06-06-2024, 11:45 AM
"चलिए उठिए। घर नहीं जाना है क्या?" मैं घनश्याम को नंग धड़ंग अभी भी आराम फरमाते देख कर डांटती हुई बोली।
"अच्छा भई चलो। तुम डांटती हुई बड़ी प्यारी लग रही हो।" घनश्याम उठ कर आज्ञाकारी बन कर अपने कपड़े पहनने लगा। मैं भी झटपट अपने कपड़े पहन कर तैयार हो गई लेकिन गंजू अभी भी उसी तरह नंगा ही खड़ा मुझे देख कर मुस्कुरा रहा था। मैं देख रही थी कि ऊंचे कद का काला, टकला, दढ़ियल बूढ़ा सिर्फ उम्र से ही बूढ़ा था लेकिन उसका दैत्य समान शरीर अच्छे अच्छे मर्दों से भी मजबूत दिखाई दे रहा था। सिर्फ मजबूत दिखाई ही नहीं दे रहा था बल्कि उसने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करके मुझे चमत्कृत भी कर दिया था। सोई हुई हालत में भी उसका अच्छा खासा लंबा और मोटा लिंग सामने झूल रहा था। सोई अवस्था में भी वह छः इंच से कम नहीं दिखाई दे रहा था।
"जाओ मेरी बच्ची, इस बुड्ढे को बीच बीच में याद करते रहना।" गंजू तनिक मायूसी से बोला।
"आपको भूल जाऊं यह तो हो ही नहीं सकता। आप दोनों मेरे लिए यादगार बन गये। इतने मायूस मत होईए, मैं आपसे मिलने आती रहूंगी, छोड़ूंगी नहीं।" मैं जाकर उस बूढ़े से लिपट कर चूमते हुए बोली। सच पूछिए तो मुझे उससे एक तरह का लगाव सा हो गया था।
"बहुत बढ़िया। एक बात और सुन लो। कभी भी, किसी से भी, किसी से भी मतलब किसी से भी, छोटे से छोटे या बड़े से बड़े गुंडे बदमाश से भी तुमको परेशानी हो तो हमको याद करना। हमारा वादा है कि आगे कभी किसी की हिम्मत नहीं होगी तुम्हारी तरफ बुरी नजर डालने की। यह गंजू दादा का वादा है। तुम जैसी सुंदरी छुटकी हम जैसे बूढ़े को इतनी खुशी दे सकती है यह तो हम कभी सोच भी नहीं सके थे। अब तो हमारा भी फर्ज बनता है कि तुमको कोई तकलीफ़ में न पड़ने दें। वादा करो कि हमारे पास आती रहोगी।" वह मुझे चूम कर बोला। वह गदगद था और उसकी आत्मीयता से मैं भी अंदर तक भीग गई।
"समस्या होगी तो जरूर याद करूंगी। सिर्फ समस्या में क्यों, आप जैसे लोगों को, जिन्होंने मेरी जिंदगी बदल कर रख दी, भूल जाऊं, यह तो हो ही नहीं सकता है। दिल लग गया है मेरा, वादा करती हूं, जब मर्जी दौड़ी चली आऊंगी।" मैं अब भी उसके नंगे जिस्म से लिपटी हुई थी।
"बहुत बढ़िया, बिटिया हो तो तुम्हारी तरह।" वह अपनी रुखड़ी हथेली से मेरी चूतड़ पर थपकी देते हुए बोला। उसकी थपकी से मेरी गुदा में फिर से झनझनाहट सी महसूस हुई, लेकिन उस वक्त मुझे वहां से जाना ही था।
"अच्छा तो मैं चलूं?" न चाहते हुए भी मुझे बोलना पड़ा।
"जाओ मेरी बच्ची। मन तो नहीं हो रहा है जाने देने का लेकिन तुमको रोक भी तो नहीं सकते।" उसकी आवाज से साफ महसूस हो रहा था कि उसकी हसरत अभी भी बाकी है, लेकिन मुझे इस वक्त जाना ही था। इन ठर्की बूढ़ों की हसरतें तो बाद में भी पूरी होती रहेंगी। मैं कहां भागी जा रही हूं। आज की यादगार चुदाई का मजा भला मैं कभी भूल पाऊंगी? नहीं, कभी नहीं। मेरे तन की भूख इस अविस्मरणीय चुदाई के लालच में मुझे खुद ही खींच लाएगी।
"अच्छा भई चलो। तुम डांटती हुई बड़ी प्यारी लग रही हो।" घनश्याम उठ कर आज्ञाकारी बन कर अपने कपड़े पहनने लगा। मैं भी झटपट अपने कपड़े पहन कर तैयार हो गई लेकिन गंजू अभी भी उसी तरह नंगा ही खड़ा मुझे देख कर मुस्कुरा रहा था। मैं देख रही थी कि ऊंचे कद का काला, टकला, दढ़ियल बूढ़ा सिर्फ उम्र से ही बूढ़ा था लेकिन उसका दैत्य समान शरीर अच्छे अच्छे मर्दों से भी मजबूत दिखाई दे रहा था। सिर्फ मजबूत दिखाई ही नहीं दे रहा था बल्कि उसने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करके मुझे चमत्कृत भी कर दिया था। सोई हुई हालत में भी उसका अच्छा खासा लंबा और मोटा लिंग सामने झूल रहा था। सोई अवस्था में भी वह छः इंच से कम नहीं दिखाई दे रहा था।
"जाओ मेरी बच्ची, इस बुड्ढे को बीच बीच में याद करते रहना।" गंजू तनिक मायूसी से बोला।
"आपको भूल जाऊं यह तो हो ही नहीं सकता। आप दोनों मेरे लिए यादगार बन गये। इतने मायूस मत होईए, मैं आपसे मिलने आती रहूंगी, छोड़ूंगी नहीं।" मैं जाकर उस बूढ़े से लिपट कर चूमते हुए बोली। सच पूछिए तो मुझे उससे एक तरह का लगाव सा हो गया था।
"बहुत बढ़िया। एक बात और सुन लो। कभी भी, किसी से भी, किसी से भी मतलब किसी से भी, छोटे से छोटे या बड़े से बड़े गुंडे बदमाश से भी तुमको परेशानी हो तो हमको याद करना। हमारा वादा है कि आगे कभी किसी की हिम्मत नहीं होगी तुम्हारी तरफ बुरी नजर डालने की। यह गंजू दादा का वादा है। तुम जैसी सुंदरी छुटकी हम जैसे बूढ़े को इतनी खुशी दे सकती है यह तो हम कभी सोच भी नहीं सके थे। अब तो हमारा भी फर्ज बनता है कि तुमको कोई तकलीफ़ में न पड़ने दें। वादा करो कि हमारे पास आती रहोगी।" वह मुझे चूम कर बोला। वह गदगद था और उसकी आत्मीयता से मैं भी अंदर तक भीग गई।
"समस्या होगी तो जरूर याद करूंगी। सिर्फ समस्या में क्यों, आप जैसे लोगों को, जिन्होंने मेरी जिंदगी बदल कर रख दी, भूल जाऊं, यह तो हो ही नहीं सकता है। दिल लग गया है मेरा, वादा करती हूं, जब मर्जी दौड़ी चली आऊंगी।" मैं अब भी उसके नंगे जिस्म से लिपटी हुई थी।
"बहुत बढ़िया, बिटिया हो तो तुम्हारी तरह।" वह अपनी रुखड़ी हथेली से मेरी चूतड़ पर थपकी देते हुए बोला। उसकी थपकी से मेरी गुदा में फिर से झनझनाहट सी महसूस हुई, लेकिन उस वक्त मुझे वहां से जाना ही था।
"अच्छा तो मैं चलूं?" न चाहते हुए भी मुझे बोलना पड़ा।
"जाओ मेरी बच्ची। मन तो नहीं हो रहा है जाने देने का लेकिन तुमको रोक भी तो नहीं सकते।" उसकी आवाज से साफ महसूस हो रहा था कि उसकी हसरत अभी भी बाकी है, लेकिन मुझे इस वक्त जाना ही था। इन ठर्की बूढ़ों की हसरतें तो बाद में भी पूरी होती रहेंगी। मैं कहां भागी जा रही हूं। आज की यादगार चुदाई का मजा भला मैं कभी भूल पाऊंगी? नहीं, कभी नहीं। मेरे तन की भूख इस अविस्मरणीय चुदाई के लालच में मुझे खुद ही खींच लाएगी।