22-06-2024, 09:52 AM
"बिल्कुल बिल्कुल। मैं यही चाहती हूं।" मैं झट से बोली।
"तुम सचमुच अब छुटकी नहीं रही, बड़ी बन गई हो। बड़ी समझदार।" घनश्याम मेरी प्रशंसा के पुल बांधते हुए बोला।
"बस बस ज्यादा प्रशंसा करने की जरूरत नहीं है। बड़ी बन नहीं गई, बड़ी बना दी गई आप जैसे बुड्ढों द्वारा नोच चोद कर। बड़े आए समझदार बोलने वाले। कहां कुछ दिन पहले तक नादान और नासमझ थी और कहां आज की तारीख में आप जैसे लोगों से नुच चुद कर समझदार का ठप्पा लग रहा है।" मैं डांट लगाती हुई बोली।
"अच्छा बाबा अच्छा, ज्यादा उलाहना देने की जरूरत नहीं है। तुमने उकसाया और मुझसे हो गया।"
"हो गया मतलब? गलत हुआ क्या? अब पछतावा हो रहा है क्या?" मैं बोली।
"नहीं भी और हां भी।" वह बोला और मुझे उसके हां नहीं का अर्थ समझ नहीं आया।
"क्या मतलब?"
"मतलब यह है कि तुम जैसी जबरदस्त लड़की को चोदने का पछतावा कैसा। तुम्हें चोद कर जो मजा मिला वह तो अद्भुत था। उसके लिए पछतावा नहीं है, बल्कि खुशी है लेकिन पछतावा सिर्फ इस बात का है कि तुम्हारा उद्घाटन करने का मौका हाथ से निकल गया। तुम्हारी जैसी लड़की के कीमती कुंवारापन का स्वाद चखने का सुनहरा मौका जो हाथ से निकल गया, उसी का पछतावा है। कितना मजेदार रहा होगा तुम्हें पहली बार चोदना। तुम्हारी सील तोड़ने की कल्पना मात्र से मैं रोमांचित हो रहा हूं, लेकिन वह मौका हाथ से निकल गया। साला घुसा बड़ा किस्मत का धनी निकला। साला मादरचोद।" वह खुद को कोसते हुए बोला।
"अच्छा अच्छा, अब अपने आप को कोसना बंद कीजिए।जो हो गया वह हो गया, उसे तो वापस नहीं ला सकती। अभी भी अगर मैं नहीं उकसाती तो तो क्या आप यह सब करते? नहीं ना?" मैं बोली।
"हां वह तो है। तुम उकसाई तभी यह सब हुआ नहीं तो अब भी मैं इस मजेदार चुदाई से वंचित रहता।" वह बोला। "लेकिन यह बात तो आप मानते हैं ना कि आप स्वभाव से ऐसे ही हैं। वरना मैं उकसाई तो आपको मुझे नसीहत देनी चाहिए थी, लेकिन आप मुझे नसीहत देने के बदले उल्टे मुझ में डुबकी ही मार बैठे। वह भी अकेले नहीं, अपने खड़ूस दोस्त के साथ। अच्छी नसीहत दी आपने और आपके दोस्त ने।" मैं उलाहना देते हुए बोली।
"देखो हमलोग बेकार बहस कर रहे हैं। मुद्दे की बात यह है कि तुम्हारी मां को अब चोदा कैसे जाय।" वह बोला।
"यह आप समझिए। वैसे आपको बता दूं कि पर पुरुष के मामले में आप मेरी मां के लिए पहले पुरुष नहीं हैं।"
"क्या?" उसका मुंह खुला का खुला रह गया।
"हां।"
"वह कौन मादरचोद है?"
"घुसा।" जैसे मैंने बम फोड़ दिया हो।
"घुसा?" अविश्वास से वह मुझे देखने लगा।
"हां।"
"साला मादरचोद, बेटी को भी पहले और मां को भी पहले? सबका उद्घाटन पहले पहले। अकेले अकेले मलाई खा रहा है साला कमीना।" वह खीझ कर बोला।
"अब खीझने की जरूरत नहीं है। वह चतुर चालाक चुदक्कड़ है, सो चोद लिया। अब तो पता चल गया ना? मलाई खाने से कौन रोक रहा है आपको।" मैं मुस्कुरा कर बोली।
"बात तो सच है। मैं ही साला चूतिया हूं। खैर देर आए दुरुस्त आए।" वह बोला।
"सच बोल रहे हैं आप। देर आए दुरुस्त आए।" मैं बोली और सामने देखने लगी। बातों ही बातों में हम घर पहुंच गए। जैसे ही कार रुकी, मैं कार से उतरने लगी। उतरते उतरते मैं लड़खड़ा गई और तभी मेरी अगाड़ी और पिछाड़ी की दशा का आभास मुझे हो गया। खास कर मेरी पिछाड़ी में जो खुजली भरी जलन का अहसास हो रहा था वह साफ तौर से बता रहा था कि कितने मोटे मोटे दो दो मूसल से बारी बारी से मेरी गांड़ की कुटाई हुई थी। मैं अपनी हालत छुपाती हुई घर में दाखिल हुई। उस वक्त संध्या का साढ़े छः बज रहा था। उधर मेरे पीछे फिर से कार स्टार्ट होने की आवाज आई और मैं समझ गई कि घनश्याम अब मेरी मां को लेने जा रहा था।
दरवाजे की घंटी बजाते ही सामने दरवाजा खोल कर घुसा का चेहरा दिखाई दिया।
"क्या हुआ छोटी मालकिन, आज बड़ी देर हो गई?" घुसा मुझे ऊपर से नीचे तक देखते हुए बोला।
"हां बस देर हो गई।" कहकर मैं अपने कमरे की ओर बढ़ गयी।
"तुम्हें चोट वोट लगी है क्या?" घुसा पीछे से बोला।
"नहीं तो। क्यों पूछा?" मुझे लगा कि मेरी चाल चुगली कर रही है, इसलिए संभल कर बोली।
"तुम्हारी चाल से लग रहा है जैसे तुम्हारे पैर में चोट लगी है, इसलिए पूछा।" घुसा बोला।
"तुम सचमुच अब छुटकी नहीं रही, बड़ी बन गई हो। बड़ी समझदार।" घनश्याम मेरी प्रशंसा के पुल बांधते हुए बोला।
"बस बस ज्यादा प्रशंसा करने की जरूरत नहीं है। बड़ी बन नहीं गई, बड़ी बना दी गई आप जैसे बुड्ढों द्वारा नोच चोद कर। बड़े आए समझदार बोलने वाले। कहां कुछ दिन पहले तक नादान और नासमझ थी और कहां आज की तारीख में आप जैसे लोगों से नुच चुद कर समझदार का ठप्पा लग रहा है।" मैं डांट लगाती हुई बोली।
"अच्छा बाबा अच्छा, ज्यादा उलाहना देने की जरूरत नहीं है। तुमने उकसाया और मुझसे हो गया।"
"हो गया मतलब? गलत हुआ क्या? अब पछतावा हो रहा है क्या?" मैं बोली।
"नहीं भी और हां भी।" वह बोला और मुझे उसके हां नहीं का अर्थ समझ नहीं आया।
"क्या मतलब?"
"मतलब यह है कि तुम जैसी जबरदस्त लड़की को चोदने का पछतावा कैसा। तुम्हें चोद कर जो मजा मिला वह तो अद्भुत था। उसके लिए पछतावा नहीं है, बल्कि खुशी है लेकिन पछतावा सिर्फ इस बात का है कि तुम्हारा उद्घाटन करने का मौका हाथ से निकल गया। तुम्हारी जैसी लड़की के कीमती कुंवारापन का स्वाद चखने का सुनहरा मौका जो हाथ से निकल गया, उसी का पछतावा है। कितना मजेदार रहा होगा तुम्हें पहली बार चोदना। तुम्हारी सील तोड़ने की कल्पना मात्र से मैं रोमांचित हो रहा हूं, लेकिन वह मौका हाथ से निकल गया। साला घुसा बड़ा किस्मत का धनी निकला। साला मादरचोद।" वह खुद को कोसते हुए बोला।
"अच्छा अच्छा, अब अपने आप को कोसना बंद कीजिए।जो हो गया वह हो गया, उसे तो वापस नहीं ला सकती। अभी भी अगर मैं नहीं उकसाती तो तो क्या आप यह सब करते? नहीं ना?" मैं बोली।
"हां वह तो है। तुम उकसाई तभी यह सब हुआ नहीं तो अब भी मैं इस मजेदार चुदाई से वंचित रहता।" वह बोला। "लेकिन यह बात तो आप मानते हैं ना कि आप स्वभाव से ऐसे ही हैं। वरना मैं उकसाई तो आपको मुझे नसीहत देनी चाहिए थी, लेकिन आप मुझे नसीहत देने के बदले उल्टे मुझ में डुबकी ही मार बैठे। वह भी अकेले नहीं, अपने खड़ूस दोस्त के साथ। अच्छी नसीहत दी आपने और आपके दोस्त ने।" मैं उलाहना देते हुए बोली।
"देखो हमलोग बेकार बहस कर रहे हैं। मुद्दे की बात यह है कि तुम्हारी मां को अब चोदा कैसे जाय।" वह बोला।
"यह आप समझिए। वैसे आपको बता दूं कि पर पुरुष के मामले में आप मेरी मां के लिए पहले पुरुष नहीं हैं।"
"क्या?" उसका मुंह खुला का खुला रह गया।
"हां।"
"वह कौन मादरचोद है?"
"घुसा।" जैसे मैंने बम फोड़ दिया हो।
"घुसा?" अविश्वास से वह मुझे देखने लगा।
"हां।"
"साला मादरचोद, बेटी को भी पहले और मां को भी पहले? सबका उद्घाटन पहले पहले। अकेले अकेले मलाई खा रहा है साला कमीना।" वह खीझ कर बोला।
"अब खीझने की जरूरत नहीं है। वह चतुर चालाक चुदक्कड़ है, सो चोद लिया। अब तो पता चल गया ना? मलाई खाने से कौन रोक रहा है आपको।" मैं मुस्कुरा कर बोली।
"बात तो सच है। मैं ही साला चूतिया हूं। खैर देर आए दुरुस्त आए।" वह बोला।
"सच बोल रहे हैं आप। देर आए दुरुस्त आए।" मैं बोली और सामने देखने लगी। बातों ही बातों में हम घर पहुंच गए। जैसे ही कार रुकी, मैं कार से उतरने लगी। उतरते उतरते मैं लड़खड़ा गई और तभी मेरी अगाड़ी और पिछाड़ी की दशा का आभास मुझे हो गया। खास कर मेरी पिछाड़ी में जो खुजली भरी जलन का अहसास हो रहा था वह साफ तौर से बता रहा था कि कितने मोटे मोटे दो दो मूसल से बारी बारी से मेरी गांड़ की कुटाई हुई थी। मैं अपनी हालत छुपाती हुई घर में दाखिल हुई। उस वक्त संध्या का साढ़े छः बज रहा था। उधर मेरे पीछे फिर से कार स्टार्ट होने की आवाज आई और मैं समझ गई कि घनश्याम अब मेरी मां को लेने जा रहा था।
दरवाजे की घंटी बजाते ही सामने दरवाजा खोल कर घुसा का चेहरा दिखाई दिया।
"क्या हुआ छोटी मालकिन, आज बड़ी देर हो गई?" घुसा मुझे ऊपर से नीचे तक देखते हुए बोला।
"हां बस देर हो गई।" कहकर मैं अपने कमरे की ओर बढ़ गयी।
"तुम्हें चोट वोट लगी है क्या?" घुसा पीछे से बोला।
"नहीं तो। क्यों पूछा?" मुझे लगा कि मेरी चाल चुगली कर रही है, इसलिए संभल कर बोली।
"तुम्हारी चाल से लग रहा है जैसे तुम्हारे पैर में चोट लगी है, इसलिए पूछा।" घुसा बोला।