02-07-2024, 11:33 AM
"क्या देख रहे हो?" मैं मुस्कुरा कर बोली।
"देख रहे हैं कि आज मैडमजी कुछ बदली बदली सी लग रही हैं।" वह अन्यमनस्क स्वर में बोला।
"तुम्हें इससे क्या, जो चाहते थे वह तो मिल तो गया ना।" मैं बोली।
"फिर भी उनका इस तरह हमको नजर अंदाज करना हमको थोड़ा अजीब लग रहा है।" वह बोला।
"आज पहली बार है ना इसलिए अजीब लग रहा है। धीरे-धीरे आदत हो जायेगी।" मैं बोली। मुझे पता था कि अबतक घुसा ही मां के आकर्षण का एकमात्र केंद्रबिंदु था लेकिन अब यह स्थिति बदल चुकी थी। मुझे पता था कि अब घुसा का एक और साझेदार पैदा हो चुका है।
"क्या मतलब?" घुसा जो इस बात से अनभिज्ञ था, पूछ बैठा।
"मतलब भी एक दो दिन में समझ जाओगे। फिलहाल परेशान होने की जरूरत नहीं है। वैसे भी मैं तो हूं ना तुम्हारे लिए।" मैं घुसा को आश्वस्त करते हुए बोली।
"हां तुम तो हो ही, मुझ बूढ़े की छुटकी बुढ़िया। अभी फिर से एक राउंड हो जाय?" घुसा पैजामे के ऊपर से अपना लंड पकड़ कर बोला। उसकी बातों से लग रहा था कि हड़बड़ी में चुदाई के कारण उसका मन पूरी तरह नहीं भरा है।
"चुप हरामी बुढ़ऊ। बहुत लंड में खुजली मची है? अभी कहीं मां का बुलावा आ गया तो मेरी चूत से लंड निकाल कर उसकी चूत में डुबकी लगाने के लिए दौड़ना पड़ेगा। चुपचाप खिसको।" मैं उसे टालते हुए बोली और अपने कमरे की ओर बढ़ने को तत्पर हो गयी। मेरा कथन सत्य भी था। कहीं मां का मूड हुआ तो घुसा का बुलावा कभी भी आ सकता था। इतना तो निश्चित था कि रास्ते में ही कहीं सुनसान जगह में मां की भाव भंगिमाओं को ताड़ कर घनश्याम अपने मन की करने में सफल हो चुका था लेकिन जो कुछ भी हुआ होगा, असुविधाजनक स्थान में और असुविधाजनक स्थिति में फटाफट हुआ होगा इसलिए रही सही कसर पूरी करने के लिए घुसा की जरूरत महसूस कर सकती है, ऐसा मेरा सोचना था और लो, मेरा सोचना शत-प्रतिशत सच साबित हुआ।
"घुसा, जरा पानी लेकर आना तो।" मां की आवाज आई और मैं मुस्कुरा कर घुसा को देखने लगी। घुसा तो जैसे इसी तरह आवाज के लिए तरस रहा था।
"अभी लाया मैडमजी।" कहते हुए वह तीर की तरह किचन की ओर भागा और मैं अपने कमरे की ओर बढ़ने की बजाय पीछे वाले गलियारे की ओर बढ़ गयी। वहां कोने में पड़े हुए डिब्बे में मेरी परीक्षण सामग्रियां रखी हुई थीं।
"देख रहे हैं कि आज मैडमजी कुछ बदली बदली सी लग रही हैं।" वह अन्यमनस्क स्वर में बोला।
"तुम्हें इससे क्या, जो चाहते थे वह तो मिल तो गया ना।" मैं बोली।
"फिर भी उनका इस तरह हमको नजर अंदाज करना हमको थोड़ा अजीब लग रहा है।" वह बोला।
"आज पहली बार है ना इसलिए अजीब लग रहा है। धीरे-धीरे आदत हो जायेगी।" मैं बोली। मुझे पता था कि अबतक घुसा ही मां के आकर्षण का एकमात्र केंद्रबिंदु था लेकिन अब यह स्थिति बदल चुकी थी। मुझे पता था कि अब घुसा का एक और साझेदार पैदा हो चुका है।
"क्या मतलब?" घुसा जो इस बात से अनभिज्ञ था, पूछ बैठा।
"मतलब भी एक दो दिन में समझ जाओगे। फिलहाल परेशान होने की जरूरत नहीं है। वैसे भी मैं तो हूं ना तुम्हारे लिए।" मैं घुसा को आश्वस्त करते हुए बोली।
"हां तुम तो हो ही, मुझ बूढ़े की छुटकी बुढ़िया। अभी फिर से एक राउंड हो जाय?" घुसा पैजामे के ऊपर से अपना लंड पकड़ कर बोला। उसकी बातों से लग रहा था कि हड़बड़ी में चुदाई के कारण उसका मन पूरी तरह नहीं भरा है।
"चुप हरामी बुढ़ऊ। बहुत लंड में खुजली मची है? अभी कहीं मां का बुलावा आ गया तो मेरी चूत से लंड निकाल कर उसकी चूत में डुबकी लगाने के लिए दौड़ना पड़ेगा। चुपचाप खिसको।" मैं उसे टालते हुए बोली और अपने कमरे की ओर बढ़ने को तत्पर हो गयी। मेरा कथन सत्य भी था। कहीं मां का मूड हुआ तो घुसा का बुलावा कभी भी आ सकता था। इतना तो निश्चित था कि रास्ते में ही कहीं सुनसान जगह में मां की भाव भंगिमाओं को ताड़ कर घनश्याम अपने मन की करने में सफल हो चुका था लेकिन जो कुछ भी हुआ होगा, असुविधाजनक स्थान में और असुविधाजनक स्थिति में फटाफट हुआ होगा इसलिए रही सही कसर पूरी करने के लिए घुसा की जरूरत महसूस कर सकती है, ऐसा मेरा सोचना था और लो, मेरा सोचना शत-प्रतिशत सच साबित हुआ।
"घुसा, जरा पानी लेकर आना तो।" मां की आवाज आई और मैं मुस्कुरा कर घुसा को देखने लगी। घुसा तो जैसे इसी तरह आवाज के लिए तरस रहा था।
"अभी लाया मैडमजी।" कहते हुए वह तीर की तरह किचन की ओर भागा और मैं अपने कमरे की ओर बढ़ने की बजाय पीछे वाले गलियारे की ओर बढ़ गयी। वहां कोने में पड़े हुए डिब्बे में मेरी परीक्षण सामग्रियां रखी हुई थीं।