04-06-2024, 12:06 AM
"पलटिए, नीचे आईए, मुझे ऊपर आने दीजिए।" गंजू मेरी चीख सुनकर सकते में आ गया। उत्तेजना के मारे मेरा चेहरा लाल हो चुका था। मेरे बिल बिखर गए थे। मैं बिल्कुल जंगली बिल्ली बन गई थी। वह भी शायद थोड़ा सहम सा गया था। मेरे कहे अनुसार नीचे आ गया।
"घंशू, यह तो जंगली बिल्ली बन गई रे।" उसके मुंह से निकला।
"हां, मैं पालतू बिल्ली से जंगली बिल्ली बन गई हूं। आप लोगों की कृपा है। अब देखिए जंगली बिल्ली क्या करती है।" कहकर मैं झपट कर उसपर चढ़ गई। अब वह नीचे था और मैं उसके ऊपर। अब उस वासना के खेल की कमान मेरे हाथ में थी।
"आप आराम से लेटे रहिए मेरे बुड्ढे, आपने जितना करना था कर लिया, अब बाकी काम यह बिल्ली कर लेगी।" कहकर मैं उसके दढ़ियल चेहरे को पागलों की तरह चूमने लगी और ऊपर से ही दुगुने जोश के साथ उसके लंड पर अपनी चूत पटकती हुई चुदवाने लगी।
"बहुत बढ़िया। ई हुई ना बात।" वह बोला।
"चुप, एकदम चुप। अपना लंड खड़ा रखिए और लेटे लेटे इस जंगली बिल्ली का मजा लीजिए।" मैं बदहवासी के आलम में बोली और गपा गप गंजू का लंड लेने लगी।
"तभी मैं कहूं कि गंजू क्यों पगला कर तेरी गांड़ के पीछे पड़ गया था।" पीछे से घनश्याम की आवाज आई। "सच में, तेरी हिलती हुई गांड़ में अद्भुत आकर्षण है। तेरी ऐसी गांड़ को देख कर जिस मादरचोद का लौड़ा खड़ा नहीं होगा, वह कोई छक्का ही होगा। देखो तो साला मेरा लौड़ा फिर से खड़ा हो गया।" घनश्याम बोलता गया और हमारे पास आ गया।
"ज्यादा भूमिका बांधने की जरूरत नहीं है। चोदना है तो आप भी फटाफट शुरू हो जाईए।" मैं चुदवाने में मशगूल बिना पीछे देखे ही बोली। मैं जानती हूं कि आज भी मेरे आकर्षक नितंबों पर बड़े बड़ों की नीयत डोल जाती है तो उस समय की तो बात ही कुछ और थी। जानती थी कि अब घनश्याम भी मेरी थिरकते हुए नितम्बों के आकर्षण जाल में फंस चुका था और मेरी गांड़ का लालच खींच रहा था। मौका भी अनुकूल था और इस मौके को कैसे छोड़ देता। मेरे गोल गोल चिकने नितंबों के बीच के दरार में अपना लंड घुसेड़ कर अपनी मनोकामना पूर्ण करने का यह स्वर्णिम अवसर भला वह कैसे छोड़ देता। इतना सुलभ मौका और मेरा आमंत्रण पाकर बेसब्री के साथ घनश्याम कूदकर बिस्तर पर चढ़ गया और बिना समय गंवाए मेरे नितंबों को अपने दोनों हाथों से फैलाया और अपना लंड मेरी गुदा द्वार पर रख दिया। अब वह अपने लंड पर दबाव बढ़ाने लगा नतीजतन उसके लंड का सुपाड़ा मेरी गुदा द्वार को फैलाता हुआ अंदर दाखिल होने लगा। जैसे ही सुपाड़ा अन्दर गया, उसने एक धक्का और दिया और लो, पूरा का पूरा लंड मेरी गांड़ के अंदर दाखिल हो गया। अब शुरू हुई दोहरी चुदाई।
"आआआआआआह", संपूर्णता का वह अद्भुत अहसास और दोहरी चुदाई ने मुझे फिर से कामुकता के शिखर पर पहुंचा दिया। मैं फिर एक बार सैंडविच बन गई। फर्क सिर्फ इतना था कि इस वक्त गंजू का लंड मेरी चूत में था और घनश्याम का लंड मेरी गांड़ में। पहली बार दोनों के लंड एक साथ अंदर बाहर हो रहे थे लेकिन इस बार जब मैं नीचे झटका मारती तो गंजू का लंड अंदर घुसता और घनश्याम का लंड बाहर निकलता और जब अपनी कमर उठाती तो गंजू का लंड बाहर निकलता और घनश्याम का लंड अंदर घुसता। यह दूसरी तरह की जुगलबंदी थी, जो मुझे अलग तरह के आनंद से सराबोर कर रहा था। बिस्तर पर जो धमाचौकड़ी होने लगी उससे मैं इतनी उत्तेजित हो गई कि कुछ ही मिनटों में मैं चरमोत्कर्ष में पहुंच गई। तभी गंजू नीचे से मुझे जकड़ कर का लंड वीर्य उगलने लगा और मेरी कोख को हरी करने लग गया। ओह गंजू का वह दीर्घ स्खलन आज तक मुझे याद है। इधर मेरी पसलियां कड़कड़ा रही थीं और उसके लंड से फच्च फच्च रुक रुक कर पिचकारी छूट रही थी। पता नहीं कितना वीर्य जमा था उसके अंदर कि उसका वीर्य मेरी चूत से बाहर भी बह निकला। मैं भी स्खलन सुख में सराबोर थरथरा थरथरा कर झड़ने लगी। इधर झड़ कर शिथिल मेरे शरीर पर पीछे से चढ़ा घनश्याम मेरे क्लांत शरीर को छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। मेरी कमर पकड़ कर उसका कुत्ते की तरह दनादन दनादन ठोकना जारी था। अंततः करीब दस मिनट बाद वह भी मेरी गांड़ चोद कर अपनी पिचकारी मेरे अंदर ही छोड़ कर फारिग हुआ। जब उसकी पिचकारी छूट रही थी उस समय वह अपनी पूरी ताकत से मेरी चूचियों को दबोच कर अपने अंदर के गरमागरम वीर्य को मेरी गांड़ में भरने लगा था। गंजू और मैं तो कुछ पलों के अंतराल में स्खलित हुए थे लेकिन उसके उपरांत भी करीब दस मिनट तक घनश्याम मेरी गांड़ चुदाई में जुटा रहा। शिथिल शरीर होने के बावजूद घनश्याम की चुदाई से मुझे कोई ऐतराज नहीं था क्योंकि उसमें भी मुझे मजा आ रहा था। हे राम, सचमुच इन लोगों ने मुझे लंडखोर बना दिया। जब हम तीनों के अंदर की वासना ठंढी हुई तो एक तरफ गंजू, दूसरी तरफ घनश्याम दो भैंसों की तरह बिस्तर पर पसर कर लंबी लंबी सांसें ले रहे थे और मैं लुटी पिटी, नुची चुदी, उन चुदक्कड़ बूढ़े द्वय के बीच संतुष्टि के सुखद अहसास में आंखें बंद किए पड़ी हुई थी। उन दोनों के लंड भींगे चूहों की तरह सिकुड़ चुके थे।
"घंशू, यह तो जंगली बिल्ली बन गई रे।" उसके मुंह से निकला।
"हां, मैं पालतू बिल्ली से जंगली बिल्ली बन गई हूं। आप लोगों की कृपा है। अब देखिए जंगली बिल्ली क्या करती है।" कहकर मैं झपट कर उसपर चढ़ गई। अब वह नीचे था और मैं उसके ऊपर। अब उस वासना के खेल की कमान मेरे हाथ में थी।
"आप आराम से लेटे रहिए मेरे बुड्ढे, आपने जितना करना था कर लिया, अब बाकी काम यह बिल्ली कर लेगी।" कहकर मैं उसके दढ़ियल चेहरे को पागलों की तरह चूमने लगी और ऊपर से ही दुगुने जोश के साथ उसके लंड पर अपनी चूत पटकती हुई चुदवाने लगी।
"बहुत बढ़िया। ई हुई ना बात।" वह बोला।
"चुप, एकदम चुप। अपना लंड खड़ा रखिए और लेटे लेटे इस जंगली बिल्ली का मजा लीजिए।" मैं बदहवासी के आलम में बोली और गपा गप गंजू का लंड लेने लगी।
"तभी मैं कहूं कि गंजू क्यों पगला कर तेरी गांड़ के पीछे पड़ गया था।" पीछे से घनश्याम की आवाज आई। "सच में, तेरी हिलती हुई गांड़ में अद्भुत आकर्षण है। तेरी ऐसी गांड़ को देख कर जिस मादरचोद का लौड़ा खड़ा नहीं होगा, वह कोई छक्का ही होगा। देखो तो साला मेरा लौड़ा फिर से खड़ा हो गया।" घनश्याम बोलता गया और हमारे पास आ गया।
"ज्यादा भूमिका बांधने की जरूरत नहीं है। चोदना है तो आप भी फटाफट शुरू हो जाईए।" मैं चुदवाने में मशगूल बिना पीछे देखे ही बोली। मैं जानती हूं कि आज भी मेरे आकर्षक नितंबों पर बड़े बड़ों की नीयत डोल जाती है तो उस समय की तो बात ही कुछ और थी। जानती थी कि अब घनश्याम भी मेरी थिरकते हुए नितम्बों के आकर्षण जाल में फंस चुका था और मेरी गांड़ का लालच खींच रहा था। मौका भी अनुकूल था और इस मौके को कैसे छोड़ देता। मेरे गोल गोल चिकने नितंबों के बीच के दरार में अपना लंड घुसेड़ कर अपनी मनोकामना पूर्ण करने का यह स्वर्णिम अवसर भला वह कैसे छोड़ देता। इतना सुलभ मौका और मेरा आमंत्रण पाकर बेसब्री के साथ घनश्याम कूदकर बिस्तर पर चढ़ गया और बिना समय गंवाए मेरे नितंबों को अपने दोनों हाथों से फैलाया और अपना लंड मेरी गुदा द्वार पर रख दिया। अब वह अपने लंड पर दबाव बढ़ाने लगा नतीजतन उसके लंड का सुपाड़ा मेरी गुदा द्वार को फैलाता हुआ अंदर दाखिल होने लगा। जैसे ही सुपाड़ा अन्दर गया, उसने एक धक्का और दिया और लो, पूरा का पूरा लंड मेरी गांड़ के अंदर दाखिल हो गया। अब शुरू हुई दोहरी चुदाई।
"आआआआआआह", संपूर्णता का वह अद्भुत अहसास और दोहरी चुदाई ने मुझे फिर से कामुकता के शिखर पर पहुंचा दिया। मैं फिर एक बार सैंडविच बन गई। फर्क सिर्फ इतना था कि इस वक्त गंजू का लंड मेरी चूत में था और घनश्याम का लंड मेरी गांड़ में। पहली बार दोनों के लंड एक साथ अंदर बाहर हो रहे थे लेकिन इस बार जब मैं नीचे झटका मारती तो गंजू का लंड अंदर घुसता और घनश्याम का लंड बाहर निकलता और जब अपनी कमर उठाती तो गंजू का लंड बाहर निकलता और घनश्याम का लंड अंदर घुसता। यह दूसरी तरह की जुगलबंदी थी, जो मुझे अलग तरह के आनंद से सराबोर कर रहा था। बिस्तर पर जो धमाचौकड़ी होने लगी उससे मैं इतनी उत्तेजित हो गई कि कुछ ही मिनटों में मैं चरमोत्कर्ष में पहुंच गई। तभी गंजू नीचे से मुझे जकड़ कर का लंड वीर्य उगलने लगा और मेरी कोख को हरी करने लग गया। ओह गंजू का वह दीर्घ स्खलन आज तक मुझे याद है। इधर मेरी पसलियां कड़कड़ा रही थीं और उसके लंड से फच्च फच्च रुक रुक कर पिचकारी छूट रही थी। पता नहीं कितना वीर्य जमा था उसके अंदर कि उसका वीर्य मेरी चूत से बाहर भी बह निकला। मैं भी स्खलन सुख में सराबोर थरथरा थरथरा कर झड़ने लगी। इधर झड़ कर शिथिल मेरे शरीर पर पीछे से चढ़ा घनश्याम मेरे क्लांत शरीर को छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। मेरी कमर पकड़ कर उसका कुत्ते की तरह दनादन दनादन ठोकना जारी था। अंततः करीब दस मिनट बाद वह भी मेरी गांड़ चोद कर अपनी पिचकारी मेरे अंदर ही छोड़ कर फारिग हुआ। जब उसकी पिचकारी छूट रही थी उस समय वह अपनी पूरी ताकत से मेरी चूचियों को दबोच कर अपने अंदर के गरमागरम वीर्य को मेरी गांड़ में भरने लगा था। गंजू और मैं तो कुछ पलों के अंतराल में स्खलित हुए थे लेकिन उसके उपरांत भी करीब दस मिनट तक घनश्याम मेरी गांड़ चुदाई में जुटा रहा। शिथिल शरीर होने के बावजूद घनश्याम की चुदाई से मुझे कोई ऐतराज नहीं था क्योंकि उसमें भी मुझे मजा आ रहा था। हे राम, सचमुच इन लोगों ने मुझे लंडखोर बना दिया। जब हम तीनों के अंदर की वासना ठंढी हुई तो एक तरफ गंजू, दूसरी तरफ घनश्याम दो भैंसों की तरह बिस्तर पर पसर कर लंबी लंबी सांसें ले रहे थे और मैं लुटी पिटी, नुची चुदी, उन चुदक्कड़ बूढ़े द्वय के बीच संतुष्टि के सुखद अहसास में आंखें बंद किए पड़ी हुई थी। उन दोनों के लंड भींगे चूहों की तरह सिकुड़ चुके थे।