30-12-2018, 08:54 AM
अपडेट - 4
चंचल: (हंसते हुए) चल रखती हूँ फ़ोन जल्दी आना और हाँ ध्यान से आना। अपना ख्याल रखना।
सरिता : जी दीदी बाय..
दोनों अपने अपने हाथ मे फ़ोन लिए कुछ सोचती है और फिर मुस्कुराकर अपने अपने काम मे लग जाती है। वहीं दूसरी और चाँदनी अपनी तीर्थ यात्रा के लिए सामान जमाने लगती है। चाँदनी की तीर्थ यात्रा की तैयारी जोर शोर में थी।
पूरा परिवार खुशियों से झूम रहा था लेकिन ये खुशियां उस हवा की तरह थी। जो तूफान का संकेत देती है। पहले हल्की हल्की चलती है फिर अचानक से इतनी तेज आती है कि सब कुछ बर्बाद कर देती है। इस बात का एहसास अभी तक पूरे घर में किसी को भी नहीं था। चलता भी कैसे सब कुछ बहोत आराम से खुशी खुशी हो रहा था।
अब आगे.....
चाँदनी ये भली भांति जानती थी कि उसके बड़े बेटे यानी कि सुरेश को ये तन्त्र-मन्त्र और बाबाओं पर शुरू से ही भरोसा और विश्वास कम था। तो चाँदनी ये सीधे सीधे तो सुरेश को बोल नहीं सकती थी कि वो तीर्थ यात्रा पर एक बाबा के कहने पर जा रही है जिन्होंने आस्वासन दिया है कि उनके तीर्थ यात्रा पूरी होने पर ही चाँदनी के घर मे पोता होगा जो उनके वंश को आगे बढ़ाएगा।
इसलिए चाँदनी के लिए समस्या ये नही थी कि सुरेश से बोलकर तीर्थ यात्रा पर जाए। वैसे सुरेश चाँदनी का बड़ा ही आज्ञाकारी बेटा है। यदि चाँदनी उसे तीर्थ यात्रा के लिए बोले तो वो खुद उन्हें तीर्थ यात्रा करवा लाये। लेकिन यदि वो ऐसा करेगा तो पोता कैसे होगा? इसलिए चाँदनी चाहती थी कि बाबा और उनकी बात सुरेश से छिपी रहे और वो अकेले तीर्थ यात्रा पर भी निकल सके। चाँदनी इसी बात पर परेशान थी। यहाँ तक कि चाँदनी ये बात न तो सुरेश को बोल सकती थी और ना ही चंचल को। तभी चाँदनी के मन मे ख्याल आया कि जब भी बात करनी हो इस विषय पर तो अपनी छोटी बहू से पूछना। चाँदनी के लिए अब केवल और केवल सरिता ही एक मात्र ज़रिया रह चुकी थी।
चाँदनी चंचल के कमरे को नॉक करके चंचल से बोलती है कि वो उनकी बात सरिता से करवाये।
चंचल तुरंत अपनी सास के कहे अनुसार सरिता को फ़ोन लगा देती है। चाँदनी फ़ोन लेकर अपने कमरे में चली जाती है और दरवाजा अंदर से बंद करके अपनी छोटी बहू सरिता से बात करने लगती है।
चाँदनी:
हेलो बहू! कैसी हो? सब कुशल से तो है ना।
सरिता:
माँ जी प्रणाम !जी माँ जी सब कुशल से तो है ?आप कैसी है?
चाँदनी: क्या बताऊँ बहू थोड़ी सी परेशान हूँ!
सरिता: परेशान? इतनी बड़ी खुशी का मौका है सासु माँ और आप परेशान हो? लेकिन क्यूँ?
चाँदनी: चुप कर ! तू भी न कुछ भी सोच लेती है। सुरेश की तरक्की के लिए तो में बहुत खुश हूँ। लेकिन मैं इस लिए परेशान हूँ क्योंकि मैं तीर्थ यात्रा पर जाना चाहती हूँ। लेकिन मैं सुरेश या राज में से किसी को लेकर नहीं जाना चाहती और चंचल सुरेश का यहां बनारस में काम संभालेगी तो कम से कम तुम ही तो रहोगी घर और रहने के लिए।
सरिता: इसमे परेशानई क्या है? आप खुद भी तो जाकर आ सकती है ना माँ जी!
चाँदनी: अरे पगली जाने को तो मैं धरती के सात चक्कर काट ने जा सकती हूँ। लेकिन ये सुरेश है ना ये मुझे अकेले कहीं जाने ही नहीं देता। पता नही मुझे तीर्थ यात्रा पर भी जाने देगा कि नहीं। इसलिए सोचा कि तेरी मदद ले लूँ। लेकिन तू तो कुछ समझ ही नहीं रही!
सरिता: वह तो ये बात है मतलब आपकी परेशानी कुछ भी नही है बस इतनी सी है कि आपके साथ जाने वाला कोई चाहिए ताकि जेठ जी को आपको अकेले भेजने में कोई तकलीफ ना हो। यही ना?
चाँदनी: हाँ! यही है। लेकिन ये छोटी सी नहीं बहुत बड़ी समस्या है।
सरिता: मा जी आप मेरी मम्मी से बात क्यों नही करती? दरअसल क्या है ना कि मेरी मम्मी और पापा दोनो मेरी शादी हो जाने के बाद तीर्थ यात्रा पर जाना चाहते थे। लेकिन उनको वो मौका कभी लगा ही नहीं। तो आप अगर उनको अपने साथ ले जाएगी तो सारी समस्या का हल अपने आप ही हो जाएगा।
चाँदनी: सच्च बहू! क्या ये हो सकता है?
सरिता: रुकिये माँ जी ! मैं खुद उन्हें आपके साथ जाने को बोल देती हूँ।
चाँदनी: थैंक यू बेटा ! अब तेरी मदद से मेरी तीर्थ यात्रा ज़रूर सफ़ल होगी।
सरिता चाँदनी की बातें सुनकर शर्मा जाती है।
सरिता: क्या माँ जी आप भी ना। रुकिये मैं मम्मी पापा स बात करती हूँ
चाँदनी और सरिता का फ़ोन काट जाता है। करीब पंद्रह मिनट बाद सरिता का कॉल आता है जिसमे सरिता चाँदनी को बोलती है कि
सरिता: हेलो माँ जी! मुबारक़ हो मम्मी और पापा कल ही अपना सामान लेकर अपने बनारस वाले घर आ रहे है। और कल मैं भी बनारस पहुंच जाउंगी। आज रात को ट्रेन में बैठ जाउंगी। हो सका तो मैं भी जेठ जी को समझाने का प्रयास कर लूँगी।
चाँदनी: थैंक यू बेटा अब तू जल्दी से घर आज बस। तूने तो मेरी सारी परेशानियां ही दूर कर दी। भगवान ने मुझे दो बहुएं दी है दोनों की दोनों ऐसे है कि मुझे लगता है जैसे पिछले जन्म के चारों तीर्थों का पुण्य मुझे इस जन्म में बहुओं के रूप में मिला है।
सरिता शर्मा जाती है। कुछ देर इधर उधर की बातें होती है और फिर फ़ोन काट देते है। उधर राज आज घर जल्दी आ गया था। अभी दोपहर के 3 ही बजे होंगे मुश्किल से और राज घर पर । ये तो सरिता के लिए भी सरप्राइज था।
चंचल: (हंसते हुए) चल रखती हूँ फ़ोन जल्दी आना और हाँ ध्यान से आना। अपना ख्याल रखना।
सरिता : जी दीदी बाय..
दोनों अपने अपने हाथ मे फ़ोन लिए कुछ सोचती है और फिर मुस्कुराकर अपने अपने काम मे लग जाती है। वहीं दूसरी और चाँदनी अपनी तीर्थ यात्रा के लिए सामान जमाने लगती है। चाँदनी की तीर्थ यात्रा की तैयारी जोर शोर में थी।
पूरा परिवार खुशियों से झूम रहा था लेकिन ये खुशियां उस हवा की तरह थी। जो तूफान का संकेत देती है। पहले हल्की हल्की चलती है फिर अचानक से इतनी तेज आती है कि सब कुछ बर्बाद कर देती है। इस बात का एहसास अभी तक पूरे घर में किसी को भी नहीं था। चलता भी कैसे सब कुछ बहोत आराम से खुशी खुशी हो रहा था।
अब आगे.....
चाँदनी ये भली भांति जानती थी कि उसके बड़े बेटे यानी कि सुरेश को ये तन्त्र-मन्त्र और बाबाओं पर शुरू से ही भरोसा और विश्वास कम था। तो चाँदनी ये सीधे सीधे तो सुरेश को बोल नहीं सकती थी कि वो तीर्थ यात्रा पर एक बाबा के कहने पर जा रही है जिन्होंने आस्वासन दिया है कि उनके तीर्थ यात्रा पूरी होने पर ही चाँदनी के घर मे पोता होगा जो उनके वंश को आगे बढ़ाएगा।
इसलिए चाँदनी के लिए समस्या ये नही थी कि सुरेश से बोलकर तीर्थ यात्रा पर जाए। वैसे सुरेश चाँदनी का बड़ा ही आज्ञाकारी बेटा है। यदि चाँदनी उसे तीर्थ यात्रा के लिए बोले तो वो खुद उन्हें तीर्थ यात्रा करवा लाये। लेकिन यदि वो ऐसा करेगा तो पोता कैसे होगा? इसलिए चाँदनी चाहती थी कि बाबा और उनकी बात सुरेश से छिपी रहे और वो अकेले तीर्थ यात्रा पर भी निकल सके। चाँदनी इसी बात पर परेशान थी। यहाँ तक कि चाँदनी ये बात न तो सुरेश को बोल सकती थी और ना ही चंचल को। तभी चाँदनी के मन मे ख्याल आया कि जब भी बात करनी हो इस विषय पर तो अपनी छोटी बहू से पूछना। चाँदनी के लिए अब केवल और केवल सरिता ही एक मात्र ज़रिया रह चुकी थी।
चाँदनी चंचल के कमरे को नॉक करके चंचल से बोलती है कि वो उनकी बात सरिता से करवाये।
चंचल तुरंत अपनी सास के कहे अनुसार सरिता को फ़ोन लगा देती है। चाँदनी फ़ोन लेकर अपने कमरे में चली जाती है और दरवाजा अंदर से बंद करके अपनी छोटी बहू सरिता से बात करने लगती है।
चाँदनी:
हेलो बहू! कैसी हो? सब कुशल से तो है ना।
सरिता:
माँ जी प्रणाम !जी माँ जी सब कुशल से तो है ?आप कैसी है?
चाँदनी: क्या बताऊँ बहू थोड़ी सी परेशान हूँ!
सरिता: परेशान? इतनी बड़ी खुशी का मौका है सासु माँ और आप परेशान हो? लेकिन क्यूँ?
चाँदनी: चुप कर ! तू भी न कुछ भी सोच लेती है। सुरेश की तरक्की के लिए तो में बहुत खुश हूँ। लेकिन मैं इस लिए परेशान हूँ क्योंकि मैं तीर्थ यात्रा पर जाना चाहती हूँ। लेकिन मैं सुरेश या राज में से किसी को लेकर नहीं जाना चाहती और चंचल सुरेश का यहां बनारस में काम संभालेगी तो कम से कम तुम ही तो रहोगी घर और रहने के लिए।
सरिता: इसमे परेशानई क्या है? आप खुद भी तो जाकर आ सकती है ना माँ जी!
चाँदनी: अरे पगली जाने को तो मैं धरती के सात चक्कर काट ने जा सकती हूँ। लेकिन ये सुरेश है ना ये मुझे अकेले कहीं जाने ही नहीं देता। पता नही मुझे तीर्थ यात्रा पर भी जाने देगा कि नहीं। इसलिए सोचा कि तेरी मदद ले लूँ। लेकिन तू तो कुछ समझ ही नहीं रही!
सरिता: वह तो ये बात है मतलब आपकी परेशानी कुछ भी नही है बस इतनी सी है कि आपके साथ जाने वाला कोई चाहिए ताकि जेठ जी को आपको अकेले भेजने में कोई तकलीफ ना हो। यही ना?
चाँदनी: हाँ! यही है। लेकिन ये छोटी सी नहीं बहुत बड़ी समस्या है।
सरिता: मा जी आप मेरी मम्मी से बात क्यों नही करती? दरअसल क्या है ना कि मेरी मम्मी और पापा दोनो मेरी शादी हो जाने के बाद तीर्थ यात्रा पर जाना चाहते थे। लेकिन उनको वो मौका कभी लगा ही नहीं। तो आप अगर उनको अपने साथ ले जाएगी तो सारी समस्या का हल अपने आप ही हो जाएगा।
चाँदनी: सच्च बहू! क्या ये हो सकता है?
सरिता: रुकिये माँ जी ! मैं खुद उन्हें आपके साथ जाने को बोल देती हूँ।
चाँदनी: थैंक यू बेटा ! अब तेरी मदद से मेरी तीर्थ यात्रा ज़रूर सफ़ल होगी।
सरिता चाँदनी की बातें सुनकर शर्मा जाती है।
सरिता: क्या माँ जी आप भी ना। रुकिये मैं मम्मी पापा स बात करती हूँ
चाँदनी और सरिता का फ़ोन काट जाता है। करीब पंद्रह मिनट बाद सरिता का कॉल आता है जिसमे सरिता चाँदनी को बोलती है कि
सरिता: हेलो माँ जी! मुबारक़ हो मम्मी और पापा कल ही अपना सामान लेकर अपने बनारस वाले घर आ रहे है। और कल मैं भी बनारस पहुंच जाउंगी। आज रात को ट्रेन में बैठ जाउंगी। हो सका तो मैं भी जेठ जी को समझाने का प्रयास कर लूँगी।
चाँदनी: थैंक यू बेटा अब तू जल्दी से घर आज बस। तूने तो मेरी सारी परेशानियां ही दूर कर दी। भगवान ने मुझे दो बहुएं दी है दोनों की दोनों ऐसे है कि मुझे लगता है जैसे पिछले जन्म के चारों तीर्थों का पुण्य मुझे इस जन्म में बहुओं के रूप में मिला है।
सरिता शर्मा जाती है। कुछ देर इधर उधर की बातें होती है और फिर फ़ोन काट देते है। उधर राज आज घर जल्दी आ गया था। अभी दोपहर के 3 ही बजे होंगे मुश्किल से और राज घर पर । ये तो सरिता के लिए भी सरप्राइज था।
बर्बादी को निमंत्रण
https://xossipy.com/thread-1515.html
[b]द मैजिक मिरर (THE MAGIC MIRROR) {A Tale of Tilism}[/b]
https://xossipy.com/thread-2651.html
Hawas ka ghulam
https://xossipy.com/thread-33284-post-27...pid2738750
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[b]द मैजिक मिरर (THE MAGIC MIRROR) {A Tale of Tilism}[/b]
https://xossipy.com/thread-2651.html
Hawas ka ghulam
https://xossipy.com/thread-33284-post-27...pid2738750