03-06-2024, 12:15 AM
हालांकि उसका इस तरह रुकने से मुझे थोड़ी राहत महसूस हो रही थी फिर भी मैं दुबारा चीखी, "निकालिए निकालिए।"
"लो निकाल दिया।" कहकर वह एक झटके में अपना लंड बाहर खींच लिया। उसके इस तरह अचानक लंड बाहर निकालने से मुझे बड़ा अजीब सा महसूस होने लगा था। ऐसा लगा जैसे मेरे अंदर एक खालीपन व्याप्त गया हो। हे भगवान, यह मेरे साथ क्या हो रहा था। इस तरह अचानक लंड बाहर निकाल लेने से मेरी चूत में भयानक खलबली सी मच गई थी। यह तो दुबारा लंड लेने की बेचैनी थी। मेरा मन अवश हो कर दुबारा लंड लेने को मचल उठा था।
"आआआआआआह नहीं नहीं, अब डाल ही दीजिए...." मैं मचल कर बोली।
"जानते थे, यही बोलोगी। लो...." कहकर वह दुबारा लंड घुसेड़ने लगा।
"आआआआआआह ओओओहहह हां हां...." मैं अब आनंद विभोर हो उठी। उसके लंड के घर्षण से मेरी चूत की अंदरूनी दीवारें तरंगित हो उठीं। उसके मोटे लंड पर मेरी चूत की अंदरूनी दीवारें कस गयी थीं और चिपक कर न छोड़ने की असफल कोशिश कर रही थी। गंजू मेरी चूत की कसावट को अपने लंड पर महसूस कर रहा था इसलिए धीरे धीरे अंदर घुसेड़ कर फिर धीरे-धीरे बाहर निकालने लगा। ओह ओह, जन्नत क्या होता है पता नहीं लेकिन मुझे तो यही जन्नत लग रहा था।
"ओह, बहुत जबरदस्त, कमसिन जवानी, उस पर चिकनी, टाईट चूत, ओह मेरी जान, तू है महान। सबसे अलग, सबसे मस्त, सबसे चटपटी, सबसे गरम। इतनी जल्दी, इतने आराम से मेरा लौड़ा लेने में सफल सिर्फ और सिर्फ तुम ही हो सकी.... गजब, तुम तो बहुत बड़ी लंडखोर निकली। अब तुम्हारे बारे में और का कहें, सच बोलें तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं है।" वह खुशी के मारे किलक कर बोला।
"हटिए, अपनी मर्जी जबरदस्ती मुझ पर लाद कर बड़े आए लंडखोर बोलने वाले।" मैं ठुनक कर बोली।
"चलो जबरदस्ती ही सही, हमको तो बहुत मज़ा आ रहा है, लेकिन सच बोलो, तुमको मजा आ रहा है कि नहीं?" वह बोला।
"हां हां, हां बाबा हां आआआआआआह, जो करना है कीजिए ना, केवल बकवास किए जा रहे हैं।" मैं अपनी बेकरारी छिपा नहीं पाई और मन के उद्गार को व्यक्त कर बैठी।
"खुशी से बोल रही हो ना बिटिया?" वह खुश हो कर बोला।
"और कैसे बोलूं?" मैं, जो उत्तेजना के मारे पगलाई जा रही थी, अपनी कमर उचकाते हुए बोली।
"ई हुई ना बात।" मेरी हरकत से वह पागल हो उठा। शुरू हो गया अपने मूसल से मेरी चूत कूटने। उस कुरूप दानव के सांसों की दुर्गंध अब मुझे सुगंध लग रही थी। वह मुझे पागलों की तरह चूम रहा था और मेरे गालों को काट रहा था फिर भी मैं मदहोश हुई जा रही थी और पागलों की तरह उसके धक्कों का जवाब अपनी कमर उचका उचका कर दे रही थी। उस बिस्तर पर धक्कमपेल चल रहा था, वासना का तांडव हो रहा था। घपाघप घपाघप तूफानी चुदाई और उसके विशाल अंडकोष के थपाथप थपाथप थपेड़े मुझे जन्नत की सैर करा रहे थे। मैं उसके दानवाकार शरीर को अपने में समा लेने की जद्दोजहद में भिड़ गयी थी। लेकिन वह दैत्य था तो था, आखिर बूढ़ा ही तो था, कहां मैं नौयौवना और कहां वह पैंसठ सत्तर साल का बूढ़ा, थक कर हांफने लगा था और मैं उत्तेजना के आवेग में दुगुने जोश से उछल उछल कर चुदवा रही थी। उसे थकते देख कर मुझसे रहा नहीं गया और मैं बदहवासी के आलम में चीख पड़ी,
"पलटिए, नीचे आईए, मुझे ऊपर आने दीजिए।" गंजू मेरी चीख सुनकर सकते में आ गया और मेरे कहे अनुसार नीचे आ गया। अब मैं उसपर चढ़ गई। अब वह नीचे था और मैं उसके ऊपर। अब उस वासना के खेल की कमान मेरे हाथ में थी।
"लो निकाल दिया।" कहकर वह एक झटके में अपना लंड बाहर खींच लिया। उसके इस तरह अचानक लंड बाहर निकालने से मुझे बड़ा अजीब सा महसूस होने लगा था। ऐसा लगा जैसे मेरे अंदर एक खालीपन व्याप्त गया हो। हे भगवान, यह मेरे साथ क्या हो रहा था। इस तरह अचानक लंड बाहर निकाल लेने से मेरी चूत में भयानक खलबली सी मच गई थी। यह तो दुबारा लंड लेने की बेचैनी थी। मेरा मन अवश हो कर दुबारा लंड लेने को मचल उठा था।
"आआआआआआह नहीं नहीं, अब डाल ही दीजिए...." मैं मचल कर बोली।
"जानते थे, यही बोलोगी। लो...." कहकर वह दुबारा लंड घुसेड़ने लगा।
"आआआआआआह ओओओहहह हां हां...." मैं अब आनंद विभोर हो उठी। उसके लंड के घर्षण से मेरी चूत की अंदरूनी दीवारें तरंगित हो उठीं। उसके मोटे लंड पर मेरी चूत की अंदरूनी दीवारें कस गयी थीं और चिपक कर न छोड़ने की असफल कोशिश कर रही थी। गंजू मेरी चूत की कसावट को अपने लंड पर महसूस कर रहा था इसलिए धीरे धीरे अंदर घुसेड़ कर फिर धीरे-धीरे बाहर निकालने लगा। ओह ओह, जन्नत क्या होता है पता नहीं लेकिन मुझे तो यही जन्नत लग रहा था।
"ओह, बहुत जबरदस्त, कमसिन जवानी, उस पर चिकनी, टाईट चूत, ओह मेरी जान, तू है महान। सबसे अलग, सबसे मस्त, सबसे चटपटी, सबसे गरम। इतनी जल्दी, इतने आराम से मेरा लौड़ा लेने में सफल सिर्फ और सिर्फ तुम ही हो सकी.... गजब, तुम तो बहुत बड़ी लंडखोर निकली। अब तुम्हारे बारे में और का कहें, सच बोलें तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं है।" वह खुशी के मारे किलक कर बोला।
"हटिए, अपनी मर्जी जबरदस्ती मुझ पर लाद कर बड़े आए लंडखोर बोलने वाले।" मैं ठुनक कर बोली।
"चलो जबरदस्ती ही सही, हमको तो बहुत मज़ा आ रहा है, लेकिन सच बोलो, तुमको मजा आ रहा है कि नहीं?" वह बोला।
"हां हां, हां बाबा हां आआआआआआह, जो करना है कीजिए ना, केवल बकवास किए जा रहे हैं।" मैं अपनी बेकरारी छिपा नहीं पाई और मन के उद्गार को व्यक्त कर बैठी।
"खुशी से बोल रही हो ना बिटिया?" वह खुश हो कर बोला।
"और कैसे बोलूं?" मैं, जो उत्तेजना के मारे पगलाई जा रही थी, अपनी कमर उचकाते हुए बोली।
"ई हुई ना बात।" मेरी हरकत से वह पागल हो उठा। शुरू हो गया अपने मूसल से मेरी चूत कूटने। उस कुरूप दानव के सांसों की दुर्गंध अब मुझे सुगंध लग रही थी। वह मुझे पागलों की तरह चूम रहा था और मेरे गालों को काट रहा था फिर भी मैं मदहोश हुई जा रही थी और पागलों की तरह उसके धक्कों का जवाब अपनी कमर उचका उचका कर दे रही थी। उस बिस्तर पर धक्कमपेल चल रहा था, वासना का तांडव हो रहा था। घपाघप घपाघप तूफानी चुदाई और उसके विशाल अंडकोष के थपाथप थपाथप थपेड़े मुझे जन्नत की सैर करा रहे थे। मैं उसके दानवाकार शरीर को अपने में समा लेने की जद्दोजहद में भिड़ गयी थी। लेकिन वह दैत्य था तो था, आखिर बूढ़ा ही तो था, कहां मैं नौयौवना और कहां वह पैंसठ सत्तर साल का बूढ़ा, थक कर हांफने लगा था और मैं उत्तेजना के आवेग में दुगुने जोश से उछल उछल कर चुदवा रही थी। उसे थकते देख कर मुझसे रहा नहीं गया और मैं बदहवासी के आलम में चीख पड़ी,
"पलटिए, नीचे आईए, मुझे ऊपर आने दीजिए।" गंजू मेरी चीख सुनकर सकते में आ गया और मेरे कहे अनुसार नीचे आ गया। अब मैं उसपर चढ़ गई। अब वह नीचे था और मैं उसके ऊपर। अब उस वासना के खेल की कमान मेरे हाथ में थी।