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Adultery मौके पर चौका
#59
Heart 
आज मैं कल जैसी नर्मदिली से पेश नहीं आ रहा था, उसकी चूची का निप्पल हाथ में आते ही फूल कर सख़्त हो गया था, मैं अंगूठे और एक उंगली के बीच में निप्पल लेकर हल्के हल्के मसलने लगा।

अज़रा का दायां हाथ मेरे हाथ के ऊपर रखा था, जहां जहां उसे तीव्र आनन्द की अनुभूति होती, वहीं वहीं उसका हाथ मेरे हाथ पर कस जाता। मेरा मन कर रहा था कि मैं उसकी चूचियों के तने हुए निप्पलों का अपने होंठों से रसपान करूँ लेकिन उसमें अभी भयंकर ख़तरा था सो मैंने अपने मन पर काबू पाया और इसी खेल को आगे बढ़ाने में लग गया।

मैंने अपना दायां हाथ अज़रा की चूचियों से उठा कर उसके बाएं हाथ पर (जो मेरी छाती पर ही पड़ा था) रख दिया। अज़रा के हाथ को सहलाते सहलाते मैंने उसका हाथ उठा कर पजामे के ऊपर से ही अपने गर्म, तने हुए लण्ड पर रख दिया।

अज़रा को जैसे 440 वाट का करंट लगा, उसने झट से अपना हाथ मेरे लण्ड से उठाने की कोशिश की लेकिन उस के हाथ के ऊपर तो मेरा हाथ था, कैसे जाने देता?

दो एक पल की धींगामुश्ती के बाद उसने हार मान ली और मेरे लण्ड पर से अपना हाथ हटाने की कोशिश छोड़ दी।

मैंने अपने हाथ से जो अज़रा का वो हाथ थामे था जिस की गिरफ़्त में मेरा गर्म, फौलाद सा तना हुआ लण्ड था, को दो पल के लिए अपने लण्ड से हटाया और अपना पजामा अपनी जांघों से नीचे कर के वापिस अपना लण्ड अज़रा को पकड़ा दिया। उसके शरीर में फिर से वही जानी-पहचानी कंपकंपी की लहर उठी।

अब अज़रा का हाथ खुद ही लण्ड की चमड़ी को आगे पीछे कर के मेरे लण्ड से खेलने लगी, कभी वो सुपाड़े पर उंगलिया फेरती, कभी लण्ड की चमड़ी पीछे कर के सुपाड़े को अपनी हथेली में भींचती, कभी मेरे अण्डकोषों को सहलाती।

ऊपर मेरे हाथों द्वारा उसकी चूचियों को मसलना जारी था। धीरे धीरे मैं अपना दायां हाथ उसके पेट पर ले गया, नाईट सूट के अप्पर को पेट से ऊंचा करके मैंने अज़रा के पेट पर हल्के से हाथ फेरा और फिर से उसके शरीर में वही जानी पहचानी कंपकंपी की लहर को महसूस किया, अज़रा का हाथ मेरे लण्ड पर जोरों से कस गया।

मैं धीरे धीरे अपना हाथ उसके पेट पर घुमाता घुमाता नाभि के आस पास ले गया, अज़रा के शरीर में रह रह कर कंपन की लहरें उठ रही थी। जैसे ही मेरा हाथ अज़रा के नाईट सूट के लोअर के नाड़े को टच हुआ, उसने अपने दाएं हाथ से मेरा हाथ पकड़ लिया और मजबूती से मेरा हाथ ऊपर को खींचने लगी।

मैंने जैसे-तैसे अपना हाथ छुड़ाया और फिर से दोबारा जैसे ही उसके नाईट सूट के लोअर के नाड़े को छूआ, अज़रा की फिर वापिस वही प्रतिक्रिया हुई, उसने मजबूती से मेरा हाथ पकड़ कर वापिस ऊपर खींच लिया।

ऐसा लगता था कि अज़रा मुझे किसी भी कीमत पर अपना लोअर खोलने नहीं देगी। मजबूरी थी… प्यार था, लड़ाई नहीं जो जोर जबरदस्ती करते, जो करना था खामोशी से और आपसी समझ बूझ से ही करना था।

मैंने अज़रा का हाथ उठा कर वापिस अपने लण्ड पर रख दिया और अब की बार अपना हाथ चादर के अंदर पर उसके नाईट सूट के सूती लोअर पर बाहर से ही उसकी बाईं जांघ कर रख दिया। अज़रा के शरीर में कंपन की लहर उठी और अब मैं उसकी जांघ सहलाते सहलाते अपना हाथ जांघ के अंदर को और ऊपर की ओर ले जाने लगा।

मेरी स्कीम काम कर गई, आनन्द स्वरूप अज़रा के मुंह से हल्की-हल्की सिसकारी निकलने लगी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ उसका हाथ जोर-जोर से मेरे लण्ड पर ऊपर-नीचे चलने लगा।

अज़रा की बाईं जांघ पर स्मूथ चलती मेरी उंगलियों ने अचानक महसूस किया कि उंगलियों और रेशमी जांघ के बीच में कोई मोटा सा कपड़ा आ गया हो। मैं समझ गया कि यह अज़रा की पेंटी थी। धीरे धीरे मैं जाँघों के ऊपरी जोड़ की ओर बढ़ा।
उफ़! एकदम गर्म और सीली सी जगह… मैंने वहां अपना हाथ रोक कर अपनी उंगलियों से सितार सी बजाई। फ़ौरन ही अज़रा ने मेरे लण्ड को इतने जोर से दबाया कि पूछो मत।

मैंने नाईट सूट के सूती लोअर के बाहर से ही अज़रा की पेंटी को साइड से ऊपर उठाया और नाईट सूट के कपडे समेत अपनी चारों उंगलियां उसकी पेंटी के अंदर डाल दी। मेरे हाथ के नीचे जन्नत थी पर मुझे इस जन्नत पर कुछ खेती लहलहाती सी महसूस हुई। शायद वह चूत की झांटो को साफ़ नहीं करती थी।

मैं कुछ देर अपनी उंगलियों से अज़रा की चूत पर सितार बजाने जैसी हरकत करता रहा और इधर वह मेरे लण्ड को मथती जा रही थी। अचानक ही मैंने अपना दायां हाथ उसकी चूत से उठाया और फुर्ती से उसके नाईट सूट के लोअर का नाड़ा खोल कर अपना हाथ उसकी पेंटी के अंदर झांटो भरी चूत पर रख दिया।

उसने फ़ौरन अपना दायां हाथ मेरे हाथ पर रखा और मेरा हाथ अपनी चूत से उठाने की कोशिश करने लगी लेकिन अब तो बाज़ी बीत चुकी थी, अब मैं कैसे हाथ उठाने देता।

मैंने सख्ती से अपना हाथ अज़रा की चूत पर टिकाये रखा और साथ साथ अपनी बीच वाली उंगली चूत की दरार पर ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर फिराता रहा।कुछ ही देर बाद अज़रा ने मेरे उस हाथ की पुश्त पर जिससे मैं उसकी चूत का जुग़राफ़िया नाप रहा था, एक हल्की सी चपत मारी और अपना हाथ उठा कर परे करके जैसे मुझे खुल कर खेलने की परमीशन दे दी।

अज़रा की चूत से बेशुमार काम-रस बह रहा था, उसकी पूरी पेंटी भीग चुकी थी। मैंने उसकी चूत की दरार पर उंगली फेरते फेरते अपनी बीच वाली उंगली से उसकी चूत की  भगनासा को सहलाया, उसने जल्दी से अपनी दोनों जाँघें जोर से अंदर को भींच ली।

मैंने वही उंगली अज़रा की चूत में जरा नीचे अंदर को दबाई तो उसके मुंह से ‘उफ़्फ़’ निकल गया। अज़रा शतप्रतिशत कुंवारी थी, लगता था कि उसने आज तक कभी हस्तमैथुन भी नहीं किया था।

तभी मुझे अपनी बाईं ओर हल्की सी हलचल और कपड़ों की सरसराहट का अहसास हुआ, मैंने तत्काल अपना हाथ अज़रा की चूत पर से खींचा और उससे जरा सा उरली तरफ सरक कर गहरी नींद में सोने के जैसी ऐक्टिंग करने लगा।

मिंची आँखों से देखा तो रज़िया बाथरूम जाने के लिए उठ रही थी। जैसे ही वह बाथरूम में घुसी मैंने फ़ौरन अपने कपड़े ठीक किये और फुसफुसाती आवाज़ में अज़रा को भी अपने कपड़े ठीक करने को कह दिया। सब कुछ ठीक ठाक करने के बाद हम दोनों ऐसे अलग अलग लेट गए जैसे गहरी नींद में हों।

बाथरूम से बाहर आ कर सुधा ने AC का टेम्प्रेचर बढ़ाया और वापिस बिस्तर पर आकर मुझे पीछे से अपनी बांहो में ले लिया।

बाल बाल बचे थे हम... मुझे बहुत देर बाद नींद आई।

अगले दिन शनिवार था और शनिवार के बाद इतवार की छुट्टी थी।

शाम को लगभग 4 बज़े एसी वाले का फ़ोन आया कि एसी ठीक हो गया था और वो पूछ रहा था कि कब अपने आदमी मेरे घर भेजे ताकि एसी वापिस फ़िट किया जा सके। मैंने उसे इतवार शाम को आकर एसी फिट करने को बोला।

अब मेरे पास केवल एक ही रात थी जिसमें मैंने कुछ कर गुज़रना था और मैं रात को सबकुछ कर गुज़रने को दृढ़प्रतिज्ञ था। शाम को मैंने अपने परिचित कैमिस्ट से गहरी नींद आने की गोलियों की एक स्ट्रिप ली और आईसक्रीम की दूकान से एक ब्रिक बटरस्काच आईसक्रीम ले कर घर आया। रज़िया को बटरस्काच आईसक्रीम बहुत पसंद थी। चार गोलियां पीस कर में एक पुड़िया में अपने पास रख ली।

रात को डिनर के टाइम डाइनिंग टेबल पर अज़रा डिनर सर्व कर रही थी, आमतौर पर रज़िया डिनर सर्व करती थी लेकिन उस दिन अज़रा डिनर सर्व कर रही थी, आते-जाते किसी न किसी बहाने वह मुझे यहां वहां छू रही थी।

डिनर हुआ, आईस क्रीम मैंने खुद सबको सर्व की। बच्चों की और रज़िया वाली प्लेट में मैंने वो पीसी हुईं नींद की गोलियां मिला दी। सब ने आईसक्रीम खाई और करीब 9:30 बजे मैं एक दोहरी मनस्थिति में अपने बैडरूम में आ गया।

नींद की गोलियों का असर रज़िया पर एक से डेढ़ घंटे बाद होना था।

ब्रश करने के बाद मैंने बाथरूम में ही मुट्ठ मारी और अपना अंडरवियर पहने बिना ही पजामा पहन लिया और एक नावेल लेकर वापिस अपने बिस्तर पर आ जमा। मैं अपने बिस्तर पर दो तकियों के साथ पीठ टिका कर, पेट तक चादर ले कर ओढ़ कर और घुटने मोड़ कर नॉवल पढ़ने लगा।

सब काम निपटा कर, करीब सवा दस बजे रज़िया और अज़रा दोनों बैडरूम में आईं। तब तक बैडरूम में चलते A.C की बड़ी सुखद सी ठंडक फ़ैल चुकी थी।

आते ही रज़िया बोली- "आज तो मैं बहुत थक सी गई हूँ, बहुत नींद आ रही है"

"मुझे भी" -अज़रा ने भी हामी भरी।

"तो सो जाओ, किसने रोका है" -मैंने कहा।

"और आप?" -रज़िया ने पूछा।

"मैं थोड़ा पढ़ कर सोऊंगा, मुझे अभी नींद नहीं आ रही है" -मैंने कहा।

"ठीक है… पर आप ट्यूब लाइट बंद करके टेबललैम्प जला लें" -रज़िया ने मुझ से कहा।

मैंने सिरहाने फिक्स टेबल-लैम्प जला कर ट्यूब लाइट बंद कर दी।

अब स्थिति यूं थी कि मेरे सर के ऊपर थोड़ा बाएं तरफ टेबल-लैम्प जल रहा था और अज़रा मेरे दाईं तरफ क़दरतन अंधेरे में थी और मेरे दाईं ओर से, मतलब रज़िया की ओर से अज़रा को साफ़ साफ़ देख पाना मुश्किल था क्योंकि बीच में मैं था और अज़रा मेरी परछाई में थी।
CONTD....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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मौके पर चौका - by KHANSAGEER - 27-04-2024, 12:09 PM
RE: मौके पर चौका - by sri7869 - 27-04-2024, 02:22 PM
RE: मौके पर चौका - by Chandan - 05-05-2024, 10:14 AM
RE: मौके पर चौका - by KHANSAGEER - 23-05-2024, 11:46 AM
RE: मौके पर चौका - by Eswar P - 27-05-2024, 12:50 PM



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