28-06-2024, 08:58 AM
"यह मेरा हुक्म है। जब तब तुम्हारी जरूरत पड़ती रहती है। तुम्हारा यहीं रहना हम सबके लिए अच्छा है। पैसा उतना ही मिलेगा और रहना खाना हमारे साथ ही होगा।" वह आदेश था।
"लेकिन... " वह कुछ और कहता उससे पहले ही उसकी बात काट कर मम्मी बोली,
"लेकिन लेकिन कुछ नहीं। मुझे आगे कुछ नहीं सुनना है।" कहकर वह फिर अपने कमरे में घुस गई।
"जैसी आपकी मर्जी।" बोलने को तो ऐसे बोल रहा था जैसे मजबूरी में मम्मी की बात मान रहा हो, लेकिन मैं जानती थी कि घनश्याम अंदर ही अंदर कितना खुश था। साला पता नहीं क्या जादू कर दिया था मम्मी पर। जादू क्या, स्पष्ट था कि अपनी कारस्तानी से मम्मी को प्रभावित करने में सफल हो गया होगा। मैं ने मन ही मन सोचा कि चलो अच्छा है, अब घर में ही घुसा के साथ साथ घनश्याम जैसा एक और विश्वसनीय 'मनपसंद और अपने मतलब का कुशल और सक्षम' मर्द उपलब्ध रहेगा।
"अब क्या सोचने लगे अंकल? आपकी तो निकल पड़ी।चुपचाप बैठ जाईए। अब मम्मी का हुक्म है तो खाना खा कर ही जाना होगा। कल अपना सामान भी ले आईएगा, फिर तो दो दो डबल सिलिंडर इंजिन...." मैं प्रफुल्लित मन से उनकी आंखों में देखते हुए उसकी खिंचाई करती हुई बोली। मेरी बातें सुनकर वह सामने सोफे पर बैठ गया। वह मुझे चंचल नजरों से ऐसे घूर रहा था मानो उसका वश चले तो अभिए पटक कर मेरी सिलिंडर में पिस्टन घुसेड़ कर इंजन चालू कर देगा। घुसा अब भी सारी बातों से अनजान था। इस बात से अनजान था कि अब इस घर में उसका 'हम दोनों मां बेटी पर एकछत्र साम्राज्य' खत्म हो चुका था। उसकी आंखों में इस बात के लिए ईर्ष्या का भाव भी था कि घनश्याम को इतना महत्व क्यों मिल रहा है। उसे इस बात का क्या पता था कि हम मां बेटी को चोदने के लिए एक और साझेदार पैदा हो चुका है। अगर यह बात उसे पता चल जाता तो पता नहीं उसके दिल पर क्या बीतती। वैसे घुसा सिर्फ इतना जानता था कि घनश्याम ने मुझे उसके साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखा था और हमारे बीच के शारीरिक संबंध का गवाह था। उसे क्या पता था कि घनश्याम मेरे साथ क्या कुछ कर चुका था और निश्चित तौर पर, अगर मैं गलत नहीं हूं तो मेरी मां की देह का भी रसास्वादन कर चुका था।
"दो दो पिस्टन भी।" घनश्याम बोला। उसका इशारा घुसा की ओर था।
"दूसरा अभी अनभिज्ञ है इसलिए बेहतर है कि फिलहाल तो इस दूसरे पिस्टन को निष्क्रिय ही मान कर चलिए। आगे चलकर देखा जाएगा।" मैं बोल पड़ी। घनश्याम को क्या पता था कि अभी कुछ देर पहले घुसा का पिस्टन कितनी सक्रियता के साथ मेरे सिलिंडर में भौकाल मचा रहा था।
सारा घटनाक्रम इतनी तेजी से चल रहा था कि मुझे सोचने समझने का अवसर ही नहीं मिल रहा था। सोचने समझने की जरूरत भी मुझे महसूस नहीं हो रही थी। जो कुछ हो रहा था, मुझ नादान के लिए बड़ा आनंददायक था। बिना कुछ सोचे समझे बस इन वासनापूर्ण खेलों में शामिल होकर मजा लिए जा रही थी। यह सबकुछ बड़ी सहजता से होता जा रहा था और मैं वासना के इस तूफान में बही चली जा रही थी। मैं अपने कॉलेज के आवारा लड़कों, राजू, विशाल, अशोक और रफीक के नंगे देह का दर्शन कर चुकी थी लेकिन उनका शरीर और उनका मर्दाना जुगाड़ मेरी नज़र में घुसा, घनश्याम और गंजू के सामने फीका था। हां, दरबान रघु, जो उम्र में अधेड़ जरूर था लेकिन उनमें से अलग था, शारीरिक सौष्ठव से ही नहीं बल्कि अपने मर्दाना अस्त्र से भी, इसीलिए आज नहीं तो कल रघु मेरी जिंदगी के सेक्स जीवन में आने वाले मर्दों की सूची में अवश्य शामिल होगा, ऐसा मेरा मानना था लेकिन उन लड़कों का नाम तो इस सूची में कत्तई शामिल नहीं होगा, यह पक्का था। रघु का जिक्र आया तो यहां मैं बता दूं कि रघु की नग्न देह को देखने का मौका कॉलेज के पुराने प्रयोगशाला में देखने का मौका मिला था। उन आवारा लड़कों के चक्कर में पड़कर वहां मुझे फोकट में चोदने चला आया था और मेरे हाथों उसकी भी कुटाई हो गयी थी। उसका शारीरिक गठन अच्छा तो था ही, उसका हथियार भी अच्छा खासा था। उस वक्त मैंने उसके हथियार की झलक ही देखी थी। पूरी तरह तना हुआ नहीं था लेकिन फिर भी कम से कम आठ इंच लंबा तो अवश्य था और उसी के अनुपात में मोटा भी था। अबतक तो मुझे अनुभव हो गया था कि अर्द्ध सुशुप्तावस्था में यदि उसका लंड आठ इंच के करीब था तो पूर्ण तनावपूर्ण स्थिति में अंदाजतन दस इंच तो अवश्य ही होता होगा और उसी के अनुपात में मोटा भी। मेरे जेहन में गंजू का लंड घूम गया। आरंभ में तकलीफदेह था लेकिन एक बार अभ्यस्त हुई तो बड़ा मजा आया। उसी सोच के कारण मेरे अंदर रघु को कम से कम एक बार ट्राई करने का विचार आया। यह ख्याल आते ही मैं रोमांचित हो उठी लेकिन गंजू से चुदवा कर जो अनुभव मुझे मिला, उसके कारण मुझे लगा कि रघु को ट्राई करने के पहले अपनी क्षमता को भी जांच लेना अच्छा होगा। जांचने का एक दो तरीका मेरे पास था और वह थोड़ा घर के पीछे वाले बगीचे में अलग अलग साईज के खीरे और बैंगन। मैंने सोच लिया कि आज रात को ही बगीचे से अपने हिसाब से खीरा और बैंगन तोड़ लाऊंगी। यह विचार आते ही मेरे होंठों पर एक मुस्कान तैर गई।
"लेकिन... " वह कुछ और कहता उससे पहले ही उसकी बात काट कर मम्मी बोली,
"लेकिन लेकिन कुछ नहीं। मुझे आगे कुछ नहीं सुनना है।" कहकर वह फिर अपने कमरे में घुस गई।
"जैसी आपकी मर्जी।" बोलने को तो ऐसे बोल रहा था जैसे मजबूरी में मम्मी की बात मान रहा हो, लेकिन मैं जानती थी कि घनश्याम अंदर ही अंदर कितना खुश था। साला पता नहीं क्या जादू कर दिया था मम्मी पर। जादू क्या, स्पष्ट था कि अपनी कारस्तानी से मम्मी को प्रभावित करने में सफल हो गया होगा। मैं ने मन ही मन सोचा कि चलो अच्छा है, अब घर में ही घुसा के साथ साथ घनश्याम जैसा एक और विश्वसनीय 'मनपसंद और अपने मतलब का कुशल और सक्षम' मर्द उपलब्ध रहेगा।
"अब क्या सोचने लगे अंकल? आपकी तो निकल पड़ी।चुपचाप बैठ जाईए। अब मम्मी का हुक्म है तो खाना खा कर ही जाना होगा। कल अपना सामान भी ले आईएगा, फिर तो दो दो डबल सिलिंडर इंजिन...." मैं प्रफुल्लित मन से उनकी आंखों में देखते हुए उसकी खिंचाई करती हुई बोली। मेरी बातें सुनकर वह सामने सोफे पर बैठ गया। वह मुझे चंचल नजरों से ऐसे घूर रहा था मानो उसका वश चले तो अभिए पटक कर मेरी सिलिंडर में पिस्टन घुसेड़ कर इंजन चालू कर देगा। घुसा अब भी सारी बातों से अनजान था। इस बात से अनजान था कि अब इस घर में उसका 'हम दोनों मां बेटी पर एकछत्र साम्राज्य' खत्म हो चुका था। उसकी आंखों में इस बात के लिए ईर्ष्या का भाव भी था कि घनश्याम को इतना महत्व क्यों मिल रहा है। उसे इस बात का क्या पता था कि हम मां बेटी को चोदने के लिए एक और साझेदार पैदा हो चुका है। अगर यह बात उसे पता चल जाता तो पता नहीं उसके दिल पर क्या बीतती। वैसे घुसा सिर्फ इतना जानता था कि घनश्याम ने मुझे उसके साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखा था और हमारे बीच के शारीरिक संबंध का गवाह था। उसे क्या पता था कि घनश्याम मेरे साथ क्या कुछ कर चुका था और निश्चित तौर पर, अगर मैं गलत नहीं हूं तो मेरी मां की देह का भी रसास्वादन कर चुका था।
"दो दो पिस्टन भी।" घनश्याम बोला। उसका इशारा घुसा की ओर था।
"दूसरा अभी अनभिज्ञ है इसलिए बेहतर है कि फिलहाल तो इस दूसरे पिस्टन को निष्क्रिय ही मान कर चलिए। आगे चलकर देखा जाएगा।" मैं बोल पड़ी। घनश्याम को क्या पता था कि अभी कुछ देर पहले घुसा का पिस्टन कितनी सक्रियता के साथ मेरे सिलिंडर में भौकाल मचा रहा था।
सारा घटनाक्रम इतनी तेजी से चल रहा था कि मुझे सोचने समझने का अवसर ही नहीं मिल रहा था। सोचने समझने की जरूरत भी मुझे महसूस नहीं हो रही थी। जो कुछ हो रहा था, मुझ नादान के लिए बड़ा आनंददायक था। बिना कुछ सोचे समझे बस इन वासनापूर्ण खेलों में शामिल होकर मजा लिए जा रही थी। यह सबकुछ बड़ी सहजता से होता जा रहा था और मैं वासना के इस तूफान में बही चली जा रही थी। मैं अपने कॉलेज के आवारा लड़कों, राजू, विशाल, अशोक और रफीक के नंगे देह का दर्शन कर चुकी थी लेकिन उनका शरीर और उनका मर्दाना जुगाड़ मेरी नज़र में घुसा, घनश्याम और गंजू के सामने फीका था। हां, दरबान रघु, जो उम्र में अधेड़ जरूर था लेकिन उनमें से अलग था, शारीरिक सौष्ठव से ही नहीं बल्कि अपने मर्दाना अस्त्र से भी, इसीलिए आज नहीं तो कल रघु मेरी जिंदगी के सेक्स जीवन में आने वाले मर्दों की सूची में अवश्य शामिल होगा, ऐसा मेरा मानना था लेकिन उन लड़कों का नाम तो इस सूची में कत्तई शामिल नहीं होगा, यह पक्का था। रघु का जिक्र आया तो यहां मैं बता दूं कि रघु की नग्न देह को देखने का मौका कॉलेज के पुराने प्रयोगशाला में देखने का मौका मिला था। उन आवारा लड़कों के चक्कर में पड़कर वहां मुझे फोकट में चोदने चला आया था और मेरे हाथों उसकी भी कुटाई हो गयी थी। उसका शारीरिक गठन अच्छा तो था ही, उसका हथियार भी अच्छा खासा था। उस वक्त मैंने उसके हथियार की झलक ही देखी थी। पूरी तरह तना हुआ नहीं था लेकिन फिर भी कम से कम आठ इंच लंबा तो अवश्य था और उसी के अनुपात में मोटा भी था। अबतक तो मुझे अनुभव हो गया था कि अर्द्ध सुशुप्तावस्था में यदि उसका लंड आठ इंच के करीब था तो पूर्ण तनावपूर्ण स्थिति में अंदाजतन दस इंच तो अवश्य ही होता होगा और उसी के अनुपात में मोटा भी। मेरे जेहन में गंजू का लंड घूम गया। आरंभ में तकलीफदेह था लेकिन एक बार अभ्यस्त हुई तो बड़ा मजा आया। उसी सोच के कारण मेरे अंदर रघु को कम से कम एक बार ट्राई करने का विचार आया। यह ख्याल आते ही मैं रोमांचित हो उठी लेकिन गंजू से चुदवा कर जो अनुभव मुझे मिला, उसके कारण मुझे लगा कि रघु को ट्राई करने के पहले अपनी क्षमता को भी जांच लेना अच्छा होगा। जांचने का एक दो तरीका मेरे पास था और वह थोड़ा घर के पीछे वाले बगीचे में अलग अलग साईज के खीरे और बैंगन। मैंने सोच लिया कि आज रात को ही बगीचे से अपने हिसाब से खीरा और बैंगन तोड़ लाऊंगी। यह विचार आते ही मेरे होंठों पर एक मुस्कान तैर गई।