21-05-2024, 02:24 PM
उन्होंने मेरे झड़ने पर मुझे चूम लिया और कहा- "शुक्रिया सग़ीर! आह... क्या चुदाई की है... मेरी तो चूत की तुमने धज्जियाँ ही उड़ा दीं लेकिन कसम खुदा की! पूरी ज़न्नत ही दिखा दी मेरे सरताज, बहुत मस्त चुदाई की तुमने"
उस वक़्त तक उनके ऊपर लेटे-लेटे उनको चूमता रहा। जब तक कि लंड अपनी मर्ज़ी से बाहर नहीं निकल गया।
हम दोनों ने अलग-अलग शावर लिया और एक-दूसरे के साथ चिपक कर बैठे रहे। उन्होंने वादा लिया कि मैं उनके यहाँ दिन के वक़्त में आता रहूँ और जिस्मानी सुख देता रहूं क्योंकि ख़ान साहब की निगाह में मुझ से ज्यादा भरोसेमंद और कोई नहीं था।
काफ़ी देर बाद ख़ान साहब आ गए और वो बिल्कुल नॉर्मल थे।
खाना खाने के बाद मैं जाने लगा तो ख़ान साहब ने कहा- "शुक्रिया सग़ीर, आगे भी आते रहना"
मैं उनके शुक्रिया कहने का कारण जानता था। उसके बाद तो मैं उनके घर बार-बार गया और जब-जब गया, हम दोनों ने खूब चुदाई की। बस उनके यहाँ रात गुजारना मुश्किल था क्योंकि फिर मैं आपने घर वालों से क्या कहता..! दूसरा भले ही हम दोनों की चुदाई ख़ान साहब की रज़ामंदी से हो रही थी पर मुझे उनका लिहाज़ भी था। मेरे लिए उनके घर में रहते उनकी बेगम को चोदना मुमकिन नहीं था इसलिए मैं भी दिन में ही जाकर फरज़ाना की चुदाई करता था।
वक़्त का पहिया गुज़रता गया और इसी तरह कई बरस गुज़र गए। मेरी पढाई ख़त्म हो चुकी थी। रूही आपी, हनी फरहान सबकी शादी हो चुकी थी। मेरी शादी मेरे मामू की छोटी बेटी रज़िया से हो गई थी। ये सब कैसे हुआ ये जानने के लिए आप मेरी दूसरी कहानियां पढ़िए।
मेरे लिए अब्बू ने एक इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिकल्स का शोरूम खुलवा दिया था, जहाँ मैं व्यस्त रहता था।
कहते है कि इंसान अपनी ज़िन्दगी में अपनी पहली चुदाई कभी नहीं भूलता। यही कारण था कि अक्सर टाइट चूत को चोदते वक़्त मुझे बेगम खान साहिबा यानी फरज़ाना की याद आ जाती थी।
इसी बीच हमारे पड़ोस में एक नौजवान लड़का, जो एक प्राइवेट फर्म में अच्छी पोस्ट पर था, किराये पर रहने आया। उसका नाम आतिफ था और अभी दो महीने पहले ही शादी हुई थी। लड़की उससे बहुत छोटी थी, बिलकुल कच्ची कली... नाम था उसका 'नोशबाह'।
नोशबाह के वालिद का इंतकाल हो चुका था और यह शादी उनकी खाला ने तय की थी। जबकि उनकी वालिदा आपने भाई के साथ कनाडा में थीं। ये सारी बातें जब उसका हमारे घर आना जाना हुआ तब हमें पता चला क्योंकि रज़िया से उसकी अच्छी दोस्ती हो गई थी। वो रज़िया को आंटी और मुझे अंकल कहती थी। मेरे दोनों बेटे उससे बहुत घुल मिल गए थे।
आतिफ और नोशबाह की यह शादी नोशबाह की खाला ने करवाई थी । नोशबाह अभी हक़ीक़त में शादी और शौहर इन सब से बहुत ज्यादा वाक़िफ़ भी नहीं लगती थी। मुझे तो वो बिलकुल ही बच्ची जैसी लगती थी। रज़िया अक्सर उसका ज़िकर मुझसे किया करती थी। नोशबाह को ज्यादा तो नहीं देखा था पर जितना हाथ पैर और चेहरे से पता चलता था, उससे वह बहुत ही खूबसूरत थी। दुबली पतली सी बिलकुल शफ़्फ़ाक़ गोरी। बस उसके पूरे शरीर में उसकी बड़ी बड़ी चूचियां और उभरे हुए चूतड़ ही अलग से पता चलते थे। बाकि सब एक आम औरत जैसा ही था क़ाबिले बयान जैसा कुछ नहीं।
एक दिन रज़िया ने बताया कि नोशबाह तीन महीने की प्रेग्नेंट है और कल उनके यहाँ फंक्शन है। सब लोगों को बुलाया है। कल थोड़ा जल्दी आ जाइएगा।
"ठीक है" -मैंने रज़िया को जवाब दिया
दूसरे दिन मैं जब घर पहुंचा तो सब लोग पहले से तैयार थे। मैंने भी फटाफट कपड़े बदले, रज़िया ने मेरे कपड़े पहले ही निकाल दिए थे। हम सब तैयार होकर नोशबाह के घर पहुंचे।
वह बहुत ही ज्यादा खुश थी कि उनकी पूरी फैमिली आ चुकी थी। वो मेरे हाथों में हाथ डाल कर ड्राइंग-कमरे में दाखिल हुई और वहाँ मौजूद लोगों से मेरा परिचय कराया।
मुझे उनके मामून ने गले लगाया और खूब प्यार कर रहे थे कि अचानक चाय के कप की शीशे के टेबल पर गिरने की आवाज़ आई। सब मुझे देख कर खड़े हुए थे और नोशबाह सब को छोड़ कर एक ख़ातून की तरफ अम्मी कह कर लपकी, जिनके हाथों से कप गिर गया था और वो खुद भी सोफे पर ढेर हो गई थीं। मैं भी उनकी तरफ लपका और उनके क़रीब जा कर उन्हें देखते ही मेरी तो चीख निकलती-निकलती रह गई कि नोशबाह की अम्मी फरजाना ख़ान थीं।
सारी सूरत-ए-हाल मैं समझ गया और खुद को कंट्रोल करने लगा।
नोशबाह ने अम्मी को संभाला और मेरे कमरे में ले जाने लगी, मैं भी मुज़ारत करके उनके साथ ही हो लिया। नोशबाह उन्हें लेटा कर पानी लाने कमरे से बाहर निकल गई। फरजाना ख़ान होश में थीं और उनका रंग पीला हो गया था।
मैंने नोशबाह की गैर-मौजूदगी में सिर्फ़ खौफज़दा होकर पूछा- "क्या नोशबाह मेरी बेटी है?"
और उन्होंने रोते हुए कहा- "जी सग़ीर... नोशबाह हमारी ही बेटी है"
मैं यह सुनकर बड़ी मुश्किल से संभला और मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरा हार्ट-फेल ना हो जाए। बहुत मुश्किल से खुद पर क़ाबू पाया। नोशबाह ने उन्हें पानी पिलाया और इसी दौरान सब लोग कमरे में आ गए।
सबने पूछा कि क्या हुआ और उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा- "कुछ नहीं, हैरानी में क़ाबू ना पा सकी कि सग़ीर जी हमारे ख़ान साहब के सबसे क़रीबी स्टूडेंट थे और मैं बहुत पहले कई बार इनसे मिल चुकी हूँ"
यह सुनकर सब बहुत खुश हुए और बच्चों ने तालियाँ भी बजाईं और फिर सब कमरे में ही इधर-उधर बैठ गए और अब सबने ही कहना शुरू कर दिया कि मुझे क्या हुआ।
मैं बदनसीब क्या बोलता कि क्या क़यामत टूट रही है। मैं पसीना-पसीना हो रहा था और कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि क्या सोचूँ क्या करूँ।
मेरी अम्मी और रज़िया भी परेशान थीं कि मुझे क्या हुआ?
मैंने कह दिया- "मैं भी ख़ान साहब का सुनकर हैरान हुआ और कुछ नहीं। मुझे मालूम ही नहीं था कि ख़ान साहब का इंतकाल हो चुका है"
अब सब लोग आपस में बात कर रहे थे कि इस दौर में भी लोग आपने टीचर से इस कदर प्यार करते हैं। फ़रज़ाना ख़ान भी सन्नाटे में थीं और बदहवाश थीं।
लेकिन क़ुसूर हम दोनों का नहीं था।
सब लोग खाने तक रुके और मैंने नॉर्मल रहने की बहुत कोशिश की, फ़रज़ाना साहिबा की तरह।
हम सब लोग घर वापस आ गए थे। मैं अपने कमरे में आ गया और अब फिर सोच रहा था कि यह क्या हो गया।
काम से फारिग होकर रज़िया भी आ गई और बैठी ही थी कि मेरी आपा आ गई और बोली कि नोशबाह की अम्मी का फ़ोन आया है। वो मुझसे बात करना चाह रही थीं।
उन्होंने सिर्फ़ इतना कहा- "सग़ीर जी, प्लीज़ हो सके तो ख़ान साहब, मेरी और अपनी बेटी की इज़्ज़त रख लेना"
मैंने सिर्फ़ इतना कहा- "आप परेशान ना हों"
और मैं वापस अपने कमरे में आ गया। मैं बिस्तर पर निढाल होकर लेट गया।
ये दुनिया बहुत छोटी है दोस्तों! हमारा किया देर सबेर हम तक पहुँच ही जाता है।
अब अपने दोस्त सग़ीर खान को अगली कहानी तक के लिए इज़ाजत दीजिये। ख़ुदा हाफिज़।
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!
Love You All
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!
Love You All