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Adultery मौके पर चौका
#57
Heart 
अचानक अज़रा ने सिर उठाया और मेरी ओर ध्यान से देखने लगी, अधखुली आँखों में मैं सोने की एक्टिंग करने लगा। एक डेढ़ मिनट मुझे ध्यान से देखने के बाद जब उसे यकीन हो गया कि मैं गहरी नींद में सो रहा था तो उसने मेरे हाथ के ऊपर चादर डाल थी और चादर के नीचे मेरे हाथ की उँगलियों को एक के बाद एक करके चूमने लगी। थोड़ी देर चूमने के बाद उसने मेरी हथेली को अपनी चूची पर रख कर अपनी बांह से दबा लिया।

उम्म्ह… अहह… हय… याह… उत्तेजना के मारे मेरा बुरा हाल था, तनाव के कारण मेरा लण्ड जैसे फटने की कगार पर था। मैं अज़रा के हाथ का स्पंदन महसूस कर सकता था पर मैंने अपनी ओर से कोई हरकत नहीं की। करीब आधे घंटे तक वो मेरी हथेली को कभी अपनी बाई चूची पर तो कभी दाई चूची पर रख कर दबाती रही फिर मेरे हाथ को अपनी दोनों बाँहों से अपने सीने से भींच कर वो सो गई। ऐसे ही जाने कब मैं भी नींद के आगोश में चला गया।

सुबह उठा तो पाया कि रज़िया और अज़रा उठ कर कब की जा चुकी थी, तभी रज़िया अख़बार ले कर आ गई। दिल में अनाम सी ख़ुशी लिए मैंने जिंदगी का एक नया दिन शुरू किया।

तभी अज़रा भी बैडरूम में चाय की ट्रे लेकर आई, नहाई-धोई, सफ़ेद पजामी सूट में ताज़ा ताज़ा शैम्पू किये बालों से मनभावन सी खुशबू उड़ाती एकदम ताज़ा दम, सफ़ेद सूट में से सफ़ेद ब्रा साफ़ साफ़ उजाग़र हो रही थी।

जैसे ही मेरी अज़रा की आँख से आँख मिली, उसकी नज़र झुक गई और क्षण भर को ही ग़ुलाबी भरे भरे होंठों पर एक गुप्त सी मुस्कान आकर लुप्त हो गई।

रात वाली बात याद आते ही मेरे लिंग में जान सी आने लगी। जैसे ही अज़रा बैठने लगी तो मेरी वाली साइड से सफ़ेद पजामी में से गहरे रंग की पैंटी साफ़ साफ़ झलकने लगी। एक क्षण में ही मेरा लण्ड फुल जोश में फुंफ़कारने लगा और मैंने अपने साथ बैठी रज़िया का हाथ चादर के अंदर ही पकड़ कर अपने लण्ड पर रख कर ऊपर से अपने हाथ से दबा लिया।

रज़िया चिंहुक उठी, अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी… लेकिन मैं जाने दूं तब ना! 

जैसे ही रज़िया ने मुझे देख कर आँखें तरेरी तो अज़रा ने पूछा- "क्या हुआ आपा?"

"कुछ नहीं…" -कह कर रज़िया ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश बंद कर दी और चादर के नीचे से मेरा लण्ड जोर से पकड़ लिया। मैं अपने आज़ाद हुए हाथ से रज़िया की चिकनी सुडौल जाँघ जांचने लगा।

सारा दिन जैसे हवाओं के हिण्डोले पर बीता, जो मेरे और अज़रा के बीच चल रहा था, उस बारे में सारा दिन मेरे अपने ही अंदर तर्क कुतर्क चलते रहे। एक बात तो पक्की थी कि अज़रा की तो ख़ैर कच्ची उम्र थी पर मैं जो कर रहा था वो सामाजिक और नैतिक दृष्टि से गलत था और मैं खुद जानता था कि मैं गलत कर रहा था। लेकिन वो जैसा कहते हैं कि गुनाह की लज़्ज़त मेरा पीछा नहीं छोड़ रही थी। अज़रा की कच्ची उम्र की लज़्ज़त मेरा पीछा नहीं छोड़ रही थी, मैंने सोच लिया था कि आज से मैं अज़रा वाली साइड सोऊंगा ही नहीं लेकिन जैसे-जैसे दिन बीत रहा था, मेरा पक्का इरादा डाँवाडोल हो रहा था।

शाम आई… मैं घर आया, आते ही अज़रा मेरे लिए पानी का गिलास ले कर आई, ग़िलास पकड़ते वक़्त मैंने उसकी आँखों में देखा, अज़रा ने शर्मा कर नज़र नीची कर ली और खाली गिलास ले कर चली गई।

आज रात तो कुछ हो कर रहना था, ऐसी सोच आते ही पतलून के अंदर ही मेरा लण्ड भयंकर रौद्र रूप में आ गया, रात के इंतज़ार में समय काटना मुश्किल हो गया था। शाम को बाथरूम में नहाते समय मैंने एक बार फिर मुट्ठ मार कर अपने लण्ड को ठंडा करने की नाकाम कोशिश किया।

डिनर करते समय मैंने रह रह कर आती जाती रज़िया के नितंबों पर चुटकी काटी। डिनर टेबल पर ही रज़िया ने मुझ से अज़रा के कमरे के A.C के बारे में पूछा कि कब ठीक हो के आएगा?

यूं मैंने कह तो दिया कि एक-आध दिन में आ जाएगा पर मेरा इरादा तो उसके कमरे के A.C को कयामत के दिन तक ना लाने का हो रहा था। किसी तरह कर के डिनर निपटाया।

वैसे हम फ़ैमिली के सब लोग डिनर के बाद लिविंग रूम बैठ कर कुछ देर गप्पें हांकते है लेकिन उस दिन मैं सीधा अपने बैडरूम में चला गया।

बाथरूम में ब्रश करने के बाद मैंने अपना अंडरवियर उतार कर वाशिंग-बास्केट में डाल दिया और पजामा बिना अंडरवियर के पहन कर सीधे अपने बिस्तर पर जा कर A.C का टेम्प्रेचर 20 डिग्री पर सेट कर दिया।

रज़िया और अज़रा अभी बैडरूम में आईं नहीं थी, मैंने बिस्तर में लेट कर आँखें बंद कर ली, पंद्रह बीस मिनट बाद दोनों बैडरूम में आईं और मुझे सोता पाया। 10-15 मिनट हल्की-फ़ुल्की गप्पें हांकने के बाद दोनों सोने की तैयारी करने लगी और बैडरूम की लाइट बंद कर दी गई।

जैसे ही बैडरूम की लाइट बंद हुई मैंने तड़ाक से आँखें खोल ली और अज़रा को देखने लगा। वह तब अपने बिस्तर पर लेटने की तैयारी कर रही थी और अपने बाल बाँध रही थी।

मैंने चुपके से अपनी दाईं बाजु अज़रा के बिस्तर पर तकिये से ज़रा सी नीचे दूर तक फैला दी।

अज़रा चादर ऊपर खींच कर जैसे ही अपने बिस्तर पर लेटी, मेरी बाजु उसकी गर्दन के नीचे से उसके परले कंधे तक पहुँच गई। उसने अपने हाथ से अपने दाएं कंधे के पास टटोल कर देखा तो मेरा दायां हाथ उसके हाथ में आ गया। जैसे ही अज़रा के हाथ की उंगलियां मेरे हाथ से टच हुई, मैंने उस का हाथ जोर से पकड़ लिया।

पहले तो उसने दो-चार पल अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की लेकिन जल्दी ही मेरा हाथ कस के पकड़ लिया।

मुझे तो दो जहान् की खुशियां मिल गई जैसे… मानो सारी कायनात ठहर गई हो, मेरा दिल मेरे सीने में धाड़-धाड़ बज़ रहा था और मैं अपने ही दिल की धड़कन बड़ी साफ़-साफ़ सुन रहा था। पता नहीं ऐसे दो मिनट बीते के दो घंटे… कुछ याद नहीं।

फिर मैंने अज़रा की ओर करवट ली और अपना बायां हाथ उसकी नरम चूची पर रख दिया, अज़रा ने मेरा वो हाथ फ़ौरन परे झटक दिया और अपना सर बायें से दायें हिला कर जैसे अपना एतराज़ जताया लेकिन मैंने दोबारा अपना हाथ उसकी चूची पर रख कर हलके से मसलने लगा।

उसने दोबारा मेरा हाथ अपनी चूची पर से उठाना चाहा लेकिन इस बार मेरा हाथ ना उठाने का इरादा पक्का था, दो एक मिनट की असफ़ल कोशिश करने के बाद अज़रा ने अपना हाथ मेरे हाथ से उठा लिया और जैसे मुझे मनमानी करने की इज़ाज़त दे दी।

मैं अँधेरे में उसकी चूचियों की नरमी और गर्मी दोनों को अपने हाथ में महसूस कर रहा था। धीरे धीरे मैंने अपनी उँगलियों को उसकी चूची पर फिर से ज़ुम्बिश देनी शुरू की। अज़रा की चूची बहुत नरम सी थी, मैं उस पर बहुत मुलायमियत से उंगलियां चला रहा था।

अचानक एक जगह हल्की सी कुछ सख़्त सी मालूम पड़ी। हल्का सा टटोलने पर पता पड़ा कि यह चूची का निप्पल है। जैसे ही मेरा हाथ निप्पल को लगा, वो और ज़्यादा टाईट और बड़ा हो कर ख़डा हो गया। मैंने अपना हाथ अज़रा की चादर के अंदर डाल कर, उसकी नाईट सूट का ऊपर वाला एक बटन खोल कर, ब्रा के अंदर से हौले से चूची पर रखा तो उसके पूरे ज़िस्म में झुरझुरी की एक लहर सी दौड़ गई जिसे मैंने साफ़ साफ़ अपने हाथ पर महसूस किया।

अज़रा की गर्म तेज़ साँसें मैं अपनी कलाई पर महसूस कर रहा था। उसकी चूची के कठोर निप्पल का स्पर्श मैं अपनी हथेली के ठीक बीचों बीच महसूस कर पा रहा था।

धीरे से मैंने अपनी पाँचों उंगलियां चूची के साथ साथ ऊपर उठानी शुरू की और अंत में निप्पल उँगलियों के बीच में आ गया जिसे मैंने हलके से दबाया।

अज़रा के मुंह से असीम आनन्द की ‘आह’ की हल्की सी सिसकारी निकल गई। जल्दी ही मैंने अपना हाथ दूसरी चूची की ओर सरकाया, दूसरी वाली चूची थोड़ा दूर पड़ रही थी तो अज़रा बिना कहे खुद ही सरक कर मेरी ओर ख़िसक आई। अब ठीक था।

मैंने अपना हाथ ब्रा के ऊपर से ही परले चूची पर ऱखा और थोड़ा सा दबाया। अज़रा के मुंह से बहुत ही हलकी सी ‘सी… सी’ की सिसकारी निकली।

मैंने अपना हाथ उठा कर धीरे से ब्रा के अंदर सरकाया और दूसरी चूची पर कोमलता से हाथ धर दिया। दूसरी चूची का निप्पल अभी दबा दबा सा था लेकिन जैसे ही मेरे हाथ ने निप्पल को छूआ, निप्पल ने सर उठाना शुरू कर दिया और एक सैकिंड में ही अभिमानी योद्धा गर्व से सर ऊंचा उठाये खड़ा हो गया।

अचानक मुझे लगा की मेरे हाथ की हथेली पर कुछ नरम-नरम, कुछ गरम-गरम सा लग रहा है, देखा तो अपनी चादर के अंदर अज़रा मेरा हाथ बहुत शिद्दत से चूम रही थी, पूरे हाथ पर जीभ फ़िरा रही थी।

जल्दी ही उसने मेरे हाथ की उँगलियाँ एक एक कर के अपने मुँह में डाल कर चूसनी शुरू कर दी। मैं उसके होंठों की नरमी और उस की जीभ का नरम स्पर्श अपनी उँगलियों पर महसूस कर कर के रोमांचित हो रहा था।

मेरा लण्ड 90 डिग्री पर चादर और पजामे का तंबू बनाये फौलाद सा सख्त खड़ा था, मारे उत्तेज़ना के मेरी नसों में तेज़ दर्द हो रहा था। अब सहन करना मुश्किल था लेकिन इस से और आगे बढ़ना खतरे से खाली नहीं था।

अपने ही बैडरूम में, अपनी ही पत्नी की कुंवारी बहन को चोदते हुए या चोदने के लिए तैयार करते हुए, अपनी ही पत्नी के हाथों रंगे-हाथ पकड़े जाने से ज़्यादा शर्मनाक कुछ और हो नहीं सकता था और मैं ऐसी बेवकूफी करने वाला हरगिज़ नहीं था।

जिंदगी रही तो आगे ऐसे बहुत मौक़े मिलेंगे जब आदमी अपने दिल की कर गुज़रे और फिर अज़रा तो चुदने के लिए राज़ी थी ही!

बेमन से मन ममोस कर मैं उठा और बाथरूम में जाकर पेशाब करने के लिए पजामा खोला तो मेरा लण्ड झटके से बाहर आया। जैसे ही मैंने लण्ड का मुंह कमोड की ओर पेशाब करने के लिए किया, मेरे पेशाब की धार कमोड में नीचे जाने की बजाए कमोड के ऊपर सामने दीवार कर पड़ी, मैं अपने लण्ड को नीचे की ओर झुकाऊं पर मेरा लण्ड नीचे की ओर हो ही ना!

जैसे तैसे पेशाब करके मैं वापिस बैडरूम में आया ही था कि रज़िया ने मुझ से टाइम पूछा, मेरी तो फट के हाथ में आ गई।

ख़ैर जी! रज़िया को टाइम बता कर A.C का टेम्प्रेचर थोड़ा बढ़ा कर मैं भी सोने की कोशिश करने लगा, उधर अज़रा भी चुपचाप चित पड़ी सोने का बहाना कर रही थी। बहुत रात बीतने के बाद मुझे नींद आई।

अगला सारा दिन मैंने मन ही मन चिढ़ते कुढ़ते हुए गुज़ारा। शोरूम पर भी काम में मन नहीं लग रहा था। जो कुछ और जितना कुछ अज़रा के साथ रातों को हो रहा था, उस से ज़्यादा होने की गुंजाईश बहुत कम थी और ऐसा होना भी बहुत दिनों तक मुमकिन नहीं था।

आज नहीं तो कल, उसके कमरे का A.C ठीक हो कर आना ही था। ऊपर से अपने ही बैडरूम में रज़िया के किसी भी क्षण उठ जाने का डर हम दोनों को खुल कर खेलने नहीं देता था। मुझे जल्दी ही कुछ करना था।

किसी दिन अज़रा को ले कर किसी होटल में चला जाऊं? ना… ना! यह निहायत ही बकवास आईडिया था, आधा शहर मुझे जानता था और अज़रा को होटल ले कर जाने के अपने खतरे थे। और… घर में? घर में मेरे बच्चे थे, रज़िया थी… नहीं नहीं! ऐसा होना भी मुमकिन नहीं था। तो फिर… क्या करूँ? कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लिहाज़ा मैं बहुत ही चिड़चिड़ा सा हो रहा था।

रात को डिनर करने के बाद फिर बाथरूम में ब्रश करके मैं अपना अंडरवियर उतार कर पजामा बिना अंडरवियर के पहन कर A.C का टेम्प्रेचर 20 डिग्री पर सेट कर के सीधे अपने बिस्तर पर जा पड़ा।

आज रज़िया और अज़रा दोनों अभी तक बेडरूम में नहीं आई थी। अपने आप में उलझे हुए मेरी कब आँख लग गई, मुझे पता ही नहीं चला।

अचानक मेरे कान में कुछ सुरसुरी सी हुई, मैंने नींद में ही हाथ चलाया तो मेरे हाथ में अज़रा का हाथ आ गया, वो चुपके से मुझे जगाने की कोशिश कर रही थी।

मैंने उसका हाथ अपनी छाती पर रख कर ऊपर अपना हाथ रख दिया और उसकी साइड वाला हाथ चादर के अंदर से उसके चेहरे पर फेरने लगा।

माथा, गाल, कान, आँखें, नाक, होंठ, ठुड्डी, गर्दन… धीरे-धीरे मेरा हाथ नीचे की ओर बढ़ रहा था और अज़रा की साँसें क्रमशः भारी होती जा रही थी जो मुझे उसकी उठती गिरती चूचियों से पता चल रहा था और दूसरी बात वो मुझे पिछले रोज़ की तरह से रोक भी नहीं रही थी, लगता था कि वो उसकी चूत खुद पनीली हो रही थी।

जैसे ही मेरा हाथ गर्दन के नीचे से होता हुआ अज़रा के कंधे से होता हुआ उसकी चूचिओं तक पहुंचा तो मैं एक सुखद आश्चर्य से भर उठा। 

आज अज़रा ने नाईट सूट के नीचे ब्रा नहीं पहनी थी, बस एक पतली बनियान सी पहनी हुई थी। मेरा हाथ चूचियों को छूते ही उसके शरीर में वही परिचित झुनझुनाहट की लहर उठी।

CONTD...
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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मौके पर चौका - by KHANSAGEER - 27-04-2024, 12:09 PM
RE: मौके पर चौका - by sri7869 - 27-04-2024, 02:22 PM
RE: मौके पर चौका - by Chandan - 05-05-2024, 10:14 AM
RE: मौके पर चौका - by KHANSAGEER - 22-05-2024, 11:04 AM
RE: मौके पर चौका - by Eswar P - 27-05-2024, 12:50 PM



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