04-07-2024, 08:00 PM
गरम रोजा (भाग 10)
इधर घुसा मां के लिए पानी लेने किचन की ओर बढ़ा और मैं पीछे के गलियारे की ओर बढ़ गयी। घुसा पानी लेकर मां के कमरे में जाएगा और क्या करेगा वह तो स्पष्ट था और मुझे उसके बारे में सोचना नहीं था लेकिन अब मैं जो कुछ करने वाली थी वह सोच मुझे भीतर से आंदोलित कर रहा था। मैं धड़कते हृदय से पीछे गलियारे के कोने की ओर बढ़ रही थी। जैसे जैसे मैं कोने पर रखे हुए डिब्बे की ओर बढ़ रही थी वैसे वैसे मेरे दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी। एक अजीब सी घबराहट महसूस कर रही थी, मानो उस डिब्बे से कोई अनजानी सी, कोई अजीब सी चीज निकलने जा रही हो। रखी मैं ही थी, निकालना भी मुझे ही था लेकिन उन चीजों को दुबारा हाथ से निकालने के लिए मुझे उन्हें दुबारा छूना था और हाथ में उठाना था और अपने कमरे में ले कर आना था। इतनी सी बात के लिए मेरे मन में अजीब सी हलचल मची हुई थी। मेरे हाथ पांव कांप रहे थे।
उस डिब्बे के पास पहुंच कर कुछ पलों के लिए मैं जड़ हो गई। हालांकि उस डिब्बे में मैंने ही उन सामानों को रखा था लेकिन जब मैं झुक कर डिब्बे का ढक्कन खोल रही थी उस वक्त मेरे हाथ कांप रहे थे जैसे उस डिब्बे से उन चीजों के बदले कोई और अपरिचित और भयभीत करने वाली चीजें निकलने जा रही हों। अंततः मुझसे डिब्बा खोला नहीं गया लेकिन मैंने हिम्मत करके डिब्बे को बिना खोले ही हाथ में उठा लिया और उसे लेकर सशंकित मुद्रा में अपने कमरे की ओर चलने लगी।
अभी मैं अपने कमरे में घुसने ही वाली थी कि किचन की ओर से घुसा पानी लेकर आता हुआ दिखाई दिया। मुझे लगा कि मेरी चोरी पकड़ी गई। मेरा हाथ कांप उठा। मैंने खुद को दिलासा दिया कि डिब्बे के अंदर क्या है उसके बारे में उसे क्या पता होगा।
"डिब्बे में क्या है बिटिया?" घुसा मेरे हाथ में डिब्बा देख कर बोला। उसके सवाल को सुनकर डिब्बा मेरे हाथ से गिरते गिरते बचा।
"क क क कुछ नहीं। यह खाली है। मैं इस खाली डिब्बे का इस्तेमाल अपनी कुछ चीजें रखने के लिए ला रही हूं।" मैं खुद को संभाल कर किसी प्रकार बोली और जल्दी से अपने कमरे में जा घुसी। मेरी घबराकर घुसा की नजरों से छिपी नहीं रह सकी थीं, यह मैं उसके चेहरे को देख कर समझ गई थी और उसके अगले सवाल का सामना करने की हिम्मत नहीं थी इसलिए मैंने कमरे में घुस कर तुरंत दरवाजा बंद कर दिया। कमरे में घुसते ही मैंने उस डिब्बे को अपने बिस्तर पर ऐसे फेंका जैसे उस डिब्बे में कोई जहरीला सांप हो या कोई बिच्छू हो। डिब्बा जैसे ही बिस्तर पर गिरा, उसके अंदर से खीरा और बैंगन निकल कर बिस्तर पर छितराए मुझे मुंह चिढ़ा रहे थे। मेरा ही तोड़ा हुआ एक फुट लंबा, ढाई इंच मोटा खीरा और एक करीब साढ़े तीन इंच मोटा और बलिश्त भर लंबा, चिकना बैंगन ही तो थे वे। अपनी बेवकूफी भरे बेवजह भय पर मुझे हंसी आ गई। मैं ने आगे बढ़ कर जैसे ही खीरा और बैंगन को स्पर्श किया तो रोमांचित हो उठी। हरा, लंबा खीरा और चमचमाता बैंगन एक एक हाथ में लेकर मैं चूम उठी। ये ही वे सब्जियां (यंत्र) थीं जिनसे मैं अपनी चूत और गांड़ की क्षमताओं का परीक्षण करना चाहती थी। हालांकि इन चीजों का साईज मेरी समझ से किसी भी आदमी के लंड से कहीं बड़ा था। इन्हें ले पाई तो समझो किसी भी आदमी का आराम से ले पाऊंगी।
अचानक मुझे रघु का लंड याद आ गया। जब मैंने देखा था उस समय रघु का लंड पूरी तरह तना हुआ नहीं था, तो पूरी तरह तनाव में आ कर उसका लंड कितना बड़ा हो सकता है? मैं रघु के पूरे तने हुए लंड की कल्पना करने लगी। क्या पूरी तनी हुई अवस्था में उसका लंड इन्हीं की तरह का आकार ले लेगा? पता नहीं। लेकिन चलो कमसे कम इनके द्वारा अपनी क्षमता का आंकलन कर लेने में हर्ज क्या है। अगर पूर्ण तनाव में आकर उसके लंड की आकृति बढ़ भी जाए तो एक दो इंच और लंबा हो सकता है, तो अनुमान के अनुसार पूरी लंबाई कम से कम दस से ग्यारह इंच हो सकती है। उतना लंबा लंड अपनी लंबाई के अनुपात में मोटा होगा तो कितना होगा? कम से कम ढाई से तीन इंच। ठीक है, तो चलो उसी को मान लूं तो पहले खुद को जांच लूं, फिर क्या घुसा का, क्या घनश्याम का, क्या गंजू का या क्या रघु का या किसी और का, भविष्य में मुझे किसी के लंड के साईज से भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है। आखिर एक आदमी का लंड उससे बड़ा और क्या हो सकता है। यही सोच कर मैं अपनी खुराफाती दिमाग की उपज को अंजाम देने के लिए तत्पर हो गयी। मैं ने दरवाजे से बाहर झांक कर देखा तो बाहर सन्नाटा पसरा हुआ था। निश्चित ही घुसा के साथ मम्मी धींगामुश्ती में व्यस्त हो गयी होगी। अब मैं निश्चिंत हो कर अपने शरीर से नाईटी उतार फेंकी। पैंटी तो पहनी नहीं थी, सो कमर से नीचे मैं पूरी तरह नंगी थी। पंखे की शीतल हवा मेरी चूत को सहलाने लगी थी। मैं रोमांचित हो उठी।
इधर घुसा मां के लिए पानी लेने किचन की ओर बढ़ा और मैं पीछे के गलियारे की ओर बढ़ गयी। घुसा पानी लेकर मां के कमरे में जाएगा और क्या करेगा वह तो स्पष्ट था और मुझे उसके बारे में सोचना नहीं था लेकिन अब मैं जो कुछ करने वाली थी वह सोच मुझे भीतर से आंदोलित कर रहा था। मैं धड़कते हृदय से पीछे गलियारे के कोने की ओर बढ़ रही थी। जैसे जैसे मैं कोने पर रखे हुए डिब्बे की ओर बढ़ रही थी वैसे वैसे मेरे दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी। एक अजीब सी घबराहट महसूस कर रही थी, मानो उस डिब्बे से कोई अनजानी सी, कोई अजीब सी चीज निकलने जा रही हो। रखी मैं ही थी, निकालना भी मुझे ही था लेकिन उन चीजों को दुबारा हाथ से निकालने के लिए मुझे उन्हें दुबारा छूना था और हाथ में उठाना था और अपने कमरे में ले कर आना था। इतनी सी बात के लिए मेरे मन में अजीब सी हलचल मची हुई थी। मेरे हाथ पांव कांप रहे थे।
उस डिब्बे के पास पहुंच कर कुछ पलों के लिए मैं जड़ हो गई। हालांकि उस डिब्बे में मैंने ही उन सामानों को रखा था लेकिन जब मैं झुक कर डिब्बे का ढक्कन खोल रही थी उस वक्त मेरे हाथ कांप रहे थे जैसे उस डिब्बे से उन चीजों के बदले कोई और अपरिचित और भयभीत करने वाली चीजें निकलने जा रही हों। अंततः मुझसे डिब्बा खोला नहीं गया लेकिन मैंने हिम्मत करके डिब्बे को बिना खोले ही हाथ में उठा लिया और उसे लेकर सशंकित मुद्रा में अपने कमरे की ओर चलने लगी।
अभी मैं अपने कमरे में घुसने ही वाली थी कि किचन की ओर से घुसा पानी लेकर आता हुआ दिखाई दिया। मुझे लगा कि मेरी चोरी पकड़ी गई। मेरा हाथ कांप उठा। मैंने खुद को दिलासा दिया कि डिब्बे के अंदर क्या है उसके बारे में उसे क्या पता होगा।
"डिब्बे में क्या है बिटिया?" घुसा मेरे हाथ में डिब्बा देख कर बोला। उसके सवाल को सुनकर डिब्बा मेरे हाथ से गिरते गिरते बचा।
"क क क कुछ नहीं। यह खाली है। मैं इस खाली डिब्बे का इस्तेमाल अपनी कुछ चीजें रखने के लिए ला रही हूं।" मैं खुद को संभाल कर किसी प्रकार बोली और जल्दी से अपने कमरे में जा घुसी। मेरी घबराकर घुसा की नजरों से छिपी नहीं रह सकी थीं, यह मैं उसके चेहरे को देख कर समझ गई थी और उसके अगले सवाल का सामना करने की हिम्मत नहीं थी इसलिए मैंने कमरे में घुस कर तुरंत दरवाजा बंद कर दिया। कमरे में घुसते ही मैंने उस डिब्बे को अपने बिस्तर पर ऐसे फेंका जैसे उस डिब्बे में कोई जहरीला सांप हो या कोई बिच्छू हो। डिब्बा जैसे ही बिस्तर पर गिरा, उसके अंदर से खीरा और बैंगन निकल कर बिस्तर पर छितराए मुझे मुंह चिढ़ा रहे थे। मेरा ही तोड़ा हुआ एक फुट लंबा, ढाई इंच मोटा खीरा और एक करीब साढ़े तीन इंच मोटा और बलिश्त भर लंबा, चिकना बैंगन ही तो थे वे। अपनी बेवकूफी भरे बेवजह भय पर मुझे हंसी आ गई। मैं ने आगे बढ़ कर जैसे ही खीरा और बैंगन को स्पर्श किया तो रोमांचित हो उठी। हरा, लंबा खीरा और चमचमाता बैंगन एक एक हाथ में लेकर मैं चूम उठी। ये ही वे सब्जियां (यंत्र) थीं जिनसे मैं अपनी चूत और गांड़ की क्षमताओं का परीक्षण करना चाहती थी। हालांकि इन चीजों का साईज मेरी समझ से किसी भी आदमी के लंड से कहीं बड़ा था। इन्हें ले पाई तो समझो किसी भी आदमी का आराम से ले पाऊंगी।
अचानक मुझे रघु का लंड याद आ गया। जब मैंने देखा था उस समय रघु का लंड पूरी तरह तना हुआ नहीं था, तो पूरी तरह तनाव में आ कर उसका लंड कितना बड़ा हो सकता है? मैं रघु के पूरे तने हुए लंड की कल्पना करने लगी। क्या पूरी तनी हुई अवस्था में उसका लंड इन्हीं की तरह का आकार ले लेगा? पता नहीं। लेकिन चलो कमसे कम इनके द्वारा अपनी क्षमता का आंकलन कर लेने में हर्ज क्या है। अगर पूर्ण तनाव में आकर उसके लंड की आकृति बढ़ भी जाए तो एक दो इंच और लंबा हो सकता है, तो अनुमान के अनुसार पूरी लंबाई कम से कम दस से ग्यारह इंच हो सकती है। उतना लंबा लंड अपनी लंबाई के अनुपात में मोटा होगा तो कितना होगा? कम से कम ढाई से तीन इंच। ठीक है, तो चलो उसी को मान लूं तो पहले खुद को जांच लूं, फिर क्या घुसा का, क्या घनश्याम का, क्या गंजू का या क्या रघु का या किसी और का, भविष्य में मुझे किसी के लंड के साईज से भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है। आखिर एक आदमी का लंड उससे बड़ा और क्या हो सकता है। यही सोच कर मैं अपनी खुराफाती दिमाग की उपज को अंजाम देने के लिए तत्पर हो गयी। मैं ने दरवाजे से बाहर झांक कर देखा तो बाहर सन्नाटा पसरा हुआ था। निश्चित ही घुसा के साथ मम्मी धींगामुश्ती में व्यस्त हो गयी होगी। अब मैं निश्चिंत हो कर अपने शरीर से नाईटी उतार फेंकी। पैंटी तो पहनी नहीं थी, सो कमर से नीचे मैं पूरी तरह नंगी थी। पंखे की शीतल हवा मेरी चूत को सहलाने लगी थी। मैं रोमांचित हो उठी।