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Adultery मौके पर चौका
#68
Heart 
उसने नीचे ब्रा नहीं पहनी थी, इस कारण उसकी चूचियों का मेरी आँखों के सामने भरपूर प्रदर्शन हो रहा था। ऐसी मस्त चूचियां देखते ही मेरे लंड ने फिर से करवट ली और लोअर में तम्बू बन गया।

तभी मेरी नजर साधना पर पड़ी तो झेंप गया क्योंकि वो मेरी सारी हरकत को एकटक देख रही थी। दिव्या मेरी प्लेट में खाना डालने के बाद अपनी जगह पर बैठ गई और फिर हम तीनों खाना खाने लगे।

खाना खाते खाते मैंने कई बार नोटिस किया कि साधना बार बार मेरी तरफ देख देख कर मुस्कुरा रही थी, उसके होंठों पर एक मुस्कान स्पष्ट नजर आ रही थी। पर उस मुस्कान का मतलब समझना अभी मुश्किल था। आज मेरा पहला ही दिन था और जल्दबाजी काम बिगाड़ भी सकती थी।

खाना खाने के बाद मैं उठ कर सोफे पर बैठ गया और टीवी देखने लगा, दिव्या और साधना रसोई में थी। तभी दिव्या एक प्लेट में आगरे का मशहूर पेठा रख कर ले आई और बिलकुल मेरे सामने आकर खड़ी हो गई। मेरी नजर टीवी से हट कर दिव्या पर पड़ी तो आँखें उस नज़ारे पर चिपक गई जो दिव्या मुझे दिखा रही थी। वो प्लेट लेकर बिलकुल मेरे सामने झुकी हुई थी और उसकी ढीली सी टी-शर्ट के गले में से उसकी नंगी चूचियों के भरपूर दर्शन हो रहे थे।

मैं तो मिठाई लेना ही भूल गया और एकटक उसकी गोरी गोरी चूचियों को देखने लगा।

“सग़ीर बाबू… कहाँ खो गए… मुँह मीठा कीजिये ना…”

दिव्या की बात सुन मैं थोड़ा सकपका गया- “दिव्या… समझ नहीं आ रहा कि कौन सी मिठाई खाऊँ?”

“मतलब?”

“कुछ नहीं…” -कह कर मैंने एक टुकड़ा उठा लिया और दिव्या को थैंक यू बोला।

दिव्या ने भी एक टुकड़ा उठाया और मेरे मुँह में देते हुए बोली- “यू आर वेलकम!”

और हँसते हुए वहाँ से चली गई। हरा सिग्नल मिल चुका था पर साधना का थोड़ा डर था। डरने की आदत तो थी ही नहीं पर थोड़ा सावधानी भी जरूरी थी। कहते हैं ना सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी।

करीब आधे घंटे तक मैं अकेला बैठा टीवी देखता रहा, फिर साधना और दिव्या दोनों ही कमरे में वापिस आ गई। साधना मेरे सामने वाले सोफे पर बैठ गई पर दिव्या आकर मेरे वाले सोफे पर मुझ से चिपक कर बैठ गई।

हम सब इधर उधर की बातें करने लगे पर बीच बीच में कई बार मैंने महसूस किया की शायद दिव्या जानबूझ कर अपने बूब्स मेरी कोहनी से टच कर रही थी… गुदाज चूचों के स्पर्श से मेरे लंड महाराज की हालत खराब होने लगी थी।

कुछ देर बातें करने के बाद साधना उठ कर अपने कमरे में जाने लगी और उसने दिव्या को भी आवाज देकर अपने साथ चलने को कहा। दिव्या ने कहा भी कि उसे अभी टीवी देखना है पर आरती ने उसे अन्दर चल कर बेडरूम में टीवी देखने को कहा और फिर वो दोनों कमरे में चली गई।

मैं अब अकेला बोर होने लगा तो मैं भी उठ कर पहले बाथरूम गया और फिर अपने कमरे में घुस गया, लैपटॉप पर कुछ देर काम किया फिर ब्लू फिल्म देखने लगा।

मुझे रात को बहुत प्यास लगती है, अपने घर में तो मैं सोते समय पहले से ही एक जग पानी का भर कर रख लेता हूँ। पर यहाँ मैं साधना या दिव्या को पानी के लिए कहना ही भूल गया था। कुछ देर सोचता रहा कि साधना या दिव्या को आवाज दूँ फिर सोचा की खुद ही रसोई में जाकर ले लेता हूँ।

मैं उठा और कमरे से बाहर निकला और रसोई की तरफ चल दिया। साधना के कमरे की लाइट अभी तक जल रही थी, सोचा कि दिव्या टीवी देख रही होगी। पर चूत के प्यासे लंड की तमन्ना हुई कि सोने से पहले एक बार उन हसीनाओं के थोड़े दर्शन कर लिए जाएँ ताकि रूम में उनको याद करके मुठ मार सकूँ। बिना मुठ मारे तो नीद भी नहीं आने वाली थी।

रूम के दरवाजे पर जाकर अन्दर झाँका तो अन्दर का नजारा कुछ अलग ही था, दीवार पर लगी स्क्रीन पर एक ब्लूफिल्म चल रही थी। मैं तो हैरान रह गया। जब नजर बेड पर गई तो मेरे लंड ने एकदम से करवट ली, साधना बेड पर नंगी लेटी हुई थी और दिव्या भी सिर्फ पेंटी पहन कर बुआ के बगल में बैठी हुई थी।

बुआ अपने हाथों से अपनी चूचियां मसल रही थी और दिव्या एक हाथ से अपनी चूचियाँ दबा रही थी, दूसरे से बुआ की नंगी चूत सहला रही थी। दोनों का ध्यान स्क्रीन पर था। मेरे कदम तो जैसे वहीं चिपक गये थे।

वो दोनों बहुत धीमी आवाज में बातें कर रही थी, मैंने बहुत ध्यान लगा कर सुना तो कुछ समझ आया- "दिव्या… मसल दे यार… निकाल दे पानी…"

"मसल तो रही हूँ भाभी…"

"जरा जोर से मसल… कुछ तो गर्मी निकले…"

"भाभी… हाथ से भी कभी गर्मी निकलती है… तुम्हारी चूत की गर्मी तो भाई का लंड ही निकाल सकता है!" -कह कर दिव्या हँसने लगी।

"तुम्हारे भाई की तो बात ही मत करो… बहनचोद महीना महीना भर तो हाथ नहीं लगाता मुझे… और जब लगाता भी है तो दो मिनट में ठंडा होकर सो जाता है..."

"ओह्ह्ह्ह… इसका मतलब मेरी भाभी जवानी की आग में जल रही है…"

"हाँ दिव्या… कभी कभी तो रात रात भर जाग कर चूत मसलती रहती हूँ… तुझे भी तो इसीलिए अपने पास रखा है कि तू ही अपने भाई की कुछ कमी पूरी कर दे"

"भाई की कमी मैं कैसे पूरी कर सकती हूँ… मेरे पास कौन सा लंड है भाई की तरह…" -दिव्या खिलखिलाकर हँस पड़ी।

"अरे लंड नहीं है तो क्या हुआ… तू जो चूत को चाट कर मेरा पानी निकाल देती है, उससे ही बहुत मन हल्का हो जाता है"

"भाभी… जो काम लंड का है, वो लंड ही पूरा कर सकता है, जीभ से तो बस पानी निकाल सकते हैं, चुदाई तो लंड से ही होती है"

"तू बड़ी समझदार हो गई है… पर तेरा भाई तो अब एक महीने से पहले आने वाला नहीं है, तो लंड कहाँ से लाऊं?"

"किसी को पटा लो…"

"हट… मैं तेरे भाई से बेवफाई नहीं कर सकती… आजकल नहीं चोदते है तो क्या हुआ… पहले तो मेरे बदन का पोर पोर ढीला कर दिया करते थे… बहुत प्यार करते हैं वो मुझे!"

"भाभी एक बात कहूँ…"

"हाँ बोलो मेरी रानी.."

"भाभी… तुम्हारे साथ ये सब करते करते मेरी चूत में बहुत खुजली होने लगती है… तुम तो बहुत चुद चुकी हो पर मेरी चूत ने तो बस तुम्हारी उंगली का ही मज़ा लिया है अब तक… मेरी चूत को अब लंड चाहिए वो भी असली वाला!"

"अच्छा जी… मेरी बन्नो रानी को अब लंड चाहिए… आने दे तेरे भाई को… तेरी शादी का इंतजाम करवाती हूँ"

"भाभी अगर बुरा ना मानो तो एक बात कहूँ…"

"हाँ बोलो..."

साधना बुआ और उसकी ननद दिव्या नंगी होकर लेस्बीयन सेक्स कर रही थी, दिव्या अपनी भाभी की चूत में उंगली करते हुए अपने लिए लंड की ख्वाहिश जाहिर कर रही थी।

"ये जो सग़ीर आया हुआ है…"

"हाँ… तो…"

"आपने गौर किया… कितना बड़ा लंड है उसका?"

"अरे… तुमने कब देख लिया उसका लंड…"

"देखा नहीं है भाभी… जब वो बाथरूम से नहा कर बाहर आया था तो उसके लोअर में तम्बू बना हुआ था बस उसी से अंदाजा लगाया कि बहुत लम्बा और मोटा लंड होगा उसके लोअर के अन्दर…"

"हाँ… देखा तो मैंने भी है… पर तेरा इरादा क्या है?"

"इरादा अभी तक तो नेक ही है… सोच रही हूँ की अपनी भाभी की जलती सुलगती चूत को सग़ीर के लंड से ठण्डा करवा दूँ… मेरी भी रोज रोज की मेहनत कम हो जायेगी…"

"कमीनी… मैं सब समझती हूँ… तू किसकी चूत को ठंडा करवाना चाहती है…"

"तो इसमें बुरा क्या है भाभी… ऐसे तड़प तड़प के जीना भी कोई जीना है?"

"दिव्या वो मेरे भतीजे का दोस्त है… वो क्या सोचेगा हमारे बारे में…"

"अरे भाभीजान… मर्द है वो… और जहाँ तक मुझे पता है सारे मर्द चूत के गुलाम होते हैं… चूत देखते ही सब भूल जाते हैं"

"अच्छा… तेरी चूत में अगर इतनी ही आग लगी है तो तू अपनी चूत चुदवा ले… मैं ये सब नहीं कर सकती!"

"पर भाभी मैंने आज तक लंड नहीं लिया है… पहली बार लेने में डर लग रहा है… अगर तुम मदद करोगी तो मैं भी जन्नत के मजे ले लूँगी"

"ना बाबा ना… मुझे तो डर भी लगता है और शर्म भी आती है ये सब सोचते हुए भी…"

"अच्छा जी… अपनी ननद से चूत चटवा कर, चूत में उंगली करवा के मज़ा लेती हो तब तो शर्म नहीं आती?"

"मेरी बन्नो… लगता है तेरी चूत का दाना कुछ ज्यादा ही फुदक रहा है जो सग़ीर के लंड को खाने के लिए तड़प रही है?"

"भाभी… सच में जब से सग़ीर के लोअर में खड़े लंड का अहसास हुआ है, तब से चूत पानी पानी हो रही है"

"चल अब बातें छोड़ और मेरी चूत का पानी निकाल… कल सुबह कोशिश करना सग़ीर को पटाने की… अगर वो मान गया तो चूत चुदवा लेना… मुझे कोई ऐतराज नहीं!"

"मेरी अच्छी भाभी…" -कहकर नंगी दिव्या नंगी साधना से लिपट गई और फिर वो दोनों अधूरा काम पूरा करने में व्यस्त हो गई।

contd....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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मौके पर चौका - by KHANSAGEER - 27-04-2024, 12:09 PM
RE: मौके पर चौका - by sri7869 - 27-04-2024, 02:22 PM
RE: मौके पर चौका - by Chandan - 05-05-2024, 10:14 AM
RE: मौके पर चौका - by Eswar P - 27-05-2024, 12:50 PM
RE: मौके पर चौका - by KHANSAGEER - 28-05-2024, 05:33 PM



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