24-06-2024, 08:51 AM
"हां, थोड़ी देर हुई।" मेरा संक्षिप्त उत्तर था।
"काहे?" वह पीछे ही पड़ गया था।
"अरे ऐसे ही। इतना क्यों पूछ रहे हो?" मैं ज्यादा बात करने के मूड में नहीं थी।
"ऐसे ही पूछ लिया।" मेरे शुष्क स्वर से वह थोड़ा सकपका गया।
"मां अबतक आई नहीं?" मैं पूछ बैठी।
"नहीं। पता नहीं काहे इतनी देर हो रही है। तुम्हें छोड़कर घनश्याम तो तुरंत चला गया था।" घुसा बोला।
"उस समय साढ़े छः बज रहा था और इस वक्त साढ़े सात बज रहा है। आधे घंटे में ही तो आ जाना चाहिए था। इतनी देर तो कभी होती नहीं है? तुम मेरे लिए चाय लेकर आओ।" मैं भी चिंतित होती हुई बोली और ड्राइंग रूम की ओर बढ़ गई। मेरी बात सुनकर घुसा किचन की ओर चल पड़ा। पांच मिनट बाद ही घुसा चाय लेकर आ गया।
"पता नहीं क्या हो रहा है तुम लोगों को। बिना बताए आज तुम इतनी देर से लौटी और अब तुम्हारी मां भी बिना बताए इतनी देर कर रही है। पहले तो ऐसा नहीं होता था।" मुझे चाय थमाते हुए वह बोला।
"तुम तो ऐसे बोल रहे हो जैसे बहुत दिनों से हो यहां।"
"जब से हूं तब से यह पहली बार देख रहे हैं ना, इसलिए बोला।"
"पहले भी ऐसा होता था। यह कोई नयी बात नहीं है। वैसे तुमने भी आते ही बहुत कुछ बदल दिया है।" मैं अर्थपूर्ण दृष्टि से उसे देखते हुए बोली। अब मैं सामान्य ढंग से बात कर रही थी इसलिए घुसा भी अपने स्वाभाविक रंग में आ गया और मेरे सामने ही सामान्य ढंग से सोफे पर बैठ गया।
"क्या बदल दिया?"
"खोल कर बताऊं की खोल कर दिखाऊं कि क्या बदल दिया?" मैं घुसा की चुटकी लेते हुए बोली।
"खोल कर बताओ। खोल कर दिखाने से हमको भी खोल कर दिखाना पड़ेगा।" वह शैतानी से मुस्कराते हुए बोला।
"बताने की जरूरत नहीं है। तुम्हें पता है। वैसे खोल कर दिखाने का आईडिया भी गलत नहीं है लेकिन यह समय उपयुक्त नहीं है। खोल कर दिखाने के चक्कर में कहीं मम्मी पहुंच गयी तो हो जाएगा झोल।" मैं चाय पीते हुए बोली।
"झोल? हां उस दिन हुआ था झोल। मगर इस पोल का क्या ?" वह अपना पैजामे के ऊपर से ही लंड पकड़ कर बोला साला खड़ूस। "क्या करूं इसका बोल?" वह मूड में बोले जा रहा था। "कल से अभी तक न मिला मैडम का और न ही तुम्हारा होल। इससे बड़ा और क्या होगा झोल?"
"आज डाल लेना मम्मी की होल में तेरा पोल।" मैं भी अपनी रौ में बोली।
"कल तो मैडम की मेहरबानी हुई नहीं, आज का भी क्या भरोसा। इधर तुम्हारा भी अता पता नहीं। एक होल के लिए कल से तरस रहा है मेरा पोल।" वह खड़ा हो गया। सचमुच उसके तने हुए लंड से उसका पैजामा तंबू बना हुआ था।
"सूअर कहीं का, मुंह से निकलेगा तो बस चोदने की बोल। आ, चूस लेती हूं तेरा पोल। आ, अपना पैजामा खोल।" मैं धुनकी में बोली। मेरे बोलने की देर थी कि उसका पैजामा नीचे गिर गया और उसका फनफनाता लंड मुझे सलामी देने लगा। काला, मोटा, गधे समान लंड। भगवान जाने कहां से ऐसा मरदूद हमारे घर में आ टपका है। घर के काम के अलावा उसे सिर्फ चोदने की पड़ी रहती है। वह झट से मेरे सामने आ खड़ा हुआ। मैं भी सोचने लगी कि चलो इसे निपटा ही दूं। मैंने बिना और कुछ कहे सीधे उसके सख्त लंड को अपने हाथों में लेकर देखा। बाप रे बाप कितना गरम था। मुझे देर करना उचित नहीं लगा और गप्प से मुंह में उसके लंड के सुपाड़े को लेकर आईसक्रीम की तरह चूसना शुरू कर दिया।
"काहे?" वह पीछे ही पड़ गया था।
"अरे ऐसे ही। इतना क्यों पूछ रहे हो?" मैं ज्यादा बात करने के मूड में नहीं थी।
"ऐसे ही पूछ लिया।" मेरे शुष्क स्वर से वह थोड़ा सकपका गया।
"मां अबतक आई नहीं?" मैं पूछ बैठी।
"नहीं। पता नहीं काहे इतनी देर हो रही है। तुम्हें छोड़कर घनश्याम तो तुरंत चला गया था।" घुसा बोला।
"उस समय साढ़े छः बज रहा था और इस वक्त साढ़े सात बज रहा है। आधे घंटे में ही तो आ जाना चाहिए था। इतनी देर तो कभी होती नहीं है? तुम मेरे लिए चाय लेकर आओ।" मैं भी चिंतित होती हुई बोली और ड्राइंग रूम की ओर बढ़ गई। मेरी बात सुनकर घुसा किचन की ओर चल पड़ा। पांच मिनट बाद ही घुसा चाय लेकर आ गया।
"पता नहीं क्या हो रहा है तुम लोगों को। बिना बताए आज तुम इतनी देर से लौटी और अब तुम्हारी मां भी बिना बताए इतनी देर कर रही है। पहले तो ऐसा नहीं होता था।" मुझे चाय थमाते हुए वह बोला।
"तुम तो ऐसे बोल रहे हो जैसे बहुत दिनों से हो यहां।"
"जब से हूं तब से यह पहली बार देख रहे हैं ना, इसलिए बोला।"
"पहले भी ऐसा होता था। यह कोई नयी बात नहीं है। वैसे तुमने भी आते ही बहुत कुछ बदल दिया है।" मैं अर्थपूर्ण दृष्टि से उसे देखते हुए बोली। अब मैं सामान्य ढंग से बात कर रही थी इसलिए घुसा भी अपने स्वाभाविक रंग में आ गया और मेरे सामने ही सामान्य ढंग से सोफे पर बैठ गया।
"क्या बदल दिया?"
"खोल कर बताऊं की खोल कर दिखाऊं कि क्या बदल दिया?" मैं घुसा की चुटकी लेते हुए बोली।
"खोल कर बताओ। खोल कर दिखाने से हमको भी खोल कर दिखाना पड़ेगा।" वह शैतानी से मुस्कराते हुए बोला।
"बताने की जरूरत नहीं है। तुम्हें पता है। वैसे खोल कर दिखाने का आईडिया भी गलत नहीं है लेकिन यह समय उपयुक्त नहीं है। खोल कर दिखाने के चक्कर में कहीं मम्मी पहुंच गयी तो हो जाएगा झोल।" मैं चाय पीते हुए बोली।
"झोल? हां उस दिन हुआ था झोल। मगर इस पोल का क्या ?" वह अपना पैजामे के ऊपर से ही लंड पकड़ कर बोला साला खड़ूस। "क्या करूं इसका बोल?" वह मूड में बोले जा रहा था। "कल से अभी तक न मिला मैडम का और न ही तुम्हारा होल। इससे बड़ा और क्या होगा झोल?"
"आज डाल लेना मम्मी की होल में तेरा पोल।" मैं भी अपनी रौ में बोली।
"कल तो मैडम की मेहरबानी हुई नहीं, आज का भी क्या भरोसा। इधर तुम्हारा भी अता पता नहीं। एक होल के लिए कल से तरस रहा है मेरा पोल।" वह खड़ा हो गया। सचमुच उसके तने हुए लंड से उसका पैजामा तंबू बना हुआ था।
"सूअर कहीं का, मुंह से निकलेगा तो बस चोदने की बोल। आ, चूस लेती हूं तेरा पोल। आ, अपना पैजामा खोल।" मैं धुनकी में बोली। मेरे बोलने की देर थी कि उसका पैजामा नीचे गिर गया और उसका फनफनाता लंड मुझे सलामी देने लगा। काला, मोटा, गधे समान लंड। भगवान जाने कहां से ऐसा मरदूद हमारे घर में आ टपका है। घर के काम के अलावा उसे सिर्फ चोदने की पड़ी रहती है। वह झट से मेरे सामने आ खड़ा हुआ। मैं भी सोचने लगी कि चलो इसे निपटा ही दूं। मैंने बिना और कुछ कहे सीधे उसके सख्त लंड को अपने हाथों में लेकर देखा। बाप रे बाप कितना गरम था। मुझे देर करना उचित नहीं लगा और गप्प से मुंह में उसके लंड के सुपाड़े को लेकर आईसक्रीम की तरह चूसना शुरू कर दिया।