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Adultery मौके पर चौका
#60
Heart 
बीस-पच्चीस मिनट बिना किसी हरकत के बीते। वैसे तो मेरी नज़र नॉवेल के पन्नों पर थी लेकिन दिमाग अज़रा की ओर था। कनखियों से अज़रा की ओर देखा तो पाया कि वह बाईं करवट लेटी हुई मेरी ओर ही देख रही थी।

फिर अज़रा ने आँखों ही आँखों में मुझे लाइट बंद करने का इशारा किया लेकिन मैंने उसे अभी रुक जाने का इशारा किया। जबाब में उसने मुझे ठेंगा दिखा कर मुंह बिचकाया, ऊपर चादर ले कर उलटी तरफ करवट ली और मेरी तरफ पीठ कर के लेट गई।

मुझे हंसी आ गई और मैंने हाथ बढ़ा कर अज़रा का कंधा छूआ तो उसने मेरा हाथ झटक दिया। मैंने दोबारा वही हाथ उस की कमर पर रखा तो उसने दुबारा मेरा हाथ अपनी कमर से झटक दिया। लौंडिया सचमुच रूठ गई थी।

अब के मैंने अपना हाथ हौले से अज़रा के ऊपर वाले नितम्ब पर रख दिया, इस बार उसने मेरा हाथ नहीं झटका। मैं धीरे-धीरे कोमलता से अज़रा का पूरा नितम्ब सहलाने लगा।

अचानक मुझे महसूस हुआ कि आज अज़रा ने लोअर के नीचे पैंटी नहीं पहन रखी थी। वही हाथ उसकी पीठ पर फिराने से पता चला कि ब्रा भी नदारद थी। इन सब का मुकम्मल मतलब तो ये था कि मेरी अज़रा जान चुदाई के लिए आज पूरी तरह से तैयार थी।

ऐसा सोचते ही मेरा लण्ड अपनी पूरी भयंकरता के साथ मेरे पजामे में फुंफ़कारने लगा। अपना वही हाथ अज़रा के कंधे तक ला कर मैंने उसका कंधा हलके से अपनी ओर खींचा तो वह सीधी हो कर लेट गई और आँख के इशारे से मुझे टेबल-लैम्प बुझाने को कहा।

मैंने पहले रज़िया की ओर घूम कर देखा, अपना चेहरा परली तरफ घुमा कर हल्क़े से कंबल में चित लेटी रज़िया गहरी निद्रा में थी। मैंने हाथ बढ़ा कर टेबल लैम्प बंद किया और अंधेरा होते ही झुक कर अज़रा के होंठों पर होंठ रख दिए। अज़रा ने फ़ौरन अपनी बाजुएं मेरे गले में डाल दी और बड़ी शिद्दत से मेरे होंठ चूसने लगी।

थोड़ी देर बाद मैं सीधा हुआ और फ़ौरन दोबारा अज़रा की ओर झुक कर मैंने उसके माथे पर, आँखों पर, गालों पर, नाक पर, गर्दन पर, गर्दन के नीचे, सैंकड़ों चुम्बन जड़ दिए।

अज़रा के दाएं कान की लौ चुभलाते समय मैं उसके मुंह से, आनंद के मारे निकलने वाली ‘सी…सी… सीई… सीई… सीई… ई…ई…ई’ की सिसकारियाँ साफ़ साफ़ सुन रहा था।

मैंने उसके नाईट सूट के ऊपर के दो बटन खोल दिए और अपना हाथ अंदर सरकाया। रुई के समान नरम और कोमल दो गोलों ने जिन के सिरों पर अलग अलग दो निप्पलों के ताज़ सजे थे, मेरे हाथ की उँगलियों का खड़े होकर स्वागत किया।

क्या भावनात्मक क्षण थे...

मेरा दिल कर रहा था कि दोनों कबूतरों को अपने सीने से लगा कर चुम्बनों से भर दूं, निप्पलों को इतना चूसूं… इतना चूसूं कि अज़रा के मुंह से आहें निकल जाएँ।

यूं तो अज़रा के मुंह से आहें तो मेरे चूचियों को छूने से पहले ही निकलना शुरू हो गई थी।

उधर उसका बायां हाथ मेरे पाजामे के ऊपर से ही मेरा लण्ड ढूंढ रहा था। अज़रा ने मेरे पजामे का कपड़ा खींच कर मुझे मेरे लण्ड को पजामे की कैद से छुड़ाने का इशारा किया, मैंने तत्काल अपना पजामा अपनी जाँघों तक नीचे खींच दिया।
अज़रा ने बेसब्री से मेरे तपते, कड़े-खड़े लण्ड को अपने हाथ में लिया और उसके सुपाड़े पर अपनी उंगलियां फेरने लगी।

मेरे लण्ड से उत्तेजनावश बहुत प्री-कम निकल रहा था और उससे अज़रा का सारा हाथ सन गया।

अचानक अज़रा ने वही हाथ अपने मुंह की ओर किया और अपने हाथ की मेरे प्री-कम से सनी उंगलियां अपने मुंह में डाल कर चूसने लगी।

मैंने तभी अज़रा के नाईट सूट के बाकी बटन भी खोल दिए और उसकी इनर उठा कर दोनों चूचियां नंगी करके अपनी जीभ से यहां-वहां चाटने लगा। इससे वह बिस्तर पर बिन पानी की मछली की तरह तड़फने लगी, वह जोर जोर से मेरा लण्ड हिला दबा रही थी और मैं उसकी  चूचियों का, निप्पलों का स्वाद चेक कर रहा था।

अज़रा पर झुके झुके मैंने अपना बायाँ हाथ उसके पेट की ओर बढ़ाया, नाभि पर एक-आध मिनट हाथ की उंगलियां गोल गोल घुमाने के बाद अपना हाथ नीचे की ओर बढ़ा कर हौले से उसके नाईट सूट का नाड़ा खोल दिया।

सरप्राइज...! आज अज़रा ने मुझे ऐसा करने से बिलकुल भी नहीं रोका। मतलब मेरी तरह चुदास उस पर भी पूरी तौर से हावी थी।

मैंने जैसे ही अपना हाथ और नीचे करके उसकी बिना पेंटी की चूत पर रखा तो एक और आश्चर्य मेरा इंतज़ार कर रहा था, आज अज़रा की चूत एकदम साफ़-सुथरी और चिकनी थी, उसकी चूत पर बालों का दूर दूर तक कोई नामोनिशान तक नहीं था, लगता था कि अज़रा ने आज शाम को ही अपनी चूत के बाल साफ़ किये थे।

उसकी छोटी सी चूत ज्यादा से ज्यादा साढ़े चार से पांच इन्च की थी जिस पर ढाई इंच से तीन इंच की दरार थी, दरार के ऊपर वाले सिरे पर छोटे मटर के साइज़ का भगनासा और अज़रा की चूत रस से इतनी सराबोर कि दरार में से रस बह-बह कर जांघों की अंदर वाली साइडों को भिगो रहा था।

मैंने अपने हाथ की बीच वाली उंगली दरार पर ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर फेरनी शुरू की, अज़रा के शरीर में रह रह कर काम तरंगें उठ रही थी जो मैं स्पष्टत: महसूस कर रहा था। वह बार बार अपने चूतड़ ऊपर उचका रही थी वहीँ एक हाथ से खुद ही अपनी चूची को बुरी तरह से मसल रही थी।

और दूसरे हाथ से मेरे लण्ड का भुरता बनाने पर तुली हुई थी। वह जोर जोर से मेरा लण्ड दबा रही थी, चुटकियां काट रही थी और लण्ड के सुपाड़े को अपनी उँगलियों में दबा दबा कर रस निकालने की कोशिश कर रही थी। बदले में मैं अज़रा की दोनों चूचियों को बारी बारी चूम रहा था, यहाँ-वहाँ चाट रहा था, निप्पल्स चूस रहा था।

निःसंदेह, हम दोनों जन्नत में थे।

अज़रा की चूत पर अपनी उंगलियां चलाते-चलाते मैंने अपने हाथ की बीच वाली उंगली दरार में घुसा दी और अंगूठे और पहली उंगली से उसका भगनासा हल्का हल्का मींजने लगा।

इस पर अज़रा ने उत्तेज़नावश अपनी दोनों टाँगें और चौड़ी कर दी ताकि मेरी बीच वाली उंगली थोड़ी और उसकी चूत में प्रवेश पा सके।

मुझे पता था कि अज़रा पूरी तौर पर कुंवारी कली थी और मेरे पास ज्यादा टाइम भी नहीं था, बस इक यही रात थी और जिंदगी में दोबारा ऐसी रात आनी मुश्किल थी। मैंने अज़रा की चूत में धँसी अपनी उंगली को उसकी चूत के अंदर ही गोल गोल घुमाना शुरू कर दिया।

इस का नतीजा फ़ौरन सामने आया, अज़रा बार बार रिदम में अपने चूतड़ बिस्तर से ऐसे ऊपर उठाने लगी जैसे चाहती हो कि मेरी पूरी उंगली उसकी चूत के अंदर चली जाए।

अज़रा की कुंवारी चूत से बेशुमार रस बह रहा था। मेरे लण्ड पर उस की पकड़ और मज़बूत हो गई थी। मैं अपनी उंगली को हर गोल घेरे के बाद थोड़ा और चूत में अंदर की ओर धँसा देता था।

धीरे धीरे गोल गोल घूमती मेरी करीब पूरी उंगली अज़रा की चूत में उतर गई। अब मैंने अपनी उंगली को बाहर निकाला और बीच वाली और तर्जनी उंगली को भी चूत में गोल गोल घुमाते घुमाते डालना शुरू कर दिया। रस से सरोबार अज़रा की चूत में मेरी दोनों उंगलियां प्रविष्ट हो गई।

अब ठीक था, रज़िया की बहन यानि मेरी साली अज़रा को प्रेम-जीवन के और इस सृष्टि के एक अनुपम और गूढ़तम रहस्य से परिचित करवाने का समय आ गया था। यानी कि अज़रा अपनी नथ उतरवाने को पूरी तौर से तैयार हो चुकी थी।
मैंने टाइम देखा, सवा बारह बज रहे थे, मतलब कि नींद की गोलियों का जादू रज़िया पर  पूरी तरह से चल चुका था और अब मेरे लिए ‘वन्स इन आ लाइफ टाइम’ जैसा मौका था।

मैं बिस्तर से उठ खड़ा हुआ और पहले अपना पजामा संभाला। परली तरफ जाकर, इससे पहले अज़रा कुछ समझ पाती, उसे अपनी गोद में उठा कर और अपने से लिपटा कर बाहर ड्राइंग रूम में लेकर आ गया। मुझे पता था कि जब किले की दीवारें ढहतीं है तो भयंकर आवाजें आती है। खासतौर से मेरे लण्ड से जब कोई कुंवारी चूत चुदती है तो वो चीखे चिल्लाये ना ऐसा हो ही नहीं सकता। हाँ इसकी आपा सायरा जैसी खेली खाई कई लण्ड से चुदी हो उसकी बात अलग है। जबकि सायरा की भी आँखे लण्ड के पहले झटके में बाहर को निकल आई थीं।

ड्राइंग रूम में सड़क से थोड़ी सी स्ट्रीट लाइट आ रही थी और वहाँ बैडरूम के जैसा घुप्प अन्धेरा नहीं था। अज़रा जहाँ पूरी तौर से चुदने को तैयार थी वहीँ उसे अपनी आपा यानी रज़िया का मन में खौफ भी था।

नीम अँधेरे में अज़रा मेरी बाहों में छटपटा रही थी- "मैं नहीं… मैं नहीं… आपा उठ जायेगी… मैं बदनाम हो जाऊँगी, वही बैडरूम में कल की तरह क्यू नहीं कर लेते… यहाँ बाहर मुझे क्या करने लाए हो… आप मुझे कहीं का नहीं छोड़ोगे…" -ऐसे ऊटपटाँग बड़बड़ा रही थी।

बाहर आते ही मैंने अपने बैडरूम का दरवाज़ा और बच्चों के कमरे का दरवाज़ा बाहर से लॉक किया और अज़रा को बताया कि आपा नहीं उठेंगी क्योंकि वह आज नींद में नहीं नशे में है। फिर मैंने उसको नींद की गोलियों वाली बात बताई तो वह बेफिक्र नज़र आने लगी।

मैंने अज़रा को बाहों में लेकर उसके तपते होठों पर होंठ रख दिए। अब वह भी दुगने जोशो-खरोश से मेरा साथ देने लगी। मैं उसका निचला होंठ चूस रहा था और वह मेरा ऊपर वाला होंठ चूस रही थी।

कभी मैं अज़रा की जुबान अपने मुंह में पा कर चूसता और कभी मेरी जीभ उसके मुंह के अंदर उसके दांत गिनती।

मेरे दोनों हाथ अज़रा के जिस्म की चोटियों और घाटियों का जायज़ा ले रहे थे, उसका एक हाथ मेरे लण्ड के साथ अठखेलियां कर रहा था और दूसरा हाथ मेरी गर्दन के साथ लिपटा था और वह खुद मेरे साथ लिपटी हुई पूरी हवा में झूल रही थी।

ऐसे ही अज़रा को अपने साथ लिपटाये लिपटाये चलते हुये मैंने ड्राइंग रूम में बिछे दीवान के पास उस को खड़ा कर दिया और खुद उसका नाईट सूट उतारने लगा।

अज़रा ने दिखावे के लिए थोड़ी नानुकुर तो की पर मैं माना ही नहीं… पलों में मैंने उसके नाईट सूट के साथ साथ नीचे पहनी इनर भी उतार दी और अगले ही पल मैंने अपने कपड़ों को भी तिलांजलि दे दी और उसकी ओर मुड़ा। अब हम दोनों ही ड्राइंग रूम में नितांत नंगे खड़े थे।

नंगी खड़ी अज़रा कभी अपने अंगों को दिखाने की कोशिश करती तो कभी पीठ करके छुपाने लगती। इस वक़्त वह बिलकुल खजुराहो का दिलकश मुज्जस्मा लग रही थी। अज़रा की दोनों नंगी चूचियां और उन पर तन कर खड़े दो निप्पल जैसे मेरे लण्ड को चुनौती दे रहे थे कि ‘है तुम में दम? जो हमें झुका सको?’

मेरे दिल में उसकी कुंवारी नन्ही सी चूत के लिए रहम भी आ रहा था वहीँ मेरा दिमाग इतने अरसे के बाद किसी सील बंद चूत की सील खोलने को उतावला हो रहा था। मैंने अज़रा को जोर से अपने आलिंगन में कस लिया और बदले में उसने दुगने जोर से मुझे अपनी बाँहों में कस लिया।

अज़रा की दोनों तनी हुई चूचियां मेरे सीने में जैसे पेवश्त हुई जा रहीं थीं। मैं उसके दिल की धड़कनें साफ़ साफ़ अपने सीने में धड़कती महसूस कर रहा था। वक़्त का पहिया चलते-चलते अचानक थम सा गया था, उस वक़्त मैं… सिर्फ मैं था, ना रज़िया का पति… ना बच्चों का पिता, बल्कि सिर्फ मैं... एक सील बंद चूत को खोलने की फ़िराक़ में अपना खड़ा लण्ड लिए सिर्फ मैं...

मेरी दोनों बाजुयें सख़्ती से अज़रा को लपेटे हुए उसकी पीठ पर जमी थीं। मैं अपना एक हाथ अज़रा की पीठ पर ऊपर नीचे फिरा रहा था कंधों से लेकर नितंबों के नीचे तक!

कभी कभी मेरी उंगलियां नितंबों की दरार के साथ साथ नीचे… गहरे नीचे उतर जाती, बिल्कुल उसकी चूत के छेद तक!

CONTD....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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Messages In This Thread
मौके पर चौका - by KHANSAGEER - 27-04-2024, 12:09 PM
RE: मौके पर चौका - by sri7869 - 27-04-2024, 02:22 PM
RE: मौके पर चौका - by Chandan - 05-05-2024, 10:14 AM
RE: मौके पर चौका - by KHANSAGEER - 25-05-2024, 12:54 PM
RE: मौके पर चौका - by Eswar P - 27-05-2024, 12:50 PM



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