23-05-2024, 10:38 AM
"मुझसे इतनी गंदी तरह व्यवहार मत कीजिए चाचा जी प्लीज़।" मैं अंतिम बार विरोध करने की कोशिश करते हुए बोली।
"इसमें गंदा क्या है? तेरे कपड़े ही तो खोल रहा हूं।" कहते हुए मेरी टॉप के सामने के सारे बटन खोल दिया। हाय राम, वह दढ़ियल बूढ़ा कितनी भूखी नज़रों से मेरे सीने को देख रहा था।
"इस पराए बूढ़े के सामने ऐसा करना बुरा नहीं है क्या? जरा तो रहम कीजिए बेशरम। मुझे पराए मर्द के सामने शरम आ रही है।" मैं उसके दोनों हाथ पकड़ कर बोली। दरअसल आत्मनियंत्रण खोने की शुरुआत हो चुकी थी लेकिन उस बूढ़े की उपस्थिति मुझे खल रही थी।
"मैं तुम्हारे साथ जो करने जा रहा हूं उसमें तुम्हें कोई ऐतराज तो नहीं है ना?" घनश्याम मेरे टॉप को उतारते हुए बोला।
"नहीं, मगर अकेले में।" मुझे बोलना पड़ा। मरता क्या न करता।
"यही बात तुम पहले बोल देती तो कितना अच्छा होता। चलो देर आई दुरुस्त आई।" कहकर घनश्याम मेरी ब्रा खोलने लगा। ब्रा खोलने के क्रम में घनश्याम मेरी चूचियों पर हाथ भी लगा रहा था।
"नहीं नहीं प्लीज़, इसके सामने नहीं।" मैं फिर विरोध करने लगी। यह विरोध बड़ा कमजोर सा था। मेरी कांपती आवाज़ की कंपन को मैं छिपा नहीं पाई।
"अच्छा अच्छा, गंजू भाई, तुम्हारे सामने यह शरमा रही है।" घनश्याम उस बूढ़े से बोला। उसके कहने का तात्पर्य था कि वह इस वक्त वहां से चला जाए।
"अच्छा बच्चू, हमारे ही घर में हम ही को बाहर भेज रहे हो। अच्छा चलो, दोस्त की खातिर ई भी मंजूर है।" कहकर वह मुस्कुराते हुए मुझे घूर कर बाहर चला गया। उसके जाते ही दरवाजा अपने आप बंद हो गया। अब हम दोनों अकेले थे।
"अब ठीक है?" घनश्याम मुझसे बोला।
"हां।" मरी मरी सी आवाज में मैं बोली। अब घनश्याम को रोकने का कोई बहाना नहीं बचा था मेरे पास। वह मेरी ब्रा को खोल दिया और मेरी बड़ी बड़ी चूचियों को इतने सामने से देख कर मानो पलक झपकाना भूल गया। धीरे से उसने मेरी चूचियों को सहलाया और हल्के से दबा कर महसूस किया। मैं उसके खुरदरी हथेलियों के स्पर्श को अपनी चूचियों पर महसूस कर न चाहते हुए भी रोमांचित हुए बिना नहीं रह सकी। फिर उसने मेरे खड़े गुलाबी निप्पलों को अपनी चुटकियों से पकड़ कर मसलने लगा।
"आआआआआआह......" मेरी आह निकल गई। फिर धीरे धीरे वह मेरी चूचियों को हथेलियों से पकड़ कर दबाने लगा। मेरी आह से स्पष्ट हो गया कि अब मुझ जैसी खिलंदड़ी लड़की शारीरिक रूप से ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी उसके काबू में आ चुकी थी।
"उफ, बड़ी जबरदस्त चूचियां हैं तुम्हारी। जी चाहता है दबाता रहूं।" वह बोला और उसके हाथ का दबाव धीरे धीरे मेरी चूचियों पर बढ़ने लगा।
"ओओओहहह.... " मुझे दर्द हो रहा था लेकिन यह बड़ा उत्तेजक था। वह अब मेरी नंगी पीठ को सहलाने लगा और धीरे-धीरे मुझे ठेलते हुए बिस्तर तक ले आया। वह अब मेरे चेहरे के पास अपना चेहरा ले आया और पहले मेरी आंखों में आंखें डाल कर मुझे देखने लगा।
"अ अ अअब कककक्या देख रहे हैं?" मैं उसकी नजरों की ताब नहीं ला सकी।
"देख रहा हूं, यह हुस्न की परी इतने दिनों तक मेरे आस पास थी मगर मेरी आंखों पर ही पर्दा पड़ा हुआ था।" वह अब मुझे बांहों में भर कर बेहताशा चूमने लगा। मेरे गालों को चूमा और फिर मेरे गुलाबी होंठों पर अपने तपते होंठ रख दिए। उफ उफ उस बूढ़े के होंठों ने मेरे अंदर चिंगारी सी सुलगा दी। मेरा रहा सहा विरोध भी पूरी तरह खत्म हो गया। मेरे होंठ अपने आप खुल गये। यह आमंत्रण था जिसे कामदेव बना घनश्याम जैसा बूढ़ा कैसे ठुकरा सकता था। वह तुरंत अपनी जीभ मेरे मुंह में डाल कर चुभलाने लगा। मुझ पर अजीब सा नशा तारी होने लगा। एक हाथ से वह मुझे थाम रखा था और मेरे मुंह में अपनी लंबी जीभ घुसा घुसा कर नचा रहा था और इधर दूसरे हाथ से मेरे स्कर्ट को खोलने लगा। मैं जान रही थी कि मेरे साथ क्या हो रहा था लेकिन मैं रोक पाने की स्थिति में नहीं रह गई थी। स्कर्ट नीचे गिर गया। अब मुझे अपनी पैंटी के ऊपर से ही चूत पर उसकी उंगलियों का स्पर्श महसूस हुआ। मैं गनगना उठी। उत्तेजना के अतिरेक में मेरे पैर थरथराने लगे। वह मेरी पैंटी के ऊपर से ही मेरी चूत को सहलाने लगा। कुछ पलों तक सहलाने के बाद उसने पैंटी के अंदर अपना हाथ डाल दिया।
इस्स्स्स्स...... जैसे ही उसकी उंगलियों का स्पर्श मेरी नंगी चूत पर हुआ, मैं अपनी जांघों को आपस में रगड़ने को बाध्य हो गई। मैंने अपनी जांघों से उसकी उंगलियों को जकड़ लिया। मैं कुछ देर उसी तरह स्थिर रह गई और घनश्याम भी जानता था कि मेरी हालत क्या है। मैं समझ नहीं पा रही थी कि अब क्या करूं। कुछ देर उसकी उंगलियों को अपनी चूत पर महसूस करती रही फिर मैंने अपनी जांघों को खोल दिया। अब घनश्याम मेरी पैंटी को नीचे खिसकाने लगा और देखो, कुछ देर पहले कहां मैं घनश्याम का विरोध कर रही थी और कहां अब अपनी पैंटी से मुक्त होने के लिए घनश्याम का सहयोग करने लगी। पल भर में ही मैं पूरी तरह उसकी बांहों में नंगी खड़ी थी।
"इसमें गंदा क्या है? तेरे कपड़े ही तो खोल रहा हूं।" कहते हुए मेरी टॉप के सामने के सारे बटन खोल दिया। हाय राम, वह दढ़ियल बूढ़ा कितनी भूखी नज़रों से मेरे सीने को देख रहा था।
"इस पराए बूढ़े के सामने ऐसा करना बुरा नहीं है क्या? जरा तो रहम कीजिए बेशरम। मुझे पराए मर्द के सामने शरम आ रही है।" मैं उसके दोनों हाथ पकड़ कर बोली। दरअसल आत्मनियंत्रण खोने की शुरुआत हो चुकी थी लेकिन उस बूढ़े की उपस्थिति मुझे खल रही थी।
"मैं तुम्हारे साथ जो करने जा रहा हूं उसमें तुम्हें कोई ऐतराज तो नहीं है ना?" घनश्याम मेरे टॉप को उतारते हुए बोला।
"नहीं, मगर अकेले में।" मुझे बोलना पड़ा। मरता क्या न करता।
"यही बात तुम पहले बोल देती तो कितना अच्छा होता। चलो देर आई दुरुस्त आई।" कहकर घनश्याम मेरी ब्रा खोलने लगा। ब्रा खोलने के क्रम में घनश्याम मेरी चूचियों पर हाथ भी लगा रहा था।
"नहीं नहीं प्लीज़, इसके सामने नहीं।" मैं फिर विरोध करने लगी। यह विरोध बड़ा कमजोर सा था। मेरी कांपती आवाज़ की कंपन को मैं छिपा नहीं पाई।
"अच्छा अच्छा, गंजू भाई, तुम्हारे सामने यह शरमा रही है।" घनश्याम उस बूढ़े से बोला। उसके कहने का तात्पर्य था कि वह इस वक्त वहां से चला जाए।
"अच्छा बच्चू, हमारे ही घर में हम ही को बाहर भेज रहे हो। अच्छा चलो, दोस्त की खातिर ई भी मंजूर है।" कहकर वह मुस्कुराते हुए मुझे घूर कर बाहर चला गया। उसके जाते ही दरवाजा अपने आप बंद हो गया। अब हम दोनों अकेले थे।
"अब ठीक है?" घनश्याम मुझसे बोला।
"हां।" मरी मरी सी आवाज में मैं बोली। अब घनश्याम को रोकने का कोई बहाना नहीं बचा था मेरे पास। वह मेरी ब्रा को खोल दिया और मेरी बड़ी बड़ी चूचियों को इतने सामने से देख कर मानो पलक झपकाना भूल गया। धीरे से उसने मेरी चूचियों को सहलाया और हल्के से दबा कर महसूस किया। मैं उसके खुरदरी हथेलियों के स्पर्श को अपनी चूचियों पर महसूस कर न चाहते हुए भी रोमांचित हुए बिना नहीं रह सकी। फिर उसने मेरे खड़े गुलाबी निप्पलों को अपनी चुटकियों से पकड़ कर मसलने लगा।
"आआआआआआह......" मेरी आह निकल गई। फिर धीरे धीरे वह मेरी चूचियों को हथेलियों से पकड़ कर दबाने लगा। मेरी आह से स्पष्ट हो गया कि अब मुझ जैसी खिलंदड़ी लड़की शारीरिक रूप से ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी उसके काबू में आ चुकी थी।
"उफ, बड़ी जबरदस्त चूचियां हैं तुम्हारी। जी चाहता है दबाता रहूं।" वह बोला और उसके हाथ का दबाव धीरे धीरे मेरी चूचियों पर बढ़ने लगा।
"ओओओहहह.... " मुझे दर्द हो रहा था लेकिन यह बड़ा उत्तेजक था। वह अब मेरी नंगी पीठ को सहलाने लगा और धीरे-धीरे मुझे ठेलते हुए बिस्तर तक ले आया। वह अब मेरे चेहरे के पास अपना चेहरा ले आया और पहले मेरी आंखों में आंखें डाल कर मुझे देखने लगा।
"अ अ अअब कककक्या देख रहे हैं?" मैं उसकी नजरों की ताब नहीं ला सकी।
"देख रहा हूं, यह हुस्न की परी इतने दिनों तक मेरे आस पास थी मगर मेरी आंखों पर ही पर्दा पड़ा हुआ था।" वह अब मुझे बांहों में भर कर बेहताशा चूमने लगा। मेरे गालों को चूमा और फिर मेरे गुलाबी होंठों पर अपने तपते होंठ रख दिए। उफ उफ उस बूढ़े के होंठों ने मेरे अंदर चिंगारी सी सुलगा दी। मेरा रहा सहा विरोध भी पूरी तरह खत्म हो गया। मेरे होंठ अपने आप खुल गये। यह आमंत्रण था जिसे कामदेव बना घनश्याम जैसा बूढ़ा कैसे ठुकरा सकता था। वह तुरंत अपनी जीभ मेरे मुंह में डाल कर चुभलाने लगा। मुझ पर अजीब सा नशा तारी होने लगा। एक हाथ से वह मुझे थाम रखा था और मेरे मुंह में अपनी लंबी जीभ घुसा घुसा कर नचा रहा था और इधर दूसरे हाथ से मेरे स्कर्ट को खोलने लगा। मैं जान रही थी कि मेरे साथ क्या हो रहा था लेकिन मैं रोक पाने की स्थिति में नहीं रह गई थी। स्कर्ट नीचे गिर गया। अब मुझे अपनी पैंटी के ऊपर से ही चूत पर उसकी उंगलियों का स्पर्श महसूस हुआ। मैं गनगना उठी। उत्तेजना के अतिरेक में मेरे पैर थरथराने लगे। वह मेरी पैंटी के ऊपर से ही मेरी चूत को सहलाने लगा। कुछ पलों तक सहलाने के बाद उसने पैंटी के अंदर अपना हाथ डाल दिया।
इस्स्स्स्स...... जैसे ही उसकी उंगलियों का स्पर्श मेरी नंगी चूत पर हुआ, मैं अपनी जांघों को आपस में रगड़ने को बाध्य हो गई। मैंने अपनी जांघों से उसकी उंगलियों को जकड़ लिया। मैं कुछ देर उसी तरह स्थिर रह गई और घनश्याम भी जानता था कि मेरी हालत क्या है। मैं समझ नहीं पा रही थी कि अब क्या करूं। कुछ देर उसकी उंगलियों को अपनी चूत पर महसूस करती रही फिर मैंने अपनी जांघों को खोल दिया। अब घनश्याम मेरी पैंटी को नीचे खिसकाने लगा और देखो, कुछ देर पहले कहां मैं घनश्याम का विरोध कर रही थी और कहां अब अपनी पैंटी से मुक्त होने के लिए घनश्याम का सहयोग करने लगी। पल भर में ही मैं पूरी तरह उसकी बांहों में नंगी खड़ी थी।