24-05-2024, 08:35 PM
घनश्याम मेरी हालत से अनभिज्ञ नहीं था। वह जानता था कि मैं पूरी तरह गरम हो चुकी हूं और यही वह सुनहरा मौका था जब वह बड़ी आसानी से अपनी मंजिल (मेरी चूत) को हासिल कर सकता था और मुझ जैसी नवयौवना के कमनीय शरीर से सर्वोत्तम आनंद प्राप्त कर सकता था। वह धीरे से मुझे बिस्तर पर लिटा दिया। मैं कामुकता के वशीभूत एक टक उसे अपने कपड़ों से मुक्त होते हुए देख रही थी। एक एक करके उसके शरीर से सारे कपड़े उतरते जा रहे थे। शर्ट और बनियान उतरते ही उसके शरीर के ऊपरी हिस्से पर भरे हुए काले सफेद बाल मेरे शरीर में सिहरन पैदा कर रहे थे। उस उम्र में भी उसका शरीर कसा हुआ था। उसका चौड़ा सीना और उसकी बांहों की उभरी हुई मछलियां मेरे अंतर्मन को आंदोलित कर रहा था। जैसे ही उसका पैंट खुला, उसके अंडरवियर के ऊपर का बड़ा सा उभार यह जताने लगा था कि उसके अंदर जो कुछ भी था कितना विशाल होगा। हालांकि मैं पहले ही उसके लिंग का दर्शन कर चुकी थी लेकिन इस वक्त की बात कुछ और थी। इस वक्त उसके साथ सक्रिय संपर्क का अवसर आ चुका था, जो कि वास्तविकता का रूप लेने जा रहा था और उस की कल्पना से मेरे शरीर की धमनियों में रक्त का संचार द्रुत गति से होने लगा था। लो वह पल भी आ गया जब अंडरवियर के रूप में अंतिम पर्दा भी हट गया और उसका विशाल लिंग अपने पूरे जलाल के साथ मेरी आंखों के सामने उछाल मार कर प्रकट हो गया। अब वह पूरी तरह नंगा था और मेरी नग्न देह को सर से पांव तक वासनापूर्ण नजरों से निहार रहा था। वह भी शायद मुझ जैसी इतनी कम उम्र की कमसिन और सेक्सी नवयौवना के शरीर को अपनी पहुंच के इतने करीब पा कर अपनी किस्मत पर विश्वास नहीं कर पा रहा था होगा। वह मुझे चोदने के पहले अपलक मेरी खूबसूरत देह को जी भर देखे जा रहा था।
इधर मैं अपने अंदर भड़क उठी कामाग्नि से जलती हुई जल बिन मछली की तरह, हमारे शरीर के एकाकार होने के पलों के इंतजार में पागल हुई जा रही थी। अब मेरे अंदर कोई दुविधा नहीं थी, कोई इनकार नहीं, कोई विरोध नहीं, कोई भय नहीं, बस आमंत्रण, बेकरारी भरा आमंत्रण था। मैं रोजा से मादरजात नंगी रति बन गई थी और अपनी कमसिन, कंचन काया के साथ आमंत्रण की मुद्रा में बिस्तर पर लेटी हुई थी। बूढ़ा घनश्याम अब मुझे उस वक्त पूर्ण सक्षम, पौरुष से भरपूर, संभोग के लिए आतुर साक्षात कामदेव का अवतार नजर आ रहा था। हमारे बीच उम्र के इतने बड़े फासले का कोई अब कोई अर्थ नहीं था। इस वक्त मैं बस रति और वह मेरा कामदेव था। मेरी फकफकाती प्यासी चूत और उसके फुंफकार मारते विशाल काले लंड के मिलन में एक पल का विलंब अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था।
"ओओओओओ जालिम बुड्ढे, अब इस बच्ची को और कितना तड़पाओगे?" मैं उसकी ओर से विलंब होता देख कर तड़प उठी।
"बच्ची को अब बूढ़े से डर नहीं लग रहा है?" सहसा वह तंद्रा से जाग कर शैतानी से बोला।
"नहीं बाबा नहीं, अपनी बच्ची को बाहों में ले लो।" मैं बाहें फैला कर जल्दी से बोली।
"सोच लो तुम मुझे चाचा बोलती हो।"
"सोच ली, चाचा के लिए भतीजी तैयार है।" यह मेरे सब्र का इम्तिहान था।
"तुम बोल रही थी यह गलत है।" वह छेड़ते हुए बोला।
"अब बोल रही हूं कि सेक्स में सही ग़लत कुछ नहीं होता है।" मैं बेसब्री से करीब करीब चीखती हुई बोली।
"सोच लो।"
"सोच लिया। यहां तक होने के बाद अब सोचना क्या।" अब मेरे सब्र का पैमाना छलक उठा था। मैं बिल्कुल जंगली बिल्ली की तरह बिस्तर से उठी और उस पर झपट पड़ी और उसके नंगे जिस्म से चिपक कर बेसाख्ता चूमने लगी। मेरी इस हरकत से वह पल भर को हतप्रभ रह गया था लेकिन अब मैं रुकने वाली नहीं थी। मुझे होश ही कहां था। यहां तक कि क्या बोल रही हूं उसका भी होश नहीं था। मेरे चुंबन के प्रतिदान में वह भी मुझे चूमने लगा। एक हाथ से मुझे थाम कर दूसरे हाथ को मेरे नंगे जिस्म पर फिरा रहा था। कभी मेरी चिकनी गांड़ को सहलाता, कभी मसलता। उसका सख़्त लिंग मेरी चूत पर दस्तक दे रहा था।
"बहुत जोश में हो मेरी बन्नो रानी।" चूमते चूमते वह बीच में ही बोल उठा। उसकी उंगलियां अब मेरी चूत के ऊपर नृत्य कर रही थीं।
"हां हां, मेरे साथ गंदी गंदी हरकत करके मुझे पागल करने के बाद अब मुझे होश ही कहां है कि आप जोश की बात कर रहे हैं? इस वक्त ऐसी बात का क्या मतलब, जब मैं पागल हो चुकी हूं?" मैं हांफते हुए बोली। मेरा हाथ अब उसके लिंग को पकड़ चुका था। बाप रे, कितना गरम, सख्त और मोटा हो चुका था। मुझे उसके लिंग की लंबाई और मोटाई भी डरा नहीं रही थी।
"सचमुच पागल हो गई हो?" जैसे ही मैं उसका लंड पकड़ी वह बोल उठा।
"हां भई हां।" मैं उससे लिपट कर बोली।
"इतना पागल होना ठीक नहीं है।" वह फिर बोला।
"पहले मुझे पागल किया और अब लेक्चर दे रहे हैं?" मैं उसके उपदेश सुनने के मूड में नहीं थी। यहां मेरे अंदर आग लगी हुई थी और यह गधा मुझे लेक्चर पिला रहा था।
"लेक्चर नहीं दे रहा हूं। सावधान कर रहा हूं। ऐसी हालत में तो कोई भी तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकता है।" वह मेरे नितंबों को दबाते हुए बोला।
इधर मैं अपने अंदर भड़क उठी कामाग्नि से जलती हुई जल बिन मछली की तरह, हमारे शरीर के एकाकार होने के पलों के इंतजार में पागल हुई जा रही थी। अब मेरे अंदर कोई दुविधा नहीं थी, कोई इनकार नहीं, कोई विरोध नहीं, कोई भय नहीं, बस आमंत्रण, बेकरारी भरा आमंत्रण था। मैं रोजा से मादरजात नंगी रति बन गई थी और अपनी कमसिन, कंचन काया के साथ आमंत्रण की मुद्रा में बिस्तर पर लेटी हुई थी। बूढ़ा घनश्याम अब मुझे उस वक्त पूर्ण सक्षम, पौरुष से भरपूर, संभोग के लिए आतुर साक्षात कामदेव का अवतार नजर आ रहा था। हमारे बीच उम्र के इतने बड़े फासले का कोई अब कोई अर्थ नहीं था। इस वक्त मैं बस रति और वह मेरा कामदेव था। मेरी फकफकाती प्यासी चूत और उसके फुंफकार मारते विशाल काले लंड के मिलन में एक पल का विलंब अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था।
"ओओओओओ जालिम बुड्ढे, अब इस बच्ची को और कितना तड़पाओगे?" मैं उसकी ओर से विलंब होता देख कर तड़प उठी।
"बच्ची को अब बूढ़े से डर नहीं लग रहा है?" सहसा वह तंद्रा से जाग कर शैतानी से बोला।
"नहीं बाबा नहीं, अपनी बच्ची को बाहों में ले लो।" मैं बाहें फैला कर जल्दी से बोली।
"सोच लो तुम मुझे चाचा बोलती हो।"
"सोच ली, चाचा के लिए भतीजी तैयार है।" यह मेरे सब्र का इम्तिहान था।
"तुम बोल रही थी यह गलत है।" वह छेड़ते हुए बोला।
"अब बोल रही हूं कि सेक्स में सही ग़लत कुछ नहीं होता है।" मैं बेसब्री से करीब करीब चीखती हुई बोली।
"सोच लो।"
"सोच लिया। यहां तक होने के बाद अब सोचना क्या।" अब मेरे सब्र का पैमाना छलक उठा था। मैं बिल्कुल जंगली बिल्ली की तरह बिस्तर से उठी और उस पर झपट पड़ी और उसके नंगे जिस्म से चिपक कर बेसाख्ता चूमने लगी। मेरी इस हरकत से वह पल भर को हतप्रभ रह गया था लेकिन अब मैं रुकने वाली नहीं थी। मुझे होश ही कहां था। यहां तक कि क्या बोल रही हूं उसका भी होश नहीं था। मेरे चुंबन के प्रतिदान में वह भी मुझे चूमने लगा। एक हाथ से मुझे थाम कर दूसरे हाथ को मेरे नंगे जिस्म पर फिरा रहा था। कभी मेरी चिकनी गांड़ को सहलाता, कभी मसलता। उसका सख़्त लिंग मेरी चूत पर दस्तक दे रहा था।
"बहुत जोश में हो मेरी बन्नो रानी।" चूमते चूमते वह बीच में ही बोल उठा। उसकी उंगलियां अब मेरी चूत के ऊपर नृत्य कर रही थीं।
"हां हां, मेरे साथ गंदी गंदी हरकत करके मुझे पागल करने के बाद अब मुझे होश ही कहां है कि आप जोश की बात कर रहे हैं? इस वक्त ऐसी बात का क्या मतलब, जब मैं पागल हो चुकी हूं?" मैं हांफते हुए बोली। मेरा हाथ अब उसके लिंग को पकड़ चुका था। बाप रे, कितना गरम, सख्त और मोटा हो चुका था। मुझे उसके लिंग की लंबाई और मोटाई भी डरा नहीं रही थी।
"सचमुच पागल हो गई हो?" जैसे ही मैं उसका लंड पकड़ी वह बोल उठा।
"हां भई हां।" मैं उससे लिपट कर बोली।
"इतना पागल होना ठीक नहीं है।" वह फिर बोला।
"पहले मुझे पागल किया और अब लेक्चर दे रहे हैं?" मैं उसके उपदेश सुनने के मूड में नहीं थी। यहां मेरे अंदर आग लगी हुई थी और यह गधा मुझे लेक्चर पिला रहा था।
"लेक्चर नहीं दे रहा हूं। सावधान कर रहा हूं। ऐसी हालत में तो कोई भी तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकता है।" वह मेरे नितंबों को दबाते हुए बोला।