09-07-2024, 11:42 AM
कुछ देर मैं उसी अवस्था में स्थिर रह कर रोमांचित होती रही। मुझे लग रहा था एक जीवित लंड मेरे अंदर समा चुका था। लेकिन नहीं, यह तो निर्जीव खीरा था। जीवित लंड होता तो इतने लंबे लंड की सक्रिय चुदाई का मजा लेना शुरू कर चुकी होती। खैर कोई बात नहीं। फिलहाल अपनी क्षमता का आंकलन तो कर चुकी थी। आज नहीं तो कल ऐसे लंड से मामना तो होना ही था। जब सामना होगा तो कितना मजा आएगा, यही सोच कर मैं आह्लादित हो उठी। अब मैं ऊपर उठने लगी लेकिन खीरा ज्यों का त्यों मेरी चूत में फंसा हुआ था और ऐसा लग रहा था जैसे वह खीरा मेरे शरीर का अंग बन चुका हो। अब मैं थोड़ी चिंतित हो उठी। कहीं यह ऐसा ही तो नहीं रहेगा? मैं ने अपने अंदर से थोड़ा जोर लगाया तो खीरा खुद ब खुद थोड़ा बाहर निकल आया। ओह निकलेगा, यह सोच कर तसल्ली हुई। अब मैं उसी तरह खीरा को अपनी चूत में फंसाए हुए बिस्तर पर चली गई और अपने हाथ से खीरा के बाहर वाले हिस्से को पकड़ लिया। मैं पीठ के बल लेट कर अपने पैरों को फैलाई और घुटनों को मोड़कर चुदने वाली पोजीशन में आ गई और अपने हाथ से खीरा को बाहर निकालने लगी। मेरी चूत में खीरा का घर्षण मुझे बड़ा आनंद दे रहा था इसलिए मैंने धीरे धीरे खीरा को बाहर खींचा लेकिन पूरी तरह बाहर निकालने के पहले ही पता नहीं मुझ पर क्या पागलपन सवार हुआ था कि फिर से अंदर ठेलने लगी। यह अनुभव अनोखा था। धीरे-धीरे मैं अंदर करते करते कुछ ज्यादा ही अंदर ठेल बैठी। मुझे इस बात का अंदाजा तब हुआ जब करीब करीब पूरा ही खीरा अंदर हो गया। खीरा को पकड़ने के लिए दूसरा छोर भी नहीं बचा। हे राम यह क्या हो गया, मुझे भय के मारे पसीना आ गया जब समझ में आया कि पूरा का पूरा खीरा अंदर समा गया था। अब इसे निकालूं तो कैसे निकालूं? खीरा का दूसरा सिरा भी गायब हो गया था। पूरा का पूरा खीरा मेरे अंदर घुस कर गायब हो गया था। मैं ऊपर से ही अपनी पेट छू कर महसूस कर सकती थी। अब यह निकलेगा तो कैसे निकलेगा? यह यक्ष प्रश्न मुझे खाए जा रहा था। क्या यह अंदर ही रह जाएगा? अगर अंदर ही रह गया तो मेरे साथ क्या होने वाला था? मैं पसीना पसीना हो चुकी थी। अपनी चूत की क्षमता का आंकलन करना मेरे लिए बहुत महंगा पड़ने वाला था। खुद निकालूं तो कैसे निकालूं? किसी बाहरी व्यक्ति से सहायता लूं तो किस मुंह से सहायता लूं? क्या किसी डाक्टर की जरूरत पड़ेगी? भय से मेरी जान निकली जा रही थी। जिसे भी पता चलेगा वह मेरे बारे में क्या सोचेगा। हे भगवान, यह मैं किस मुसीबत में फंस गयी थी। इन्हीं विचारों से परेशान हो कर मैंने अंतिम प्रयास करने का निर्णय लिया। मैं उसी तरह घुटनों को मोड़ कर पैरों को फैला कर पीठ के बल लेटी लेटी अपने अंदर से जोर लगाने लगी और साथ ही साथ अपने हाथों से पेट दबाने लगी। पहले प्रयास में मैं असफल हो गयी। मैं मन को कड़ा करके दूसरा प्रयास करने लगी और इस वक्त मैंने पूरी शक्ति लगा दी मानो अपनी जान बचाने के लिए इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था। मरता क्या नहीं करता। मैंने पूरी जान लगा दी और अप्रत्याशित रूप से धीरे धीरे खीरा बाहर आने लगा। मैं जोर लगाती रही और मेरा दृढ़ संकल्प और कठोर प्रयास रंग लाने लगा। चमत्कारिक परिणाम सामने था। धीरे-धीरे धीरे-धीरे खीरा तीन चार इंच बाहर निकल आया। अब मैं अपने हाथ से खीरा को पकड़ कर बाहर खींचने लगी। ओह ओह, अब मैं राहत की सांस लेने लगी थी। जैसे जैसे खीरा बाहर निकल रहा था, मेरी चूत में उसके घर्षण से मुझे बड़ा आनंद मिलने लगा। कुछ देर पहले का भय अब आनंद में बदल चुका था। जैसे जैसे खीरा बाहर निकल रहा था मेरे अंदर एक खालीपन का अहसास महसूस होने लगा था। वह खालीपन मुझे फिर से खीरा को अंदर ढकेलने के लिए उकसाने लगा। यह एक प्रलोभन था जिसके जाल में फंस कर फिर से अंदर ठेलने लगी। फिर वही आनंददायक घर्षण। ठेलती गयी ठेलती गयी, फिर वही परिपूर्णता का सुखद अहसास। लेकिन इस बार मैंने खीरे पर अपनी पकड़ बनाए रखी थी। ओह ओह यह तो खीरे द्वारा मेरी चूत की चुदाई थी। उफ उफ, अब मेरे अंदर का भय तिरोहित हो चुका था। मैं समझ गई कि अब मैं मजे से इस खीरे से चुद सकती हूं। अब मैं यही क्रिया बार बार दुहराने लगी। एक बार, दो बार, तीन बार और फिर बार बार, ओर ओर मैं अपने ही हाथों में खीरा को पकड़ कर चुदने का आनंद लेने लगी। मात्र पांच मिनट में ही मेरा शरीर थरथराने लगा और मेरा शरीर अकड़ने लगा। आआआआआआहहहहह, ओओओओओ हहहह यह मेरा सुखद स्खलन था। मैं झड़ कर निढाल हो गई। बड़ा आनंद आया। मैं उसी तरह पड़ कर हांफ रही थी। एक अद्भुत नया अनुभव मुझे मिला था। मेरे हाथ में वह खीरा था जो मेरी चूत रस से सना हुआ चमचमा रहा था और मानो सजीव प्राणी की तरह मुझ पर संतुष्टि की मुस्कान फेंक रहा था। मुझे उस पर बड़ा प्यार आया और मैंने उसे चूम लिया।