24-05-2024, 08:39 PM
"तो करने दीजिए ना।" मैं झटके में बोल उठी।
"करने दूं?" घनश्याम मुस्कुरा कर बोला।
"हां हां जिसको जो करना है करने दीजिए, जो होगा मेरा होगा, आपको इससे क्या? आपको जो करना है कीजिए ना।" मुझसे अब ऐसी बेमतलब की बात में समय गंवाना बर्दाश्त नहीं हो रहा था। मैं उसकी गर्दन पर बांहों का हार पहनाकर उसे फिर से बेसाख्ता चूमने लगी।
"कोई भी तुम्हारे साथ कुछ भी करेगा उससे तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा?" वह शैतानी से बोला।
"अरे करेगा तो आखिर क्या करेगा?" मैं झल्ला कर बोली।
"चोदेगा।" वह मुस्कुराते हुए बोला।
"चोदने दीजिए। मुझे कौन चोदता है इससे आप को क्या। आप अपने काम से काम रखिए ना।" मैं वासना की आग में जलती हुई ऐसी बेमतलब की बात से बेहद खिन्न हो कर बोली। मैं जबरदस्ती उसकी नग्न देह को अपने में समा लेने की आतुरता में चिपक गई।
"ठीक बोली, तुम्हें कौन चोदता है इससे मुझे क्या। किसकी किसकी किस्मत में तुम्हें चोदना लिखा है इससे मुझे क्या लेना देना है। मेरी किस्मत में तो इस वक्त तुम्हें चोदना लिखा है। आजा मेरी बच्ची अपने चाचा की गोद में।" कहकर उसने मेरी चूतड़ के नीचे हाथ लगा कर मुझे गोद में उठा लिया। अब मेरी खुशी सातवें आसमान पर पहुंच चुकी थी। मैं अपने पैरों को उसकी कमर पर लपेट कर पूरी सहूलियत से झूलने लगी और उसे बेहताशा चूमने लगी।
जितनी आसानी से घनश्याम ने मुझे उठा रखा था उससे घनश्याम की ताकत का अंदाजा मुझे मिल रहा था। उसी पोजीशन में घनश्याम ने एक हाथ से मुझे थाम लिया और दूसरे हाथ से अपना तना हुआ लिंग नीचे से मेरी चूत के द्वार पर सटाया। जैसे ही उसके लिंग का स्पर्श मेरी यौन गुहा के प्रवेश द्वार पर हुआ, मैं चिहुंक उठी। उई मांआंआंआंआ....!घबराकर नहीं, बल्कि रोमांचित हो कर। यह अनुभव अनोखा था। मैं सनसना उठी थी। उत्तेजना के मारे मेरी चूत से रस रिसने लगा था। अब उसी चिकने रस पर घनश्याम अपने लिंग का सुपाड़ा घिस रहा था। मैं मुदित हो उठी। अब मेरी प्यासी योनि की मुराद पूरी होने वाली थी। घनश्याम अपने लिंग को मेरी योनि से रिसती चिकनाई पर रगड़ रहा था, इसका मतलब अब वह किसी भी पल मेरी योनि को अपने हथियार से भेदने वाला था। मैं इसी पल के लिए तो इतनी देर से मरी जा रही थी। उस वक्त मैं भूल ही गई थी कि घनश्याम का लिंग लंबाई में तो करीब करीब घुसा के बराबर ही था लेकिन मोटाई में घुसा के लिंग की तुलना में कुछ ज्यादा ही था। मेरी भूख प्यास से व्याकुल योनि उस वक्त एक अदद लिंग के लिए बेकरार थी। मुझे उस घड़ी घनश्याम जैसे ताकतवर बुजुर्ग के विशाल लिंग की लंबाई मोटाई की परवाह करने का होश ही नहीं था। मेरी योनि भेदन के इस अंतिम पल में घनश्याम ने अपने लिंग पर अतिरिक्त चिकनाई के लिए अपना थूक लगाया और अपने लिंग को मेरी योनि के प्रवेश द्वार पर टिका कर मुझे धीरे धीरे नीचे उतारने लगा।
घनश्याम की बिना किसी अतिरिक्त कोशिश से मेरा शरीर अपने भार के कारण नीचे आने लगा और इसका परिणाम यह हुआ कि मेरी चूत घनश्याम के तने हुए लंड पर उतरने लगा और जैसा कि आपलोग जानते हैं, घनश्याम के लंड का टोपा, मेरी चूत के दरवाजे को फैला कर अंदर दाखिल होने लगा।
"ऊऊऊऊऊहहहह मांआंआंआंआंआं...." यह पीड़ामिस्रित आनंद भरी आह थी जो मेरे मुंह से निकली थी। जैसे जैसे मेरा शरीर नीचे जाने लगा, वैसे वैसे उसके लंड के सुपाड़े के साथ साथ लंड का बाकी हिस्सा भी अंदर प्रविष्ट होने लगा। उसके लंड की असाधारण मोटाई के कारण मुझे अपनी चूत क्षमता से अधिक फैलती हुई महसूस हो रही थी लेकिन इस वक्त मुझे कोई परवाह नहीं थी। उसके लंड के हिसाब से मेरी संकीर्ण चूत जितना फैलना था फैल कर रास्ता देती जा रही थी। उसका लंड भी घनश्याम की तरह कमीना था, जबरदस्ती रास्ता बनाता हुआ घुसता ही चला जा रहा था। अंततः जड़ तक घुस कर ही रुका। मैं इस दौरान दांत भींचे दर्द को पीती, अपनी चूत की अविश्वसनीय क्षमता का प्रदर्शन करती हुई रोमांचित हो रही थी।
"आआआआआआह ओओओहहह....." पूरी तरह उसके लंड को अपने अंदर समाहित करके आहें भरने लगी।
"करने दूं?" घनश्याम मुस्कुरा कर बोला।
"हां हां जिसको जो करना है करने दीजिए, जो होगा मेरा होगा, आपको इससे क्या? आपको जो करना है कीजिए ना।" मुझसे अब ऐसी बेमतलब की बात में समय गंवाना बर्दाश्त नहीं हो रहा था। मैं उसकी गर्दन पर बांहों का हार पहनाकर उसे फिर से बेसाख्ता चूमने लगी।
"कोई भी तुम्हारे साथ कुछ भी करेगा उससे तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा?" वह शैतानी से बोला।
"अरे करेगा तो आखिर क्या करेगा?" मैं झल्ला कर बोली।
"चोदेगा।" वह मुस्कुराते हुए बोला।
"चोदने दीजिए। मुझे कौन चोदता है इससे आप को क्या। आप अपने काम से काम रखिए ना।" मैं वासना की आग में जलती हुई ऐसी बेमतलब की बात से बेहद खिन्न हो कर बोली। मैं जबरदस्ती उसकी नग्न देह को अपने में समा लेने की आतुरता में चिपक गई।
"ठीक बोली, तुम्हें कौन चोदता है इससे मुझे क्या। किसकी किसकी किस्मत में तुम्हें चोदना लिखा है इससे मुझे क्या लेना देना है। मेरी किस्मत में तो इस वक्त तुम्हें चोदना लिखा है। आजा मेरी बच्ची अपने चाचा की गोद में।" कहकर उसने मेरी चूतड़ के नीचे हाथ लगा कर मुझे गोद में उठा लिया। अब मेरी खुशी सातवें आसमान पर पहुंच चुकी थी। मैं अपने पैरों को उसकी कमर पर लपेट कर पूरी सहूलियत से झूलने लगी और उसे बेहताशा चूमने लगी।
जितनी आसानी से घनश्याम ने मुझे उठा रखा था उससे घनश्याम की ताकत का अंदाजा मुझे मिल रहा था। उसी पोजीशन में घनश्याम ने एक हाथ से मुझे थाम लिया और दूसरे हाथ से अपना तना हुआ लिंग नीचे से मेरी चूत के द्वार पर सटाया। जैसे ही उसके लिंग का स्पर्श मेरी यौन गुहा के प्रवेश द्वार पर हुआ, मैं चिहुंक उठी। उई मांआंआंआंआ....!घबराकर नहीं, बल्कि रोमांचित हो कर। यह अनुभव अनोखा था। मैं सनसना उठी थी। उत्तेजना के मारे मेरी चूत से रस रिसने लगा था। अब उसी चिकने रस पर घनश्याम अपने लिंग का सुपाड़ा घिस रहा था। मैं मुदित हो उठी। अब मेरी प्यासी योनि की मुराद पूरी होने वाली थी। घनश्याम अपने लिंग को मेरी योनि से रिसती चिकनाई पर रगड़ रहा था, इसका मतलब अब वह किसी भी पल मेरी योनि को अपने हथियार से भेदने वाला था। मैं इसी पल के लिए तो इतनी देर से मरी जा रही थी। उस वक्त मैं भूल ही गई थी कि घनश्याम का लिंग लंबाई में तो करीब करीब घुसा के बराबर ही था लेकिन मोटाई में घुसा के लिंग की तुलना में कुछ ज्यादा ही था। मेरी भूख प्यास से व्याकुल योनि उस वक्त एक अदद लिंग के लिए बेकरार थी। मुझे उस घड़ी घनश्याम जैसे ताकतवर बुजुर्ग के विशाल लिंग की लंबाई मोटाई की परवाह करने का होश ही नहीं था। मेरी योनि भेदन के इस अंतिम पल में घनश्याम ने अपने लिंग पर अतिरिक्त चिकनाई के लिए अपना थूक लगाया और अपने लिंग को मेरी योनि के प्रवेश द्वार पर टिका कर मुझे धीरे धीरे नीचे उतारने लगा।
घनश्याम की बिना किसी अतिरिक्त कोशिश से मेरा शरीर अपने भार के कारण नीचे आने लगा और इसका परिणाम यह हुआ कि मेरी चूत घनश्याम के तने हुए लंड पर उतरने लगा और जैसा कि आपलोग जानते हैं, घनश्याम के लंड का टोपा, मेरी चूत के दरवाजे को फैला कर अंदर दाखिल होने लगा।
"ऊऊऊऊऊहहहह मांआंआंआंआंआं...." यह पीड़ामिस्रित आनंद भरी आह थी जो मेरे मुंह से निकली थी। जैसे जैसे मेरा शरीर नीचे जाने लगा, वैसे वैसे उसके लंड के सुपाड़े के साथ साथ लंड का बाकी हिस्सा भी अंदर प्रविष्ट होने लगा। उसके लंड की असाधारण मोटाई के कारण मुझे अपनी चूत क्षमता से अधिक फैलती हुई महसूस हो रही थी लेकिन इस वक्त मुझे कोई परवाह नहीं थी। उसके लंड के हिसाब से मेरी संकीर्ण चूत जितना फैलना था फैल कर रास्ता देती जा रही थी। उसका लंड भी घनश्याम की तरह कमीना था, जबरदस्ती रास्ता बनाता हुआ घुसता ही चला जा रहा था। अंततः जड़ तक घुस कर ही रुका। मैं इस दौरान दांत भींचे दर्द को पीती, अपनी चूत की अविश्वसनीय क्षमता का प्रदर्शन करती हुई रोमांचित हो रही थी।
"आआआआआआह ओओओहहह....." पूरी तरह उसके लंड को अपने अंदर समाहित करके आहें भरने लगी।