22-05-2024, 10:07 AM
"तुमने बताया नहीं कि ई चिड़िया कौन है?'" वह बूढ़ा दुबारा पूछा।
"अबे गुरु घंटाल, तू आम खाने से मतलब रख।" घनश्याम की बात सुनकर मैं कांप उठी।
"क्या मतलब है आपका?" मैं सोफे से उठकर गुस्से से बोली।
"बैठ जाओ बच्ची। चुपचाप बैठ जाओ। घनश्याम जिसको यहां लेकर आता है उसको यहां आने का मतलब अच्छी तरह से पता होता है।" वह बूढ़ा चमकती आंखों से मुझे देखते हुए बोला।
"घनश्याम चाचा यह गलत है। मैं यहां नहीं रुकूंगी। जा रही हूं।" मैं गुस्से से बोली।
"कैसे जाओगी छुटकी। तुमको पता है तुम इस वक्त कहां हो? बिना मेरी सहायता के तुम यहां से निकल कर कहीं जा भी नहीं सकती हो। यहां जंगल में आगे की झोपड़ियों में गुंडे मवालियों का अड्डा है। यह बूढ़ा जग्गू भाई है यहां का सबसे बड़ा मवाली, इसलिए यहां तुम सुरक्षित हो। यहां से हम तुम्हें निकल कर जाने भी दें तो निकल कर भटक गयी और उनके हाथ पड़ गयी तो तुम्हारा क्या होगा उसका शायद तुम्हें अंदाजा भी नहीं है।" घनश्याम बोला। अब मेरे पास कोई शब्द नहीं था। घनश्याम इतना कमीना होगा इसका मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था।
"पानी वानी पीना है?" वह बूढ़ा मुझसे पूछ रहा था।
"पानी पिलाने के बदले मुझे यहां से वापस जाने की व्यवस्था कीजिए।" मैं गुस्से से बोली।
"वापस तो ले जाऊंगा लेकिन तेरा डर हमेशा के लिए दूर करके।" घनश्याम बोला।
"अबे कम से कम अब तो बता दो कि ई है कौन? अच्छे घर की दिखाई दे रही है और इतनी कम उम्र की।'" वह बूढ़ा बोला।
"अच्छे घर की बिगड़ी औलाद है और इसकी उम्र पर मत जाओ। खूब मज़ा देगी। पूरी ट्रेनिंग मिली हुई है।" घनश्याम बोला।
"लेकिन ई है कौन?" वह बूढ़ा फिर बोला।
"साले खड़ूस, मेरी मालकिन की बेटी है।"
"फिर तो बड़ी गड़बड़ हो जाएगी। घर में बता देगी तो?"
"नहीं बताएगी। यह खुद मुझे निमंत्रण दी है।"
"फिर यह मना काहे कर रही है?"
"उसके मना करने का कौन मां का लौड़ा परवाह करता है। तुम्हें पता है ना कि मैं पहले कितना बड़ा हरामी था? फिर शरीफ लोगों की संगति में इतने दिन शराफत की जिंदगी जी रहा था। लेकिन यह हरामजादी फिर से मेरे लंड को जगा कर बता दी कि मैं हरामी ही ठीक था।"
"ओह ऐसा है तो फिर ठीक है। सच में बहुत बढ़िया कोची माल लाए हो। हम इसे बाद में देख लेंगे।" बूढ़ा खीसें निपोरते हुए बोला। 'बाद में देख लेंगे' का मतलब अच्छी तरह से समझ रही थी मैं।
हे मेरे राम, मेरी छोटी सी भूल की इतनी बड़ी सजा? घनश्याम तक तो फिर भी ठीक था। अब यह बूढ़ा भी मुझे चोदने की सोच रहा है। आज तो गई मैं काम से। यहां से भाग भी तो नहीं सकती थी। नयी जगह थी। कहीं भटक कर मवालियों के हत्थे चढ़ गयी तो और मुसीबत हो जायेगी। अब आगे जो कुछ होने वाला था उसकी कल्पना कर के ही मैं सिहर रही थी।
"अब तुमलोग अईसे ही एक दूसरे का मुंह देखते रहोगे कि कुछ करोगे भी। हम भी इधर कतार में इंतजार कर रहे हैं। पहले तुम निपट लो फिर हम निपटेंगे।" वह बूढ़ा वासना भरी निगाहों से मुझे देखते हुए बोला।
"देखिए चाचाजी, यह गलत है। आप मुझे लेकर जंगल में आए थे, वहां तक तो ठीक था लेकिन यहां लाकर तो आपने मुझे बुरी तरह फंसा दिया। यहां बूढ़ा यह क्या बोल रहा है?" मैं उस बूढ़े की बात सुनकर कांप उठी।
"सारी गलती तुम्हारी है। यह तुम अब बोल रही हो। जंगल में ही मान जाती तो यहां आने की नौबत ही नहीं आती।" घनश्याम बोला।
"ओह, तो तुम जिंदगी की ई सबसे चटपटी और स्वादिष्ट चीज को अकेले ही खाने का प्लान बनाए हुए थे? लानत है तुम्हारी दोस्ती पर।" वह बूढ़ा नाराज होकर बोला।
"अरे अरे नाराज क्यों हो रहे हो भाई। अब ले तो आया ही हूं ना। आराम से खाओ, कौन मना करता है।" घनश्याम बोला। मुझे इस मुसीबत से निकलने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था।
"ददद देखिए देर हो रही है। मां आ जाएगी तो आप क्या सफाई दीजियेगा? आज बहुत देर हो जाएगी। फिर कभी आएंगे।" मैं ने बचने का अंतिम प्रयास किया। समझ गई थी कि एक बार मेरी चुदाई शुरू हुई तो बारी बारी से दोनों मुझे चोदे बिना नहीं छोड़ेंगे।
"तुम उसकी चिंता काहे कर रही हो मेरी बन्नो रानी? आज भगवान भी मेहरबान है या यूं कह लो यह सब भगवान की मर्जी से हो रहा है। तुम्हारी मां आज सात बजे से पहले आने वाली नहीं है और अभी तो मात्र साढ़े चार बज रहा है। हमारे पास ढाई घंटे का समय है। बहुत समय है। तबतक तो बहुत कुछ हो जाएगा, बशर्ते कि तुम सहयोग करो।" कहकर घनश्याम आगे बढ़ा और मेरे टॉप के बटन खोलने लगा। बटन खोलते खोलते वह ऊपर से ही मेरी चूचियों को छूने लगा था। मेरी चूचियां वे संवेदनशील बटन हैं जिनपर हाथ लगते ही मेरा खुद पर से नियंत्रण छूटने लगता है। उस वक्त वही हो रहा था।
"अबे गुरु घंटाल, तू आम खाने से मतलब रख।" घनश्याम की बात सुनकर मैं कांप उठी।
"क्या मतलब है आपका?" मैं सोफे से उठकर गुस्से से बोली।
"बैठ जाओ बच्ची। चुपचाप बैठ जाओ। घनश्याम जिसको यहां लेकर आता है उसको यहां आने का मतलब अच्छी तरह से पता होता है।" वह बूढ़ा चमकती आंखों से मुझे देखते हुए बोला।
"घनश्याम चाचा यह गलत है। मैं यहां नहीं रुकूंगी। जा रही हूं।" मैं गुस्से से बोली।
"कैसे जाओगी छुटकी। तुमको पता है तुम इस वक्त कहां हो? बिना मेरी सहायता के तुम यहां से निकल कर कहीं जा भी नहीं सकती हो। यहां जंगल में आगे की झोपड़ियों में गुंडे मवालियों का अड्डा है। यह बूढ़ा जग्गू भाई है यहां का सबसे बड़ा मवाली, इसलिए यहां तुम सुरक्षित हो। यहां से हम तुम्हें निकल कर जाने भी दें तो निकल कर भटक गयी और उनके हाथ पड़ गयी तो तुम्हारा क्या होगा उसका शायद तुम्हें अंदाजा भी नहीं है।" घनश्याम बोला। अब मेरे पास कोई शब्द नहीं था। घनश्याम इतना कमीना होगा इसका मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था।
"पानी वानी पीना है?" वह बूढ़ा मुझसे पूछ रहा था।
"पानी पिलाने के बदले मुझे यहां से वापस जाने की व्यवस्था कीजिए।" मैं गुस्से से बोली।
"वापस तो ले जाऊंगा लेकिन तेरा डर हमेशा के लिए दूर करके।" घनश्याम बोला।
"अबे कम से कम अब तो बता दो कि ई है कौन? अच्छे घर की दिखाई दे रही है और इतनी कम उम्र की।'" वह बूढ़ा बोला।
"अच्छे घर की बिगड़ी औलाद है और इसकी उम्र पर मत जाओ। खूब मज़ा देगी। पूरी ट्रेनिंग मिली हुई है।" घनश्याम बोला।
"लेकिन ई है कौन?" वह बूढ़ा फिर बोला।
"साले खड़ूस, मेरी मालकिन की बेटी है।"
"फिर तो बड़ी गड़बड़ हो जाएगी। घर में बता देगी तो?"
"नहीं बताएगी। यह खुद मुझे निमंत्रण दी है।"
"फिर यह मना काहे कर रही है?"
"उसके मना करने का कौन मां का लौड़ा परवाह करता है। तुम्हें पता है ना कि मैं पहले कितना बड़ा हरामी था? फिर शरीफ लोगों की संगति में इतने दिन शराफत की जिंदगी जी रहा था। लेकिन यह हरामजादी फिर से मेरे लंड को जगा कर बता दी कि मैं हरामी ही ठीक था।"
"ओह ऐसा है तो फिर ठीक है। सच में बहुत बढ़िया कोची माल लाए हो। हम इसे बाद में देख लेंगे।" बूढ़ा खीसें निपोरते हुए बोला। 'बाद में देख लेंगे' का मतलब अच्छी तरह से समझ रही थी मैं।
हे मेरे राम, मेरी छोटी सी भूल की इतनी बड़ी सजा? घनश्याम तक तो फिर भी ठीक था। अब यह बूढ़ा भी मुझे चोदने की सोच रहा है। आज तो गई मैं काम से। यहां से भाग भी तो नहीं सकती थी। नयी जगह थी। कहीं भटक कर मवालियों के हत्थे चढ़ गयी तो और मुसीबत हो जायेगी। अब आगे जो कुछ होने वाला था उसकी कल्पना कर के ही मैं सिहर रही थी।
"अब तुमलोग अईसे ही एक दूसरे का मुंह देखते रहोगे कि कुछ करोगे भी। हम भी इधर कतार में इंतजार कर रहे हैं। पहले तुम निपट लो फिर हम निपटेंगे।" वह बूढ़ा वासना भरी निगाहों से मुझे देखते हुए बोला।
"देखिए चाचाजी, यह गलत है। आप मुझे लेकर जंगल में आए थे, वहां तक तो ठीक था लेकिन यहां लाकर तो आपने मुझे बुरी तरह फंसा दिया। यहां बूढ़ा यह क्या बोल रहा है?" मैं उस बूढ़े की बात सुनकर कांप उठी।
"सारी गलती तुम्हारी है। यह तुम अब बोल रही हो। जंगल में ही मान जाती तो यहां आने की नौबत ही नहीं आती।" घनश्याम बोला।
"ओह, तो तुम जिंदगी की ई सबसे चटपटी और स्वादिष्ट चीज को अकेले ही खाने का प्लान बनाए हुए थे? लानत है तुम्हारी दोस्ती पर।" वह बूढ़ा नाराज होकर बोला।
"अरे अरे नाराज क्यों हो रहे हो भाई। अब ले तो आया ही हूं ना। आराम से खाओ, कौन मना करता है।" घनश्याम बोला। मुझे इस मुसीबत से निकलने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था।
"ददद देखिए देर हो रही है। मां आ जाएगी तो आप क्या सफाई दीजियेगा? आज बहुत देर हो जाएगी। फिर कभी आएंगे।" मैं ने बचने का अंतिम प्रयास किया। समझ गई थी कि एक बार मेरी चुदाई शुरू हुई तो बारी बारी से दोनों मुझे चोदे बिना नहीं छोड़ेंगे।
"तुम उसकी चिंता काहे कर रही हो मेरी बन्नो रानी? आज भगवान भी मेहरबान है या यूं कह लो यह सब भगवान की मर्जी से हो रहा है। तुम्हारी मां आज सात बजे से पहले आने वाली नहीं है और अभी तो मात्र साढ़े चार बज रहा है। हमारे पास ढाई घंटे का समय है। बहुत समय है। तबतक तो बहुत कुछ हो जाएगा, बशर्ते कि तुम सहयोग करो।" कहकर घनश्याम आगे बढ़ा और मेरे टॉप के बटन खोलने लगा। बटन खोलते खोलते वह ऊपर से ही मेरी चूचियों को छूने लगा था। मेरी चूचियां वे संवेदनशील बटन हैं जिनपर हाथ लगते ही मेरा खुद पर से नियंत्रण छूटने लगता है। उस वक्त वही हो रहा था।