24-06-2024, 08:50 AM
"नहीं, कुछ नहीं हुआ मुझे। देखो, ठीक ठाक तो हूं।" मैं खुद की चाल को मुश्किल से सामान्य करके चलती हुई अपने कमरे में जा घुसी। अपने को सामान्य दिखाने में मुझे तकलीफ़ तो हो रही थी क्योंकि मेरी चूत और गांड़ में जलन और खुजली सी मची हुई थी लेकिन मैं घुसा के सामने जाहिर होने नहीं देना चाह रही थी।
अपने कमरे में घुसते ही मैं धम्म से बिस्तर पर गिर कर लंबी लंबी सांसें लेने लगी। कुछ मिनटों में जैसे ही मैं कुछ सामान्य हुई, बाथरूम में जाकर अपने कपड़ों को फेंका और अपनी चूत और गांड़ को रगड़ रगड़ कर नहाने लगी। ठंढे पानी के फौवारे के नीचे इस तरह रगड़ रगड़ कर नहाने से मुझे बड़ी राहत महसूस हो रही थी। रगड़ते वक्त मैंने महसूस किया कि मेरी चूत काफी खुल गयी थी। थोड़ी फूल कर बाहर भी उभर आई थी। इसी तरह मेरी गुदा का मुंह भी थोड़ा सूज गया था। मैंने गुदा द्वार पर उंगली रखा तो बड़ा अजीब सा लगा। मैं साबुन की चिकनाई के साथ उंगली का दबाव गुदा द्वार में डाला तो बड़ी आसानी से अंदर चला गया। मेरा दिल धक से रह गया। मैंने दो उंगलियां डाली तो दोनों उंगलियां आसानी से अंदर चली गयीं। हे भगवान, मेरी गांड़ भी फैल गई थी। तीन उंगलियों को एक साथ डालने की कोशिश की तो मेरे आश्चर्य का पारावार न रहा, थोड़ी सी कोशिश से तीन उंगलियां भी अंदर जाने लगीं। उफ भगवान, गंजू ने मेरी गांड़ को अपने मोटे लंड से काफी ढीला कर दिया था। घुसा ने जब मेरी गांड़ मारी थी तब भी मेरी गांड़ इतनी ढीली नहीं हुई थी। मैंने जब अपनी उंगलियां निकाली तो चकित रह गयी, गुदा द्वार अपने आप बंद हो गया और थोड़े से प्रयास से ही मेरी गांड़ का दरवाजा सामान्य रूप से बंद हो गया। मैंने राहत की सांस ली, चलो, मेरी गांड़ के दरवाजे का खुलना और बंद होना मेरे नियंत्रण में था।
इसी तरह मैंने अपनी चूत का भी परीक्षण करना चाहा। पहले एक उंगली चूत के अंदर डाली तो बड़े आराम से अन्दर चला गया। दो उंगलियां डाली तो भी आराम से अन्दर चला गया। तीन उंगलियों को डालने की कोशिश की तो थोड़े प्रयास से तीन उंगलियां भी अंदर चली गयीं। चार उंगलियों को भी थोड़ी और कोशिश से अंदर डालने में सफल हो गयी। हे भगवान, मेरी चूत भी ढीली हो गई थी। घबराहट से मेरा बुरा हाल हो गया। सहसा मुझे अपनी गांड़ का ख्याल आया। मैं सोचने लगी कि क्या मैं अपनी चूत को भी अपनी मर्जी के अनुसार संकुचित कर सकती हूं? मैंने कोशिश की और मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं रही जब मैंने देखा कि मैं न केवल चूत को अपनी मर्जी के अनुसार संकुचित कर सकती हूं, बल्कि अपनी उंगली को भी दबोच सकती हूं। ओह ओह, मजा आ गया। मैं रोमांचित हो उठी। तभी मेरे मन में एक सवाल आया कि क्या मैं चूत और गांड़ में गंजू के मोटे लंड से भी ज्यादा मोटा लंड ले सकती हूं? अपनी इस क्षमता का परीक्षण कैसे करूं? क्या मोटा बैंगन से, या मोटा खीरा से? अपनी क्षमता की जांच करके अवश्य देखूंगी। किचन में तो ये चीजें सुलभता से उपलब्ध हो जाएंगे। ठीक है, रात में इसकी भी जांच कर लूंगी। मुझे यह सब बड़ा सुखद खेल लग रहा था। अपने शरीर के कामुक अंगों के आनंददायक इस्तेमाल का पता चलता जा रहा था और मैं खुश हो रही थी। मुझ पगली को उस समय यह अहसास ही नहीं था कि मेरी नादानी का लाभ उठा कर ये कामुक बुजुर्ग मेरे शरीर के साथ जिस्मानी संबंध का सुख भोग रहे थे उससे मैं खुद भी कामुक होती जा रही थी और मेरी जिस्मानी भूख बढ़ती जा रही थी। उस कामुक खेल के परिणामस्वरूप मेरे अंदर जो एक अदम्य कामुकता जन्म ले रही थी। उस कुपरिणाम या सुपरिणाम जो भी हो, मैं बेखबर मजा लिए जा रही थी। कुपरिणाम या सुपरिणाम मैं इसलिए कह रही हूं क्योंकि बाद में भी मुझे पछताना नहीं पड़ा। उस वक्त मेरे साथ जो कुछ हो रहा था उससे भड़कती जा रही कामुकता को यदि मैं नियंत्रण में नहीं रख पाई तो यह मुझे कहां तक ले जा सकती है इसका अंदाजा भी नहीं था मुझे। मेरे लिए तो जैसे खुशी का एक नया रास्ता मिल गया था, जिसका मैं भरपूर लुत्फ उठा रही थी।
खैर उस वक्त तो मैं नहा धोकर फ्रेश हो गई और बिना पैंटी के ही कपड़े बदल कर प्रफुल्लित मन बड़े आत्मविश्वास के साथ तरोताजा होकर सिर्फ नाईटी पहन कर अपने कमरे से बाहर आई। पैंटी के बिना मैं खुद को बड़ा फ्री महसूस कर रही थी। स्वतंत्र, स्वच्छंद, बंधनमुक्त, बड़ा अच्छा लग रहा था। कमरे से करीब एक घंटे बाद बाहर निकली थी। आम तौर पर मैं कॉलेज से लौट कर अपने कमरे से बाहर निकलने में मात्र पंद्रह मिनट का समय लगाती थी।
"बहुत देर लगा दी?" सामने ही घुसा भूत की तरह प्रकट हुआ और पूछा।
अपने कमरे में घुसते ही मैं धम्म से बिस्तर पर गिर कर लंबी लंबी सांसें लेने लगी। कुछ मिनटों में जैसे ही मैं कुछ सामान्य हुई, बाथरूम में जाकर अपने कपड़ों को फेंका और अपनी चूत और गांड़ को रगड़ रगड़ कर नहाने लगी। ठंढे पानी के फौवारे के नीचे इस तरह रगड़ रगड़ कर नहाने से मुझे बड़ी राहत महसूस हो रही थी। रगड़ते वक्त मैंने महसूस किया कि मेरी चूत काफी खुल गयी थी। थोड़ी फूल कर बाहर भी उभर आई थी। इसी तरह मेरी गुदा का मुंह भी थोड़ा सूज गया था। मैंने गुदा द्वार पर उंगली रखा तो बड़ा अजीब सा लगा। मैं साबुन की चिकनाई के साथ उंगली का दबाव गुदा द्वार में डाला तो बड़ी आसानी से अंदर चला गया। मेरा दिल धक से रह गया। मैंने दो उंगलियां डाली तो दोनों उंगलियां आसानी से अंदर चली गयीं। हे भगवान, मेरी गांड़ भी फैल गई थी। तीन उंगलियों को एक साथ डालने की कोशिश की तो मेरे आश्चर्य का पारावार न रहा, थोड़ी सी कोशिश से तीन उंगलियां भी अंदर जाने लगीं। उफ भगवान, गंजू ने मेरी गांड़ को अपने मोटे लंड से काफी ढीला कर दिया था। घुसा ने जब मेरी गांड़ मारी थी तब भी मेरी गांड़ इतनी ढीली नहीं हुई थी। मैंने जब अपनी उंगलियां निकाली तो चकित रह गयी, गुदा द्वार अपने आप बंद हो गया और थोड़े से प्रयास से ही मेरी गांड़ का दरवाजा सामान्य रूप से बंद हो गया। मैंने राहत की सांस ली, चलो, मेरी गांड़ के दरवाजे का खुलना और बंद होना मेरे नियंत्रण में था।
इसी तरह मैंने अपनी चूत का भी परीक्षण करना चाहा। पहले एक उंगली चूत के अंदर डाली तो बड़े आराम से अन्दर चला गया। दो उंगलियां डाली तो भी आराम से अन्दर चला गया। तीन उंगलियों को डालने की कोशिश की तो थोड़े प्रयास से तीन उंगलियां भी अंदर चली गयीं। चार उंगलियों को भी थोड़ी और कोशिश से अंदर डालने में सफल हो गयी। हे भगवान, मेरी चूत भी ढीली हो गई थी। घबराहट से मेरा बुरा हाल हो गया। सहसा मुझे अपनी गांड़ का ख्याल आया। मैं सोचने लगी कि क्या मैं अपनी चूत को भी अपनी मर्जी के अनुसार संकुचित कर सकती हूं? मैंने कोशिश की और मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं रही जब मैंने देखा कि मैं न केवल चूत को अपनी मर्जी के अनुसार संकुचित कर सकती हूं, बल्कि अपनी उंगली को भी दबोच सकती हूं। ओह ओह, मजा आ गया। मैं रोमांचित हो उठी। तभी मेरे मन में एक सवाल आया कि क्या मैं चूत और गांड़ में गंजू के मोटे लंड से भी ज्यादा मोटा लंड ले सकती हूं? अपनी इस क्षमता का परीक्षण कैसे करूं? क्या मोटा बैंगन से, या मोटा खीरा से? अपनी क्षमता की जांच करके अवश्य देखूंगी। किचन में तो ये चीजें सुलभता से उपलब्ध हो जाएंगे। ठीक है, रात में इसकी भी जांच कर लूंगी। मुझे यह सब बड़ा सुखद खेल लग रहा था। अपने शरीर के कामुक अंगों के आनंददायक इस्तेमाल का पता चलता जा रहा था और मैं खुश हो रही थी। मुझ पगली को उस समय यह अहसास ही नहीं था कि मेरी नादानी का लाभ उठा कर ये कामुक बुजुर्ग मेरे शरीर के साथ जिस्मानी संबंध का सुख भोग रहे थे उससे मैं खुद भी कामुक होती जा रही थी और मेरी जिस्मानी भूख बढ़ती जा रही थी। उस कामुक खेल के परिणामस्वरूप मेरे अंदर जो एक अदम्य कामुकता जन्म ले रही थी। उस कुपरिणाम या सुपरिणाम जो भी हो, मैं बेखबर मजा लिए जा रही थी। कुपरिणाम या सुपरिणाम मैं इसलिए कह रही हूं क्योंकि बाद में भी मुझे पछताना नहीं पड़ा। उस वक्त मेरे साथ जो कुछ हो रहा था उससे भड़कती जा रही कामुकता को यदि मैं नियंत्रण में नहीं रख पाई तो यह मुझे कहां तक ले जा सकती है इसका अंदाजा भी नहीं था मुझे। मेरे लिए तो जैसे खुशी का एक नया रास्ता मिल गया था, जिसका मैं भरपूर लुत्फ उठा रही थी।
खैर उस वक्त तो मैं नहा धोकर फ्रेश हो गई और बिना पैंटी के ही कपड़े बदल कर प्रफुल्लित मन बड़े आत्मविश्वास के साथ तरोताजा होकर सिर्फ नाईटी पहन कर अपने कमरे से बाहर आई। पैंटी के बिना मैं खुद को बड़ा फ्री महसूस कर रही थी। स्वतंत्र, स्वच्छंद, बंधनमुक्त, बड़ा अच्छा लग रहा था। कमरे से करीब एक घंटे बाद बाहर निकली थी। आम तौर पर मैं कॉलेज से लौट कर अपने कमरे से बाहर निकलने में मात्र पंद्रह मिनट का समय लगाती थी।
"बहुत देर लगा दी?" सामने ही घुसा भूत की तरह प्रकट हुआ और पूछा।