से उठा लिया और चूम उठी। बैंगन मानो मेरी इस आत्मीयता से गदगद हो उठा। उसकी लंबाई खीरा के मुकाबले कम थी लेकिन मोटाई, ओह माई गॉड, सामने मोटाई तो तीन से साढ़े तीन इंच के करीब थी लेकिन पीछे डंठल की ओर क्रमशः पतली होती चली गई थी। चमचम करता बैंगन भी शायद खीरा की किस्मत से ईर्ष्या कर रहा था लेकिन अपनी हसरत को पूरी करने के करीब आकर उसकी बैंगनी रंगत मानो और निखर उठी थी। मैं बड़े प्यार से उसे सहलाने लगी। जैसे जैसे मैं उसे सहलाती जा रही थी, वैसे वैसे मेरे निढाल शरीर में फिर से उत्तेजना का संचार होने लगा। मेरे अंदर दुबारा चुदने की कामना अंगड़ाई लेने लगी लेकिन उसकी मोटाई मुझे जरा भयभीत कर रही थी।
"ऐसे हिम्मत हार जाओगी तो अपनी जांच कैसे करोगी पगली। डर मत और ट्राई तो करके देख।" मेरे अंदर जैसे किसी ने कहा। हां हां ज़रूर, एक बार ट्राई तो जरूर करूंगी, मैंने मन ही मन कहा। अबतक मेरी उत्तेजना फिर से पूर्ववत बढ़ चुकी थी। मैंने बैंगन को ध्यान से देखा तो मुझे ऐसा लगा जैसे बैंगन भी किसी सजीव तने हुए लंड की तरह मेरी चूत में प्रवेश करने हेतु उतावला हुआ जा रहा हो। मैं सनसना उठी। मोटा बैंगनी लंड। बैंगन को किसी लंड की तरह दोनों हाथों में थाम कर पहले चूम उठी और अपने होंठों को खोल कर मुंह में लेने की कोशिश करने लगी लेकिन बैंगन इतना मोटा था कि पूरी तरह मुंह फाड़ने के बाद भी उसे मुंह में प्रवेश नहीं करा पाई। शायद मेरे मुंह की इतनी ही क्षमता थी क्योंकि मैं अपने जबड़ों को इससे ज्यादा खोल नहीं सकती थी लेकिन मेरी चूत तो लचीली थी। शायद चूत में समा जाय।
यही सोच कर मैंने वैसलीन से बैंगन को और चिकना किया और मेरी चुदी चुदाई चूत के मुंह पर रख दिया। ओह मां, बैंगन का स्पर्श ज्यों ही मेरी चूत के मुंह पर हुआ मैं बेहद रोमांचित हो उठी। "आजा मेरे प्यारे बैंगन, आजा, तू भी आज अपनी मुराद पूरी कर ले।" मैं बड़बड़ा उठी। इस चिकने मोटे बैंगन को मैं एक अविश्वसनीय मोटे लंड के रूप में अपने अंदर लेने वाली थी। मैं पूर्ववत पोजीशन ले कर अपने हाथ से बैंगन पर दबाव देने लगी। मेरी चूत का मुंह खुलने लगा। ओह ओह जैसे जैसे मेरे हाथ का दबाव बैंगन पर बढ़ता जा रहा था मेरी चूत का मुंह भी फैलता जा रहा था। ओह ओह, कुछ अंदर जाने के बाद बैंगन जब अपनी अधिकतम मोटाई के करीब पहुंचा तो मेरी चूत में दर्द होने लगा। ओह ओह, यह मेरी चूत के फैलने की सीमा थी। हे भगवान, क्या बैंगन से मुझे हार मान लेनी चाहिए? मेरी चूत की इतनी ही सीमा है? मैं रुक गई लेकिन मन की तमन्ना के आगे कब किसकी चली है। चलो थोड़ा और जोर लगा कर देख लेती हूं कि जब इतना घुस गया है तो थोड़ा और घुसा कर देखने में क्या हर्ज है, यही सोच कर मैं ने थोड़ा और अतिरिक्त जोर लगाया तो मेरी चीख निकलते निकलते रह गई, आआआआआआह , मुझे लगा मेरी चूत फट रही है, लेकिन तभी गजब हो गया। बैंगन की अधिकतम मोटाई वाला हिस्सा फुच्च से मेरी चूत में घुस गया और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती या बैंगन को रोकने की कोशिश करती, सरसराता हुआ चिकना बैंगन अंदर घुसता चला गया क्योंकि बैंगन के पीछे का हिस्सा अपेक्षाकृत पतला था और मेरे बिना अतिरिक्त कोशिश के पूरा बैंगन डंठल तक घुस गया। अब सिर्फ बैंगन का डंठल ही मेरी चूत के बाहर था। पूरा बैंगन अब मेरी चूत में समा चुका था। जैसे ही बैंगन का सबसे मोटा हिस्सा अंदर समा गया, वह अकथनीय दर्द भी धीरे धीरे कम होता चला गया। अब मुझे उस दर्द का अहसास नहीं हो रहा था जो बैंगन के सबसे मोटे हिस्से के घुसते समय हुआ था।
मैंने खीरा को बिस्तर के नीचे बड़े प्यार से रखा और बड़बड़ा उठी,
"ओह मेरे प्यारे बैंगन, मुझे माफ कर दो, मैं तो तुम्हें भूल ही गई थी।" मैंने हाथ बढ़ा कर उस बैंगन का स्पर्श किया और स्पर्श करते ही गनगना उठी। मैंने थरथराते हाथ से उठा लिया और चूम उठी। बैंगन मानो मेरी इस आत्मीयता से गदगद हो उठा। उसकी लंबाई खीरा के मुकाबले कम थी लेकिन मोटाई, ओह माई गॉड, सामने मोटाई तो तीन से साढ़े तीन इंच के करीब थी लेकिन पीछे डंठल की ओर क्रमशः पतली होती चली गई थी। चमचम करता बैंगन भी शायद खीरा की किस्मत से ईर्ष्या कर रहा था लेकिन अपनी हसरत को पूरी करने के करीब आकर उसकी बैंगनी रंगत मानो और निखर उठी थी। मैं बड़े प्यार से उसे सहलाने लगी। जैसे जैसे मैं उसे सहलाती जा रही थी, वैसे वैसे मेरे निढाल शरीर में फिर से उत्तेजना का संचार होने लगा। मेरे अंदर दुबारा चुदने की कामना अंगड़ाई लेने लगी लेकिन उसकी मोटाई मुझे जरा भयभीत कर रही थी।
"ऐसे हिम्मत हार जाओगी तो अपनी जांच कैसे करोगी पगली। डर मत और ट्राई तो करके देख।" मेरे अंदर जैसे किसी ने कहा। हां हां ज़रूर, एक बार ट्राई तो जरूर करूंगी, मैंने मन ही मन कहा। अबतक मेरी उत्तेजना फिर से पूर्ववत बढ़ चुकी थी। मैंने बैंगन को ध्यान से देखा तो मुझे ऐसा लगा जैसे बैंगन भी किसी सजीव तने हुए लंड की तरह मेरी चूत में प्रवेश करने हेतु उतावला हुआ जा रहा हो। मैं सनसना उठी। मोटा बैंगनी लंड। बैंगन को किसी लंड की तरह दोनों हाथों में थाम कर पहले चूम उठी और अपने होंठों को खोल कर मुंह में लेने की कोशिश करने लगी लेकिन बैंगन इतना मोटा था कि पूरी तरह मुंह फाड़ने के बाद भी उसे मुंह में प्रवेश नहीं करा पाई। शायद मेरे मुंह की इतनी ही क्षमता थी क्योंकि मैं अपने जबड़ों को इससे ज्यादा खोल नहीं सकती थी लेकिन मेरी चूत तो लचीली थी। शायद चूत में समा जाय।
यही सोच कर मैंने वैसलीन से बैंगन को और चिकना किया और मेरी चुदी चुदाई चूत के मुंह पर रख दिया। ओह मां, बैंगन का स्पर्श ज्यों ही मेरी चूत के मुंह पर हुआ मैं बेहद रोमांचित हो उठी। "आजा मेरे प्यारे बैंगन, आजा, तू भी आज अपनी मुराद पूरी कर ले।" मैं बड़बड़ा उठी। इस चिकने मोटे बैंगन को मैं एक अविश्वसनीय मोटे लंड के रूप में अपने अंदर लेने वाली थी। मैं पूर्ववत पोजीशन ले कर अपने हाथ से बैंगन पर दबाव देने लगी। मेरी चूत का मुंह खुलने लगा। ओह ओह जैसे जैसे मेरे हाथ का दबाव बैंगन पर बढ़ता जा रहा था मेरी चूत का मुंह भी फैलता जा रहा था। ओह ओह, कुछ अंदर जाने के बाद बैंगन जब अपनी अधिकतम मोटाई के करीब पहुंचा तो मेरी चूत में दर्द होने लगा। ओह ओह, यह मेरी चूत के फैलने की सीमा थी। हे भगवान, क्या बैंगन से मुझे हार मान लेनी चाहिए? मेरी चूत की इतनी ही सीमा है? मैं रुक गई लेकिन मन की तमन्ना के आगे कब किसकी चली है। चलो थोड़ा और जोर लगा कर देख लेती हूं कि जब इतना घुस गया है तो थोड़ा और घुसा कर देखने में क्या हर्ज है, यही सोच कर मैं ने थोड़ा और अतिरिक्त जोर लगाया तो मेरी चीख निकलते निकलते रह गई, आआआआआआह , मुझे लगा मेरी चूत फट रही है, लेकिन तभी गजब हो गया। बैंगन की अधिकतम मोटाई वाला हिस्सा फुच्च से मेरी चूत में घुस गया और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती या बैंगन को रोकने की कोशिश करती, सरसराता हुआ चिकना बैंगन अंदर घुसता चला गया क्योंकि बैंगन के पीछे का हिस्सा अपेक्षाकृत पतला था और मेरे बिना अतिरिक्त कोशिश के पूरा बैंगन डंठल तक घुस गया। अब सिर्फ बैंगन का डंठल ही मेरी चूत के बाहर था। पूरा बैंगन अब मेरी चूत में समा चुका था। जैसे ही बैंगन का सबसे मोटा हिस्सा अंदर समा गया, वह अकथनीय दर्द भी धीरे धीरे कम होता चला गया। अब मुझे उस दर्द का अहसास नहीं हो रहा था जो बैंगन के सबसे मोटे हिस्से के घुसते समय हुआ था।