24-05-2024, 12:53 PM
कहानी शुरू होती है अब...
मालिक वो मर जाएगी,,छोड़ दीजिए उसे,मालिक अभी उम्र में बहुत कच्ची है,मालिक पैर पड़ती हूँ मैं आपके और रोते हुवे अपनी बेटी की इज़्ज़त की भीख मांगती रह गयी मालती जिसकी नाबालिक बेटी पिंकी की चीखें विजेंद्र सिंह के नीचे दब सी गयी थी।
गर्मी का मौसम और दोपहर का समय था जब पिंकी कॉलेज से सीधे विजेंद्र सिंह के हवेली पे आई थी जहाँ उसकी माँ मालती देवी काम करती थी,,और फिर काम खत्म करके माँ बेटी शामको अपने घर चले जाते थे,,ये रोज़ का दिन चर्या था उनका और आज भी वैसे ही पिंकी हवेली पे आई थी सीधा कॉलेज से अपने मगर उसको क्या पता कि आज उसकी माँ हवेली पे नही बल्कि खेत पे गयी थी छोटे मालिक गजेंद्र सिंह के लिए खाना लेके और हवेली पे बड़े मालिक विजेंद्र सिंह शराब के नशे में पूरे झूम रहे थे।
माँ माँ की आवाज़ करती पिंकी पूरे हवेली में दौड़े जा रही थी जब विजेंद्र सिंह की नज़रे पिंकी के ऊपर पड़ी।
सफेद शर्ट जिसमे उसके बड़े होते नुकीले वक्ष(चुचिया) पेट के ऊपर टाइट स्कर्ट जो घुटने तक आ रहे थे और दौड़ते हुवे उसके जांघो तक ऊपर हो रहे थे,,,ये सब देख विजेंद्र सिंह की नीयत बिगड़ते देर ना लगी,,एक तोह वो इतना बड़ा अय्यास और ऊपर से शराब के नशे में धुत,,उसको ये तक समझ मे नही आई जिसके लिए उसके लार टपकने शुरू हो रहे है मुँह से लेकर नीचे के हथियार तक वो अभी कच्ची फूल से भी नाजुक है,मगर हवस इस कदर हावी था उसके ऊपर की उसे अब पिंकी के सिवा कुछ भी नजर नही आ रहा था।
अपनी माँ को खोजते खोजते पिंकी विजेंद्र सिंह के कमरे के सामने पहुँच गयी और बड़े मासूमियत से पूछ बैठी
"बड़े सरकार आपने मेरी माँ को कहि देखा है क्या"
विजेंद्र सिंह जो हवस से भरा बैठा था उसने ज़रा सा भी देर न कि ये बोलने में की उसकी माँ मेरे कमरे की सफाई कर रही है,, बेशक ये सरा सर झूठ था मगर पिंकी इसको सच मान के दौड़ती हुई उसके कमरे में दाखिल हो गयी।
धड़ाम●●●●●●● ये आवाज़ गेट बंद होने की थी,पिंकी के घुसते ही कमरे में विजेंद्र सिंह ने पल भर की भी देर न कि गेट को बंद करने में,जिससे पिंकी भी सहम सी गयी मगर फिर भी वो पूरे कमरे में माँ माँ करके अपनी माँ मालती को ढूंढती रही जब तक कि वो सारे कमरा ना छान मारी हो।
और फिर निराशा भरी नजरों से देखती हुई विजेंद्र सिंह से बोल बैठी" बड़े सरकार मेरी माँ तोह कहि नही है इस कमरे में" आपने फिर झूठ क्यों बोला? और ये कह कर वो कमरे से जाने के लिए गेट तक पहुँची ही थी कि चीते से भी तेज फुर्ती से विजेंद्र सिंह उसको अपनी बाहों में दबोच लेता है और उसके गोद मे उठा के अपने बिस्तर पे लें जाने लगता है।
पिंकी का स्कर्ट अब पूरी तरह से उठ गया था जिससे उसकी काले रंग की कच्छी साफ दिख रही थी पीछे से,,
वो हाथ पैर चलाने लगी ताकि विजेंद्र सिंह की पकड़ से छूट सके लेकिन वो कामयाब नही हो सकती थी इसमें क्योंकि विजेंद्र सिंह जो पहलवान की तरह था ऊपर से पिंकी जैसी फूल को वो अपने एक हाथ से मसल सकता था।
अगले ही पल पिंकी बिस्तर पे पटकी जा चुकी थी और उसका विरोध अब आंसुओ का रूप लेने लगे थे।
वो बड़े सरकार के इस रूप को देख के पूरी तरह से डर चुकी थी क्योंकि वो उन्हें अपने दादा समान समझती थी मगर आज वही दादा उसके साथ नाजायज़ करने को आतुर थे।
पिंकी रहम की भीख मांगती रही अपने बड़े सरकार से मगर विजेंद्र सिंह को मानो कुछ सुनाई और दिखाई नही दे रहा था पिंकी की जिस्म के आगे।
विजेंद्र सिंह ने पूरे मजबूती से पकड़ कर पिंकी के स्कर्ट और उसके काली कच्छी को एक साथ निकाल के फेक दिया,अचानक हुवे इस हमले से पिंकी का पूरा बदन कांप गया,वो नीचे से पूरी नंगी हो चुकी थी,,, उसकी चूत जिसके ऊपर अभी भूरे भूरे रोये(बाल) निकलने शुरू ही हुवे थे वो विजेंद्र सिंह के आंखों की चमक बढ़ा चुके थे,,
फूली हुई रोटी समान उसकी चूत जिसके फांके आपस मे इस तरह से चिपके थे मानो गोंद से किसी ने चिपकाए हो।
हवा भी बमुश्किल उसकी चूत से निकल पाए इस कदर कसी हुई थी,,
इस सदमे से उभर ही नही थी पिंकी की विजेंद्र सिंह ने उसके शर्ट को तार तार करना शुरू कर दिया और अब पिंकी के बदन पर सिर्फ सफेद रंग की सण्डो बनियान थी,क्योंकि इस उम्र की लड़कियां गांव की अक्शर यही पहनती है ब्रा तोह शादी के बाद ही उनको मिलता है पहनने को।
और अगले ही पल वो भी बदन से गयाब मालूम होता दिखा पिंकी को,,वो सदमे में इस कदर जा चुकी थी कि उसके मुंह से एक शब्द भी नही निकल पा रहे थे सिवाय उसके आंसुओ के,,
टेनिस के बॉल की आकृति जैसे उसकी चुचिया जो आगे से नुकीली थी जिससे साफ पता चल रहा था कि उसके ऊपर किसी की उंगली भी नही गयी थी आज तक,, उसके निप्पल जो पिंक रंग के पिम्प्पल की तरह इतने छोटे थे कि जिनको चुटकियों से भी पकड़ना मुश्किल था।
गोरा बदन जो पूरी तरह से कोरा था वो विजेंद्र सिंह को इंसान से भेड़िया बना रहा था,,
और धोती में फनफनाता हुआ बड़ा सा मूसल धोती फाड़ने को आतुर हो रहा था.....
मालिक वो मर जाएगी,,छोड़ दीजिए उसे,मालिक अभी उम्र में बहुत कच्ची है,मालिक पैर पड़ती हूँ मैं आपके और रोते हुवे अपनी बेटी की इज़्ज़त की भीख मांगती रह गयी मालती जिसकी नाबालिक बेटी पिंकी की चीखें विजेंद्र सिंह के नीचे दब सी गयी थी।
गर्मी का मौसम और दोपहर का समय था जब पिंकी कॉलेज से सीधे विजेंद्र सिंह के हवेली पे आई थी जहाँ उसकी माँ मालती देवी काम करती थी,,और फिर काम खत्म करके माँ बेटी शामको अपने घर चले जाते थे,,ये रोज़ का दिन चर्या था उनका और आज भी वैसे ही पिंकी हवेली पे आई थी सीधा कॉलेज से अपने मगर उसको क्या पता कि आज उसकी माँ हवेली पे नही बल्कि खेत पे गयी थी छोटे मालिक गजेंद्र सिंह के लिए खाना लेके और हवेली पे बड़े मालिक विजेंद्र सिंह शराब के नशे में पूरे झूम रहे थे।
माँ माँ की आवाज़ करती पिंकी पूरे हवेली में दौड़े जा रही थी जब विजेंद्र सिंह की नज़रे पिंकी के ऊपर पड़ी।
सफेद शर्ट जिसमे उसके बड़े होते नुकीले वक्ष(चुचिया) पेट के ऊपर टाइट स्कर्ट जो घुटने तक आ रहे थे और दौड़ते हुवे उसके जांघो तक ऊपर हो रहे थे,,,ये सब देख विजेंद्र सिंह की नीयत बिगड़ते देर ना लगी,,एक तोह वो इतना बड़ा अय्यास और ऊपर से शराब के नशे में धुत,,उसको ये तक समझ मे नही आई जिसके लिए उसके लार टपकने शुरू हो रहे है मुँह से लेकर नीचे के हथियार तक वो अभी कच्ची फूल से भी नाजुक है,मगर हवस इस कदर हावी था उसके ऊपर की उसे अब पिंकी के सिवा कुछ भी नजर नही आ रहा था।
अपनी माँ को खोजते खोजते पिंकी विजेंद्र सिंह के कमरे के सामने पहुँच गयी और बड़े मासूमियत से पूछ बैठी
"बड़े सरकार आपने मेरी माँ को कहि देखा है क्या"
विजेंद्र सिंह जो हवस से भरा बैठा था उसने ज़रा सा भी देर न कि ये बोलने में की उसकी माँ मेरे कमरे की सफाई कर रही है,, बेशक ये सरा सर झूठ था मगर पिंकी इसको सच मान के दौड़ती हुई उसके कमरे में दाखिल हो गयी।
धड़ाम●●●●●●● ये आवाज़ गेट बंद होने की थी,पिंकी के घुसते ही कमरे में विजेंद्र सिंह ने पल भर की भी देर न कि गेट को बंद करने में,जिससे पिंकी भी सहम सी गयी मगर फिर भी वो पूरे कमरे में माँ माँ करके अपनी माँ मालती को ढूंढती रही जब तक कि वो सारे कमरा ना छान मारी हो।
और फिर निराशा भरी नजरों से देखती हुई विजेंद्र सिंह से बोल बैठी" बड़े सरकार मेरी माँ तोह कहि नही है इस कमरे में" आपने फिर झूठ क्यों बोला? और ये कह कर वो कमरे से जाने के लिए गेट तक पहुँची ही थी कि चीते से भी तेज फुर्ती से विजेंद्र सिंह उसको अपनी बाहों में दबोच लेता है और उसके गोद मे उठा के अपने बिस्तर पे लें जाने लगता है।
पिंकी का स्कर्ट अब पूरी तरह से उठ गया था जिससे उसकी काले रंग की कच्छी साफ दिख रही थी पीछे से,,
वो हाथ पैर चलाने लगी ताकि विजेंद्र सिंह की पकड़ से छूट सके लेकिन वो कामयाब नही हो सकती थी इसमें क्योंकि विजेंद्र सिंह जो पहलवान की तरह था ऊपर से पिंकी जैसी फूल को वो अपने एक हाथ से मसल सकता था।
अगले ही पल पिंकी बिस्तर पे पटकी जा चुकी थी और उसका विरोध अब आंसुओ का रूप लेने लगे थे।
वो बड़े सरकार के इस रूप को देख के पूरी तरह से डर चुकी थी क्योंकि वो उन्हें अपने दादा समान समझती थी मगर आज वही दादा उसके साथ नाजायज़ करने को आतुर थे।
पिंकी रहम की भीख मांगती रही अपने बड़े सरकार से मगर विजेंद्र सिंह को मानो कुछ सुनाई और दिखाई नही दे रहा था पिंकी की जिस्म के आगे।
विजेंद्र सिंह ने पूरे मजबूती से पकड़ कर पिंकी के स्कर्ट और उसके काली कच्छी को एक साथ निकाल के फेक दिया,अचानक हुवे इस हमले से पिंकी का पूरा बदन कांप गया,वो नीचे से पूरी नंगी हो चुकी थी,,, उसकी चूत जिसके ऊपर अभी भूरे भूरे रोये(बाल) निकलने शुरू ही हुवे थे वो विजेंद्र सिंह के आंखों की चमक बढ़ा चुके थे,,
फूली हुई रोटी समान उसकी चूत जिसके फांके आपस मे इस तरह से चिपके थे मानो गोंद से किसी ने चिपकाए हो।
हवा भी बमुश्किल उसकी चूत से निकल पाए इस कदर कसी हुई थी,,
इस सदमे से उभर ही नही थी पिंकी की विजेंद्र सिंह ने उसके शर्ट को तार तार करना शुरू कर दिया और अब पिंकी के बदन पर सिर्फ सफेद रंग की सण्डो बनियान थी,क्योंकि इस उम्र की लड़कियां गांव की अक्शर यही पहनती है ब्रा तोह शादी के बाद ही उनको मिलता है पहनने को।
और अगले ही पल वो भी बदन से गयाब मालूम होता दिखा पिंकी को,,वो सदमे में इस कदर जा चुकी थी कि उसके मुंह से एक शब्द भी नही निकल पा रहे थे सिवाय उसके आंसुओ के,,
टेनिस के बॉल की आकृति जैसे उसकी चुचिया जो आगे से नुकीली थी जिससे साफ पता चल रहा था कि उसके ऊपर किसी की उंगली भी नही गयी थी आज तक,, उसके निप्पल जो पिंक रंग के पिम्प्पल की तरह इतने छोटे थे कि जिनको चुटकियों से भी पकड़ना मुश्किल था।
गोरा बदन जो पूरी तरह से कोरा था वो विजेंद्र सिंह को इंसान से भेड़िया बना रहा था,,
और धोती में फनफनाता हुआ बड़ा सा मूसल धोती फाड़ने को आतुर हो रहा था.....