27-05-2024, 10:26 AM
अज़रा की चूत से कामरस का अविरल प्रवाह जारी था जिससे मेरा हाथ सना जा रहा था लेकिन उस अलौकिक आनन्द को पाते रहने में मुझे उसकी चूत तक अपने हाथों की गर्दिश कयामत के दिन तक मंज़ूर थी।
थोड़ी देर बाद मैंने बहुत प्यार से अज़रा को आलिंगन में लिए लिए, दीवान पर लेटा दिया और उसके निप्पलों को अपने मुंह में लेकर खुद अज़रा के ऊपर झुक सा गया, उसके मुंह से सिसकारियां अपने चरम पर थी।
अचानक अज़रा ने अपना एक हाथ नीचे कर के मेरा लण्ड अपने हाथ थाम लिया और जोर जोर से अपनी ओर खींचने लगी।
आज़माइश की घड़ी पास आती जा रही थी, बतौर प्रेमी, मेरे कौशल का इम्तिहान बहुत सख़्त था, मुझे ना सिर्फ बिना कोई हल्ला गुल्ला किये एक कामयाब चुदाई करनी थी, बल्कि अपनी कुंवारी साली की चूत का आराम से मुबारक़ आगाज़ भी करना था।
बगल वाले कमरे में मेरी बेगम सो रही थी और किसी किस्म का हल्ला-गुल्ला उसकी नींद हराम कर सकता था।
काम मुश्किल था… पर मुझे करना ही था… हर हाल में करना था और आज के आज अभी करना था।
मैंने अज़रा को जरा सा सीधा किया और घुटनों के बल बैठ कर उसकी दोनों टांगों के बीच में आ गया, अपना लण्ड मैंने अपने दाएं हाथ में लेकर उसकी चूत की दरार पर रख कर थोड़ा अंदर की ओर दबाते हुए ऊपर नीचे फिराना शुरू कर दिया।
अज़रा के मुंह से आहें, कराहें क्रमशः तेज़ और ऊँची होती जा रही थी और उसके शरीर में रह रह कर उत्तेजना की लहरें उठ रही थी। जैसे ही मेरे लण्ड का सुपाड़ा अज़रा की चूत की दरार के ऊपर भगनासा को दबाता, उसके शरीर में मदन-तरंग उठती जिसका कम्पन मुझे स्पष्टत: अपने लण्ड पर हो रहा था।
अज़रा की चूत से कामरस अविरल बह रहा था, वह रह-रह कर मुझे अपने ऊपर खींच रही थी जिससे यह बात साफ़ थी कि लोहा पूरी तौर पर गर्म हो चुका है, ज़रुरत थी तो अब चोट करने की पर मैं कोई रिस्क नहीं ले सकता था।
अचानक मेरे लण्ड का सुपाड़ा अज़रा की चूत के मध्य भाग से जरा सा नीचे जैसे किसी नीची सी जगह में अटक गया और तभी उसके शरीर में भी जोर से इक झुरझुरी सी उठी, जन्नत का मेहमान जन्नत की दहलीज़ पर ख़डा था, मैंने अपना लण्ड उसकी चूत में वहीं टिका छोड़ दिया और ख़ुद उसके ऊपर सीधा लेट गया।
मैंने अज़रा का निचला होंठ अपने होंठों में लिया और हौले हौले उस को चुभलाने लगा। उसने बदले में अपनी दोनों टांगें हवा में उठाईं और मेरी क़मर पर कैंची सी मार कर अपने पैरों से मेरी क़मर नीचे की ओर दबाने लगी।
अभी मेरा सुपाड़ा भी उसकी चूत के अंदर नहीं गया था और ये चुदने को उतावली लड़की मेरे इस हलब्बी लण्ड को और अपनी चूत के अंदर लेना चाह रही थी।
मैंने अपने लण्ड पर हल्का सा दबाव बढ़ाया, अब मेरे लण्ड का सुपाड़ा उसकी रस से चिकनी चूत को फैलाकर उसमें टप्प से अंदर घुस गया।
‘आ… ई…ई…ई… ई…ई…ईईईई!!!’ -अज़रा के मुंह से मज़े से निकल रही सीत्कारों में दर्द का जरा सा समावेश हो गया। मुझे इस का पहले से ही अंदाज़ा था, मैंने फ़ौरन अपने लण्ड पर दबाब डालना बंद कर दिया और यहीं से सुपाड़ा वापिस खींच कर हौले से अज़रा की चूत में वापिस यही तक दोबारा ले जा कर फिर वापिस खींच लिया। कुल मिलाकर अभी मैं सिर्फ सुपाड़े से उसको चोद रहा था।
ऐसा मैंने तीन चार बार किया, अज़रा पर इसकी तत्काल प्रतिक्रिया हुई, पांचवी बार जैसे ही मैंने अपना लण्ड उसकी चूत से बाहर निकाला, उसने मेरी पीठ पर अपनी टांगों की कैंची तत्काल पूरी ताक़त से अपनी ओर खींची, परिणाम स्वरूप मैं भी उसकी ओर जोर से खिंचा और मेरा लण्ड भी अज़रा की चूत में ढाई से तीन इंच फनफनाता घुस गया।
"हाय... अल्लाह... ओ... अम्मी... मर गई..." -अज़रा के मुख से मज़े और दर्द से भरी मिली-जुली सिस्कारी निकल गई।
अज़रा की चूत एकदम कसी हुई और अंदर से जैसे धधक रही थी, मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरा लण्ड जैसे किसी नर्म गर्म संडासी में फंसा हुआ हो। ऐसा लगता था कि चूत की गर्मी धीरे धीरे मेरे लण्ड को पिघला कर ही मानेगी तो विरोध में मेरा लण्ड भी फूल कर और मोटा आकार लेने लगा।
चूत का रस खूब चिकनाहट पैदा कर रहा था और चूत में लण्ड का आवागमन थोड़ा सा आसान होता जा रहा था लेकिन अभी मैं अपने लण्ड को अज़रा की चूत के और ज्यादा अंदर प्रवेश करवाने से परहेज़ कर रहा था, आराम-आराम से अपने लण्ड को अज़रा की चूत से बाहर खींच कर, फिर जहां था वहीं तक दोबारा ठेल रहा था।
अब अज़रा भी इस रिदम का लुत्फ़ अपने चूतड़ उठा-उठा कर ले रही थी, ऐसे करते करते दस मिनट हो चुके थे और अज़रा आँखें बंद कर के चुदाई का पूरा मज़ा ले रही थी, लेकिन अभी कहानी आधी ही हुई थी, समय आ गया था कि इस चुदाई को सम्पूर्णता की ओर ले जाने का।
प्रेमपूर्वक की जा रही चुदाई का सबसे मुश्किल पल आने को था, यह वो पल होता है जब एक पुरुष, पूर्ण-पुरुष की उपाधि पाता है और एक लड़की, कच्ची कली से फूल बन जाती है। इसी पल से आगे चल कर औरत, एक माँ बनती है और एक नई कायनात रचती है।
इस पल में पुरुष लड़की के साथ प्यार के साथ साथ थोड़ी सी क्रूरता से पेश आता है, वही क्रूरता दिखाने का पल आ पहुंचा था। मैंने अज़रा की बाई चूची के निप्पल को मुंह में लिया और उसे चुभलाने लगा, उसके गर्म शरीर का उत्ताप फिर से बढ़ने लगा और उन्माद में वह बिस्तर पर जल बिन मछली की तरह तड़पने लगी।
मैंने उसका सर अपने दोनों हाथों की कैंची बनाकर फंसा लिया, फिर उसकी चूची के निप्पल से मुंह उठाया और उसके दोनों होठों को अपने होठों में दबा लिया और लगा चूसने। अगले ही पल मैंने अपना लण्ड अज़रा की चूत से बाहर निकाल कर पूरी ताक़त से वापिस उसकी चूत में ठांस दिया।
अगर मैंने उसके दोनों होंठ अपने होंठों से बंद नहीं कर दिए होते तो यकीनन उसकी चीख सड़क के परले सिरे तक सुनाई दी होती।
तत्काल अज़रा के दोनों हाथों ने दीवान की चादर पकड़ कर गुच्छा-मुच्छा कर डाली और अपने पैरों से मुझे पर धकेलने की असफल कोशिश करने लगी। उसकी आँखों से आंसुओं की धारें फ़ूट पड़ी पर अब तो जो होना था सो हो चुका था। अब अज़रा कुंवारी नहीं रही थी।
उसके गले से 'गों... गों ...' की आवाज़ें आ रही थीं लेकिन मैं उसकी चूत में अपना लण्ड जड़ तक ठांसे उसे वैसे ही जकड़े रहा।
मैं अज़रा के ऊपर औंधा पड़ा धीरे धीरे उसके सर को सहला रहा था, उसके आंसू अपने होंठों से बीन रहा था। धीरे-धीरे उसका रोना कम होता गया और मैंने हौले हौले अपनी क़मर को हरकत देना प्रारंभ किया, चार-छह धक्कों के बाद, अचानक अज़रा के शरीर में वही जानी पहचानी कम्पन की लहर उठी।
दो पल बाद ही अज़रा का शरीर इस रिदम का जवाब देने लगा। लण्ड को अज़रा की चूत से बाहर खींचने की क्रिया के साथ साथ ही अज़रा अपने नितम्ब नीचे को खींच लेती और जैसे ही लण्ड उसकी चूत में दोबारा प्रवेश पाने को होता तो वह शक्ति के साथ अपने चूतड़ ऊपर को करती, परिणाम स्वरूप एक ठप्प की आवाज के साथ मेरा लण्ड उसकी चूत के अंतिम छोर तक पहुँच जाता।
अज़रा के मुख से ‘आह…आई… ओह… मर गई… हा… उफ़… उम्म्ह… अहह… हय… याह… हाय… सी… ई…ई’ की आधी-अधूरी सी मज़े वाली सिसकारियां लगातार निकल रही थी और मैं बेसाख्ता उसको यहाँ-वहाँ चूम रहा था, चाट रहा था माथे पर, आँखों पर, गालों पर, नाक पर, गर्दन पर, गर्दन के नीचे, कंधो पर, चूचियों पर, निप्पलों पर, चूचियों की घाटी में।
चुदाई इस समय अपनी पूरी स्पीड पर थी, अचानक अज़रा का शरीर अकड़ने लगा, उसने अपने दांत मेरे बाएं कंधे पर गड़ा दिए, मेरी पीठ पर उसके तीखे नाख़ून पच्चीकारी करने की कोशिश करने लगे।
ये लक्षण मेरे लिए जाने पहचाने थे, मैं तत्काल अपनी कोहनियों के बल हुआ और उसके दोनों हाथ अपने हाथों में जकड़ कर बिस्तर पर लगा दिए और अपनी कमर तीव्रतम गति से चलाने लगा, साथ साथ मैं कभी अज़रा होठों पर चुम्बन जड़ रहा था, कभी उसके निप्पलों पर, कभी उसकी आँखों पर।
अचानक अज़रा का सारा शरीर कांपने लगा और उसकी चूत में जैसे विस्फोट हुआ और अज़रा की चूत से जैसे स्राव का झरना फूट पड़ा। अज़रा अपनी जिंदगी में पहली बार फुल चुदाई का मज़ा लेकर झड़ रही थी और उसकी चूत की मांसपेशियों ने संकुचित होकर मेरे लण्ड को जैसे निचोड़ना शुरू कर दिया।
प्रतिक्रिया स्वरूप मेरा लण्ड और ज्यादा फूलना शुरू हो गया, इसका नतीजा यह निकला कि मेरे लण्ड के लिए संकरी चूत में रास्ता और भी ज्यादा संकरा हो गया और मेरे लण्ड पर अज़रा की चूत की अंदरूनी दीवारों की रगड़ पहले से भी ज्यादा लगने लगी।
करीब एक मिनिट बाद ही जैसे ही मैंने पूरी शक्ति से अपना लण्ड अज़रा की चूत में अंदर तक डाला मेरे अंडकोषों में एक जबरदस्त तनाव पैदा हुआ और मेरे लण्ड ने पूरी ताक़त से वीर्य की पिचकारी उसकी चूत के आखिरी सिरे पर मारी फिर एक और.. एक और… एक और… एक और… मेरे गर्म वीर्य की बौछार।
अपनी चूत में मेरे वीर्य का लावा महसूस कर के अब तक निढाल और करीब-करीब बेहोश पड़ी अज़रा जैसे चौंक कर उठी और उसने मुझसे अपने हाथ छुड़ा कर जोर से मुझे अपनी बाँहों में ले लिया और मुझे यहाँ-वहाँ चूमने लगी।
एक भँवरे ने एक कली को फूल बना दिया था, एक लड़की, एक औरत बन चुकी थी, एक सफल चुदाई का समापन हो चुका था... अज़रा की सील आखिर टूट ही गई थी और मुझे अपने इस हसीं गुनाह पर कोई शर्मिंदगी नहीं थी।
और इसी के साथ अपने दोस्त सग़ीर ख़ान को अगली कहानी तक के लिए इजाज़त दीजिये।
ख़ुदा हाफ़िज़
ख़ुदा हाफ़िज़
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!
Love You All
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!
Love You All