सभी दोस्तों को सग़ीर ख़ान का आदाब!
दोस्तों यह कहानी तब की है जब मेरी रज़िया से नई नई शादी हुई थी। मस्त ज़िन्दगी गुज़र रही थी। आदत से मज़बूर मौका मिलने पर इधर उधर मुंह भी मार लिया करता था लेकिन जब से शादी हुई थी मैंने दूसरी लड़किओं की तरफ देखा भी नहीं था। कुल मिलकर पिछले डेढ़ दो महीने से बस रज़िया की चूत में ही लण्ड पेल कर गुज़ारा कर रहा था।
अचानक एक दिन रज़िया की खाला, जो हमारे यहाँ से लगभग ४०-५० किलोमीटर दूर एक कस्बे में रहती है, हमारे घर आईं।
(ये वही खाला है जिनसे आप लोग मेरी कहानी 'यादों के झरोखे से' में मिल चुके हो। इन्ही की बड़ी बेटी का नाम सायरा है जो जालंधर से डॉक्टरी कर रही है।)
उनकी बेटी अज़रा ने B.Com पास कर ली थी लेकिन समस्या यह थी कि क़स्बे में कोई अच्छा कॉलेज नहीं था जहां मास्टर्स की जा सके और हमारे शहर में कई अच्छे कॉलेजों समेत यूनिवर्सिटी भी थी।
लिहाज़ा अज़रा ने यहीं के एक नामी गिरामी कॉलेज में M.Com में ऐडमिशन ले लिया था लेकिन बदकिस्मती से अज़रा को हॉस्टल में जगह नहीं मिल पाई थी। इसके लिए वो अब्बू से कुछ सिफारिश लगवाने आई थी।
"मेरे एक दो पहचान वाले यूनिवर्सिटी में हैं। मैं पूरी कोशिश करता हूँ कि अज़रा का किसी न किसी हॉस्टल में काम हो जाये तब तक अज़रा को कोई दिक्कत न हो तो वह हमारे यहाँ रुक सकती है। ये भी तो उसी का घर है" -अब्बू ने जवाब दिया
"आप का लाख लाख शुक्रिया, आपने तो मेरे दिमाग का सारा बोझ ही उतार दिया" -रज़िया की खाला ने अब्बू के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा
इधर रज़िया बहुत खुश हुई। साथ ही थोड़ी चिंतित भी क्योंकि वो मेरी फितरत से पूरी तौर से वाक़िफ़ हो गई थी। इस शख्श ने जब अपनी बहनो को नहीं छोड़ा, अज़रा की बड़ी बहन सायरा को भी लुधियाने में जम के चोदा तो ये आदमी अज़रा को तो कतई छोड़ने वाला है नहीं।
वैसे भी 'हर चूत पर लिखा है चोदने वाले लण्ड का नाम' यह सोच कर वह बावर्चीखाने में चली गई।
मैंने जब पिछली बार अज़रा को देखा था तब वह सात-आठ साल की पतली सी, मरघिल्ली सी लड़की थी जो हर वक़्त या तो रोती रहती थी या रोने को तैयार रहती थी। बहुत दफा तो वो घर आये मेहमानों के सामने ही नहीं आती थी लिहाज़ा मैंने भी अज़रा पर पहले कभी ध्यान नहीं दिया था।
लब्बोलुआब ये कि यह फाइनल हो गया कि अज़रा जब तक हॉस्टल नहीं मिलता तब तक हमारे घर रह कर ही M.Com करेगी। अम्मी ने फैसला सुनाया कि सग़ीर का स्टडी वाला कमरा अज़रा को दे दिया जाए ताकि वो अपनी पढ़ाई बे रोक-टोक कर सके।
इस बात से रज़िया इतनी खुश हुई कि उस रात बिस्तर में उसने कहर बरपा दिया। वो पूरी रात न तो सोई और न मुझे सोने दिया। जब भी झपकी आये मुझे अपने लण्ड के चूसे जाने से आँख खुल जाए। उस रात उसने तीन बार चुदाई करवाई। ऐसा बहुत दिनों बाद हुआ था लिहाज़ा मैं भी खुश था। एक हफ्ते बाद अज़रा हमारे घर आ गई।
उस रात डाइनिंग टेबल पर मैंने पहली बार उसको गौर से देखा। डेढ़ पसली की मरघिल्ली सी, रोंदू सी लड़की, माशा-अल्लाह! जवान हो गई थी, करीब 5′-4″ कद, कमान सा कसा हुआ पतला लेकिन स्वस्थ शरीर, रंग गेहुँआ, लंबे बाल, सुतवाँ नाक, पतले गुलाबी लेकिन भरे-भरे होंठ, तीखे नैननक्श और काले कजरारे नयन! ऊपर से फ़िगर अंदाजन 34-26-34 था। कुल मिलकर मस्त माल हो चुकी थी।
यूं मैं कोई सैक्स-मैनियॉक नहीं पर ईमानदारी से कहूँ तो उस वक़्त मन ही मन मैं अज़रा के नंगे जिस्म की कल्पना करने लगा था।
खैर जी! डिनर हुआ। सब लिविंग रूम में आ बैठे, बच्चे टीवी देखने लगे, अज़रा और रज़िया दोनों बातें करने लगी और मैं इजी चेयर पर बैठा किताब पढ़ने लगा पर मेरे कान तो उन दोनों की बातों पर ही लगे हुए थे।
मैंने नोटिस किया कि बोल तो सिर्फ रज़िया ही रही थी और अज़रा तो बस हाँ-हूँ कर रही थी।
खैर, धीरे धीरे अज़रा हमारे परिवार का अंग होती चली गई, दोनों बच्चों को वो पढ़ा देती थी। रात का डिनर पकाना भी अज़रा की जिम्मेवारी हो गई थी लेकिन अब भी अज़रा मेरे सामने कम ही आती थी, आती भी थी तो मुझ से बहुत कम बोलती थी, बस हां जी… नहीं जी… ठीक है जी!
मैं तो इसी बात में खुश था कि मुझे मेरी बेगम का ज्यादा समय मिल रहा था और मेरी सेक्स लाइफ नार्मल से भी अच्छी हो गई थी। धीरे धीरे समय गुजरने लगा।
शुरू शुरू में तो अज़रा हर शनिवार अपने घर चली जाया करती थी और सोमवार सवेरे सीधे कॉलेज आकर शाम को घर आती थी लेकिन धीरे धीरे उसका अपने घर जाना कम होने लगा। अब अज़रा दो महीने में एक बार या बड़ी हद दो बार अपने घर जाती थी।
फर्स्ट ईयर के फाइनल एग्जाम ख़त्म होने के बाद अज़रा तीन महीने के लिए अपने घर चली गई। इधर मेरे अम्मी अब्बू मेरी समीना आपा के यहाँ सऊदी चले गए। आपा उन लोगों को दो साल से लगातार बुला रहीं थीं। घर पर मैं रज़िया और दोनों बच्चों के आलावा कोई नहीं था।
एक दो हफ्ते गुज़र जाने के बाद एक रात, मेरे और रज़िया के बीच एक रस्मी सी चुदाई से असंतुष्ट सा मैं उसके नंगे शरीर पर हाथ फेर रहा था कि रज़िया ने मुझ से कहा- "सुनते हो? चलो, कल जाकर अज़रा को ले आयें। उसके बिना मेरा दिल नहीं लग रहा और दोनों बच्चे भी उदास हैं"
अज़रा का नाम सुनते ही मेरे लण्ड ने तुरंत सर उठा दिया, मैंने भी ख़ुशी ख़ुशी हामी भर दी।
अगले दिन हम दोनों जाकर अज़रा को ले आये। उस रात रज़िया ने मेरे छक्के छुड़ा दिए, उसने मेरा लण्ड चूस-चूस कर मुझे स्खलित किया और बाद में खुद मेरा लण्ड पकड़ कर, उस पर तेल लगाया और अपने हाथ से मेरा लण्ड अपनी गांड पर रख कर मुझे गांड मारने को बोला, चुदाई के किसी भी आसन को उसने ‘ना’ नहीं कहा बल्कि दो कदम आगे जाकर कुछ अपनी ओर से और नया कर दिया। वैसे भी मेरी सोहबत में रहकर वो भी चुदाई के सारे पैंतरे जान चुकी थी।
ख़ैर! जिंदगी वापिस पटरी पर आ गई थी लेकिन अब एक फर्क था, अब अज़रा सारा दिन घर पर ही रहती थी, उसके कॉलेज खुलने में अभी लगभग डेढ़ महीना बाकी था। हालाँकि उसके घर रहने या कॉलेज जाने से मुझ पर कोई असर नहीं पड़ना था क्योंकि जब वह कॉलेज के लिए निकलती थी उससे काफी पहले मैं शोरूम चला जाता था और उसके आने के बहुत बाद रात तक मैं लौटता था। तो मेरी उससे मुलाकात सुबह शाम ही हो पाती थी।
मैं दोपहर को खाना खाने घर आता था, पहले जब अज़रा कॉलेज गई होती थी तो मैं अक्सर दोपहर को भी रज़िया को चोद लिया करता था, कभी रसोई में, कभी स्टोर में, कभी लॉबी में और कभी ड्राइंग रूम में भी… एक-आध बार तो बाथरूम में शावर के नीचे भी!
अज़रा के घर पर ही रहने से दोपहर की इन तमाम खुराफातों में लगाम लग गई थी। कोफ़्त होती थी कभी कभी पर क्या किया जा सकता था?
फिर भी दांव लगा कर कभी-कभार मैं रज़िया से छोटी-मोटी चुहलबाज़ी तो कर ही लेता था, जैसे पास से गुज़रती रज़िया के चूतड़ों को सहला देना, उसकी चूचियों पर हल्के से हाथ फेर देना, निप्पल दबा देना, रसोई में सब्ज़ी बनाते समय सट कर खड़े होकर कढ़ाई में सब्ज़ी देखने के बहाने उसके कान के पास एक छोटा सा चुम्बन ले लेना या उसके दुपट्टे के पल्लू की आड़ में उसका हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर दबा देना।
मेरे ऐसा करने पर वो दिखावटी गुस्सा दिखाती जरूर थी लेकिन तिरछी आँखों से मुझे देखते हुये उसके होंठों पर स्वीकृति की एक मौन सी मुस्कान भी होती थी।
लेकिन दिन ब दिन मैं अज़रा में और उसके मेरे प्रति व्यवहार में कुछ कुछ फर्क महसूस कर रहा था। मैं अक्सर नोट करता कि डाइनिंग टेबल पर खाना खाते वक़्त या लिविंग रूम में टी.वी देखते वक़्त या कभी कभी कोई किताब पढ़ते-पढ़ते मैं जब जब सिर उठा कर उसकी ओर देखता तो उसे मेरी ओर ही देखते पाता और जैसे ही मेरी उसकी नज़र से नज़र मिलती तो वो या तो नज़र नीची कर लेती या कहीं और देखने लगती।
मुझे कुछ समय के लिए उलझन तो होती पर जल्दी ही मेरा ध्यान किसी और बात पर चला जाता और बात आई-गई हो जाती।
बरसात का मौसम आ गया था, बहुत निकम्मी किस्म की गर्मी पड़ रही थी, जिस दिन बरसात होती उस दिन तो मौसम ठीक रहता, अगले दिन जब धूप निकलती तो उमस के मारे जान निकलने लगती, जगह जगह खड़ा पानी बास मारने लगता और मक्खी-मच्छर पैदा करने की ज़िंदा फैक्टरी बन जाता। बस एयर कंडीशनड कमरों में ही जिंदगी सिमटी पड़ी थी।
उसी मौसम में एक दिन अज़रा के कमरे के A.C की गैस लीक हो गई। बच्चों का बैडरूम छोटा था और उसमें तीसरे बेड की जगह नहीं थी, ड्राइंग रूम और लिविंग रूम तो रात को सोने के किये डिज़ाइन्ड ही नहीं थे तो एक ही चारा बचता था कि जब तक अज़रा के कमरे का A.C रिपेयर हो कर नहीं आता, उसका फोल्डिंग हमारे बैडरूम में हमारे बेड की बगल में ही लगाया जाए।
ऐसा ही हुआ और ऐसा होने से हम पति-पत्नी की रात वाली घमासान चुदाई पर टेम्परेरी बैन लग गया था। पर क्या करते… मज़बूरी थी।
हमारे बैडरूम में बेड के साथ ही लेफ्ट साइड बाथरूम का दरवाज़ा था और मेरी बेगम बैड के लेफ्ट साइड सोना पसंद करती थी क्योंकि वह रात में तीन चार बार टॉयलेट जाती है और मैं राईट साइड सोता था, हमारे बेड के साथ ही राईट साइड अज़रा का फोल्डिंग बेड लगाया गया था।
रात आती, खाना-वाना खा कर हम लोग सोने के लिए बैडरूम में आते। रज़िया मेरे बायें और अज़रा मेरे दायें… ये दोनों बातें करने लगती और मैं बीच में ही सो जाता।
दो-एक दिन बाद एक रात को अचानक मेरी आँख खुली तो पाया कि अज़रा बाईं करवट सो रही थी यानी उसका मुंह मेरी ओर था और उसका दायां हाथ मेरी छाती पर था। उसकी ढीली ढाली टीशर्ट के गले से उसकी बड़ी बड़ी गोरी चूचियां आधे से ज्यादा नुमाया हो रही थीं। मैंने सिर उठा कर देखा तो रज़िया को घनघोर नींद के हवाले पाया। मैंने धीरे से अज़रा का हाथ अपनी छाती से उठाया और उसकी बगल में रख दिया। इसी दौरान मेरा हाथ उसकी नरम मुलायम चूची से टच हो गया। कसम से पूरे बदन में करेंट सा दौड़ गया। मेरी नींद पूरी तौर पर काफूर हो गई थी। मैं रज़िया की तरफ करवट लेकर लेट गया पर नींद बहुत देर तक नहीं आई, दिल में बहुत उथल-पुथल सी चल रही थी।
क्या अज़रा ने जानबूझ कर ऐसा किया था? अगर हाँ तो क्यों? क्या अज़रा मेरे साथ... सोच कर झुरझुरी सी उठी और अचानक ही मेरे लण्ड में तनाव आ गया। इसी ऊहापोह में जाने कब मेरी आँख लग गई।
दिन चढ़ा, सब कुछ अपनी जगह पर, हर चीज़ नार्मल सी थी पर मेरे दिल में इक अनजान सी फ़ीलिंग थी, रह रह कर अज़रा के हाथ की छुअन मुझे अपनी छाती पर फील हो रही थी और रह रह कर मेरे लण्ड में तनाव आ रहा था।
उस दिन मैंने अपनी शादी के बाद पहली बार बाथरूम में नहाते समय हस्त मैथुन किया।
अगली रात आई, फिर वही सोने का अरेन्जमेन्ट, रज़िया डबलबेड के बाईं ओर, मैं दाईं ओर और अज़रा का फोल्डिंग बेड हमारे डबलबेड के दाईं ओर सटा हुआ और मुझ में और अज़रा में ज्यादा से ज्यादा डेढ़ फुट का फासला।
आज मैं अभी किताब ही पढ़ रहा था कि ये दोनों सोने की तैयारी करने लगी। जल्दी सोने का कारण पूछने पर अज़रा ने बताया कि आज दोनों बाज़ार गईं थी, थक गई हैं।
पन्द्रह बीस मिनट बाद मैंने लाईट बंद की और खुद उल्टा हो कर सोने की कोशिश करने लगा, उल्टा बोले तो पेट के बल! पन्द्रह-बीस मिनट ही बीते होंगे कि अज़रा का हाथ आज़ फिर से मेरे ऊपर आ पड़ा लेकिन आज़ चूंकि मैं उल्टा पड़ा था सो इस बार उसका हाथ मेरी पीठ पर पड़ा।
तीन चार मिनट बाद अज़रा ने अपना हाथ मेरी पीठ से उठा लिया और खुद सीधी होकर, मतलब पीठ के बल लेट कर सोने का उपक्रम करने लगी। उसका मेरी ओर वाला हाथ मतलब बायां हाथ उसके सिर के पास सिरहाने पर ही पड़ा था। मेरा मुंह उसकी ओर ही था और मेरा और उसका फासला ज्यादा से ज्यादा डेढ़ फुट का रहा होगा।
अचानक मैंने अपने बायें हाथ को अज़रा के पेट पर रख दिया, सीधा चूचियों पर रखने की रज़िया के कारण हिम्मत नहीं हुई। मेरा दिल पसलियों में धाड़-धाड़ बज़ रहा था।
कोई हरकत नहीं… ना मेरी ओर से… ना अज़रा की ओर से…
contd....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!
Love You All
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!
Love You All

