13-06-2024, 11:57 AM
"शरीफ बनना पड़ा था। नहीं तो यहां नौकरी कैसे करता।"
"अब आपकी शराफत कहां चली गई?"
"मेरी शराफत तुमने छीन ली।"
"लीजिए, मेरे साथ इतना कुछ करने के बाद अब मुझे ही दोष देने लगे?"
"आग तुमने सुलगाई थी, मैंने तो सिर्फ आग बुझाई।"
"आपसे बहस में जीतना मुश्किल है।" मैं झल्ला कर बोली।
"छोड़ो यह बहस। लेकिन मैं सच कह रहा हूं कि अब तक मेरी जिंदगी में जितनी औरतें आई हैं, उन सबमें तुम बिल्कुल अलग हो।"
"मुझे क्या पता कि अलग हूं या नहीं। हो सकता है आप सबसे ऐसी ही बात करते हों?"
"सच कह रहा हूं। मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं।"
"चलिए मैं मान लेती हूं। इतनी औरतों को चोदने के अनुभव को मैं कैसे चुनौती दे सकती हूं। वैसे भी मुझे क्या पता कि मैं बाकी औरतों से किस मामले में अलग हूं। मैं तो इस मामले में कुछ दिन पहले तक बिल्कुल अनाड़ी थी। मुझे तो घुसा जैसे हरामी से ही पता चला कि औरत मर्द के बीच में यह सब होता है। रही सही कसर मेरी सहेलियों की संगति से पूरी हो रही थी कि आज आपसे और गंजू दादा से कुछ अनुभव मिला।"
"बार बार सहेलियां सहेलियां मत करो, सुन सुनकर मेरा लंड अंडरवियर फाड़ कर बाहर निकलने को मचल रहा है।" वह अपना लंड सहलाते हुए बोला।
"चुप हरामी। अंडरवियर ही क्या, और क्या क्या फाड़ सकता है यह तो जान ही गई हूं। मुझे फाड़ने में कोई कसर छोड़ी थी क्या इस जालिम ने?" मैं उसके लंड पर हाथ फेरती हुई बोली।
"फाड़ा तो नहीं ना, हां सक्षम जरूर बना दिया।" वह बोला।
"हां हां, वही, सक्षम बना दिया।" मैं उसके लंड को थपथपाते हुए बोली।
"हां हां, सक्षम ही नहीं, डबल सिलिंडर इंजिन भी...." वह इतना बोलकर चुप हो गया।
"क्या बोले? डबल सिलिंडर इंजिन? यह क्या होता है?" मैं उसकी बात समझी नहीं।
"कुछ नहीं, बस ऐसे ही मेरे मुंह से निकल गया..." वह मुस्कुरा कर बात टालते हुए बोला।
"बात बोलनी है तो खुलकर पूरी बोलिए। इस तरह आधी बात बोलकर आधी अंदर रखना मुझे पसंद नहीं है।" मैं जिद करते हुए बोली।
"अरे छोड़ो, तुम नहीं समझोगी।" वह अब भी टालना चाहता था।
"समझाईएगा तब तो समझूंगी ना।"
"तुम मानोगी नहीं तो सुनो। ये जो गाड़ी का इंजन होता है ना, उसमें अलग अलग पावर के हिसाब से अलग-अलग साईज के सिलिंडर होते हैं और उसी के हिसाब से सिलिंडरों की संख्या भी होती है। हर सिलिंडर में एक एक पिस्टन आगे पीछे चलता रहता है तभी इंजन चलता है। जितने सिलिंडर उतने पिस्टन।" वह बोला और मैं समझ गई कि उसके कहने का तात्पर्य क्या था। वह हरामी मेरी तुलना डबल सिलिंडर इंजिन से कर रहा था।
"आप एक नंबर के हरामी हैं।" मैं गुस्से से बोली।
"पहले हरामी था। फिर शरीफ बन गया था। अब तुमने मुझे फिर से हरामी बनने को मजबूर कर दिया।" वह ढिठाई से हंसते हुए बोला।
"हां वह तो दिखाई दे रहा है।"
"हां, तुम कुछ देर पहले क्या बोल रही थी?" वह बात के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए बोला।
"क्या बोल रही थी मैं?"
"यही कि लड़कियां ऐसी बातें मुंह खोल कर नहीं व्यक्त कर पाती हैं।"
"हां सही तो बोली। लड़कियां ही क्यों, बड़ी औरतें भी किसी और के सामने अपने मन की ऐसी इच्छा मर्दों की तरह खुल कर कैसे व्यक्त कर पाएंगी? बेशर्म बोलेंगे, नहीं क्या?" मैं अपने रौ में बोलती चली जा रही थी।
"अब आपकी शराफत कहां चली गई?"
"मेरी शराफत तुमने छीन ली।"
"लीजिए, मेरे साथ इतना कुछ करने के बाद अब मुझे ही दोष देने लगे?"
"आग तुमने सुलगाई थी, मैंने तो सिर्फ आग बुझाई।"
"आपसे बहस में जीतना मुश्किल है।" मैं झल्ला कर बोली।
"छोड़ो यह बहस। लेकिन मैं सच कह रहा हूं कि अब तक मेरी जिंदगी में जितनी औरतें आई हैं, उन सबमें तुम बिल्कुल अलग हो।"
"मुझे क्या पता कि अलग हूं या नहीं। हो सकता है आप सबसे ऐसी ही बात करते हों?"
"सच कह रहा हूं। मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं।"
"चलिए मैं मान लेती हूं। इतनी औरतों को चोदने के अनुभव को मैं कैसे चुनौती दे सकती हूं। वैसे भी मुझे क्या पता कि मैं बाकी औरतों से किस मामले में अलग हूं। मैं तो इस मामले में कुछ दिन पहले तक बिल्कुल अनाड़ी थी। मुझे तो घुसा जैसे हरामी से ही पता चला कि औरत मर्द के बीच में यह सब होता है। रही सही कसर मेरी सहेलियों की संगति से पूरी हो रही थी कि आज आपसे और गंजू दादा से कुछ अनुभव मिला।"
"बार बार सहेलियां सहेलियां मत करो, सुन सुनकर मेरा लंड अंडरवियर फाड़ कर बाहर निकलने को मचल रहा है।" वह अपना लंड सहलाते हुए बोला।
"चुप हरामी। अंडरवियर ही क्या, और क्या क्या फाड़ सकता है यह तो जान ही गई हूं। मुझे फाड़ने में कोई कसर छोड़ी थी क्या इस जालिम ने?" मैं उसके लंड पर हाथ फेरती हुई बोली।
"फाड़ा तो नहीं ना, हां सक्षम जरूर बना दिया।" वह बोला।
"हां हां, वही, सक्षम बना दिया।" मैं उसके लंड को थपथपाते हुए बोली।
"हां हां, सक्षम ही नहीं, डबल सिलिंडर इंजिन भी...." वह इतना बोलकर चुप हो गया।
"क्या बोले? डबल सिलिंडर इंजिन? यह क्या होता है?" मैं उसकी बात समझी नहीं।
"कुछ नहीं, बस ऐसे ही मेरे मुंह से निकल गया..." वह मुस्कुरा कर बात टालते हुए बोला।
"बात बोलनी है तो खुलकर पूरी बोलिए। इस तरह आधी बात बोलकर आधी अंदर रखना मुझे पसंद नहीं है।" मैं जिद करते हुए बोली।
"अरे छोड़ो, तुम नहीं समझोगी।" वह अब भी टालना चाहता था।
"समझाईएगा तब तो समझूंगी ना।"
"तुम मानोगी नहीं तो सुनो। ये जो गाड़ी का इंजन होता है ना, उसमें अलग अलग पावर के हिसाब से अलग-अलग साईज के सिलिंडर होते हैं और उसी के हिसाब से सिलिंडरों की संख्या भी होती है। हर सिलिंडर में एक एक पिस्टन आगे पीछे चलता रहता है तभी इंजन चलता है। जितने सिलिंडर उतने पिस्टन।" वह बोला और मैं समझ गई कि उसके कहने का तात्पर्य क्या था। वह हरामी मेरी तुलना डबल सिलिंडर इंजिन से कर रहा था।
"आप एक नंबर के हरामी हैं।" मैं गुस्से से बोली।
"पहले हरामी था। फिर शरीफ बन गया था। अब तुमने मुझे फिर से हरामी बनने को मजबूर कर दिया।" वह ढिठाई से हंसते हुए बोला।
"हां वह तो दिखाई दे रहा है।"
"हां, तुम कुछ देर पहले क्या बोल रही थी?" वह बात के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए बोला।
"क्या बोल रही थी मैं?"
"यही कि लड़कियां ऐसी बातें मुंह खोल कर नहीं व्यक्त कर पाती हैं।"
"हां सही तो बोली। लड़कियां ही क्यों, बड़ी औरतें भी किसी और के सामने अपने मन की ऐसी इच्छा मर्दों की तरह खुल कर कैसे व्यक्त कर पाएंगी? बेशर्म बोलेंगे, नहीं क्या?" मैं अपने रौ में बोलती चली जा रही थी।