26-05-2024, 04:44 PM
"आआआआआआह ओओओहहह....." पूरी तरह उसके लंड को अपने अंदर समाहित करके आहें भरने लगी।
"उफ़ उफ़ तेरी चूऊऊऊऊत। आआआआआआह...." घनश्याम भी अपनी सफलता का झंडा गाड़ कर आहें भरने को मजबूर हो गया। पूरी तरह लंड घुसेड़ कर कुछ पल रुक कर उस आनंदमय पलों को महसूस करने लगा। वही हाल मेरा भी था। अब घनश्याम फिर मुझे उठाने लगा और इतना ही उठाया कि उसका आधा लंड अंदर ही था फिर मुझे नीचे उतारने लगा। यही क्रम तीन चार बार दुहराने के बाद तो मैं भी पूरी तरह सक्रिय हो गयी और खुद ही उसकी गोद में उछलने को मजबूर हो गयी। मेरा रोम रोम तरंगित हो रहा था और मस्ती में आ कर मेरी आंखें बंद हो गयीं। हम दोनों को पहली बार एक दूसरे का स्वाद मिला था और सच कहूं तो अद्भुत सुखद स्वाद मिला था। अब इस उत्तेजक प्रथम समागम के सुखद पलों को महसूस करते हुए हमें इन पलों को जितना लंबा खींच सकते थे उतना खींच कर भरपूर मजा लेना था। मैं तो पागल सी हुई जा रही थी। घनश्याम मेरी चूतड़ों को नीचे से थाम कर मुझे ऊपर नीचे करने लगा और इसी के साथ उसका लंड मेरी चूत में अंदर बाहर होने लगा। मैं उनकी गर्दन पर अपनी बाहों का हार पहनाकर पैरों से उनकी कमर लपेटे अपनी चूत में उसके लंड के घर्षण से उत्पन्न तरंगों से दूसरी दुनिया में ही पहुंच गई थी। मैं अपने आप को कोसने लगी कि पता नहीं कौन सी बेवजह आशंका और भय के वशीभूत मैं इस अद्भुत आनंद से वंचित रहना चाह रही थी।
चुदाई के इस अद्भुत खेल में डूब कर अभी इसका रसास्वादन करना आरंभ ही की थी कि सहसा मेरी चूचियों पर दो खुरदुरे अजनबी हाथ आ कर थिरकने लगे। ये दो हाथ कहां से पैदा हो गये? घनश्याम के दोनों हाथ तो मेरे नितंबों के नीचे से मुझे थामे हुए थे। मैं चौंक उठी और मैं घबराकर आंखें खोल कर समझने की कोशिश करने लगी कि यह क्या हो रहा है। तभी मेरी गर्दन पर गर्म सांसें महसूस होने लगीं और साथ ही दाढ़ी का स्पर्श हुआ। मेरी पीठ की ओर से एक और व्यक्ति आ चिपका था। मुझे समझते देर नहीं लगी कि यह वही बूढ़ा गंजू था जो न जाने कब वहां चोरों की तरह घुसा चला आया था। छि छि, जिस घृणित बुड्ढे के सामने मुझे नंगी होने में शर्म आ रही थी वही बुड्ढा अब मेरी नंगी देह को न सिर्फ देख रहा था बल्कि अपने हाथों से महसूस कर रहा था।
"हट हट यह यह क क क्या कर रहे हो? तुम हटो, छोड़ो मुझे घटिया आदमी।" मैं चौंक कर तिरस्कार भरे स्वर में बोली। इस आनंददायक पलों में इतना अप्रिय व्यवधान, वह भी इस घृणित बुड्ढे द्वारा मुझे बेहद नागवार गुजरा।
"हम भी घनश्याम की तरह आदमी हैं। एक आदमी से इस तरह घिन से बोला नहीं करते मेरी बच्ची।" वह बूढ़ा पीछे से मेरी चूचियों को पकड़ कर बोला। इसी के साथ मेरी गर्दन को चूमने लगा। मेरी देह पर उसकी देह का स्पर्श मुझे घृणा से भर रहा था। मुझे अहसास हो गया था कि यह भी पूरी तरह नंगा है। हाय हाय यह मैं कहां आ फंसी थी। अब यह अजनबी गंदा बूढ़ा भी मुझे चोदने की फिराक में है, उससे चुदने की कल्पना से ही मैं सिहर उठी।
"नहीं नहीं। हटो, छोड़ो मुझे गंदे आदमी।" मैं घनश्याम के गले को छोड़ कर तड़प उठी। घनश्याम के गले को छोड़ने से मैं मुक्त नहीं हो पाई, क्योंकि घनश्याम ने अब मुझे कस के जकड़ लिया था और उसका लंड मेरी चूत में फंसा हुआ था।
"एक बुजुर्ग से इस तरह का वर्ताव ठीक नहीं है मेरी बन्नो रानी। इन्सानियत भी कोई चीज होती है। थोड़ी खुशी इसे भी बांट दो ना। सुना है खुशी बांटने से खुशी बढ़ती है। तेरा कुछ घट थोड़ी न जाएगा। तुम्हारे ही शब्दों के अनुसार बोलूं तो, आखिर क्या करेगा, चोदेगा ही ना। तो फिर अब इस तरह का नखरा क्यों? यकीन मानो, खुश हो जाओगी।" घनश्याम मुझे चोदना रोक कर जकड़े हुए बोला। चुदाई में खलल और बीच मझधार में घनश्याम का रुकना सचमुच बड़ा कष्टकारी सिद्ध हो रहा था। मुझे समझते देर नहीं लगी कि यह उनकी मिलीभगत थी, एक पूर्व योजना के तहत मुझे फंसाया गया था। इस वक्त मेरी जो हालत थी वह बयान के काबिल नहीं थी। एक तरफ घनश्याम की चुदाई का सुरूर मेरे सर चढ़ कर बोल रहा था और दूसरी तरफ इस बूढ़े गंजू के प्रति मन में वितृष्णा का भाव। उस वक्त चुदाई की खुमारी में मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था कि जग्गू को टालूं तो टालूं कैसे। अगर मैं जग्गू के प्रति वितृष्णा के बावजूद उसकी मंशा को पूरी होने देने के लिए अपनी सहमति दे दूं तो फिलहाल घनश्याम के साथ निर्विघ्न संभोग का लुत्फ ले सकती हूं बशर्ते कि गंजू इस तरह इस समय व्यवधान पैदा न करे। मैं ने मन कड़ा करके जग्गू की मंशा के आगे घुटने टेकने का निर्णय लिया क्योंकि इस वक्त घनश्याम के साथ मैं संभोग के जिस मुकाम तक पहुंच चुकी थी वहां से वापस लौटना कितना कष्टकारी होता उसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी।
"ठीक है जैसी आपलोगों की मर्जी, लेकिन इस वक्त आप रुकिए मत प्लीज।" मैं फिर से घनश्याम से लिपट गई।
"बहुत बढ़िया निर्णय।" कहकर घनश्याम फिर से गचागच चोदने लगा। मैं उत्तेजना की आंधी में बही चली जा रही थी। अब भी गंजू ने मुझे छोड़ा नहीं था और पीछे से मेरी चूचियों को सहलाने और दबाने का क्रम जारी रखा हुआ था। न चाहते हुए भी गंजू की हरकतों से मैं और भी ज्यादा उत्तेजना का अनुभव करने लगी थी।
"आआआआआआह ओओओहहह.... अभी तो छोड़िए गंजू जी। पहले घनश्याम चाचा जी से निपटने तो दीजिए। मैं कहीं भागी थोड़ी ना जा रही हूं।" मैं बुड्ढे गंजू के हाथों को झटकती हुई बोली।
"उफ़ उफ़ तेरी चूऊऊऊऊत। आआआआआआह...." घनश्याम भी अपनी सफलता का झंडा गाड़ कर आहें भरने को मजबूर हो गया। पूरी तरह लंड घुसेड़ कर कुछ पल रुक कर उस आनंदमय पलों को महसूस करने लगा। वही हाल मेरा भी था। अब घनश्याम फिर मुझे उठाने लगा और इतना ही उठाया कि उसका आधा लंड अंदर ही था फिर मुझे नीचे उतारने लगा। यही क्रम तीन चार बार दुहराने के बाद तो मैं भी पूरी तरह सक्रिय हो गयी और खुद ही उसकी गोद में उछलने को मजबूर हो गयी। मेरा रोम रोम तरंगित हो रहा था और मस्ती में आ कर मेरी आंखें बंद हो गयीं। हम दोनों को पहली बार एक दूसरे का स्वाद मिला था और सच कहूं तो अद्भुत सुखद स्वाद मिला था। अब इस उत्तेजक प्रथम समागम के सुखद पलों को महसूस करते हुए हमें इन पलों को जितना लंबा खींच सकते थे उतना खींच कर भरपूर मजा लेना था। मैं तो पागल सी हुई जा रही थी। घनश्याम मेरी चूतड़ों को नीचे से थाम कर मुझे ऊपर नीचे करने लगा और इसी के साथ उसका लंड मेरी चूत में अंदर बाहर होने लगा। मैं उनकी गर्दन पर अपनी बाहों का हार पहनाकर पैरों से उनकी कमर लपेटे अपनी चूत में उसके लंड के घर्षण से उत्पन्न तरंगों से दूसरी दुनिया में ही पहुंच गई थी। मैं अपने आप को कोसने लगी कि पता नहीं कौन सी बेवजह आशंका और भय के वशीभूत मैं इस अद्भुत आनंद से वंचित रहना चाह रही थी।
चुदाई के इस अद्भुत खेल में डूब कर अभी इसका रसास्वादन करना आरंभ ही की थी कि सहसा मेरी चूचियों पर दो खुरदुरे अजनबी हाथ आ कर थिरकने लगे। ये दो हाथ कहां से पैदा हो गये? घनश्याम के दोनों हाथ तो मेरे नितंबों के नीचे से मुझे थामे हुए थे। मैं चौंक उठी और मैं घबराकर आंखें खोल कर समझने की कोशिश करने लगी कि यह क्या हो रहा है। तभी मेरी गर्दन पर गर्म सांसें महसूस होने लगीं और साथ ही दाढ़ी का स्पर्श हुआ। मेरी पीठ की ओर से एक और व्यक्ति आ चिपका था। मुझे समझते देर नहीं लगी कि यह वही बूढ़ा गंजू था जो न जाने कब वहां चोरों की तरह घुसा चला आया था। छि छि, जिस घृणित बुड्ढे के सामने मुझे नंगी होने में शर्म आ रही थी वही बुड्ढा अब मेरी नंगी देह को न सिर्फ देख रहा था बल्कि अपने हाथों से महसूस कर रहा था।
"हट हट यह यह क क क्या कर रहे हो? तुम हटो, छोड़ो मुझे घटिया आदमी।" मैं चौंक कर तिरस्कार भरे स्वर में बोली। इस आनंददायक पलों में इतना अप्रिय व्यवधान, वह भी इस घृणित बुड्ढे द्वारा मुझे बेहद नागवार गुजरा।
"हम भी घनश्याम की तरह आदमी हैं। एक आदमी से इस तरह घिन से बोला नहीं करते मेरी बच्ची।" वह बूढ़ा पीछे से मेरी चूचियों को पकड़ कर बोला। इसी के साथ मेरी गर्दन को चूमने लगा। मेरी देह पर उसकी देह का स्पर्श मुझे घृणा से भर रहा था। मुझे अहसास हो गया था कि यह भी पूरी तरह नंगा है। हाय हाय यह मैं कहां आ फंसी थी। अब यह अजनबी गंदा बूढ़ा भी मुझे चोदने की फिराक में है, उससे चुदने की कल्पना से ही मैं सिहर उठी।
"नहीं नहीं। हटो, छोड़ो मुझे गंदे आदमी।" मैं घनश्याम के गले को छोड़ कर तड़प उठी। घनश्याम के गले को छोड़ने से मैं मुक्त नहीं हो पाई, क्योंकि घनश्याम ने अब मुझे कस के जकड़ लिया था और उसका लंड मेरी चूत में फंसा हुआ था।
"एक बुजुर्ग से इस तरह का वर्ताव ठीक नहीं है मेरी बन्नो रानी। इन्सानियत भी कोई चीज होती है। थोड़ी खुशी इसे भी बांट दो ना। सुना है खुशी बांटने से खुशी बढ़ती है। तेरा कुछ घट थोड़ी न जाएगा। तुम्हारे ही शब्दों के अनुसार बोलूं तो, आखिर क्या करेगा, चोदेगा ही ना। तो फिर अब इस तरह का नखरा क्यों? यकीन मानो, खुश हो जाओगी।" घनश्याम मुझे चोदना रोक कर जकड़े हुए बोला। चुदाई में खलल और बीच मझधार में घनश्याम का रुकना सचमुच बड़ा कष्टकारी सिद्ध हो रहा था। मुझे समझते देर नहीं लगी कि यह उनकी मिलीभगत थी, एक पूर्व योजना के तहत मुझे फंसाया गया था। इस वक्त मेरी जो हालत थी वह बयान के काबिल नहीं थी। एक तरफ घनश्याम की चुदाई का सुरूर मेरे सर चढ़ कर बोल रहा था और दूसरी तरफ इस बूढ़े गंजू के प्रति मन में वितृष्णा का भाव। उस वक्त चुदाई की खुमारी में मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था कि जग्गू को टालूं तो टालूं कैसे। अगर मैं जग्गू के प्रति वितृष्णा के बावजूद उसकी मंशा को पूरी होने देने के लिए अपनी सहमति दे दूं तो फिलहाल घनश्याम के साथ निर्विघ्न संभोग का लुत्फ ले सकती हूं बशर्ते कि गंजू इस तरह इस समय व्यवधान पैदा न करे। मैं ने मन कड़ा करके जग्गू की मंशा के आगे घुटने टेकने का निर्णय लिया क्योंकि इस वक्त घनश्याम के साथ मैं संभोग के जिस मुकाम तक पहुंच चुकी थी वहां से वापस लौटना कितना कष्टकारी होता उसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी।
"ठीक है जैसी आपलोगों की मर्जी, लेकिन इस वक्त आप रुकिए मत प्लीज।" मैं फिर से घनश्याम से लिपट गई।
"बहुत बढ़िया निर्णय।" कहकर घनश्याम फिर से गचागच चोदने लगा। मैं उत्तेजना की आंधी में बही चली जा रही थी। अब भी गंजू ने मुझे छोड़ा नहीं था और पीछे से मेरी चूचियों को सहलाने और दबाने का क्रम जारी रखा हुआ था। न चाहते हुए भी गंजू की हरकतों से मैं और भी ज्यादा उत्तेजना का अनुभव करने लगी थी।
"आआआआआआह ओओओहहह.... अभी तो छोड़िए गंजू जी। पहले घनश्याम चाचा जी से निपटने तो दीजिए। मैं कहीं भागी थोड़ी ना जा रही हूं।" मैं बुड्ढे गंजू के हाथों को झटकती हुई बोली।