19-06-2024, 07:46 AM
"तुम ऐसा सोच सकती हो?"
"बिल्कुल।" मैं सोच रही थी कि अगर मैं सही सोच रही हूं तो मेरी मां के लिए घनश्याम जैसा मर्द एक और अच्छा विकल्प होगा।
"शायद सही सोच रही हो।"
"शायद नहीं, सौ फीसदी सही सोच रही हूं, क्या मैं गलत हूं?" मैं अपनी सोच पर घनश्याम के हामी का पक्का मोहर लगवाना चाहती थी।
"नहीं, तुम गलत नहीं हो।" उसकी आवाज में सच्चाई थी, जिसे सुनकर मेरी बांछें खिल गईं।
"तो मेरी मां के बारे में क्या चल रहा है आपके मन में चाचाजी?" मैं घनश्याम को खोदने लगी।
"अब क्या बताऊं कि क्या चल रहा है। चलना तो अब शुरू हुआ है जब तुमने मेरी आंखों पर से पर्दा हटा दिया। पहले मेरे लिए मालकिन थी, अब हम जैसे मर्दों की जरूरतमंद मात्र एक औरत और हम जैसे मर्दों की जरूरत की पूर्ति हेतु उपलब्ध एक नारी। और नारी भी कैसी, एक जबरदस्त गदराए शरीर वाली आकर्षक नारी, जिसको चोदने की कल्पना मात्र से ही लंड उछल पड़े। अब समस्या यह जानने की है कि सचमुच में उनके मन में इस तरह की चाहत है भी कि नहीं और अगर चाहत है भी तो किसी परपुरुष के साथ संसर्ग के बारे में उनकी सोच क्या है? क्या उनकी चाहत इतनी गहरी है कि वह हम जैसे मर्दों के साथ शारीरिक संबंध बनाने से परहेज़ नहीं करेगी?" कहते हुए उसके माथे पर मुझे शिकन दिखाई देने लगी। मैं मन ही मन मुस्कुरा उठी। इसका मतलब यह था कि घनश्याम उनके मन में मेरी मां के लिए चाहत का उदय हो चुका था, उसे सिर्फ मेरी मां की सोच को लेकर संशय था।
"बस इतनी सी बात? यह तो कोई समस्या नहीं हुई। मैं स्पष्ट तौर पर उनकी मन:स्थिति जानती हूं, बेचारी भीतर ही भीतर कितनी घुट रही है लेकिन अपने मुंह से कैसे कहे। चलिए मान लेती हूं कि पहले आपकी सोच वैसी नहीं थी इसलिए उनकी शारीरिक भाषा आपको समझ नहीं आयी। अब तो आप की सोच में परिवर्तन आ गया है ना, तो जरा दिमाग पर जोर डालकर सोचिए कि उनमें ऐसा कोई लक्षण दिखाई नहीं दिया?" मैं अपनी मां के लिए उसके मन में जो चिंगारी सुलगा चुकी थी उसको हवा देती हुई बोली। वह पहले कुछ पल सोचा फिर धीरे-धीरे उसके होंठों पर मुस्कान नाचने लगी।
"मैं भी कितना बड़ा गधा हूं। उनके बात करने का लहजा, बात करते वक्त उनकी दृष्टि, उसके चेहरे का हाव भाव, सब कुछ तो चीख चीखकर बता रहा था, मैं ही बेवकूफ था जो समझ नहीं पाया।" वह बोला।
"जरा मैं भी तो सुनूं कि अब आपको मेरी मां के हाव-भाव में जो कुछ दिखाई दे रहा था वह क्या था?" मैं मुस्कुरा कर बोली।
"बोल दूं?" वह मुझे देख कर बोला।
"बोल दीजिए।" मैं जानती थी वह क्या बोलने वाला था।
"अपने शब्दों में बोलूं?"
"हां हां।"
"तुम्हें शायद अच्छा नहीं लगेगा।"
"अच्छे और बुरे का लिहाज आप कब से करने लगे?" मैं ताना देते हुए बोली।
"तो सुनो।"
"हां हां सुनाईए, मैं सुन रही हूं।" मैं उसके मुंह से सुनने की उत्सुकता दबा नहीं पा रही थी।
"उनके कहने का लहजा और चेहरे का हाव भाव चीख चीखकर कह रहा था कि, साले मां के लौड़े, अगर तुम्हारा लंड खड़ा होता है तो किस बात का इंतजार कर रहे हो, इधर चुदवाने के लिए मेरी देह में आग लगी हुई है और तू मां चुदाने के लिए लंड लटकाए इधर उधर घूम रहा है मादरचोद। आंख के अंधे चूतिए आकर मुझे चोद काहे नहीं लेते? मुझे भी खुश कर और तू भी मजे ले।" अब वह मुंह फाड़कर बोला और मैं उसकी बिंदास अभिव्यक्ति को सुनकर रोमांचित हो उठी।
"बाप रे, ऐसा?" मैं आंखें फाड़कर उसे देखते हुए बोली।
"हा हा हा हा हां बिल्कुल ऐसा। सुनकर बुरा लगा?" वह अपनी अभिव्यक्ति पर मेरी प्रतिक्रिया पर हंसने लगा।
"नहीं नहीं, बिल्कुल बुरा नहीं लगा, बल्कि आपके मुंह से बिंदास अभिव्यक्ति सुनकर बड़ी प्रसन्नता हुई। तो अब?" मैं उसके मन में जो चलने लगा था उसे सुनने को मरी जा रही थी।
"अब क्या। अब तो सबकुछ स्पष्ट हो गया है कि तुम्हारी मां को क्या चाहिए। मन में अब कोई संशय और दुविधा नहीं है। उन्हें चोदने में कोई दिक्कत वाली बात नहीं है। इतनी जबरदस्त भरी भरी रसीली देह वाली खूबसूरत औरत के मौन आमंत्रण को ठुकरा दूं, इतना मूर्ख नहीं हूं। इतने सालों से सोई हुई चूत की भूख को जो खूबसूरत लौंडिया फिर से जगा कर अपनी मां के रूप में इतना जबरदस्त माल परोस रही हो, उसे भला कैसे निराश कर दूं? सच कह रहा हूं कि नहीं? यही तो तुम भी चाहती हो ना?" वह अपने लंड को पैंट के ऊपर से मसलते हुए बोला।
"बिल्कुल।" मैं सोच रही थी कि अगर मैं सही सोच रही हूं तो मेरी मां के लिए घनश्याम जैसा मर्द एक और अच्छा विकल्प होगा।
"शायद सही सोच रही हो।"
"शायद नहीं, सौ फीसदी सही सोच रही हूं, क्या मैं गलत हूं?" मैं अपनी सोच पर घनश्याम के हामी का पक्का मोहर लगवाना चाहती थी।
"नहीं, तुम गलत नहीं हो।" उसकी आवाज में सच्चाई थी, जिसे सुनकर मेरी बांछें खिल गईं।
"तो मेरी मां के बारे में क्या चल रहा है आपके मन में चाचाजी?" मैं घनश्याम को खोदने लगी।
"अब क्या बताऊं कि क्या चल रहा है। चलना तो अब शुरू हुआ है जब तुमने मेरी आंखों पर से पर्दा हटा दिया। पहले मेरे लिए मालकिन थी, अब हम जैसे मर्दों की जरूरतमंद मात्र एक औरत और हम जैसे मर्दों की जरूरत की पूर्ति हेतु उपलब्ध एक नारी। और नारी भी कैसी, एक जबरदस्त गदराए शरीर वाली आकर्षक नारी, जिसको चोदने की कल्पना मात्र से ही लंड उछल पड़े। अब समस्या यह जानने की है कि सचमुच में उनके मन में इस तरह की चाहत है भी कि नहीं और अगर चाहत है भी तो किसी परपुरुष के साथ संसर्ग के बारे में उनकी सोच क्या है? क्या उनकी चाहत इतनी गहरी है कि वह हम जैसे मर्दों के साथ शारीरिक संबंध बनाने से परहेज़ नहीं करेगी?" कहते हुए उसके माथे पर मुझे शिकन दिखाई देने लगी। मैं मन ही मन मुस्कुरा उठी। इसका मतलब यह था कि घनश्याम उनके मन में मेरी मां के लिए चाहत का उदय हो चुका था, उसे सिर्फ मेरी मां की सोच को लेकर संशय था।
"बस इतनी सी बात? यह तो कोई समस्या नहीं हुई। मैं स्पष्ट तौर पर उनकी मन:स्थिति जानती हूं, बेचारी भीतर ही भीतर कितनी घुट रही है लेकिन अपने मुंह से कैसे कहे। चलिए मान लेती हूं कि पहले आपकी सोच वैसी नहीं थी इसलिए उनकी शारीरिक भाषा आपको समझ नहीं आयी। अब तो आप की सोच में परिवर्तन आ गया है ना, तो जरा दिमाग पर जोर डालकर सोचिए कि उनमें ऐसा कोई लक्षण दिखाई नहीं दिया?" मैं अपनी मां के लिए उसके मन में जो चिंगारी सुलगा चुकी थी उसको हवा देती हुई बोली। वह पहले कुछ पल सोचा फिर धीरे-धीरे उसके होंठों पर मुस्कान नाचने लगी।
"मैं भी कितना बड़ा गधा हूं। उनके बात करने का लहजा, बात करते वक्त उनकी दृष्टि, उसके चेहरे का हाव भाव, सब कुछ तो चीख चीखकर बता रहा था, मैं ही बेवकूफ था जो समझ नहीं पाया।" वह बोला।
"जरा मैं भी तो सुनूं कि अब आपको मेरी मां के हाव-भाव में जो कुछ दिखाई दे रहा था वह क्या था?" मैं मुस्कुरा कर बोली।
"बोल दूं?" वह मुझे देख कर बोला।
"बोल दीजिए।" मैं जानती थी वह क्या बोलने वाला था।
"अपने शब्दों में बोलूं?"
"हां हां।"
"तुम्हें शायद अच्छा नहीं लगेगा।"
"अच्छे और बुरे का लिहाज आप कब से करने लगे?" मैं ताना देते हुए बोली।
"तो सुनो।"
"हां हां सुनाईए, मैं सुन रही हूं।" मैं उसके मुंह से सुनने की उत्सुकता दबा नहीं पा रही थी।
"उनके कहने का लहजा और चेहरे का हाव भाव चीख चीखकर कह रहा था कि, साले मां के लौड़े, अगर तुम्हारा लंड खड़ा होता है तो किस बात का इंतजार कर रहे हो, इधर चुदवाने के लिए मेरी देह में आग लगी हुई है और तू मां चुदाने के लिए लंड लटकाए इधर उधर घूम रहा है मादरचोद। आंख के अंधे चूतिए आकर मुझे चोद काहे नहीं लेते? मुझे भी खुश कर और तू भी मजे ले।" अब वह मुंह फाड़कर बोला और मैं उसकी बिंदास अभिव्यक्ति को सुनकर रोमांचित हो उठी।
"बाप रे, ऐसा?" मैं आंखें फाड़कर उसे देखते हुए बोली।
"हा हा हा हा हां बिल्कुल ऐसा। सुनकर बुरा लगा?" वह अपनी अभिव्यक्ति पर मेरी प्रतिक्रिया पर हंसने लगा।
"नहीं नहीं, बिल्कुल बुरा नहीं लगा, बल्कि आपके मुंह से बिंदास अभिव्यक्ति सुनकर बड़ी प्रसन्नता हुई। तो अब?" मैं उसके मन में जो चलने लगा था उसे सुनने को मरी जा रही थी।
"अब क्या। अब तो सबकुछ स्पष्ट हो गया है कि तुम्हारी मां को क्या चाहिए। मन में अब कोई संशय और दुविधा नहीं है। उन्हें चोदने में कोई दिक्कत वाली बात नहीं है। इतनी जबरदस्त भरी भरी रसीली देह वाली खूबसूरत औरत के मौन आमंत्रण को ठुकरा दूं, इतना मूर्ख नहीं हूं। इतने सालों से सोई हुई चूत की भूख को जो खूबसूरत लौंडिया फिर से जगा कर अपनी मां के रूप में इतना जबरदस्त माल परोस रही हो, उसे भला कैसे निराश कर दूं? सच कह रहा हूं कि नहीं? यही तो तुम भी चाहती हो ना?" वह अपने लंड को पैंट के ऊपर से मसलते हुए बोला।