29-05-2024, 04:48 PM
"देख बिटिया, हम बूढ़े जरूर हो गये हैं लेकिन ई सब हमारे सामने हो तो हमसे चुपचाप देखा नहीं जाता है। ई सब में खुद को रोकना हमसे बर्दाश्त नहीं होता है। तुम लेती रहो ना घंशू का लौड़ा, हम कहां रोक रहे हैं तुमको, लेकिन हमको भी थोड़ा मजा लेने दो ना। हमारा भरोसा रखो, हम डिस्टर्ब बिल्कुल भी नहीं करेंगे।" वह पीछे नहीं हटा और पीछे से मेरी चूचियों को दबाते हुए किसी भूखे की तरह अपनी बेसब्री जताते हुए मेरी गर्दन और पीठ पर चुंबनों की झड़ी लगाने लगा। उसका कद काफी लंबा था, करीब छः फुट का, इसलिए वह थोड़ा झुक कर यह सब कर रहा था। उसकी इस तरह की हरकतों से मेरे अंदर मस्ती और ज्यादा बढ़ गई थी। एक तो घनश्याम की चुदाई और दूसरी तरफ गंजू की कामुकता भरी हरकतें, दोतरफा मजा, हालांकि दोतरफा मजा की यह तो मात्र शुरुआत थी। आगे अभी और भी मेरे साथ बहुत कुछ होना बाकी था। अभी जो कुछ मेरे साथ हो रहा था, उसमें ही मुझे जो आनंद मिल रहा था कि ज्यादा कुछ बोला नहीं जा रहा था क्योंकि अब मुझे गंजू की हरकतें धीरे धीरे बड़ी अच्छी लगने लगी थीं। जैसा कि मैं पहले ही बता चुकी हूं कि मुझसे कम से कम तीन गुना ज्यादा उम्र का बूढ़ा, जो जिस्मानी तौर पर जवानों को भी फेल करने का माद्दा रखता था, मुझे आसानी से हवा में उठा कर चोद रहा था। उसके असामान्य बड़े लिंग पर मेरी योनि बड़ी सख्ती से चिपकती हुई घर्षण का मजा दे रही थी। इस नयी मुद्रा में चुदने का एक नया रोमांच था। घनश्याम द्वारा चुदाई में अपने लिंग की पूरी लंबाई का, सुपाड़े से जड़ तक का संपूर्ण इस्तेमाल सोने पर सुहागा का काम कर रहा था। इन सबका मिला जुला परिणाम यह था कि मैं दूसरी ही दुनिया की सैर करने लगी थी और अब जैसे इसमें कोई कसर बाकी थी तो उस कसर को पूरा करने के लिए यह टकला दढ़ियल बूढ़ा गंजू पीछे से आ कर मुझ पर गर्दन से लेकर पीठ पर चुंबनों की बरसात करते हुए मेरे उन्नत स्तनों से खेलने लगा था जिससे मैं बेहद उत्तेजित हो कर चरम उत्तेजना के सागर में गोते खाने लगी थी। उन दोनों के बीच सैंडविच बनी हुई मैं कामना करने लगी कि भगवान, इन पलों को जितना लंबा खींच सकते हो, अंतहीन खींचो।
"आआआआइहहहह ओओओहहह....." मैं आंखें बंद कर आहें भरने को बाध्य हो गई। तभी अचानक मैं चौंक उठी। मेरी गुदा द्वार पर एक जाना पहचाना स्पर्श हुआ। मैं समझ नहीं पाई कि यह उंगली का स्पर्श था या कुछ और चीज का। मैं ने तस्दीक करने के लिए गुदा के नीचे हाथ लगाया तो सन्न रह गई। हे भगवान! यह उंगली नहीं थी। यह तो, यह तो बूढ़े गंजू का लंड था। मैंने हाथ से उसके लंड के साईज का अंदाजा लगाया तो मेरी रूह फना हो गई। यह घुसा के लंड से भी बड़ा प्रतीत हो रहा था जिस पर गंजू ने थूक लगा कर मेरी गांड़ के दरवाजे पर टिका रखा था।
"नहीं नहीं। यह कककक्या कर रहे हैं?" मैं भय के मारे चीख पड़ी, जानती थी कि यह मेरी गांड़ मारने की तैयारी थी।
"तेरी गांड़ देख कर हमसे रहा नहीं गया बिटिया।" गंजू मेरे कान के पास मुंह ला कर बोला। कान के पास जैसे ही उसका मुंह आया, मेरे नथुनों में एक अजीब तरह की तीखी दुर्गंध आई। उस वक्त मुझे पता नहीं था लेकिन अब मुझे पता है कि वह दुर्गंध देशी शराब की थी।
"छि छि इतनी गंदी बदबू। अपना मुंह दूर रखिए और यह आप मेरी गांड़ के लिए क्या बोल रहे हैं?" मैं घृणा और भय से हलकान होती हुई बोली।
"बर्दाश्त कर लो बिटिया, थोड़ा सा देशी चढ़ा लिया है। अगर बुरा महक रहा है तो हमको माफ कर दो लेकिन यह भी सच है कि तेरी खूबसूरत गांड़ को देख कर हमसे बर्दाश्त नहीं हुआ जा रहा है।" वह मेरी चूचियों को मसलते हुए बोला।
"नहीं नहीं, गांड़ नहीं प्लीज़। सामने से और पीछे से एक साथ तो कभी नहीं प्लीज़। मैंने पहले कभी ऐसा नहीं किया है, मुझ से नहीं होगा यह सब। मर जाऊंगी मैं। मुझ पर जरा तो रहम कीजिए।" मैं रोनी सी आवाज में बोली।
"डरो मत। कुछ नहीं होगा तुम्हें। मेरा भरोसा रखो। मैं कह रहा था ना कि तुम्हारा डर आज पूरी तरह से खत्म कर दूंगा। थोड़ा हिम्मत करके देखो, आज के बाद तुम्हारा डर हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।" घनश्याम बोला।
"मुझसे नहीं होगा।" मैं भयभीत स्वर में बोली।
"तुम से सब होगा। बस डरना छोड़ दो।"
"इस बुड्ढे का बहुत बड़ा है।"
"घुसा का बड़ा नहीं है क्या?'"
"इनका बहुत ज्यादा बड़ा है।" मैं फिर भी झिझक रही थी।
"घुसा का भी तो बड़ा था। बड़ा था कि नहीं, था ना? तब भी हुआ ना? तुम्हारी उम्र की लड़की पहली बार में ही उतना बड़ा ले सकी, इसका मतलब समझती हो? तुम्हारे अंदर गजब की क्षमता है। इस क्षमता को पहचानो मेरी बच्ची। उससे थोड़ा और बड़ा ले कर देखो, यह भी हो जाएगा, इसी तरह थोड़ा थोड़ा करके बढ़ाती जाओ तो तुम बड़ा से बड़ा भी लेने में सक्षम हो जाओगी, फिर देखो आगे जिंदगी में मजा ही मजा मिलता रहेगा। कोई डर नहीं और न ही कोई तकलीफ़, बस मज़ा ही मज़ा।अगर मेरी बात झूठ निकली तो मेरा नाम घनश्याम से बदल कर गांड़श्याम कर देना।" डर के बावजूद घनश्याम के मुंह से गांड़श्याम सुनकर मैं अपनी हंसी रोक नहीं पाई। अब मुझमें थोड़ी हिम्मत आ गई। घनश्याम की चिकनी चुपड़ी बातों से मैं काफी हद तक आश्वस्त हो गई थी। वैसे भी अब इतनी मजेदार चुदाई के बीच में रुकना मुझे बुरी तरह खलने लगा था। मेरी चूत में फंसा घनश्याम के लंड का रुकना मुझे बड़ा नागवार गुजर रहा था। मैंने सोच लिया कि अब आगे जो भी होना है हो, फिलहाल कामुकता के इस खेल में जिस सुखद दौर से मैं गुजर रही थी उसमें कोई खलल तो न पड़े।
"आआआआइहहहह ओओओहहह....." मैं आंखें बंद कर आहें भरने को बाध्य हो गई। तभी अचानक मैं चौंक उठी। मेरी गुदा द्वार पर एक जाना पहचाना स्पर्श हुआ। मैं समझ नहीं पाई कि यह उंगली का स्पर्श था या कुछ और चीज का। मैं ने तस्दीक करने के लिए गुदा के नीचे हाथ लगाया तो सन्न रह गई। हे भगवान! यह उंगली नहीं थी। यह तो, यह तो बूढ़े गंजू का लंड था। मैंने हाथ से उसके लंड के साईज का अंदाजा लगाया तो मेरी रूह फना हो गई। यह घुसा के लंड से भी बड़ा प्रतीत हो रहा था जिस पर गंजू ने थूक लगा कर मेरी गांड़ के दरवाजे पर टिका रखा था।
"नहीं नहीं। यह कककक्या कर रहे हैं?" मैं भय के मारे चीख पड़ी, जानती थी कि यह मेरी गांड़ मारने की तैयारी थी।
"तेरी गांड़ देख कर हमसे रहा नहीं गया बिटिया।" गंजू मेरे कान के पास मुंह ला कर बोला। कान के पास जैसे ही उसका मुंह आया, मेरे नथुनों में एक अजीब तरह की तीखी दुर्गंध आई। उस वक्त मुझे पता नहीं था लेकिन अब मुझे पता है कि वह दुर्गंध देशी शराब की थी।
"छि छि इतनी गंदी बदबू। अपना मुंह दूर रखिए और यह आप मेरी गांड़ के लिए क्या बोल रहे हैं?" मैं घृणा और भय से हलकान होती हुई बोली।
"बर्दाश्त कर लो बिटिया, थोड़ा सा देशी चढ़ा लिया है। अगर बुरा महक रहा है तो हमको माफ कर दो लेकिन यह भी सच है कि तेरी खूबसूरत गांड़ को देख कर हमसे बर्दाश्त नहीं हुआ जा रहा है।" वह मेरी चूचियों को मसलते हुए बोला।
"नहीं नहीं, गांड़ नहीं प्लीज़। सामने से और पीछे से एक साथ तो कभी नहीं प्लीज़। मैंने पहले कभी ऐसा नहीं किया है, मुझ से नहीं होगा यह सब। मर जाऊंगी मैं। मुझ पर जरा तो रहम कीजिए।" मैं रोनी सी आवाज में बोली।
"डरो मत। कुछ नहीं होगा तुम्हें। मेरा भरोसा रखो। मैं कह रहा था ना कि तुम्हारा डर आज पूरी तरह से खत्म कर दूंगा। थोड़ा हिम्मत करके देखो, आज के बाद तुम्हारा डर हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।" घनश्याम बोला।
"मुझसे नहीं होगा।" मैं भयभीत स्वर में बोली।
"तुम से सब होगा। बस डरना छोड़ दो।"
"इस बुड्ढे का बहुत बड़ा है।"
"घुसा का बड़ा नहीं है क्या?'"
"इनका बहुत ज्यादा बड़ा है।" मैं फिर भी झिझक रही थी।
"घुसा का भी तो बड़ा था। बड़ा था कि नहीं, था ना? तब भी हुआ ना? तुम्हारी उम्र की लड़की पहली बार में ही उतना बड़ा ले सकी, इसका मतलब समझती हो? तुम्हारे अंदर गजब की क्षमता है। इस क्षमता को पहचानो मेरी बच्ची। उससे थोड़ा और बड़ा ले कर देखो, यह भी हो जाएगा, इसी तरह थोड़ा थोड़ा करके बढ़ाती जाओ तो तुम बड़ा से बड़ा भी लेने में सक्षम हो जाओगी, फिर देखो आगे जिंदगी में मजा ही मजा मिलता रहेगा। कोई डर नहीं और न ही कोई तकलीफ़, बस मज़ा ही मज़ा।अगर मेरी बात झूठ निकली तो मेरा नाम घनश्याम से बदल कर गांड़श्याम कर देना।" डर के बावजूद घनश्याम के मुंह से गांड़श्याम सुनकर मैं अपनी हंसी रोक नहीं पाई। अब मुझमें थोड़ी हिम्मत आ गई। घनश्याम की चिकनी चुपड़ी बातों से मैं काफी हद तक आश्वस्त हो गई थी। वैसे भी अब इतनी मजेदार चुदाई के बीच में रुकना मुझे बुरी तरह खलने लगा था। मेरी चूत में फंसा घनश्याम के लंड का रुकना मुझे बड़ा नागवार गुजर रहा था। मैंने सोच लिया कि अब आगे जो भी होना है हो, फिलहाल कामुकता के इस खेल में जिस सुखद दौर से मैं गुजर रही थी उसमें कोई खलल तो न पड़े।