20-05-2024, 11:26 PM
"ओह घंशू! और ई कौन सी चिड़िया है साथ में?" हमें देख कर वह बूढ़ा बोला।
"अब दरवाजे पर ही सवाल करेगा कि अंदर भी आने देगा?" घनश्याम उस बूढ़े से बोला। लगता था ये एक दूसरे के पुराने परिचित थे।
"आओ आओ, अंदर आओ।" कहकर वह दरवाजे से हट कर अंदर बढ़ गया। घनश्याम मुझे खींच कर उस बूढ़े के पीछे पीछे अंदर घुस गया। अब तो मेरा डर दुगुना हो गया। मैंने अंदर दृष्टि घुमाई तो देखा कि कच्ची दीवारें, कच्चे फर्श का कमरा था। एक तरफ दो पुरानी कुर्सियां और एक स्टूल रखा हुआ था। स्टूल पर एक पानी का जग और दो ग्लास रखे हुए थे। कमरा साफ सुथरा था लेकिन यह कमरा गरीबी का रोना रोना रो रहा था।
"मैं इसे नीचे के कमरे में ले जा रहा हूं।" घनश्याम बोला।
"अरे भाई पहले ई तो बता कि यह है कौन?" वह बूढ़ा बोला।
"ज्यादा पूछो मत। बस जान लो कि अच्छे घर की पढ़ने लिखने वाली लड़की है।" घनश्याम बोला।
"फिर इसे यहां काहे ले कर आए हो?'" वह बूढ़ा हैरानी से बोला।
"अरे यार, हमारे बड़े 'काम' की चीज है।" काम शब्द पर जोर देते हुए वह बोला।
"अईसा क्या? लगती तो नहीं है। इतनी कम उम्र में ही?'" बूढ़ा आश्चर्य से मुझे सर से पांव तक देखते हुए बोला। उसकी नजरों में जो चमक थी वह और बढ़ गई।
"हां हां, इतनी कम उम्र में ही।" घनश्याम मुस्कुरा कर बोला।
"ठीक है ठीक है इसे नीचे के कमरे में ले जाओ। अच्छे घर की लड़की है तो थोड़ी अच्छी जगह रखना चाहिए न इसे।" वह बूढ़ा मुस्कुरा उठा। अब घनश्याम मुझे खींचते हुए कमरे के कोने की ओर ले चला। उस कोने के बिल्कुल पास पहुंच कर पता नहीं घनश्याम ने क्या किया कि वहां दरवाजे के साईज का एक हिस्सा अपने आप बिना आवाज खुल गया। मैं चमत्कृत सी देखती रह गयी। जैसे ही वह गुप्त दरवाजा खुला, घनश्याम मुझे खींचते हुए अंदर ले गया। अब मैं बहुत भयभीत हो चुकी थी।
"यह यह कहां ले कर जा रहे हैं मुझे?" भय के मारे मेरे मुंह से निकला।
"तुम चलो तो। अच्छी जगह है।" वह मुझे खींचते हुए जैसे ही आगे बढ़ा, सामने नीचे जाने की सीढ़ियां दिखाई दीं। निश्चित तौर पर यह कोई गुप्त तहखाना था। नीचे जाने तक का पूरा रास्ता पूरी तरह रोशन था। सीढ़ियां जहां खत्म हुईं, सामने एक शानदार दरवाजा मिला। हम जैसे ही दरवाजे के पास पहुंचे, न जाने घनश्याम ने क्या किया कि दरवाजा अपने आप खुल गया। मुझे यह जगह बड़ा ही रहस्यमय जगह लग रहा था। किसी तिलस्मी जगह की तरह। उस दरवाजे के अंदर जाने से मुझे हिचकिचाहट हो रही थी। एक अनजाना सा भय मेरे भीतर घर कर गया था। घनश्याम मेरी हिचकिचाहट को ताड़ कर मुझे खींच कर अंदर ले आया।
जैसे ही मैं उस दरवाजे के अंदर आई, मेरे पीछे दरवाजा अपने आप बंद हो गया। अंदर का दृश्य देख कर मैं दंग रह गई कि बाहर से झोपड़ी दिखाई देने वाले इस घर के अंदर इतना सुसज्जित कमरा भी हो सकता है। कमरा पूरी तरह से सजा हुआ था और साफ सुथरा था। अंदर की सीमेंटेड दीवारों पर आकर्षक टेक्सचर पेंटिंग थीं। फर्श पर टाईल्स लगे हुए थे। बीच फर्श पर कालीन बिछा हुआ था। यह कमरा काफी बड़ा था और बीच में सोफा सेट और सेंटर टेबल था। एक तरफ बड़ा सा किंग साईज शानदार बेड था। सामने दीवार पर 48" का टीवी लगा हुआ था। अंदर घुसते ही घनश्याम ने एयर कंडीशन ऑन कर दिया।
"जाओ उस सोफे पर बैठ जाओ।" घनश्याम मुझे हुक्म देते हुए बोला। मैं कांपते पैरों के साथ उस सोफे की ओर बढ़ी। जैसे ही मैं सोफे पर बैठी मैंने देखा कि वह बूढ़ा भी कब अंदर आ चुका था, मुझे पता ही नहीं चला। वह मुझे घूर घूर कर देख रहा था। उसकी नजर भी काफी डरावनी थी। उसकी नजरें मेरे सीने पर टिक गई थीं। सहसा मुझे अहसास हुआ कि मेरी टॉप के बटन खुले हुए थे। मैं जल्दी जल्दी बटन लगाने लगी। मैंने देखा कि वह बूढ़ा मुस्कुरा रहा था।
"यह यह अअअअआप मुझे कहां ले आए?" मैं हकलाते हुए बोली।
"तुम्हें डर लग रहा था ना? तुम यहां निश्चिंत रह सकती हो। यहां तुम्हें डर नहीं लगेगा। सच बोलूं तो यहां तुम्हारा सारा डर ही खत्म हो जाएगा।" घनश्याम धूर्तता पूर्वक मुस्कुराते हुए बोला और मैंने देखा कि वह बूढ़ा भी मुस्कुरा रहा था। इस वक्त घनश्याम से ज्यादा उस बूढ़े की मुस्कान डरा रही थी। सामने के ऊपर वाले चार दांत गायब थे उसके। मैं सोच रही थी कि इससे अच्छा तो वहीं झाड़ियों के बीच ही ठीक थी। जो होता वहीं घनश्याम के साथ होता। उसे झेल भी लेती, लेकिन यहां तो इस बूढ़े की उपस्थिति से, इतने अच्छे कमरे में भी मैं असहज महसूस कर रही थी। घनश्याम को इनकार करना बड़ा महंगा साबित हो रहा था। वहीं जंगल में घनश्याम की बात मान लेती तो यह नौबत नहीं आती। यह कहां आ फंसी थी मैं। आसमान से गिरी तो खजूर में अटकी। अब मुझे अपनी दुर्गति स्पष्ट दिखाई दे रही थी।
"अब दरवाजे पर ही सवाल करेगा कि अंदर भी आने देगा?" घनश्याम उस बूढ़े से बोला। लगता था ये एक दूसरे के पुराने परिचित थे।
"आओ आओ, अंदर आओ।" कहकर वह दरवाजे से हट कर अंदर बढ़ गया। घनश्याम मुझे खींच कर उस बूढ़े के पीछे पीछे अंदर घुस गया। अब तो मेरा डर दुगुना हो गया। मैंने अंदर दृष्टि घुमाई तो देखा कि कच्ची दीवारें, कच्चे फर्श का कमरा था। एक तरफ दो पुरानी कुर्सियां और एक स्टूल रखा हुआ था। स्टूल पर एक पानी का जग और दो ग्लास रखे हुए थे। कमरा साफ सुथरा था लेकिन यह कमरा गरीबी का रोना रोना रो रहा था।
"मैं इसे नीचे के कमरे में ले जा रहा हूं।" घनश्याम बोला।
"अरे भाई पहले ई तो बता कि यह है कौन?" वह बूढ़ा बोला।
"ज्यादा पूछो मत। बस जान लो कि अच्छे घर की पढ़ने लिखने वाली लड़की है।" घनश्याम बोला।
"फिर इसे यहां काहे ले कर आए हो?'" वह बूढ़ा हैरानी से बोला।
"अरे यार, हमारे बड़े 'काम' की चीज है।" काम शब्द पर जोर देते हुए वह बोला।
"अईसा क्या? लगती तो नहीं है। इतनी कम उम्र में ही?'" बूढ़ा आश्चर्य से मुझे सर से पांव तक देखते हुए बोला। उसकी नजरों में जो चमक थी वह और बढ़ गई।
"हां हां, इतनी कम उम्र में ही।" घनश्याम मुस्कुरा कर बोला।
"ठीक है ठीक है इसे नीचे के कमरे में ले जाओ। अच्छे घर की लड़की है तो थोड़ी अच्छी जगह रखना चाहिए न इसे।" वह बूढ़ा मुस्कुरा उठा। अब घनश्याम मुझे खींचते हुए कमरे के कोने की ओर ले चला। उस कोने के बिल्कुल पास पहुंच कर पता नहीं घनश्याम ने क्या किया कि वहां दरवाजे के साईज का एक हिस्सा अपने आप बिना आवाज खुल गया। मैं चमत्कृत सी देखती रह गयी। जैसे ही वह गुप्त दरवाजा खुला, घनश्याम मुझे खींचते हुए अंदर ले गया। अब मैं बहुत भयभीत हो चुकी थी।
"यह यह कहां ले कर जा रहे हैं मुझे?" भय के मारे मेरे मुंह से निकला।
"तुम चलो तो। अच्छी जगह है।" वह मुझे खींचते हुए जैसे ही आगे बढ़ा, सामने नीचे जाने की सीढ़ियां दिखाई दीं। निश्चित तौर पर यह कोई गुप्त तहखाना था। नीचे जाने तक का पूरा रास्ता पूरी तरह रोशन था। सीढ़ियां जहां खत्म हुईं, सामने एक शानदार दरवाजा मिला। हम जैसे ही दरवाजे के पास पहुंचे, न जाने घनश्याम ने क्या किया कि दरवाजा अपने आप खुल गया। मुझे यह जगह बड़ा ही रहस्यमय जगह लग रहा था। किसी तिलस्मी जगह की तरह। उस दरवाजे के अंदर जाने से मुझे हिचकिचाहट हो रही थी। एक अनजाना सा भय मेरे भीतर घर कर गया था। घनश्याम मेरी हिचकिचाहट को ताड़ कर मुझे खींच कर अंदर ले आया।
जैसे ही मैं उस दरवाजे के अंदर आई, मेरे पीछे दरवाजा अपने आप बंद हो गया। अंदर का दृश्य देख कर मैं दंग रह गई कि बाहर से झोपड़ी दिखाई देने वाले इस घर के अंदर इतना सुसज्जित कमरा भी हो सकता है। कमरा पूरी तरह से सजा हुआ था और साफ सुथरा था। अंदर की सीमेंटेड दीवारों पर आकर्षक टेक्सचर पेंटिंग थीं। फर्श पर टाईल्स लगे हुए थे। बीच फर्श पर कालीन बिछा हुआ था। यह कमरा काफी बड़ा था और बीच में सोफा सेट और सेंटर टेबल था। एक तरफ बड़ा सा किंग साईज शानदार बेड था। सामने दीवार पर 48" का टीवी लगा हुआ था। अंदर घुसते ही घनश्याम ने एयर कंडीशन ऑन कर दिया।
"जाओ उस सोफे पर बैठ जाओ।" घनश्याम मुझे हुक्म देते हुए बोला। मैं कांपते पैरों के साथ उस सोफे की ओर बढ़ी। जैसे ही मैं सोफे पर बैठी मैंने देखा कि वह बूढ़ा भी कब अंदर आ चुका था, मुझे पता ही नहीं चला। वह मुझे घूर घूर कर देख रहा था। उसकी नजर भी काफी डरावनी थी। उसकी नजरें मेरे सीने पर टिक गई थीं। सहसा मुझे अहसास हुआ कि मेरी टॉप के बटन खुले हुए थे। मैं जल्दी जल्दी बटन लगाने लगी। मैंने देखा कि वह बूढ़ा मुस्कुरा रहा था।
"यह यह अअअअआप मुझे कहां ले आए?" मैं हकलाते हुए बोली।
"तुम्हें डर लग रहा था ना? तुम यहां निश्चिंत रह सकती हो। यहां तुम्हें डर नहीं लगेगा। सच बोलूं तो यहां तुम्हारा सारा डर ही खत्म हो जाएगा।" घनश्याम धूर्तता पूर्वक मुस्कुराते हुए बोला और मैंने देखा कि वह बूढ़ा भी मुस्कुरा रहा था। इस वक्त घनश्याम से ज्यादा उस बूढ़े की मुस्कान डरा रही थी। सामने के ऊपर वाले चार दांत गायब थे उसके। मैं सोच रही थी कि इससे अच्छा तो वहीं झाड़ियों के बीच ही ठीक थी। जो होता वहीं घनश्याम के साथ होता। उसे झेल भी लेती, लेकिन यहां तो इस बूढ़े की उपस्थिति से, इतने अच्छे कमरे में भी मैं असहज महसूस कर रही थी। घनश्याम को इनकार करना बड़ा महंगा साबित हो रहा था। वहीं जंगल में घनश्याम की बात मान लेती तो यह नौबत नहीं आती। यह कहां आ फंसी थी मैं। आसमान से गिरी तो खजूर में अटकी। अब मुझे अपनी दुर्गति स्पष्ट दिखाई दे रही थी।