01-06-2024, 10:51 AM
"नहीं नहीं। मेरी फट जायेगी।" मैं घबराकर बोली।
"गांड़ तो फटी नहीं। ई कईसे फट जाएगी।" वह बोला। इधर मैं इस विषम परिस्थिति में पड़ी आंखें फाड़कर कभी गंजू के छः फुटे दानवाकार शरीर को देखती, कभी उसके ताकरीबन दस इंच लंबे भीमकाय काले फनफनाते लंड को देखती। अब इस दानव झेलने के अलावा मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। मेरी रूह फना हो गई थी। अब मेरे पास बोलने को कुछ बचा नहीं था। मेरी घिग्घी बंधी हुई थी और मेरी जीभ तालू से चिपक गई थी। हे भगवान, अब इतने बड़े लंड से, जिससे मेरी गांड़ में कयामत ढा कर कचूमर निकाल चुका है, यह दानव मुझे चोदेगा। कल्पना से ही मैं सिहर उठी। मेरी गांड़ फटी नहीं, यह मेरी किस्मत थी या मेरी गांड़ की क्षमता, जो भी हुआ, मेरी गांड़ बच गयी। अब मेरी चूत की बारी थी।
लेकिन गंजू के दिमाग में कुछ और चल रहा था। उसे भी पता था कि मैं खलास हो चुकी हूं और मुझे चोदने के पहले मुझे गरम करना जरूरी था। मैं इधर दम साधे उसके अगले कदम का इंतजार कर रही थी। उसकी आंखों में अजीब सी चमक थी। वह आगे बढ़ा तो मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई। वह पहले सर झुका कर मेरी चूत का मुआयना करने लगा।उसकी गरम सांसें मेरी चूत पर अनुभव कर रही थी। उसकी दाढ़ी मेरी जांघों को स्पर्श कर रही थीं। तभी मैंने उसकी जीभ के स्पर्श को अपनी चूत पर अनुभव किया।
"वाह, टेस्टी है।" बोलकर फिर वह रुका नहीं। सपड़ सपड़ चाटने लगा। ऊपर से नीचे तक मेरी चूत को अपनी लंबी जीभ से कुत्ते की तरह चाटने लगा। उसकी जीभ का स्पर्श जब मेरे भगनासे पर हुआ तो मैं चिहुंक उठी। मेरे चिहुंकने की देर थी कि वह उसी भगांकुर को चाट चाट कर मुझे पागल करने मे जुट गया। यह इतनी कामुकता भरी हरकत थी कि मैं अपनी कमर उचकाने लगी और मेरी आहें निकलने लगीं। मेरी प्रतिक्रिया देखकर उसकी प्रसन्नता की सीमा नहीं रही।
"लो हो गई तैयार।" वह बोला और धीरे धीरे मेरे ऊपर चढ़ने लगा। अब मैं बिस्तर पर नीचे थी और मेरे ऊपर दढ़ियल, टकला, बूढ़ा गंजू सवार होने वाला था। नीचे से ऊपर आते आते वह मेरी नाभी और चूचियों को अच्छी तरह से चाटा। अब उसका कुरूप चेहरा बिल्कुल मेरे चेहरे के पास था। उसके नथुनों से निकलती देसी दारू की बदबू मेरे नथुनों से टकरा रही थी। मुझे उबकाई सी आ रही थी लेकिन अब मैं बहुत गरम हो चुकी थी। मुझे अब उस दुर्गंध में एक नशा सा महसूस होने लगा था। बस बस, बहुत हुआ, मेरे शरीर मे भीषण आग लगी हुई थी। अब तो बस चुदने की चाह थी। कितना लंबा या मोटा लंड था उसका, उसकी परवाह नहीं थी।
एक हाथ से अपने लंड को मेरी चूत के मुंह पर रख कर धीरे धीरे दबाव देने लगा और मेरी चूत का मुंह अपने आप खुलने लगा। उसके लंड का विशाल सुपाड़ा जैसे ही मेरी चूत में दाखिल हुआ, पीड़ा के मारे मेरी चीख निकलने को हुई, तभी उसका दुर्गंधयुक्त थूथन मेरे होंठों पर आ चिपका। मेरी चीख हलक में ही दफन हो गई। मैं हलाल होती हुई बकरी की तरह छटपटाने लगी थी लेकिन वह दानव धीरे धीरे अपना लंड मेरी चूत में ठूंसता चला जा रहा था। अंदर, और अंदर, अंतहीन अंदर। ओह ओह, कितना अंदर जा रहा था, मेरी सांसें मानो थम सी गई थीं। तभी मुझे अहसास हुआ कि वह जड़ तक अपना लंड घुसेड़ चुका था। पीड़ा के अतिरेक से मुझे पसीना आ गया था। उसका लंड मेरी कोख में दस्तक दे रहा था। अब वह रुका और सर उठा कर मुस्कुराते हुए मेरे चेहरे को देखने लगा।
"आह आह ओह ओह निकालिए निकालिए.... " जैसे ही मेरे होंठ मुक्त हुए, मैं चीख कर बोली।
"अब क्या निकालिए। जो होना था हो गया। थोड़ा शांत रहो बिटिया, फिर देखो मजा ही मजा।" कहकर वह रुका रहा और मेरे चेहरे के चढ़ते उतरते रंग को देखने लगा।
"गांड़ तो फटी नहीं। ई कईसे फट जाएगी।" वह बोला। इधर मैं इस विषम परिस्थिति में पड़ी आंखें फाड़कर कभी गंजू के छः फुटे दानवाकार शरीर को देखती, कभी उसके ताकरीबन दस इंच लंबे भीमकाय काले फनफनाते लंड को देखती। अब इस दानव झेलने के अलावा मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। मेरी रूह फना हो गई थी। अब मेरे पास बोलने को कुछ बचा नहीं था। मेरी घिग्घी बंधी हुई थी और मेरी जीभ तालू से चिपक गई थी। हे भगवान, अब इतने बड़े लंड से, जिससे मेरी गांड़ में कयामत ढा कर कचूमर निकाल चुका है, यह दानव मुझे चोदेगा। कल्पना से ही मैं सिहर उठी। मेरी गांड़ फटी नहीं, यह मेरी किस्मत थी या मेरी गांड़ की क्षमता, जो भी हुआ, मेरी गांड़ बच गयी। अब मेरी चूत की बारी थी।
लेकिन गंजू के दिमाग में कुछ और चल रहा था। उसे भी पता था कि मैं खलास हो चुकी हूं और मुझे चोदने के पहले मुझे गरम करना जरूरी था। मैं इधर दम साधे उसके अगले कदम का इंतजार कर रही थी। उसकी आंखों में अजीब सी चमक थी। वह आगे बढ़ा तो मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई। वह पहले सर झुका कर मेरी चूत का मुआयना करने लगा।उसकी गरम सांसें मेरी चूत पर अनुभव कर रही थी। उसकी दाढ़ी मेरी जांघों को स्पर्श कर रही थीं। तभी मैंने उसकी जीभ के स्पर्श को अपनी चूत पर अनुभव किया।
"वाह, टेस्टी है।" बोलकर फिर वह रुका नहीं। सपड़ सपड़ चाटने लगा। ऊपर से नीचे तक मेरी चूत को अपनी लंबी जीभ से कुत्ते की तरह चाटने लगा। उसकी जीभ का स्पर्श जब मेरे भगनासे पर हुआ तो मैं चिहुंक उठी। मेरे चिहुंकने की देर थी कि वह उसी भगांकुर को चाट चाट कर मुझे पागल करने मे जुट गया। यह इतनी कामुकता भरी हरकत थी कि मैं अपनी कमर उचकाने लगी और मेरी आहें निकलने लगीं। मेरी प्रतिक्रिया देखकर उसकी प्रसन्नता की सीमा नहीं रही।
"लो हो गई तैयार।" वह बोला और धीरे धीरे मेरे ऊपर चढ़ने लगा। अब मैं बिस्तर पर नीचे थी और मेरे ऊपर दढ़ियल, टकला, बूढ़ा गंजू सवार होने वाला था। नीचे से ऊपर आते आते वह मेरी नाभी और चूचियों को अच्छी तरह से चाटा। अब उसका कुरूप चेहरा बिल्कुल मेरे चेहरे के पास था। उसके नथुनों से निकलती देसी दारू की बदबू मेरे नथुनों से टकरा रही थी। मुझे उबकाई सी आ रही थी लेकिन अब मैं बहुत गरम हो चुकी थी। मुझे अब उस दुर्गंध में एक नशा सा महसूस होने लगा था। बस बस, बहुत हुआ, मेरे शरीर मे भीषण आग लगी हुई थी। अब तो बस चुदने की चाह थी। कितना लंबा या मोटा लंड था उसका, उसकी परवाह नहीं थी।
एक हाथ से अपने लंड को मेरी चूत के मुंह पर रख कर धीरे धीरे दबाव देने लगा और मेरी चूत का मुंह अपने आप खुलने लगा। उसके लंड का विशाल सुपाड़ा जैसे ही मेरी चूत में दाखिल हुआ, पीड़ा के मारे मेरी चीख निकलने को हुई, तभी उसका दुर्गंधयुक्त थूथन मेरे होंठों पर आ चिपका। मेरी चीख हलक में ही दफन हो गई। मैं हलाल होती हुई बकरी की तरह छटपटाने लगी थी लेकिन वह दानव धीरे धीरे अपना लंड मेरी चूत में ठूंसता चला जा रहा था। अंदर, और अंदर, अंतहीन अंदर। ओह ओह, कितना अंदर जा रहा था, मेरी सांसें मानो थम सी गई थीं। तभी मुझे अहसास हुआ कि वह जड़ तक अपना लंड घुसेड़ चुका था। पीड़ा के अतिरेक से मुझे पसीना आ गया था। उसका लंड मेरी कोख में दस्तक दे रहा था। अब वह रुका और सर उठा कर मुस्कुराते हुए मेरे चेहरे को देखने लगा।
"आह आह ओह ओह निकालिए निकालिए.... " जैसे ही मेरे होंठ मुक्त हुए, मैं चीख कर बोली।
"अब क्या निकालिए। जो होना था हो गया। थोड़ा शांत रहो बिटिया, फिर देखो मजा ही मजा।" कहकर वह रुका रहा और मेरे चेहरे के चढ़ते उतरते रंग को देखने लगा।