05-06-2024, 09:09 AM
"मजा आया?" घनश्याम हांफते हुए मुझसे बोला।
"हां, बहुत।" मैं जैसे नींद से जाग कर बोली।
"मैं झूठ तो नहीं बोला था ना?"
"नहीं।"
"डर खत्म?"
"हां।"
"शर्म अब भी है कि खत्म?"
"चुप हरामी। तुमलोग जैसे बेशर्मों के साथ भला शर्म कब तक रहेगी।" मैं घनश्याम के सीने पर सिर रख कर प्यार से बोली।
"हमसे घिन तो नहीं आ रही है अब?" गंजू मेरी चुचियों पर हाथ फेरते हुए बोला।
"चुप मेरे प्यारे बुढ़ऊ, ऐसे बोलिएगा तो ठीक नहीं होगा। मैं ही बेवकूफ थी। आपसे घिन करें मेरे दुश्मन। नासमझ थी मैं।" मैं उसके सोए हुए लंड पर हाथ फेरते हुए बोली।
"पसंद आया यह?" गंजू बोला।
"बहुत। लेकिन पहले तो डरा ही दिया था आपके हथियार ने।" मैं उसके सोए लंड को प्यार से सहलाने लगी। तभी अचानक जैसे मुझे होश आया कि यहां काफी देर हो चुकी थी। मैं झटके से उठ बैठी और सामने दीवार पर घड़ी देखी तो पता चला छः बज रहा था। "हाय राम, बहुत देर हो गई है।"
"अरे अरे हमारी छम्मक छल्लो, इतना मत हड़बड़ाओ। अभी बहुत टाईम है।" घनश्याम मेरी बांह पकड़ कर बोला।
"हट हरामी। चुपचाप उठिए और कपड़े पहनिए। घर नहीं जाना है क्या?' में उसका हाथ झटक कर बिस्तर से उठी मगर लड़खड़ा गई। मुझे खड़े रहने में तकलीफ़ हो रही थी। मेरी टांगें थरथरा रही थीं और मेरी जांघों के बीच मीठी मीठी जलन सी महसूस हो रही थी। मेरे अंदर एक अजीब तरह के खालीपन का अहसास हो रहा था। सहसा मेरे पेट में मरोड़ सा उठने लगा। पेट में एक दबाव सा महसूस होने लगा और वह दबाव शौच के लिए भागने को मजबूर कर रही थी। मैं इधर उधर देखने लगी।
"क्या हुआ?" गंजू मेरी हालत देखकर चिंतित स्वर में बोला।
"टॉयलेट।" मैं इतना ही बोली।
"उधर" वह उत्तर पूर्वी कोने की ओर एक दरवाजे की ओर इशारा करते हुए बोला। मैं जल्दी से उधर ही भागी लेकिन मेरे पांव लड़खड़ा रहे थे, फलस्वरूप खुद को संभाल नहीं पाई और मुंह के बल फर्श पर गिरने ही वाली थी कि बिजली की फुर्ती से गंजू बिस्तर से उठ कर मेरी ओर झपटा और मुझे गिरने से बचा लिया।
"तुम ठीक तो हो ना बच्ची?" उस बुड्ढे ने जिस तरह चुदाई में अपने शरीर की ताकत दिखाई थी, वह थका हुआ बूढ़ा उतनी ही फुर्ती इस वक्त दिखाते हुए बोला।
"अब बच्ची बोल रहे हैं? चोदते वक्त बच्ची नहीं दिखाई दे रही थी चुदक्कड़ कहीं के।" मैं बनावटी नाराजगी दिखाते हुए बोली।
"तुम्हारा नाराज होना जायज है। लेकिन हम जानते हैं कि तुम दिखने में बच्ची हो लेकिन 'इसके लिए' बच्ची नहीं हो। अगर बच्ची थी भी तो अब बड़ी बन गई हो।"
"हटिए, बड़े आए बड़ी बनाने वाले। गांड़ और चूत का कचूमर निकाल कर रख दिया, अब आए हैं बड़ी बोलने वाले। सबकुछ तो बड़ा कर दिया। छोड़िए मुझे, बड़ी जोर की (शौच) लगी है। रुक नहीं रही है।" मैं उसका हाथ झटक कर बोली।
मैं जल्दी से दरवाजा खोल कर लड़खड़ाते कदमों से अंदर गयी और जल्दीबाजी में बिना दरवाजा बंद किए ही टॉयलेट सीट पर बैठने ही वाली थी कि भर्र भर्र भुस्स करके अंदर से घनश्याम के वीर्य से लिथड़ा पतला मल मेरी जांघों से होता हुआ नीचे बहने लगा। किसी तरह मैं टॉयलेट सीट पर बैठी। टॉयलेट सीट पर बैठते ही भरभरा के एक मिनट में ही मेरा पेट खाली हो गया। अच्छी तरह से फ्रेश हो कर खुद को धो पोंछ कर बाहर निकली। मैं अब तक थोड़ी संभल गई थी लेकिन मेरी गांड़ और चूत की हालत बड़ी खस्ता थी, मलद्वार काफी ढीला हो गया था और चूत भी सूज गई थी। चलने से चुद कर खुली हुई चूत की फांकों के दोनों ओर के होंठों के बीच घर्षण और ढीली हो गई मलद्वार पर दोनों नितम्बों घर्षण से उत्पन्न मीठी मीठी सी खुजली मिश्रित जलन का अहसास हो रहा था।
"हां, बहुत।" मैं जैसे नींद से जाग कर बोली।
"मैं झूठ तो नहीं बोला था ना?"
"नहीं।"
"डर खत्म?"
"हां।"
"शर्म अब भी है कि खत्म?"
"चुप हरामी। तुमलोग जैसे बेशर्मों के साथ भला शर्म कब तक रहेगी।" मैं घनश्याम के सीने पर सिर रख कर प्यार से बोली।
"हमसे घिन तो नहीं आ रही है अब?" गंजू मेरी चुचियों पर हाथ फेरते हुए बोला।
"चुप मेरे प्यारे बुढ़ऊ, ऐसे बोलिएगा तो ठीक नहीं होगा। मैं ही बेवकूफ थी। आपसे घिन करें मेरे दुश्मन। नासमझ थी मैं।" मैं उसके सोए हुए लंड पर हाथ फेरते हुए बोली।
"पसंद आया यह?" गंजू बोला।
"बहुत। लेकिन पहले तो डरा ही दिया था आपके हथियार ने।" मैं उसके सोए लंड को प्यार से सहलाने लगी। तभी अचानक जैसे मुझे होश आया कि यहां काफी देर हो चुकी थी। मैं झटके से उठ बैठी और सामने दीवार पर घड़ी देखी तो पता चला छः बज रहा था। "हाय राम, बहुत देर हो गई है।"
"अरे अरे हमारी छम्मक छल्लो, इतना मत हड़बड़ाओ। अभी बहुत टाईम है।" घनश्याम मेरी बांह पकड़ कर बोला।
"हट हरामी। चुपचाप उठिए और कपड़े पहनिए। घर नहीं जाना है क्या?' में उसका हाथ झटक कर बिस्तर से उठी मगर लड़खड़ा गई। मुझे खड़े रहने में तकलीफ़ हो रही थी। मेरी टांगें थरथरा रही थीं और मेरी जांघों के बीच मीठी मीठी जलन सी महसूस हो रही थी। मेरे अंदर एक अजीब तरह के खालीपन का अहसास हो रहा था। सहसा मेरे पेट में मरोड़ सा उठने लगा। पेट में एक दबाव सा महसूस होने लगा और वह दबाव शौच के लिए भागने को मजबूर कर रही थी। मैं इधर उधर देखने लगी।
"क्या हुआ?" गंजू मेरी हालत देखकर चिंतित स्वर में बोला।
"टॉयलेट।" मैं इतना ही बोली।
"उधर" वह उत्तर पूर्वी कोने की ओर एक दरवाजे की ओर इशारा करते हुए बोला। मैं जल्दी से उधर ही भागी लेकिन मेरे पांव लड़खड़ा रहे थे, फलस्वरूप खुद को संभाल नहीं पाई और मुंह के बल फर्श पर गिरने ही वाली थी कि बिजली की फुर्ती से गंजू बिस्तर से उठ कर मेरी ओर झपटा और मुझे गिरने से बचा लिया।
"तुम ठीक तो हो ना बच्ची?" उस बुड्ढे ने जिस तरह चुदाई में अपने शरीर की ताकत दिखाई थी, वह थका हुआ बूढ़ा उतनी ही फुर्ती इस वक्त दिखाते हुए बोला।
"अब बच्ची बोल रहे हैं? चोदते वक्त बच्ची नहीं दिखाई दे रही थी चुदक्कड़ कहीं के।" मैं बनावटी नाराजगी दिखाते हुए बोली।
"तुम्हारा नाराज होना जायज है। लेकिन हम जानते हैं कि तुम दिखने में बच्ची हो लेकिन 'इसके लिए' बच्ची नहीं हो। अगर बच्ची थी भी तो अब बड़ी बन गई हो।"
"हटिए, बड़े आए बड़ी बनाने वाले। गांड़ और चूत का कचूमर निकाल कर रख दिया, अब आए हैं बड़ी बोलने वाले। सबकुछ तो बड़ा कर दिया। छोड़िए मुझे, बड़ी जोर की (शौच) लगी है। रुक नहीं रही है।" मैं उसका हाथ झटक कर बोली।
मैं जल्दी से दरवाजा खोल कर लड़खड़ाते कदमों से अंदर गयी और जल्दीबाजी में बिना दरवाजा बंद किए ही टॉयलेट सीट पर बैठने ही वाली थी कि भर्र भर्र भुस्स करके अंदर से घनश्याम के वीर्य से लिथड़ा पतला मल मेरी जांघों से होता हुआ नीचे बहने लगा। किसी तरह मैं टॉयलेट सीट पर बैठी। टॉयलेट सीट पर बैठते ही भरभरा के एक मिनट में ही मेरा पेट खाली हो गया। अच्छी तरह से फ्रेश हो कर खुद को धो पोंछ कर बाहर निकली। मैं अब तक थोड़ी संभल गई थी लेकिन मेरी गांड़ और चूत की हालत बड़ी खस्ता थी, मलद्वार काफी ढीला हो गया था और चूत भी सूज गई थी। चलने से चुद कर खुली हुई चूत की फांकों के दोनों ओर के होंठों के बीच घर्षण और ढीली हो गई मलद्वार पर दोनों नितम्बों घर्षण से उत्पन्न मीठी मीठी सी खुजली मिश्रित जलन का अहसास हो रहा था।