06-07-2024, 07:22 AM
जांच में उत्तीर्ण या अनुत्तीर्ण होने का सवाल नहीं था, यह तो मात्र अपनी क्षमता का आंकलन करना था। सो सर्वप्रथम मैंने खीरा से आरंभ करने की सोची। जैसे ही मैंने बारह इंच खीरा को हाथ में लिया मेरा हाथ कांप उठा। ऐसा लगा जैसे किसी गधे का लंड मेरे हाथ में हो। हरा, चिकना, चमचमाता खीरा एक निर्जीव फल ही तो था लेकिन पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा था मानो वह सजीव लंड था जो हरे रंग के सांप जैसा दंश मारने को फुंफकार मार रहा हो। कुछ पल मैं भयभीत नजरों से उसे देखती रही फिर हिम्मत करके उसे अपनी चूत के मुंह पर रख दी। जैसे ही खीरा का स्पर्श मेरी चूत पर हुआ, मैं गनगना उठी। हे भगवान, यह मेरी चूत में जा सकेगा? मैं सुविधा के लिए बिस्तर पर बैठ गई और अपनी टांगें फैला कर खीरे को चूत के मुंह पर रख कर अपने हाथ का दबाव देने लगी। ओह ओह, मेरी चूत ने मानो उसे ग्रहण करने से इन्कार कर दिया और एक पीड़ा का अहसास मुझे होने लगा। ओह अब समझी। इस खीरे के ऊपरी परत को फिसलन भरा बनाने के लिए किसी तेल या क्रीम की आवश्यकता थी। मेरा ध्यान अपने बालों पर लगाने वाले तेल पर गया। नहीं नहीं, तेल नहीं, क्रीम लगाना उचित होगा। तेल तो बह जायेगा। अब मैं उठी और वैसलीन ले कर आ गई। बड़े प्रेम से मैंने उस खीरे पर वैसलीन लगाया और थोड़ा वैसलीन अपनी चूत पर लगाया और वही क्रिया दुबारा दुहराने लगी। हां, हां, अब ठीक है। अब खीरा का अगला भाग मेरी चूत के मुंह को फैलाता हुआ अंदर प्रविष्ट होने लगा था।
उफ उफ, ऐसा लग रहा था मानो कोई बहुत मोटा जीवित लंड मेरी चूत के मुंह को जबरदस्ती फैलाता हुआ अंदर घुसता चला जा रहा हो। ओह ओह, दर्द हो रहा था लेकिन खीरा फिसलता हुआ घुसता चला जा रहा था। खीरा का अभी मात्र दो इंच लंबाई ही मेरी चूत में घुसा था लेकिन दर्द के मारे मेरे हाथों ने और दबाव बढ़ाने से इंकार कर दिया। अब क्या करूं? अब मैंने अब एक दूसरा निर्णय ले लिया। खीरा को फंसाए फंसाए ही मैं खीरा को खड़े पोजीशन में रख कर खीरा का दूसरा सिरा फर्श पर टिका कर अपने शरीर को नीचे करने लगी। दूसरी तरह कहूं तो खीरा को खड़ा करके अब मैं नीचे फर्श पर बैठने लगी थी, नतीजा यह हुआ कि मेरे शरीर के बोझ से खीरा मेरी चूत में और अंदर सरकने लगा था। ओह ओह, मुझे अचानक ऐसा लगा मानो रघु नीचे फर्श पर लेटा हो और उसके तने हुए लंड पर मैं बैठ रही हूं। रघु का मोटा लंड सरकता हुआ मेरी चूत को फाड़ता हुआ घुसता अंदर घुसता जा रहा हो।
"ओह रघु, ओह बस बस, फट रही है मेरी चूत उफ उफ" मेरे मुंह से सिसकारी निकल पड़ी। लेकिन प्रत्युत्तर में मुझे पीड़ा के अलावा और कुछ नहीं मिला। कोई मानव होता तब न उत्तर मिलता। यहां तो निर्जीव खीरा मेरी गरम चूत में समाए जा रहा था। अबतक करीब आधा खीरा मेरी चूत में समा चुका था। इतने में ही मैं पसीना पसीना हो उठी थी। मुझमें और नीचे बैठने की हिम्मत नहीं हो रही थी। मैं रुक गई। कुछ पल उसी स्थिति में रुकना मेरे लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ। धीरे-धीरे दर्द गायब हो गया और मुझे पता चल गया कि इतना मोटा खीरा इतना भी मोटा नहीं है कि मैं अपनी चूत में ले न सकूं। उस मोटे खीरे को लेने के लिए मेरी चूत को जितना फैलना था फैल चुकी थी, अब और पीड़ा नहीं हो रही थी। अब मुझे देखना था कि इस खीरे को मैं अपनी चूत मे कितना अंदर ले सकती हूं। मैं और नीचे बैठने लगी। ओह ओह खीरा सरकता हुआ एक एक मिलीमीटर अंदर घुसता जा रहा था और हर मिलीमीटर के साथ मुझे एक अद्भुत रोमांच का अनुभव हो रहा था। मैं बड़े नियंत्रण के साथ और अपनी बर्दाश्त करने की क्षमता के अनुसार नीचे बैठती जा रही थी और निर्जीव खीरा किसी सजीव प्राणी की भांति सरकता हुआ अंदर घुसता जा रहा था। ओह ओह गजब का अनुभव हो रहा था। अबतक लगभग दो तिहाई, मतलब आठ इंच लंबाई अंदर जा चुकी थी और एक तिहाई बाकी था। तभी मुझे लगा कि खीरा मेरे अंदर किसी कोमल भाग का स्पर्श कर रहा हो। हे भगवान, यह कौन-सा अंदरुनी अंग है? कहीं यह मेरा गर्भाशय तो नहीं है? सहसा मेरा हाथ मेरे पेट के निचले स्थान पर चला गया। नाभी से करीब एक इंच नीचे मुझे कुछ आभास हुआ। निश्चित रूप से यह खीरा ही था। अबतक मुझे कोई खास पीड़ा का अनुभव नहीं हुआ था। मैंने अपने शरीर को थोड़ा और नीचे करके देखने का निर्णय किया और ऐसा ही करने लगी। खीरा सरकता हुआ और अंदर जाने लगा था। कितना अंदर जा सकता है? कहीं पूरा खीरा अंदर तो नहीं चला जाएगा? अब मैं डरने लगी। कहीं मेरे शरीर का कोई कोमल अंदरुनी अंग जख्मी न हो जाए। कहीं मुझे कोई नुक्सान न हो जाए। यही सोच कर रुक गई। अबतक करीब दस इंच या शायद ग्यारह इंच खीरा अंदर जा चुका था। मुझे लगा कि खीरा मेरे गर्भाशय में प्रवेश कर चुका है। बस बस हो चुका, मैं समझ गई कि मैं बारह इंच लंबा लंड भी ले सकती हूं। यह एक नारी के लिए चमत्कार से कम नहीं था। मुझ नादान को अपनी क्षमता पर गर्व हो रहा था। मैं अपने हाथ से अनुभव कर सकती थी कि खीरा मेरे नाभी तक पहुंच चुका था।
उफ उफ, ऐसा लग रहा था मानो कोई बहुत मोटा जीवित लंड मेरी चूत के मुंह को जबरदस्ती फैलाता हुआ अंदर घुसता चला जा रहा हो। ओह ओह, दर्द हो रहा था लेकिन खीरा फिसलता हुआ घुसता चला जा रहा था। खीरा का अभी मात्र दो इंच लंबाई ही मेरी चूत में घुसा था लेकिन दर्द के मारे मेरे हाथों ने और दबाव बढ़ाने से इंकार कर दिया। अब क्या करूं? अब मैंने अब एक दूसरा निर्णय ले लिया। खीरा को फंसाए फंसाए ही मैं खीरा को खड़े पोजीशन में रख कर खीरा का दूसरा सिरा फर्श पर टिका कर अपने शरीर को नीचे करने लगी। दूसरी तरह कहूं तो खीरा को खड़ा करके अब मैं नीचे फर्श पर बैठने लगी थी, नतीजा यह हुआ कि मेरे शरीर के बोझ से खीरा मेरी चूत में और अंदर सरकने लगा था। ओह ओह, मुझे अचानक ऐसा लगा मानो रघु नीचे फर्श पर लेटा हो और उसके तने हुए लंड पर मैं बैठ रही हूं। रघु का मोटा लंड सरकता हुआ मेरी चूत को फाड़ता हुआ घुसता अंदर घुसता जा रहा हो।
"ओह रघु, ओह बस बस, फट रही है मेरी चूत उफ उफ" मेरे मुंह से सिसकारी निकल पड़ी। लेकिन प्रत्युत्तर में मुझे पीड़ा के अलावा और कुछ नहीं मिला। कोई मानव होता तब न उत्तर मिलता। यहां तो निर्जीव खीरा मेरी गरम चूत में समाए जा रहा था। अबतक करीब आधा खीरा मेरी चूत में समा चुका था। इतने में ही मैं पसीना पसीना हो उठी थी। मुझमें और नीचे बैठने की हिम्मत नहीं हो रही थी। मैं रुक गई। कुछ पल उसी स्थिति में रुकना मेरे लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ। धीरे-धीरे दर्द गायब हो गया और मुझे पता चल गया कि इतना मोटा खीरा इतना भी मोटा नहीं है कि मैं अपनी चूत में ले न सकूं। उस मोटे खीरे को लेने के लिए मेरी चूत को जितना फैलना था फैल चुकी थी, अब और पीड़ा नहीं हो रही थी। अब मुझे देखना था कि इस खीरे को मैं अपनी चूत मे कितना अंदर ले सकती हूं। मैं और नीचे बैठने लगी। ओह ओह खीरा सरकता हुआ एक एक मिलीमीटर अंदर घुसता जा रहा था और हर मिलीमीटर के साथ मुझे एक अद्भुत रोमांच का अनुभव हो रहा था। मैं बड़े नियंत्रण के साथ और अपनी बर्दाश्त करने की क्षमता के अनुसार नीचे बैठती जा रही थी और निर्जीव खीरा किसी सजीव प्राणी की भांति सरकता हुआ अंदर घुसता जा रहा था। ओह ओह गजब का अनुभव हो रहा था। अबतक लगभग दो तिहाई, मतलब आठ इंच लंबाई अंदर जा चुकी थी और एक तिहाई बाकी था। तभी मुझे लगा कि खीरा मेरे अंदर किसी कोमल भाग का स्पर्श कर रहा हो। हे भगवान, यह कौन-सा अंदरुनी अंग है? कहीं यह मेरा गर्भाशय तो नहीं है? सहसा मेरा हाथ मेरे पेट के निचले स्थान पर चला गया। नाभी से करीब एक इंच नीचे मुझे कुछ आभास हुआ। निश्चित रूप से यह खीरा ही था। अबतक मुझे कोई खास पीड़ा का अनुभव नहीं हुआ था। मैंने अपने शरीर को थोड़ा और नीचे करके देखने का निर्णय किया और ऐसा ही करने लगी। खीरा सरकता हुआ और अंदर जाने लगा था। कितना अंदर जा सकता है? कहीं पूरा खीरा अंदर तो नहीं चला जाएगा? अब मैं डरने लगी। कहीं मेरे शरीर का कोई कोमल अंदरुनी अंग जख्मी न हो जाए। कहीं मुझे कोई नुक्सान न हो जाए। यही सोच कर रुक गई। अबतक करीब दस इंच या शायद ग्यारह इंच खीरा अंदर जा चुका था। मुझे लगा कि खीरा मेरे गर्भाशय में प्रवेश कर चुका है। बस बस हो चुका, मैं समझ गई कि मैं बारह इंच लंबा लंड भी ले सकती हूं। यह एक नारी के लिए चमत्कार से कम नहीं था। मुझ नादान को अपनी क्षमता पर गर्व हो रहा था। मैं अपने हाथ से अनुभव कर सकती थी कि खीरा मेरे नाभी तक पहुंच चुका था।